यशवंत जी, नमस्कार, आपकी साइट पर एक और विवाद को जन्म मिला। आपकी टीआरपी बढेगी लेकिन लोगों के चरित्र हनन की कीमत पर। मुझे इससे खासा कष्ट पहुंचा है लेकिन इस बाजारवाद में किया भी क्या जा सकता है। बोलने को मजबूर किया गया है तो जुबां खामोश क्यों रहे! मै दैनिक जागरण, रांची के ब्यूरो में रिपोर्टर रहा। मामूली नहीं, बहुतों से बेहतर। रिपोर्टर के साथ साथ डेस्क की अहम जिम्मेदारी निभाने वाला। हर सप्ताह अखबार के फ्रंट पेज पर ‘इस इतवार’ कालम में तात्कालिक मुददों पर खोजपरक विशेष रिपोर्ट करने वाला। अपने मुंह मिया मिट्ठू जैसी बात तो नहीं, लेकिन कई सारी उपलब्धियां नाज करने लायक। और ये सब कुछ मुमकिन था ठीक उसी तरह जैसे टीम इंडिया के कप्तान धोनी के साथ खिलाड़ी कमाल कर गुजरते हैं।
रांची संस्करण के संपादक संत सरण अवस्थी उर्फ संतू भैया ने मुझे पहचान कर मेरा उपयोग किया। मुझे पत्रकारीय जीवन के बेहतर मौके दिए। इसके लिए मैं सदैव उनका अभारी हूं। इससे भी बड़ी बात जो उन्हें देश के अप्रतिम निर्भीक निडर और जुझारू पत्रकारों की श्रेणी में ला खड़ा कर सकती है जो बात मैंने आज तक लोगों से भी छिपाये रखी। लेकिन अब उसका खुलासा बेहद जरूरी है। झारखंड सरकार के एक वरिष्ठ आईएएस, जिनकी ईमानदारी की कसमे खायीं जाती हैं, सूचना विभाग के साथ-साथ चार महत्वपूर्ण विभागों के सचिव थे। मैने उनके भ्रष्टाचार के कुछ तथ्य जुटाये, कुछ खबरें भी लिखीं जो उन्हें बेहद नागवार गुजरी। उन्होंने संतू भैया पर बेजा दबाव डाला। मुझे नौकरी से निकालने को कहा। ऐसा नहीं करने पर अखबार को दिए जाने वाला विज्ञापन बंद करने की धमकी दी। गैर-कानूनी तरीके से जितना कर सकते थे, किया भी। इसके बावजूद न तो संतू भैया ने मुझे नौकरी से निकाला, और न ही मेरी बीट बदली। मैं उस सचिव के विभाग की रिपोर्टिंग पहले की ही तरह करता रहा। ये सब बातें संतू भैया ने भी मुझे कभी नहीं बतायीं।
जब मैं ईटीवी में बढ़ी हुई सेलरी के साथ झारखंड से यूपी आने का आफर लेटर लेकर उनसे मिला, तो उन्होंने मुझे आशीर्वाद देते हुए केवल इतना खुलासा किया कि तुम्हे हटाने का मेरे उपर बहुत दबाव था। जाहिर है, ये दबाव सरकार की प्रशासनिक मशीनरी का था जिसके बारे में मैं पहले से जान चुका था। यशवंत जी, जो संपादक अपने संवाददाता के मान-सम्मान की इस तरह रक्षा करता हो उसके बारे में उल जलूल प्रकाशित करेंगे तो आपकी साख पर सवाल जरूर उठेगा। किसी भी सिस्टम में अनुशासन जरूरी है। संतू भैया खुद 16 से 18 घंटे काम करने वाले संपादकों में से हैं। अखबार में 24 घंटे की रिपोर्टिंग खासकर रात 12 बजे से सुबह 4 बजे तक शहर का आंखों देखा हाल कवर कर छापने वाले वे अकेले संपादक हैं। जाहिर है कुछ लोग ऐसे होते हैं कि काम करना पड़ेगा तो अखरेगा जरूर। अनुशासन की बात होगी तो कड़े फैसले भी लेने होंगे। अगर प्रगतिपथ पर जाने वालों को पीड़ित माना जाएगा तो शब्दों के अर्थ को लेकर थोड़ी मुकिल होगी। मै रांची से चलकर ईटीवी आगरा का इंचार्ज रिपोर्टर बना। आज हिंदुस्तान में हूं। कई और भी इसी तरह प्रतिष्ठित स्थानों पर हैं। ऐसे में यशवंत जी आपने प्रकाशन पूर्व गंभीरता और पत्रकार की विश्लेषण वृत्ति की अवहेलना कर एक वरिष्ठ पत्रकार पर कीचड़ उछाल दिया। ये नोएडा के आरूषि मर्डर सरीखा ही है जहां आपको टीआरपी मिल रही है, भले किसी का चरित्र लांछित हो रहा हो। उम्मीद है भविष्य में आप ऐसे विदूषकों से बचेंगे और किसी के कुत्सित प्रयासों का हिस्सा नहीं बनेंगे।
धन्यवाद
आपका
अखिलेश तिवारी
वरिष्ठ संवाददाता, हिंदुस्तान, आगरा