: अभिषेक वर्मा और अशोक अग्रवाल की दास्तान : राम कृष्ण डालमिया का नाम अब बहुत लोगों को याद नहीं है। 1950 के दशक में वे देश के सबसे रईस आदमी थे। यह वह समय था जब अंबानी कतर में एक पेट्रोल पंप पर काम किया करते थे। डालमिया राजस्थान के झुनझुनु जिले के चिरावा गांव के एक गरीब परिवार में पैदा हुए थे।
जल्दी ही वे कलकत्ता में अपने मामा के यहां काम करने चले गए और शेयर बाजार में सोने चांदी पर पैसा लगा कर फटाफट एक लाख रुपए कमाए और व्यापार शुरू कर दिया। पहली फैक्टरी बिहार में सीमेंट की लगाई और साहू शांति प्रकाश जैन उनकी बेटी को ट्यूशन पढ़ाते-पढ़ाते उनके दामाद बन गए।
इसी बीच अंग्रेजों के जाने के बाद उन्होंने टाइम्स ऑफ इंडिया प्रकाशित करने वाली बैनेट एंड कोलमैन कंपनी खरीदी और इसमें एक बीमा कंपनी और ग्वालियर बैंक नाम की एक निजी बैंक का पैसा लगाने के आरोप में उस जमाने में उन्हें ढाई करोड़ रुपए का जुर्माना भरना था, जो उनके पास नहीं था, इसलिए उन्होंने तब तक खुद रईस बन चुके दामाद शांति प्रकाश जैन के पास बैनेट एंड कोलमैन कंपनी गिरवी रख दी। डालमिया सरदार पटेल, गांधी और जिन्ना के एक साथ दोस्त थे। व्यापार में उन्होंने काफी तरक्की की। उनके ऊपर आर्थिक मुसीबत तब आई जब फिरोज गांधी ने संसद में बैंक डूबने और इंश्योरेंस कंपनी का पैसा गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगाया। जांच हुई और उन्हें लंबे समय जेल में रहना पड़ा।
मगर इतने बड़े मीडिया साम्राज्य के मालिक शांति प्रकाश जैन के बेटे अशोक जैन को भी भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय ने कम तंग नहीं किया। हवाला के आरोप लगे और विदेशी मुद्रा कानून तोड़ने के भी इल्जाम लगे। तीन बार बाई पास सर्जरी करवा चुके अशोक जैन को भी जेल जाना पड़ा और आखिरकार अमेरिका में इसी तनाव में सिर्फ 65 साल की उम्र में उनकी मृत्यु हो गई।
अशोक जैन के साथ ज्यादती करने में जो दो लोग शामिल थे उनमें से एक अभिषेक वर्मा के पिता श्रीकांत वर्मा कांग्रेस नेता बनने से पहले टाइम्स समूह की पत्रिक दिनमान में उप संपादक थे। उनकी पत्नी बीना वर्मा भी राज्यसभा की सदस्य रही। अभिषेक ने प्रवर्तन निदेशालय के एक डिप्टी डायरेक्टर अशोक अग्रवाल से दोस्ती गांठ कर अशोक जैन को फंसाने का षडयंत्र तैयार किया था।
छत्तीसगढ़ के गरीब परिवार में जन्मे हिंदी के जाने माने कवि श्रीकांत वर्मा के बेटे अभिषेक वर्मा ने काफी समय तिहाड़ जेल में काटा है लेकिन अब भी दुनिया के कई देशों में उसके पास अरबों रुपए की संपत्ति है। अशोक अग्रवाल और अभिषेक वर्मा दोनों सोनिया गांधी के सचिव विंसेट जॉर्ज के काफी करीब रहे हैं। अभिषेक वर्मा दरअसल पेज 3 वाली पार्टियों में खूब जाता था और वहीं से लोगों की निगरानी कर के अशोक अग्रवाल के लिए ग्राहक जुटाता था।
सबसे पहले तो अशोक अग्रवाल ने अपनी पत्नी अस्मिता को ही फेरा कानून में फंसाया। इसके बाद दिल्ली के एक बड़े ज्वेलर एससी बड़जात्या को साल के आखिरी दिन जब सारी बैंक बंद होती हैं, स्विस बैंक की ओर से एक फर्जी फैक्स भेज कर छापा मारा और बंद कर दिया। दो दिन तक बड़जात्या को काफी यातना झेलनी पड़ी और बाद में जब बैंक ने ही लिख कर दे दिया कि उसने कोई फैक्स नहीं भेजा है तो अग्रवाल और वर्मा दोनों फंस गए। मगर विसेंट जॉर्ज के प्रभाव से बचे।
बाद में अग्रवाल एक और मामले में पकड़ा गया और पता चला कि उसे जिंदगी में कुल मिला कर जो 69 लाख रुपए की आमदनी, वेतन और अन्य सूत्रों से हुई है उससे सौ गुना ज्यादा पैसा और संपत्तियां उसके पास है। अग्रवाल जेल पहुंच गए मगर इसके पहले उसने अशोक जैन को मौत के कागार पर ला कर खड़ा कर दिया गया था। अशोक जैन के घर पर छापा मारा गया और वहां बहुत सारे विजिटिंग कार्ड मिले जिनमें से कई स्विस बैंक के मैनेजरों के थे और इसी के आधार पर अशोक जैन के खिलाफ मामला बनाया गया।
अभिषेक वर्मा और अग्रवाल बड़ी मछलियां फांसने में यकीन रखते थे। जैन टीवी के लगभग चरित्रहीन मालिक जेके जैन को नई दिल्ली से भाजपा की ओर से लोकसभा का टिकट मिलने वाला था मगर अचानक अशोक अग्रवाल ने उन्हें प्रवर्तन निदेशालय आकर बयान देने का नोटिस भेज दिया। जैन के बयान पर तो कोई कार्रवाई नहीं हुई लेकिन अग्रवाल और वर्मा ने जैन के अपने कार्यालय घुसते समय फोटो खिचवाने और छपवाने की व्यवस्था कर ली थी। भाजपा ने किसी विवाद के डर से जैन का टिकट काट दिया और अच्छा ही किया।
डाबर समूह के अमित बर्मन की एक अमेरिकन बैंक की चेक बुक के बहाने बर्मन को अग्रवाल ने वर्मा की मौजूदगी में अपने कार्यालय बुलाया और डरे हुए बर्मन ने लेन देन की बात की जिसे टेप कर लिया गया और फिर मोटा ब्लैकमेल हुआ। नेशनल एल्यूमिनियन कॉरपोरेशन के चेयरमैन एस एन जौहरी को अग्रवाल ने तब फसाया था जब वह केंद्रीय खजिन मंत्री बलराम सिंह यादव का निजी सचिव हुआ करता था। उसने जौहरी से एल्यूमिनियम खदानों के लिए पैसा मांगा था। सरकार के एक मंत्री का सचिव सरकार के एक संगठन के मुखिया से रिश्वत मांग रहा था और जब रिश्वत नहीं मिली तो उसके खिलाफ मामला बनाया गया और जांच के लिए फौरन सीबीआई को दे दिया गया। कोई मामला साबित नहीं हुआ और जौहरी वापस अपने पद पर पहुंच गए लेकिन अभिषेक वर्मा अब जमानत पर बाहर है और अशोक अग्रवाल पर मुकदमा चल रहा है। दोनों की दोस्ती भी टूट गई है।
लेखक आलोक तोमर जाने-माने पत्रकार हैं.
abhai
July 14, 2010 at 8:23 am
this suggests that mr agrawal and mr varma are most powerful in this corrupt system. i can’t deny ur claims mr tomar as i hv nothing to prove against it but i wonder haw it may happen??? can u throw sme light on tht also?
abhai zee news
sant
July 14, 2010 at 1:02 pm
tomar ji fadu likha he
durgeshjournalist
July 14, 2010 at 8:20 pm
respected tomar sir. this is real picture of our currupt system. but sir this is really shocking that this jodi has done these powerful play with media mugal of india. i admire u and yashwant sir that u hav courage to publish this scandal
Saleem saifi
July 15, 2010 at 6:39 am
Good Thoughts.
Saleem Saifi
prabhakar sharna
July 15, 2010 at 7:18 am
bahut Sccha likha hai sir
prabhakar sharna
July 15, 2010 at 7:20 am
bahut accha hai sir
ravishankar vedoriya gwalior
July 19, 2010 at 10:34 am
hakiqat wayan ki hai sir