लड़कीबाज टीवी पत्रकार स्टिंग का शिकार – (तीन)

यहां वीडियो से ली गईं वो तस्वीरें प्रकाशित की गई हैं जिसमें दरवाजे के बाहर घंटी बजने के ठीक पहले की कुछ मुद्राएं हैं. घंटी बजते ही टीवी जर्नलिस्ट और लड़की, दोनों अचानक झटके से उठ जाते हैं. लड़की कपड़े ठीक करने लगती है, दुपट्टा डालने लगती है, टीवी जर्नलिस्ट चश्मा उठाते – लगाते हैं और पैंट की बेल्ट कसते हुए गेट की तरफ बढ़ते हैं. लड़की बहुत जल्द खुद को दुरुस्त कर सोफे पर एक कोने में चुपके से बैठ जाती है, जैसे कुछ हुआ ही न हो वाली मुद्रा में. जिस कमरे में टीवी जर्नलिस्ट यह सब करता दिख रहा है, वहां कोने में पति-पत्नी की तस्वीर है, दीवार पर देवता लोग टंगे हैं.

लड़कीबाज टीवी पत्रकार स्टिंग का शिकार – (दो)

तस्वीरें गवाह होती हैं. जो वीडियो भड़ास4मीडिया के पास है, उससे ली गई तस्वीरें काफी कुछ कहानी बयान कर देती हैं. वीडियो को देखने से साफ जाहिर होता है कि टीवी जर्नलिस्ट व लड़की के बीच अच्छी अंडरस्टैंडिंग है. बार-बार साथ सोना, उठना, बातें करना, मोबाइल से बात करना, बाहर घंटी बजने पर दोनों का अचानक उठकर कपड़े ठीक करते हुए अलग-अलग होना… ये सब बताता है कि दोनों में ट्यूनिंग ठीकठाक थी. लेकिन जब खटक गई, चाहे जिस भी वजह से, तो दोस्ती के अच्छे दिनों के राज जगजाहिर हो रहे हैं. ये भी संभव है कि लड़की को स्टिंग के बारे में बिलकुल अंदाजा न हो.

लड़कीबाज टीवी पत्रकार स्टिंग का शिकार – (एक)

: वीडियो भड़ास4मीडिया के पास :  पत्रकार पर कबूतरबाजी, ब्लू फिल्म बना विदेश बेचने व अफसरों-लड़कियों को ब्लैकमेल करने के आरोप :  भड़ास4मीडिया के पास एक मेल के जरिए कुछ वीडियो भेजे गए हैं. इसमें एक टीवी जर्नलिस्ट का स्टिंग है. वह एक लड़की के साथ आपत्तिजनक अवस्था में है. मेल भेजने वाले का दावा है कि वो वही लड़की है जो वीडियो में टीवी जर्नलिस्ट के साथ सोते, बतियाते दिख रही है. आरोपी जर्नलिस्ट को हरियाणा के एक जिले का बताया है. मेल भेजने वाली कथित लड़की का लिखा पत्र इस प्रकार है-

दिल्ली में वो चार ‘लड़कीबाज पत्रकार’ कौन हैं?

फेसबुक पर अजीत अंजुम

अजीत अंजुम ने अभी-अभी स्पष्ट किया है कि ये चार ‘लड़कीबाज’ लोग संपादक स्तर के नहीं हैं, पत्रकार हैं और न्यूज चैनलों में मध्यम स्तर पर कार्यरत हैं. अजीत अंजुम का कहना है कि ‘लड़कीबाज संपादक’ शब्द लिखे जाने से ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कास्टिंग काउच के आरोपी एडिटर रैंक के हैं जबकि ऐसा है नहीं. अजीत अंजुम के मुताबिक वे फेसबुक पर भी अपने स्टेटस में यह अपडेट डालने जा रहे हैं कि लड़की ने जो नाम बताए हैं, वे नाम संपादक स्तर के लोगों के नहीं है. वे मध्यम स्तर पर काम करने वाले पत्रकारों के नाम हैं. अजीत अंजुम द्वारा नई जानकारी देने के बाद अब इस खबर के शीर्षक में ‘लड़कीबाज संपादक’ हटाकर उसकी जगह ‘लड़कीबाज पत्रकार’ लिखा जा रहा है. -एडिटर

आगरा के दो आदमखोर पत्रकार

मीडिया में यौनाचार (5) :  उदारीकरण के बाद मीडिया का जो रूप बदला है, अब किसी से छिपा नहीं है। मीडिया का चरित्र बदला तो हम पत्रकार भी बदले। इस बदलाव में हम अपनी शुचिता, इमानदारी, प्रतिबद्धता, चरित्र और सामाजिक कर्त्तव्य को दफनाते चले गए। बावजूद इसके, न पूरा समाज गंदा है और न ही पूरी पत्रकारिता और न ही पूरे पत्रकार। प्रेस को जब लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ माना गया था तो उसके पीछे की बात यह थी की प्रेस के लोग समाज को दिशा देंगे और लोकतंत्र के तीनो स्तंभों पर नजर रखेंगे ताकि हर हाल में राष्ट्र और जनता का भला हो। इसके पीछे का सच यह भी था कि जो लोग मीडिया में आयेंगे, वे समाज के लिए आदर्श होंगे। इसका मतलब ये है कि मीडिया और मीडिया के लोग आम नहीं, खास लोग हैं और खास लोगों से अपेक्षा की जाती है कि उनका दामन साफ़ हो।

एनसीआर : दिन में पत्रकारिता और रात में ब्लू फिल्म!

मीडिया में यौनाचार (4) : जिस व्यक्ति, समाज और संस्थान में चरित्र और नैतिकता का अभाव होता है वह कभी भी आदरणीय नहीं हो सकता। थोड़े समय के लिय वहां सब कुछ खुशनुमा लगता दिखता है, लेकिन वह ज्यादा दिनों तक ठहर नहीं सकता। इस धारावाहिक के तीसरे भाग की प्रतिक्रिया पर हमारे कोई साथी ने दो बातें कहने की कोशिश की है. एक- उन्होंने क्षेत्रवाद का मामला उठाया है और दूसरा मेरी बेटी से सम्बंधित बातें कहीं हैं. इनका कहना है कि भोपाल और रायपुर की मीडिया पाक-साफ है और यहां कोई गन्दी बातें नहीं होतीं। ऐसा केवल बिहार में ही संभव है। जिस भड़ास पर अपनी प्रतिक्रया दे रहे थे उसी पर खबर आयी की भोपाल के दो पत्रकारों में से एक से एक महिला ने तंग आकर चैनल वालों से रक्षा की गुहार लगाई है।

इस लड़की ने तो गंध फैला रखा है…

[caption id="attachment_16857" align="alignleft"]आलोक नंदनआलोक नंदन[/caption]कई महिला पत्रकार शरीर का इस्तेमाल आगे बढ़ने के लिए करती हैं : कामसूत्री पत्रकारों की नजर नई लड़कियों पर गिद्ध की तरह होती है : पत्रकारिता में होने वाली रंडीबाजी पर राघवेंद्र जी से बात हो रही थी, जमीन पर पत्रकारिता को सींचने वाले राघवेंद्र जी के मुंह से निकला, रंडीबाजी में भी एक एथिक्स है, पत्रकारिता में तो आज कोई एथिक्स ही नहीं है। सुदूर पूर्व के सेवेन सिस्टर राज्यों में जाकर पत्रकारिता करने वाले राघवेंद्र जी आजकल पटना से एक साप्ताहिक अखबार ‘गणादेश’ से पत्रकारिता की लौ को जिंदा रखे हुये हैं। राणाडे, तिलक और गोखले जैसे लोगों ने भी पत्रकारिता किया था, और खूब धूम मचा के किया था, और कहीं न कहीं पत्रकारिता में एक एथिक्स को तो स्थापित किया था। आज राघवेंद्र जी जैसे पत्रकारों को रंडीबाजी में एथिक्स तो दिखाई दे रही है, लेकिन पत्रकारिता में नहीं। क्या वाकई में पत्रकारिता में अब कोई एथिक्स नहीं रहा? दशकों पत्रकारिता में झोंकने वाले राघवेंद्र जी की बात की अनदेखी नहीं की जा सकती। अखिलेश अखिल जो कुछ भी लिख रहे हैं, उसकी सच्चाई पर सवालिया निशान नहीं लगाया जा सकता है। यदि पत्रकारिता में कहीं एथिक्स है भी तो वह दिख नहीं रही है, या फिर कहीं दब-सी गयी है।

रायपुर के बूढ़े पत्रकार का लड़की प्रेम

मीडिया में यौनाचार (3) : मैं पिछले दो सालों से मीडिया पर गंभीरता से काम कर रहा हूं। बदलती मीडिया की तस्वीर, मीडिया का बाज़ार, इसमें आने वाले लोग, पत्रकारिता की नई शिक्षा-दीक्षा, पाठक को खबर देने के बजाय उसे बाजार तक ले जाने की नीति, गाली-गलौज की नई परिपाटी और पत्रकारिता के नाम पर दलाली और सेक्सुअलिटी जैसे मुद्दों पर इन दो सालों में काफी जानकारियां मिलीं। मीडिया में यौनाचार की बात सिर्फ दो किश्तों में लिखना चाहता था, और वह भी डर कर। महिलाए हमारी मां-बहनें हैं और इनकी बुराई लिखना अपनी संस्कृति को धोखा देने के समान है। गलत चलन पर थोड़ी रोक लगे, इस कारण कुछ अनुभव लिखने का साहस कर बैठा। आप सबों को भले ही इस लेखन को पढ़ने में अच्छा या बुरा लगता हो, लेकिन मैं जो झेल रहा हूं, वह कह नहीं सकता। आलम ये है कि हमारे पास हर रोज हर राज्य से दर्जनों नई जानकारियां मिल रही हैं। दूसरी तरफ कई तरह की गालियां भी। कुछ अजीज मित्रों के सलाह पर और कई नई जानकारियां मिलने के चलते बात आगे बढ़ा रहा हूं। दिल्ली, मुंबई, उत्तर प्रदेश और पंजाब पर काफी मसाला है। आप जानेंगे यहां का भी हाल, लेकिन अभी थोड़ी जानकारी लेते हैं हिंदी पत्रकारिता के गढ़ मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के बारे में।

हमबिस्तर होना करियर की नई शर्त!

वर्तमान पत्रकारिता कहां खड़ी है : जब टावर पर बैठने वाले लोग भी नियतिहीन कोने के बारे में बात करने लगे तो समझ लेना चाहिये कि इस नियतिहीन कोने की गूंज काफी ऊपर तक सुनाई दे रही है। वैसे सुनाई तो पहले से दे रही थी और लोग तिलमिला कर इसकी अनदेखी भी कर रहे थे। लेकिन अब इनके सब्र का बांध टूटता जा रहा है। यह कहना बेहतर होगा कि इनकी चेतना इनका साथ छोड़ रही है और अचेतन के वशीभूत होकर ये  इस नई दुनिया को नकारने पर तुल गये हैं। अभी कुछ देर पहले अखिलेश अखिलेश जी से बात हो रही थी। पत्रकारिता में व्याप्त सेक्सबाजी पर वह इन दिनों अपने ब्लाग पर विस्तार से लिख रहे हैं। इसमें वह खुलेआम लिख रहे हैं कि पत्रकारिता में सक्रिय रंडीबाज पत्रकारों और संपादकों का गिरोह किस कदर पत्रकारिता को रसातल में ले जा रहा है। एक बेबाक बहस की शरुआत तो उन्होंने कर ही दी है। क्या इस तरह की बहस पुरातन मीडिया (प्रिंट और इलेक्ट्रानिक) में कभी संभव है, जबकि इन जगहों पर यह सब कुछ धड़ल्ले से चल रहा है?

पहले साथ सोता है, फिर नौकरी देता है

मीडिया में यौनाचार (2) : मीडिया में यौनाचार की दूसरी किस्त लिखने से पहले कुछ पत्रकार भाइयों के संदेह को दूर करना चाहूंगा। सबसे पहली बात तो ये है कि इस तरह के आलेख किसी को जानबूझ कर मर्माहित करने के लिए नहीं लिखा जा रहा है। यह बदलते परिवेश के लिए जरूरी है। दूसरी बात ये है कि कई साथी लोग कह रहे हैं कि अगर आपसी रजामंदी के साथ यौनाचार होता है तो किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए। ऐसे लोगों को यह भी सोचना चाहिए की हम सार्वजनिक जीवन जीने वाले लोग हैं और ऐसे में हमें अपनी नीयत, ईमान, समाज के प्रति कमिटमेंट को नहीं भूलना चाहिए। हमारा काम केवल समाज को सूचना देने तक ही नहीं है, समाज को रास्ता दिखाना भी है। फिर वह महिला जो पैसे ले-देकर अपना तन बेचती है, उसे तो हम वेश्या कहते हैं। जबकि वह महिला भी आपसी रजामंदी से ही सब कुछ करती है। दरअसल मीडिया में आज जो कुछ हो रहा है उसके पीछे रजामंदी कम बेबसी, लाचारी और तेजी से आगे बढ़ने की बात है।

रंडीबाज पत्रकार-संपादक!

सेक्स एक ऐसा विषय है जिस पर हिंदी समाज कभी भी सहज नहीं रहा. किसी भी पेशे में कार्यरत लोगों में से कुछ लोग अक्सर सेक्स के कारण विवादों, चर्चाओं, आरोपों से घिर जाते हैं. मीडिया भी इससे अछूता नहीं है. बाजारवाद के इस दौर में नैतिकता नाम की चीज ज्यादातर दुकानों से गायब हो चुकी है, या, कह सकते हैं कि इसके खरीदार बेहद कम हो गए हैं. इंद्रियजन्य सुख, भौतिक सुख, भोग-विलास सबसे बड़ी लालसा-कामना-तमन्ना है. शहरी जनता इसी ओर उन्मुख है. बाजार ने सुखों-लालसाओं को हासिल कर लेने, जी लेने, पा लेने को ही जीवन का सबसे बड़ा एजेंडा या कहिए जीते जी मोक्ष पा लेने जैसा स्थापित कर दिया है. आप निःशब्द होने वाली उम्र में भी सेक्स और सेंसुअल्टी के जरिए सुखों की अनुभूति कर सकते हैं, यह सिखाया-समझाया जा रहा है. हर तरफ देह और पैसे के लिए मारामारी मची हुई है. फिर इससे भला मीडिया क्यों अछूता रहे. यहां भी यही सब हो रहा है. आगे बढ़ने के लिए प्रतिभाशाली होना मुख्य नहीं रहा. आप किसी को कितना फायदा पहुंचा सकते हैं, लाभ दिला सकते हैं, सुख व संतुष्टि दे सकते हैं, यह प्रमुख होने लगा है.