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अमर उजाला की टेस्ट प्रक्रिया ने दुखी किया

अमर उजाला के नोएडा कार्यालय में पिछले कई दिनों से पत्रकारों की नयी खेप के लिए इंटरव्यू का दौर चल रहा है. हमें भी उसमें 3 मई को हाथ आजमाने का मौका मिला. लेकिन सलेक्शन के लिए जिस तरीके से वहां टेस्ट लिया जा रहा था, समझ में नहीं आया कि सेलेक्शन करने वाले क्या करना चाहते हैं. मानदंड में ना तो अनुभवों को देखा गया ना ही लेखन शैली देखी जा रही थी.

<p>अमर उजाला के नोएडा कार्यालय में पिछले कई दिनों से पत्रकारों की नयी खेप के लिए इंटरव्यू का दौर चल रहा है. हमें भी उसमें 3 मई को हाथ आजमाने का मौका मिला. लेकिन सलेक्शन के लिए जिस तरीके से वहां टेस्ट लिया जा रहा था, समझ में नहीं आया कि सेलेक्शन करने वाले क्या करना चाहते हैं. मानदंड में ना तो अनुभवों को देखा गया ना ही लेखन शैली देखी जा रही थी.</p> <p style="text-align: justify;">

अमर उजाला के नोएडा कार्यालय में पिछले कई दिनों से पत्रकारों की नयी खेप के लिए इंटरव्यू का दौर चल रहा है. हमें भी उसमें 3 मई को हाथ आजमाने का मौका मिला. लेकिन सलेक्शन के लिए जिस तरीके से वहां टेस्ट लिया जा रहा था, समझ में नहीं आया कि सेलेक्शन करने वाले क्या करना चाहते हैं. मानदंड में ना तो अनुभवों को देखा गया ना ही लेखन शैली देखी जा रही थी.

बस टेस्ट के बाद मात्राओं की गलतियां निकाल कर सामने बैठे प्रतियोगी को अयोग्य सिद्व किया जा रहा था. जिस समय टेस्ट प्रकिया चल रही थी, वहां कुछ ऐसे प्रतियोगी भी आये हुए थे जिन्हें अमर उजाला के टाइपिंग साफ्टवेयर के विषय में पता नहीं था. अधिकतर प्रतियोगी क्रुतिदेव फांट में टाइप करना जानते थे. लेकिन अखबारों में एक अलग तरीके का साफ्टवेयर काम में लाया जाता है और सामान्य हिंदी टाइपिंग से अलग उसमें अक्षर एक विशेष तरीके से बनने हैं. यही कारण रहा कि अधिकतर प्रतियोगियों की गलतियां हुई और उन्हीं गलतियों को बेस बनाकर इंटरव्यू ले रहे एक सज्जन ने ज्यादातर प्रतियोगियों को अयोग्य सिद्ध कर दिया.

एक-एक कर उनके चैम्बर में प्रतियोगियों को बुलाया जा रहा था और सामने वाली कुर्सी पर बैठे सज्जन प्रतियोगियों को ऐसे डांट डपट रहे थे मानों वह बेचारे नौकरी की तलाश में ना आकर, उनसे भीख मांग रहे हों. उन सज्जन का नाम तो नहीं पता लेकिन घटना 3 मई की है. उनके इस व्यवहार को देखते हुए मुझे लगा कि एक राष्ट्रीय अखबार के आफिसों में जब यह लोग अपनी ही बिरादरी के युवा पत्रकारों से ऐसा बर्ताव करते हैं तो आम आदमी या फिर फील्ड में इनका बोलचाल और खबरें एकत्र करने का तरीका क्या रहता होगा.

सबसे बड़ी बात वहां बैठकर मैंने जो महसूस की कि वहां सारा खेल सेटिंग-गेटिंग से हो रहा था. जिस प्रतियोगी का सिफारिशी उसके साथ था, उसका सेलेक्शन हाथ के हाथ हो रहा था लेकिन जो बेचारा अपने बल पर ही इस क्षेत्र में कदम रखने की कोशिश कर रहा था उसको डांट डपट कर कुत्ते की तरह भगाया जा रहा था. इंटरव्यू ले रहे सज्जन इंटरव्यू कम, वाद-विवाद ज्यादा कर रहे थे. यशवंत जी, यह पत्र आपको मैं इस आशय से लिख रहा हूं कि इसे प्रकाशित किया जाये. धन्यवाद.

एक युवा पत्रकार

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0 Comments

  1. ruby

    May 6, 2010 at 12:19 pm

    ye to bada hasyapad hai hindi typing me kitna time lagta hai bandhu 3 din me aa jati hai haan vyakrn ki baat manenge lekin koi bhi gyan darane ke liye nai hona chaiye agar bande me vision hai to mauka dijiye baki sab to within week sudhar jata hai.itna bada hauaa nai hai akhbar me likhna bandhu.lekin naye bachho ko polish kariye shayad unme se koi bahut achha nikle.kyuki aap bhi jante hai ki likhne ka ek anushasn hota hai jo kuch dino me aa jata hai dost v need to change our attitude.

  2. raj

    May 5, 2010 at 10:56 am

    amar ujala ki lutiya ulte sidhe faislon se doob rhi hai. na ki shashi shekhar k karan. ye baat adhiktar log samjhte bhi hain. amar ujala ko yahan tak phuchane ka shreya bhi shashi shekhar ko jata hai. nhi to amar ujala ki saakh ye nhi thi jo aaz hai. baharhaal koi kuch bhi khe lekin shashi shekhar may kuch to baat hai ki jahan jaate hain wahan karwaan kkhud bhud bnte chla ata hai.

  3. sagarbandhu

    May 5, 2010 at 1:11 pm

    amarujala me jayadatar sampadak mathadhis marka bache hai. amar ujala ke ncr ke kai bureau me aise incharge hai jo rojana ki meeting ki suchi bhi thik se nahi bana pate hai. aakhir jo log pahle se kam kar rahe hai unhe likhna kyo nahi aa raha hai. we trainee ke liye vidwan dudh rahe hai. ;D

  4. A. Kumar

    May 5, 2010 at 1:42 pm

    अमर उजाला को खडा करने का श्रेय अतुल माहेश्वरी जी को ही जाता है। उनकी टीम पक्की और सच्ची थी। उसी ने जमीन पर खडे छोटे से जहाज को ऊंच्चाई तक उडाया। इसके बाद उडते जहाज के पायलट के रुप में जो बडे लोग आए उन्होंने इस तेजी से बढते अखवार को बहुत डैमिज किया है। लेकिन लगता है किसी पर भी आंखें बंद करके अति विश्वास करने की परिपाटी और उसके बारे में एक बार राय बनाकर बडा नुकसान होने तक पुनर्विचार न करने की आदत अब जहाज को जमीन की ओर ला रही है। कोई यदि कई मोर्चों पर पिटे पिटाए मोहरों से लगाव करना सीखना चाहे, तो इस कम्पनी से प्रेरणा ले सकता है।

  5. rohit

    May 5, 2010 at 5:14 pm

    baat bilkul sahi kahi hai aapne. amar ujala test me itni choti chizo ko dekhta hai to apne khabro me rojana hone waali galti ko kis karan se nahi dekhta ????????? main manta hun ki mahasay jo test lete hain unke paas gyan ka bhandar hai lekin yah unhone bhi kaam karte karte shikha hoga . amar ujala agar itna hi sudh paper hai to itni galtiyan kis karan se saheb jara bataya jaye ??????????????????/

  6. sandha

    May 5, 2010 at 7:04 pm

    ye to akdam galat hai. amar ujala isliye he dub rahaa hai ki usne logou ka samman karna hi chhod diya hai. atul ji apana gamand dur karo. kya aap bhi patrakar ho. khud apni pariksha bhi to do. chodo capat. badli ye dharra. kya kahenge aapke bap-dada. sharm karo.aapko ya aapke sansthan ko hak nahi ki riji dene ke naam par kissi ki hasi udayai ya use dantai.iswer bara balwan hota hai.

  7. kakkaji

    May 5, 2010 at 8:40 pm

    amar ujala ki reputaion pathkon aur patrakaro k bich itna hai ki use koi diga nahi sakta. Lagta hai aap logon k pas koi kam nahi hai, ninda aapka dharm ho gaya hai. Behad chhoti baten kai dino se ho rahi hain.
    Plz do’nt show my email id.

  8. Anonymous

    May 6, 2010 at 4:56 am

    ‘राष्ट्रीय अखबार के ऑफिसों में’ यह अमर उजाला सरीखे अखबार राष्ट्रीय कब से हो गए महोदय?

  9. श्याम सुंदर

    May 6, 2010 at 5:12 am

    लेकिन कोई ये तो बताए कि ये डांटने डंपटने वाले का नाम क्या है। अमर उजाला को गरियाने से बेहतर है कि पत्रकारिता में घुसे इस गंदे चेहरे को बेनकाब किया जाए।

  10. Yash

    May 6, 2010 at 5:29 am

    अरे काहिलों, यह रोना धोना बंद करो. जब देखो एडिटोरिअल वालों की सफाई में लगे रहते हो. अरे कम से कम पहले हिंदी की वेबसाइट है तो हिंदी फॉण्ट में तो लिखना सीख लो? चले आते हैं अंग्रेजी में हिंदी लिखने. जहाँ बात हुई अमर उजाला की, मान के चलो की मार्केटिंग डिपार्टमेंट ने भी काफी म्हणत की है.

  11. rajeev

    May 6, 2010 at 5:50 am

    ye such hai ki agar hindi patrakarita karni hai to vyakaran seekh kar aao aur typing bhi behad jaroori hai….agar ye nahi ata to paan ki dukan chalao na yar…

  12. sachin kumar

    May 6, 2010 at 12:09 pm

    ha ye sahi bat hai ki waha ka sara kam setting getting se ho raha hai selection to kai logo ka huaaa hia par jinka setting to tha hai sath me waha le rahe interview par baithe log matra ki galti bahut hi bariki se dekha rahe the to jinko iska bhi nouleg tha unhone bhi apne matra par dhayan diya aur unkla selection ho gya

  13. subodh dubey

    May 6, 2010 at 2:46 pm

    amar ujala main ab corporate culture pore charam par hai. kisi ka apman karna ya use nokri dene se pehle apna nokar maan lena galat hai. doosri taraf yeh bhi sahi hai ke nokri mangne jane waloon ko samajhna chahie ke akhbar unhen typing jesi besic jankari ko sikhane ke liye nahin bethe hain.

  14. anaamdas

    May 6, 2010 at 3:46 pm

    vyakran ki tarafdaari karne waale murkhon jara mujhe batao ki kisi akhbaar me vyakran ka kitna prayog hota hai aaj kal. . are vyakran cchhodo sahi hindi bhi nahi likhi jaati. gadho no bakwaas.

  15. Dinesh M.

    May 6, 2010 at 4:46 pm

    vaise dekha jaye to mujhe samajh me hi nahi aata hai ki interview me aise bakawas sawal puchkar logo ko kyo pareshan kiya jata hai
    jinhe naukari mikani hoti hai unhe to mil jati hai bas interview ke naam par aupcharikata ki jati hai.

  16. anamica sharma

    May 6, 2010 at 5:51 pm

    दोस्तों ये अमर उजाला में कोई नयी बात नहीं है, कुछ दिन पहले हम लोग भी आये थे, बस वही हुआ जो आपके साथ हुआ. हमारी न तो लेखन शैली देखी गई, न कंटेंट, न जीके और न ही टेक्निकल अप्रोच. टाइपिंग के लिए सुमित स्क्रिप्ट टूल और एम एस वर्ड जैसे ही एक सॉफ्टवेअर पर अमर उजाला फॉण्ट का उपयोग करते हुए हमें टेस्ट देना था, हालाँकि हमारे अधिकांश दोस्तों को इस बारे में जानकारी नहीं थी. हम इसके लिए अमर उजाला को दोषी नहीं ठहरा सकते हैं, हमें इतना तो टेक्नोफ्रेंडली होना ही पड़ेगा. पर मैं आपकी इस बात से सहमत हूँ कि वह चयन प्रक्रिया समुचित नहीं थी. एक पत्रकार के चुनाव के लिए कई पक्षों पर गौर करना चाहिए सिर्फ प्रूफ/मात्राओं की गलतियों पर नहीं. इस टेस्ट के लिए आपका ये संदेह सही हो सकता है कि यहाँ सिर्फ सेटिंग-गेटिंग का खेल खेला जा रहा हो. वैसे आदरणीय संपादक जी का वर्ताव भी शोभनीय नहीं था. आपने ये बात उठाई इसके लिए कश्यप जी आपका धन्यवाद.

  17. shreyas

    May 7, 2010 at 3:41 am

    नए लड़कों को अमर उजाला की टेस्ट प्रक्रिया या साक्षात्कार प्रक्रिया अजीब लग रही है, लेकिन अमर उजाला को वर्षों से जानने वालों या वर्षों से जुड़े लोगों के लिए यह कोई अनोखी प्रक्रिया नहीं है। अमर उजाला अपने जिन कार्यों या खूबिया की बदौलत लोकप्रियता की उंचाइयों पर पहुंचा था, अब उनमें से एक भी खूबी नहीं बची है। वजह है अतुल माहेश्वरी जी खुद ही उन खूबियों से चिपके नहीं रहना चाहते। अतुल माहेश्वरी जी भी संपादक अतुल माहेश्वरी की बजाय निदेशक अतुल माहेश्वरी हो गए हैं। अखबार के ऊपर कारपोरेट शब्द का लेबल चिपकाना उन्हें अच्छा लगता है। शायद इसीलिए उन्होंने अखबार से दिल से जुड़े लोगों को दरकिनार किया। ऐसे लोग लाए गए जो अमर उजाला की संस्कृति से वाकिफ नहीं थे। उन लोगों ने कुछ अपनी मर्जी से और कुछ निदेशक की मर्जी से पूरे अमर उजाला का कायापलट कर दिया। इस बदलाव के शुरुआती दौर में ही इसका असर दिखने लगा था, फिर भी अपनी ‘धुन के पक्के’ अतुल माहेश्वरी अपनी राह चलते रहे। पहले अतुल माहेश्वरी जी ही नए जुड़ने वाले पत्रकारों को दो-दो साल तक ट्रेनी बनाए रखते थे। जिन्हें घिस-घिस कर पक्का पत्रकार बना दिया जाता था। अब लोगों को बिलकुल पका-पकाया माल चाहिए। इन दिनों अमर उजाला में चल रही भर्ती प्रक्रिया में साक्षात्कार लेने वाले लोग भी इसी मानसिकता के तहत पत्रकार ढूंढ रहे हैं। अब जब बाजार में यह मैसेज जा चुका है कि इन दिनों अखबारों में पत्रकार नहीं बल्कि पेजिनेटर चाहिए, तो बच्चे उसी की तैयारी करके आ रहे हैं। अब जब पूरा संपादकीय स्टाफ पेजीनेशन मोड में आ गया है तो भी तकलीफ हो रही है। अतुल जी इतना बड़ा संस्थान चला रहे हैं। उनका अपना लक्ष्य, विजन और दिशा निर्धारित है। इसलिए इस बारे में कोई टिप्पणी नहीं की जा सकती है, लेकिन अतुलजी जब तक पुराने वाले ‘भाई साहब’ नहीं बनेंगे, तब तक वह लक्ष्य भी हासिल नहीं कर सकते, जिसकी तलाश में वह हैं।

  18. siddhartha mishra

    May 7, 2010 at 11:21 am

    amar ujala ho ya koi anya paper vastav me ve ab mission se hatkar poornataya proffesional ban chuke hai.isliye shayad naye logo k liye media me koi mouka nahi hai.haan agar koi jack ya jugad ho to baat alag hai.kuch dino pehle i-next me interview k selection k baad bhi main khali haath vapas luta hoo.interview k liya bareli aur phir lucknow bulane k baad bhi nateeka vahi dhaak k teen paat raha. shayad sthapit patrakao ko ab nayi poudh sahejne ka koi shouk nahi hai.yaha gaalib yaad a rahe………..bahot beabru hokar tere kuche se hum nikle.

  19. suresh pandey

    May 8, 2010 at 1:57 pm

    अमर उजाला के लिए इतना गुबार…अचरज है। जिन भी भाई लोगों को यहां की टेस्ट प्रक्रिया पर एतबार हो रहा है, उन्हें शायद कायदे से एक वाक्य भी लिखना नहीं आता। यदि अमर उजाला अपने कंटेट को और बेहतर बनाने के लिए अच्छे लोग चाहता है तो इसमें हर्ज क्या है। माना कि आजकल की पत्रकारिता में योग्यता घास छीलने वाली बात हो गई है, और सिर्फ विज्ञिप्तयों के भरोसे चल रहे अखबार दीगर कारणों से कहीं-कहीं फर्जी नंबर एक बने हैं, तो भी अमर उजाला के साथ यह बात लागू नहीं होती। ऐसे समय में जब अखबारों को सिर्फ सब एडिटर रूपी पेजीनेटर चाहिए हैं, अमर उजाला ही ऐसा अखबार है जहां सब एडिटरों को उनके वास्तविक कर्म यानी खबरों को मांजने की ताकीद की जा रही है। नाकारा लोगों को बाहर का रास्ता दिखाया जा रहा है। बदलाव इस अखबार की रग-रग में है, इसका असर जल्द ही दिखेगा। अन्य अखबारों के मुकाबले अमर उजाला हमेशा अतुलनीय रहा है और पिछले एक दशक से इसका श्रेय अतुल जी को ही जाता है।

  20. shakun

    May 16, 2010 at 1:42 pm

    amar ujala ke test mein galatiyan dekhne wale apne aap ko dekh le. maine wo test diya aur pass bhi kiya. beshak me 33 logon me se select hone wale 3 me se ek hoon aur abhi tak uska sadasya nahin bana hoon. lekin amar ujala ki patrakarita par ungli uthana suraj ko ungli dikhane jaisa hai. aap software nahin jante, isme bhi amar ujala ki galti hai. yeh to kahin bhi jaoge to seekhna padega. ek patrakar ne kaha ki unke yahan aisi hindi hoti hai toh editor sahab dp srivastava ne kaha hindi sab jagah ek hoti hai, baki boliyan hoti hain. lekin baad me usne bahar nikalkar na-na prakar ki baate ki. patrakar hamesha seekhne ki adat dalen. atul maheshwari ji ki team mujhe to sankalpit lagti hai.

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