फिर बंटा तो कहीं का नहीं रहेगा देश का एक प्यारा हिंदी अखबार ‘अमर उजाला’ : मतभेद हों तो उसे दूर कर लिया जाता है पर अगर मनभेद शुरू हो जाए तो इसका इलाज तलाश करना पाना बड़ा मुश्किल होता है। कभी अजय अग्रवाल को अमर उजाला से बाहर करने के लिए एक साथ मिलकर मोर्चेबंदी करने वाले अतुल माहेश्वरी और अशोक अग्रवाल के बारे में बताया जा रहा है कि इनका आपसी मतभेद बढ़कर मनभेद में तब्दील होने लगा है। इस कारण अमर उजाला इन दिनों चौतरफा चुनौतियों से घिर गया है। बाहर तो बाहर, अब अंदरखाने का विवाद भी बढ़ने और नया रंग लेने लगा है। अमर उजाला निदेशक मंडल के सदस्यों के बीच आपसी खींचतान फिर शुरू होने की खबर है।
अपुष्ट खबरों पर भरोसा करें तो अमर उजाला ग्रुप के चेयरमैन अशोक अग्रवाल और उनके पुत्र व निदेशक मनु आनंद इन दिनों अतुल माहेश्वरी से खफा हैं। ये लोग अपने अधिकारों में कटौती किए जाने से खफा होकर कंपनियों के अंदरुनी झगड़े निपटाने वाली बॉडी कंपनी ला बोर्ड (सीएलबी) चले गए हैं। उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक सीएलबी ने मामले की सुनवाई के बाद अंतिम निर्णय होने तक अशोक अग्रवाल और मनु आनंद को राहत देते हुए उनके अधिकार में कटौती न किए जाने का अंतरिम आदेश जारी किया है। सूत्रों के मुताबिक इसके बाद से मनु आनंद एक बार फिर से सक्रिय हो गए हैं। कुछ महीनों पहले अधिकारों में कटौती किए जाने से नाराज मनु आनंद ने अमर उजाला आफिस में बैठना बंद कर दिया था।
चर्चा यह भी है कि अतुल माहेश्वरी अमर उजाला के एक और बंटवारे के लिए मानसिक तौर पर तैयार हो चुके हैं और अशोक अग्रवाल व मनु आनंद के हिस्से की रकम उन्हें देकर विवाद को हमेशा के लिए खत्म करना चाहते हैं। पर यह सब करना इतना आसान नहीं होगा। सूत्रों का कहना है कि अशोक अग्रवाल और मनु आनंद को उनके हिस्से के स्टेक के बदले कई सौ करोड़ रुपये देना पड़ेगा। इतनी ज्यादा रकम जुटा पाना अतुल माहेश्वरी के लिए आसान नहीं होगा। ज्ञात हो कि अजय अग्रवाल को अमर उजाला से अलग किए जाने के दौरान अशोक अग्रवाल और उनके पुत्र मनु आनंद ने अतुल माहेश्वरी का समर्थन किया था। अब इन्हीं के बीच जंग छिड़ने की अपुष्ट सूचनाओं को अमर उजाला अखबार के लिए बेहद परेशानी पैदा करने वाला बताया जा रहा है।
उधर, कुछ लोगों का यह भी कहना है कि अमर उजाला को मानसिक और नैतिक तौर पर कमजोर करने के लिए प्रतिद्वंद्वी मीडिया कंपनियां इनके आंतरिक विवाद को जमकर उछालने के मूड में हैं। इसीलिए अमर उजाला के निदेशकों के नए विवाद को बढ़ा-चढ़ा कर मीडिया मार्केट में फैलाया जा रहा है। इस काम में कुछ वे लोग भी लगे हैं जो हाल-फिलहाल तक अमर उजाला से जुड़े थे या जुड़े हैं। सूत्रों के मुताबिक निदेशकों के बीच विवाद एक सामान्य परिघटना है और विवाद के हल के लिए कंपनी ला बोर्ड जाना भी बेहद सामान्य प्रक्रिया है। आमतौर पर सीएलबी के फैसले या आपसी सहमति से विवाद का अंत हो जाता है और निदेशक आपस में कार्य संचालन के लिए समझौता कर लेते हैं।
दैनिक जागरण में भी पिछले दिनों मध्य प्रदेश को लेकर निदेशकों के बीच जमकर विवाद हुआ था और मामला कंपनी ला बोर्ड तक पहुंचा था। कंपनी ला बोर्ड ने फैसला भी दे दिया। इस फैसले के बाद जागरण प्रकाशन अब मध्य प्रदेश के इलाके में कोई हस्तक्षेप नहीं कर सकता। इसीलिए जागरण प्रबंधन अपने इलाके के अखबारों व एडिशनों में मध्य प्रदेश को नहीं दिखाता। पर इस विवाद की मीडिया जगत में कोई खास चर्चा नहीं हुई। सूत्रों के मुताबिक अमर उजाला एक ऐसा मीडिया समूह है जिसके निदेशक मीडिया से इतर कोई धंधा या बिजनेस नहीं करते। वे हमेशा कंटेंट व न्यूज को सर्वोच्च रखते हैं। यह मीडिया के प्रति उनके नैतिक आग्रह व मोह का नतीजा है। दूसरे मीडिया हाउस, जिन्होंने मीडिया के बल पर ढेर सारे उपक्रम, बिजनेस व धंधे शुरू कर दिए हैं और जिनके लिए न्यूज से ज्यादा महत्वपूर्ण हर हाल में ज्यादा से ज्यादा बिजनेस करना होता है, देखते ही देखते येन-केन प्रकारेण धनोपार्जन करके पैसे के मामले में काफी बड़े ग्रुप बन गए। ऐसे मीडिया हाउसों की कोशिश है कि अमर उजाला समूह को नैतिक व मानसिक रूप से कमजोर कर दिया जाए ताकि अमर उजाला के इलाके में वे अपने ब्रांड को बढ़त दिला सकें।
सूत्रों का कहना है कि अमर उजाला के निदेशकों के बीच चल रहा विवाद इतना बड़ा नहीं है जितना कि इसे प्रचारित कराया जा रहा है। कल अमर उजाला के निदेशक मंडल की हुई बैठक को लेकर ढेर सारी अफवाहें उड़ाई गईं। इसमें बैठक के दौरान निदेशकों में आपस में जमकर विवाद होने से लेकर एक और बंटवारे की भी बात कही गई पर जब इन खबरों का सत्यापन किया गया तो ये सब बकवास पाई गईं। प्रकरण में सच्चाई बस इतना है कि अशोक अग्रवाल और मनु आनंद अमर उजाला के संचालन और नीतिगत निर्णयों में अपना सक्रिय हिस्सा व अपनी मर्जी चाहते हैं जबकि अतुल माहेश्वरी अपने स्वभाव के अनुरूप सारे नीतिगत निर्णय खुद के हिसाब से करना चाहते हैं। टकराव सिर्फ इतना है। इस टकराव का जब आपसी हल नहीं निकला तो अशोक अग्रवाल व मनु आनंद कंपनी ला बोर्ड चले गए। सूत्रों के मुताबिक अमर उजाला के निदेशक अब बीच का रास्ता भी निकाल सकते हैं जिसमें अशोक अग्रवाल और मनु आनंद को उनके शेयर के मुताबिक अमर उजाला की यूनिटों उसी अनुपात में दे दी जाएं और उन यूनिटों का संचालन वे अपनी मर्जी से करें।
कुल मिलाकर अमर उजाला के आगे चुनौतियां ही चुनौतियां हैं। अगर इन चुनौतियों से निपटने में निदेशकों ने थोड़ी भी असंवेदनशीलता दिखाई तो वे अपने प्रतिस्पर्धियों को बढ़त लेने का मौका दे देंगे। अमर उजाला के लोग पहले ही एक बड़ी गलती कर चुके हैं अजय अग्रवाल को अमर उजाला से अलग करके। अगर फिर एक बार बंटवारे की नौबत आती है तो ये मान लेना चाहिए कि अमर उजाला देश का नंबर वन हिंदी प्रिंट मीडिया ब्रांड तो नहीं बन सकता। अमर उजाला के लोगों को कार्य संचालन के मामले में जागरण के निदेशकों से सबक लेना चाहिए जो अंदर खाने अपने-अपने इलाके व कार्य अधिकार का बंटवारा कर बहुत खूबसूरती से दुनिया के सामने एकजुट होकर कार्य संचालन का दावा करते हैं और उनकी यही एकता कई मामलों में जागरण को अभूतपूर्व बढ़त दिलाने में कामयाब भी हुई है।
इस पूरे मामले पर आपकी क्या राय है, आपको क्या जानकारी है, आपके पास क्या सूचना है, उसे हम तक पहुंचाएं, [email protected] पर मेल भेजकर.
gopal shukla
January 27, 2010 at 5:21 pm
amar ujala akhbar to jaroor achchha hai par iska system bahut hi pechida hai
ashish k
April 9, 2010 at 6:14 pm
amar ujala ki ek aur bole lagna nishchit