मीडिया में यौनाचार (3) : मैं पिछले दो सालों से मीडिया पर गंभीरता से काम कर रहा हूं। बदलती मीडिया की तस्वीर, मीडिया का बाज़ार, इसमें आने वाले लोग, पत्रकारिता की नई शिक्षा-दीक्षा, पाठक को खबर देने के बजाय उसे बाजार तक ले जाने की नीति, गाली-गलौज की नई परिपाटी और पत्रकारिता के नाम पर दलाली और सेक्सुअलिटी जैसे मुद्दों पर इन दो सालों में काफी जानकारियां मिलीं। मीडिया में यौनाचार की बात सिर्फ दो किश्तों में लिखना चाहता था, और वह भी डर कर। महिलाए हमारी मां-बहनें हैं और इनकी बुराई लिखना अपनी संस्कृति को धोखा देने के समान है। गलत चलन पर थोड़ी रोक लगे, इस कारण कुछ अनुभव लिखने का साहस कर बैठा। आप सबों को भले ही इस लेखन को पढ़ने में अच्छा या बुरा लगता हो, लेकिन मैं जो झेल रहा हूं, वह कह नहीं सकता। आलम ये है कि हमारे पास हर रोज हर राज्य से दर्जनों नई जानकारियां मिल रही हैं। दूसरी तरफ कई तरह की गालियां भी। कुछ अजीज मित्रों के सलाह पर और कई नई जानकारियां मिलने के चलते बात आगे बढ़ा रहा हूं। दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश और पंजाब पर काफी मसाला है। आप जानेंगे यहां का भी हाल, लेकिन अभी थोड़ी जानकारी लेते हैं हिंदी पत्रकारिता के गढ़ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बारे में।
पहले भी पत्रकारों के सम्बन्ध महिलाओं से होते थे, लेकिन इन संबंधों का पत्रकारिता पर कोई असर नहीं पड़ता था। आज ऐसे संबंधों का असर मीडिया पर पड़ रहा है। हमारे यहां तमाम काबिल महिला पत्रकार रही हैं और आज भी हैं, लेकिन इतना तय है कि आज अधिकतर पुरुष पत्रकार अपने स्वार्थ के लिये महिलाओं को जोड़ रहे हैं। इसका असर पत्रकारिता के माहौल पर पड़ा है। भोपाल के कम से कम दो मीडिया हाउस में दर्जन भर जिन लड़कियों को जगह दी गयी है उनमें 7 लड़कियां तो केवल बीए पास हैं। ये महिलाएं दो कामुक पत्रकारों की कृपा से आयी हैं। बाद में एक पत्रकार हटा दिया गए। इन पर छेड़खानी का आरोप लगा। वे आजकल बिलासपुर में कुछ कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के कई महान पत्रकारों ने हिंदी-इंग्लिश पत्रकारिता को नई दिशा देने का काम किया है। इनमें कुछ तो हमें छोड़ कर चले गए और कुछ आज भी स्थानीय स्तर से लेकर दिल्ली तक सक्रिय हैं। इन पर हमें गर्व है। लेकिन हम भोपाल के उस महान बड़े पत्रकार को क्या कहें जो अपनी बेटी समान महिला पत्रकार के साथ हर रोज साथ बिताना पसंद करते हैं। कहते हैं कि इन महोदय की राज्य सरकार में खूब चलती है और कोई काम करने के बदले महिला पहले और रुपया बाद में लेते हैं। भोपाल के एक बड़े अखवार के एक समाचार संपादक अपने एक महिला सहचरी के घर तक पहुंच जाते हैं। एक बार ये महोदय सहचरी लेकर जा रहे थे कि रास्ते में ही इनकी पत्नी मिल गयी और तमाशा खड़ा हो गया। उस लड़की को देख लेने की धमकी दी। उस लड़की को इसी महाशय ने काम दिया था। भोपाल की उस लड़की को कौन नहीं जानता जो देखने में तो सांवली है, लेकिन मालिक तक इस पर फिदा हैं। कई संस्करणों वाले इस अखबार से अब तक 6 लोगों की नौकरी इसके चलते चली गयी है। इसी शहर में तालाब के पास से कई अखबार निकलते हैं। तीन लड़कियों की शिकायत है कि उन्हें संपादकों ने नहीं बख्शा और विज्ञापन लाने के नाम पर साथ जाने को कहा। इनमें से एक लड़की आज दुकान पर काम करती है और दो लड़कियां 8 पन्ने के एक अखबार में। इसी भोपाल में एक पत्रिका के मालिक-सम्पादक कितनी लड़कियों को बर्बाद कर चुके हैं, कहना मुश्किल है। और ये लड़कियां कई पत्रकारों की नौकरियां खा गयीं।
जबलपुर के एक पत्रकार ने तो दो लड़कियों को नौकरी देने के नाम पर उससे पैसे भी लिए और बर्बाद भी किया। भोपाल में केबल टीवी में काम करने वाली चार लड़कियों के साथ वह सब किया गया जिसके लिए वह तैयार नहीं थीं। और यह सब मात्र 1000 रुपए को बढ़ाकर किया गया। एक राष्ट्रीय चैनल के ब्यूरो चीफ को एक लड़की ने अपने प्रमोशन के बदले सब कुछ देने की बात कही। इनकार करने पर उस लड़की ने पत्रकार पर बलात्कार का आरोप तक लगा दिया। भोपाल की दो महिला पत्रकारों ने हमें बताया कि एक बड़े पत्रकार ने उसे सिवनी चलने को कहा। वह चली गयीं। रात में पत्रकार साहब ने अपनी इच्छा बताई तो वे राजी नहीं हुई और दूसरे दिन उन्हें निकाल दिया गया। कहते हैं कि इस पत्रकार के पास करोड़ों की सम्पति है। इंदौर में एक चैनल के वरिष्ठ पत्रकार सतना की एक महिला पत्रकार को स्टिंग आपरेशन के लिए ले गये। बाद में उस लड़की की सीडी बनाकर ब्लैकमेल करने लगा। ये लड़की आज एक अखबार में है। ग्वालियर के सम्पादक जी सिर्फ नई लड़कियों को ही नौकरी देते हैं। ये महोदय लड़कियों के साथ दिल्ली भी आते जाते हैं। सागर के एक चैनल के स्ट्रिन्गर ने एक लड़की को नौकरी दिलाने के नाम पर पहले खुद उसका शोषण किया। बाद में एक छोटे अखवार में उसे सब कुछ करने की शर्त पर नौकरी मिली। उस लड़की को उस अखबार से भी हटना पड़ा।
छत्तीसगढ़ में नौकरी के नाम पर शारीरिक शोषण के मामले कुछ ज्यादा ही हैं। रायपुर से 7 लड़कियों की शिकायत हमें मिली है। रायपुर से चल रहे एक चैनल का हवाला देते हुए तीन लड़कियों ने कहा है कि मीडिया के प्रति उनके मन में जो भ्रम था, यहां जाकर समाप्त हो गया। उस चैनल में तीन हरामी किस्म के लोग थे जिन्होंने कई को बर्बाद किया। खबर क्या बना रही हो, जानने के बहाने अपने केबिन में बुलाकर गलत बात करते थे। एक लड़की ने जानकारी दी है कि पहले वह अखबार में काम करने गयी थी। मालिक ही सम्पादक था। एक महीने के भीतर उसकी सेलरी बढ़ा दी गयी और गलत काम के लिए बाध्य किया गया। नौकरी छोड़नी पड़ी। एक लोकल चैनल में गयी तो इनपुट हेड देर शाम तक रोकता था। एक दिन उसने तो हद ही कर दी। बाद में लड़की को निकाल दिया गया।
रायपुर में एक बूढ़े पत्रकार का लड़की प्रेम जगजाहिर है। बिलासपुर के बड़े अखवार में छोटे कद के एक पत्रकार को दारु और लड़की साथ-साथ चाहिये। ये सज्जन अभी तक दर्जनों लड़कियों को मीडिया में ब्रेक दे चुके हैं। ऐसे में हम कह सकते हैं कि मीडिया में संस्कारहीनता बढ़ती जा रही है और पत्रकारिता को एक निजी सेवा के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है। अगर ऐसा नहीं है तो वह आदमी आज तक रायपुर के उस चैनल में क्यों है जिसे लिखने पढ़ने से कोई मतलब नहीं। इस पत्रकार के बारे में कहा जाता है कि यह ऊपर के लोगों को खुश रखने की कला भी जानता है। इसी शहर के एक और रीजनल चैनल के दो प्रमुख लोगों पर कई लड़कियों के साथ सम्बन्ध रखने का आरोप है। देश के कई भागों में यह चैनेल चलता है। …जारी..
वरिष्ठ पत्रकार अखिलेश अखिल बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के निवासी हैं. पटना-दिल्ली समेत कई जगहों पर कई मीडिया हाउसों के साथ कार्यरत रहे. मिशनरी पत्रकारिता के पक्षधर अखिलेश अखिल से संपर्क mukheeya@gmail.com के जरिए किया जा सकता है.
Comments on “रायपुर के बूढ़े पत्रकार का लड़की प्रेम”
BILKUL AKHILESH JI Aapke is nake kam ki sarhana karni cheyeh .. keep it up..
akbhar ka nama aur concern persn ka nam dalte to maza aa jata. posibal ho to media house ka ashli nam aur concer journlist k fake nam likhiye.
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मुखिया जी,
कुछ पत्रकार गन्दगी को बढ़ाबा दे रहे हैं, इसका मतलब यह कतई नहीं हैं कि सब कुछ खत्म हो गया है. आपसे एक गुजारिश है, जब इतनी पैनी कलम इस मुद्दे पर चला रहे हैं तो उनका नाम जाहिर करने का भी साहस उठायें. इससे एक लाभ यह हो सकता है कि उनका नाम आने के बाद उनकी कुर्सी ही सरक जाये, अगर प्रबंधन के लोगो में शर्म बाकी हो तो…!
BILKUL AKHILESH JI Aapke is nake kam ki sarhana karni cheyeh
Rajesh yadav
kolkata
मैं स्वयं भोपाल में दैनिक भास्कर और दैनिक नई दुनिया में काम कर चुकी हूं। मुझे कभी भी किसी परेशानी या अशोभनीय व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा। अपितु संपादकों, वरिष्ठïों और समवयस्क साथियों द्वारा लड़कियों को सदैव प्रोत्साहित करते ही देखा। आपने शोषण करने वाले पत्रकारों के बारे में बिना नाम लिए लांछन लगाने में तो कोई कसर नहीं छोड़ी, पर उन लड़कियों के बारे में भी तो कुछ कहें जो अपना तथाकथित शोषण तब तक होने देती हैं जब तक उन्हें कोई नुकसान नहीं होता। और फिर जो लड़की स्वयं का संरक्षण नहीं कर सकती वह क्या सोचकर पत्रकारिता करना चाहती है?
akhilash ji, aap ne jo mudda uthaya ha wo patrakarita ko nirdharit raste par cchalane ke liye sahi ha, lakin aapse gujarish ha ki patrakar ki khal mai chhupe hua darindo ka name bhi prakashit karen.
K.K.SHARMA BKN.
अखिलेश भाई क्या एक ही महीने में सारे लोगो के कपडे उतार लेने का इरादा हे , बस करो थक जाओगे . अरुण
Akhil bhai bus karo kya ek hi bar me sabke kapde utar doge. thak gaoge kuch ke to rahne hi do na. ab ve mahan patrakar ho gaye hi.Arun
akhil ji patrkarita ka swarup badal raha hay ye bath to sahi hay.aap khud jantey hay ki kai channel ish liay chalu hotey hay ki unki wasna ki purti ho.yahi nahi patrkar kewal ligner rahgya hay.jin patrkaro ki aap kar rahey hay wo patrkar nahi akhbar malik ya unkey dalal hay.may khud channel ka hed raha hu our marey sampark may lagbhag 10 ladki aai jinmaysay 8 ladki ish line may aagey aaney keliay kuch bhi karney ko tyar thi. kewal patrkar ko dosha ropen karna sahi nahi hay. aapkey dor may our aaj khafi badlaw aaya hay. aap khud jantey hay ki yadi koi ladki ya mahila ki sahmti na ho to kuch karna to dur hath lagana bhi katin hay ish liay may kewal patrkar ko doshi nahi mantha.
Narayan Dat Tiwari ke sath raha hoga bhai. uski koi galti nahian hai.
Naryan Datt Tiwari ka sathi hoga
अखिलेश जी
वाकई आपने एक ऐसा मुददा उठाया है जो अभी तक आम लोगो की सोच से परे था , इसके लिए मै आपको बधाई देता हू. लेकिन आपके द्वारा लिखी गई कलम से ऐसे लोगो का कुछ भी अहित होने वाला नहीं है क्योंकि आप ऐसे रंडीबाज लोगो और उनके संस्थानों का अपनी खबरों में कहीं भी जिक्र ही नहीं कर रहे है| पत्रकारिता के मिशन में ये अनछुए पहलुओं से सारी मीडिया जगत परिचित है लेकिन जब आपने ऐसे लोगो के मुह से नकाब उठाने की पहल की है तो कम से कम उन लोगो का नाम और ऐसे अखबार मालिक का भी जिक्र करें जिन्हें समाज के आम नागरिको के द्वारा बड़े ही सम्मान की नजरो से देखा जाता है…
संजय गुप्ता (टी.वी. जर्नलिस्ट)
उरई (जालौन)
Email— sanjay_kurele@yahoo.com
Akhikesh Ji, I am agree with you on this issue. There are not many but a few person are found in most of the media institution. Actually they are succeeding in their misdeed as they are supported by owners of the institution themselves. But as u mentioned here there identity should come in limelight so that innocent humankind (fair sex) can abstain from them….
Hello Mr.Akhikesh,
I read your views about this issue, but it does not mean media is wrong line now. And most important is not body can make sex relations without woman permission. It happen many time girls or woman not try to stop sex harassment in first stage when some body start in first stage. If their senior ask them for tea or ask them in two means words then they feel happy. But when that senior use them and throw out them , then most of woman say these type of words. Tell me if you have seen any person who can make sex relations with women without her permission but rape is different thing. So only those persons are not evils but those women are also wrong who not try to stop all these in first stage.
अखिलेश जी आपने बडी खूब सूरती के साथ म.प्र और छत्तीसगढ के बरिष्ट पत्रकारो के बारे मे जो मन मे आया कह दिया मे आपसे पूछना चाहूगा की आप क्या जानते है मप्र के बारे मे और रही बात आपकी तो आप की पत्रकारिता को भी छत्तीसगढ मे बांच टीवी मे सब देख चुके है अखिल जी आप कितने वेआवरु होकर छत्तीसगढ से निकले आप ही जानते होगे रही बात हमारी तो चाहे मप्र हो या छत्तीसगढ हमे नाज है अपने पत्रकारो पर और उनके संस्कारो पर औऱ कही आपने पीकर सब बिहार के लिए तो नही लिखा था जिसमे मप्र धोखे से लिख गया हो और रही बात मीडिया मे गंदगी की तो आप जैसे प्रचारक मीडिया का गलत प्रचार कर रहे है भारत मे नारी को देवी माना जाता है और आपने उस नारी जाति का अपमान किया है माफी चाहूगा अगर आपकी वेटी पत्रकारिता मे आ जाए तो क्या आप की धारणा यही होगी तो आपसे अनुरोध हो की कुछ आप जैसे लोग जो नाकामयाबी का शिकार रहे है मप्र मे विमारी रहे है तो अपनी गंदगी अपने पास रखे और इसे कम से कम यहा तो ना फैलाए आदरणिय अखिलेश जी आपके उपर तो फेल होने का ठप्पा लग चुका है पहले इण्डिया न्यूज और बाद मे वाच न्यूज से भगाए गये सब मुझे पता है जो व्यक्ति खुद पत्रकारिता मे पूरी तरह से असफल हो वो सफल पत्रकारो की आलोचना के अलावा कर भी क्या सकता है तुलसी दास जी ने राम चरित के उत्तरकांड में साफ साफ एक चौपाई के माध्यम से आप जैसे लोगों को ठीक करने के लिए ही लिखा है। जे औरन कि निंदा करहीं। ते चमगादड़ होई अवतरही।
धन्यवाद
apkai sare artical ko pad kar mehsus hua ki aap zingi sai hare hua insaan hai. kyu ki apne issme adiktar bade news paper or chanles ki aur isshara karke apni baat ko samne rakha hai. sir agar aap sach main kisi chiz sai parda uthana chate to apko un logo ka naam or company ka naam bhi likhna chaiye tha, yai na likh kar apke maan main chor jahir hota hai. namskar
dear akhilesh, its not right issue. plz ignore it. I have read your article. its seems you are hopeless person. you have not got success in your life. plz you belive the meassge of mahatma gandhi lesson. bura mat dekho. bura mat khao, bura mat suno.
नरेंद्र जी, निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छवाये…..और शायद निंदक मतलब आलोचक होता है….और पत्रकारिता की संस्कृति की जब समीक्षात्मक आलोचना हो रही है तो स्वाभाविक तौर पर प्रदेशों में भारत के प्रदेशीय पत्रकारिता की चर्चा तो होगी ही….पत्रकारों के लिए कोई भौगोलिक सीमाये नहीं होती है….हां कार्यक्षेत्र हो सकता है…ऐेसे में यह कहना है कि छत्तीसगढ़ की पत्रकारिता यह है और बिहार की वह है कहीं न कहीं आपके दिमागी घेरे को ही दिखाता है….जरूरत है इस दिमागी घेरे को तोड़ने की..।
यदि संथान से निकाला जाना ही किसी पत्रकार को नाकाम करार देने का मानदंड है तो इस मानदंड पर कई नाम आ सकते हैं….आपको तो पता होगा कि अंग्रेज लोग तो संस्थान को ही जब्त कर लेते हैं….पत्रकार को निकलने की बात तो छोड़ ही दीजिये….व्यवसायिक पत्रकारिता के इस दौर में किसी पत्रकार को नौकरी से निकाला जाना उसके फेल होने की घोषणा नहीं करता है….इसके कई पहलू हो सकते हैं…जिनकी पड़ताल इमानदारी से कर के देखिये…खुद पता चल जाएगा। भारत में नारी को देवी माना जाता है….सौ फीसदी सही कह रहे हैं आप….नारी जाति के प्रवक्ता के तौर पर आप घोषणा कर रहे हैं कि अखिलेश जी इस जाति का अपमान कर रहे हैं…मीडिया हाउसों में सिर्फ लड़कियों पर की जाने वाली जेनरल टिप्पणियों को सुनेंगे तो आपका यह भ्रम जाता रहेगा कि मीडियावाले (बहुसंख्यक— वैसे एक एक छोटा सा तबका है जो मीडिया में नारी फोर्स को सम्मान देता है) भी आप ही तरह नारी को देवी का दर्जा देते हैं…रही बात अखिलेश जी के बेटी की मीडिया में आने की….तो अखिलेश जी उन तमाम बेटियों और बहनों के हक में लिख रहे हैं जो वाकई में मीडिया में आकर अपने जीवन का धेय पाना चाहती हैं….अखिलेश जी गंदगी को हटाने की बात कर रहे हैं…गंदगी को दिखा रहे हैं…और आप कह रहे हैं कि वह गंदगी फैला रहे हैं….सच पूछिये तो आपकी बुद्धि पर तरस खाने का भी जी नहीं कर रहा है….आप आंख बदं करके बेशक सफाई में रहिये….गालिब के शब्दों में कहते रहिये दिल को बहलाने के लिए यह ख्याल अच्छा है….
सादर
जब मीडिया को प्रोफेशन मान लिया गया है तो उसमें गंदे लोग भी हो सकते हैं। ठीक उसी तरह जैसे बाकी प्रोफेशन में और समाज में होते हैं, लेकिन अखिलेश अखिल इन सब चीजों को जिस गंदे तरीके से पेश कर रहे हैं, वह उबकाई आने जैसा है। वे लंबा अनुभव रखने वाले पत्रकार हैं। दूसरों पर छींटाकशी करने के बजाए उन्हें खाली समय में कुछ ऐसा लिखना चाहिए, जिसके लिए उन्हें याद किया जाए।
aaj bhi patrakaarita ki dewi ki utni hi pooja hoti hai…..fark sirf itna hai ki aaj is dewi ke mandir ke chhayatale baitthe kai bhakt hi paapi ho gaye hain….lekin hum sabko is daanav ke khilaaf aawaz utthana hogaa….kyunki ye hamari hi samasyaaa hai……thanks sir
Bhai je,mujha lag raha hay ke aab bahut ho gaya,aapna phela he apne babak bole aur lekhan say koe kam dushman banaya hay kya? may kal kishe pablication house may gaya tha koe kah raha tha ke Akhil je ke report mat chapo.halaki may aap key sangharsh may sath ho.
आदरणीय अखिलेश जी आपने सही लिखा है लेकिन एक बात मैं कहना चाहूंगा कि केवल इसमें उन पत्रकारों का ही दोष नहीं है क्योंकि इसमें उन लड़कियों का सबसे ज्यादा दोष है जो इस तरह के हथकंडे अपनाकर मीडिया या अन्य जगहों पर काम पाने के लिए करती हैं, वो इस तरह से काम तो पा जाती हैं लेकिन उनका भविष्य अंधकार में ही होता है क्योंकि वो भूल जाती हैं कि ये जवानी केवल चार दिनों की चांदनी जैसा है।और सबसे बड़ी बात ये है कि इस ढंग की लड़कियों में संस्कार की कमी है जिसके चलते ये इस तरह का घृणित कार्य करती हैं जो किसी भी नज़रिये से सही नहीं है। क्योंकि जो लड़की संस्कारित होगी वो कत्तई इस ढंग का कार्य नहीं करेगी चाहे उसे नौकरी मिले या ना मिले। लेकिन इस बदलते परिवेश में क्या कहा जाय जहां केवल सब यही कहते हैं कि आज लड़कियां मर्दों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलती हैं क्या यही तरीका कंधे से कंधा मिलाने का मतलब होता है। मैंने अपने दादा बाबा से ये सुना था कि औरतों को पर्दे में रहना चाहिए तभी उनकी लाज बची रहेगी लेकिन क्या कहा जाय कुछ भी कहने से फायदा नहीं है क्योंकि ऐसी लड़किया समाज के लिए कलंक के सिवा कुछ भी नहीं हैं।मैं ये समझता हूं कि जितनी लड़कियां आज नौकरी में तरक्की पाई होंगी उनमें से अधिकांश ने इस तरह का हथकंडे अपनाकर ही आगे बढ़ी हैं।अब चाहे कोई जो भी सोचे लेकिन मैं तो यही मानता हूँ।
Shrimaan, ye koi nai baat nahi hai. agar sexual herresment ki had dekhani hai to jaipur rajasthan ke ek cable tv network ke 5 sitara office me dekhiye. yahaa to aap ko sexual herresment ke saath castism bhi bharpur dikhega. vishvas na ho to picchale ek saal me is cable tv channel ke news department se nikaley gaye logo ki list nikal lo. sabhi jaati vishesh ke log milenge. phir bhi yakeen na ho to is news channel ke to tathakathit head ka pichhlaa record khangaal lo, cable operator to yahaa par news channel ke senior posts me se ek par ho aur doosra head anchors se flurt karney aur muh kholney par dhamkaane me no. 1 hai.
lagtaa hai aap paagal ho gaye ho
aapko aur koi kam nahi hai kya