अभिनेता अमिताभ बच्चन को भी खबरों का धंधा पसंद नहीं है. उनका कहना है कि पैसे लेकर खबर छापने से आम जनता का विश्वास मीडिया से घटेगा. खबरों की धंधेबाजी के चलन को बंद करना चाहिए. अमिताभ ने ये बातें अपनी नई फिल्म ‘रण’ के बहाने आयोजित प्रेस कांफेंस में कहीं. एक संवाददाता ने जब उनसे मीडिया के व्यवहार और रवैए के बारे में उनके निजी नजरिए को लेकर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि मीडिया को आम आदमी के प्रति धारणा और नजरिए को बदलना चाहिए. साथ ही, मीडिया को सकारात्मक खबरों के बारे में भी देखना चाहिए जो आसपास घटित हो रही हैं.
अमिताभ ने कुछ मीडिया हाउसों द्वारा बिजनेस बढ़ाने के नाम पर पेड न्यूज का चलन शुरू करने की आलोचना की. उन्होंने कहा कि इस चलन से भले ही मीडिया हाउस अपना बिजनेस बढ़ा ले रहे हों पर उनके प्रति आम पाठकों और दर्शकों का विश्वास खत्म हो रहा है. अमिताभ ने मशहूर पत्रकार और एडिटर्स गिल्ड के अध्यक्ष राजदीप सरदेसाई के पेड न्यूज के खिलाफ चलाए गए अभियान का स्वागत किया और इसके लिए राजदीप की सराहना की. अमिताभ ने कहा कि मैंने पेड न्यूज के खिलाफ राजदीप के आर्टिकल को पढ़ा और मैंने उन्हें बधाई दी. इस गलत परंपरा को रोकने के लिए कुछ किया जाना चाहिए.
अमिताभ ने इलेक्ट्रानिक मीडिया के बारे में टिप्पणी की कि चौबीसों घंटे के न्यूज चैनल अजगर की तरह हैं और इन न्यूज चैनलों में काम करना बहुत मुश्किल होता है. कई न्यूज चैनल अपना बिजनेस बचाने-बढ़ाने के लिए खबरों के साथ समझौता करते हैं, जो उचित नहीं है. उन्होंने बताया कि फिल्म ‘रण’ मीडिया में उच्च स्तर पर मौजूद भ्रष्टाचार पर आधारित है.
प्रेस कांफ्रेंस में फिल्म ‘रण’ के निर्देशक राम गोपाल वर्मा भी मौजूद थे. राम गोपाल के मुताबिक उन्होंने फिल्म में नेताओं और मीडिया वालों के बीच सांठगांठ के बारे में विस्तार से बताया है. किस तरह देश के कुछ न्यूज चैनल बिजनेस बढ़ाने के नाम पर नेताओं से सांठगांठ कर चुके हैं और इसका असर देश पर क्या पड़ रहा है और पड़ेगा, इसका विस्तार से प्रदर्शन फिल्म में किया गया है. रामू ने बताया कि उनकी नई फिल्म न्यूज चैनलों के बारे में जनता के नजरिए को दर्शाती है. फिल्म में आम जनता की राय को दिखाया गया है. इस राय से जाहिर होता है कि न्यूज चैनल खबर के नाम पर दर्शकों को कचरा परोसते हैं. प्रेस कांफ्रेंस में रितेश देशमुख और गुल पनाग भी मौजूद थीं जो इस फिल्म में अभिनेता-अभिनेत्री हैं.
rakesh
January 19, 2010 at 5:33 pm
kafi achchh laga aapka vichar.
विनीत कुमार
January 19, 2010 at 7:20 pm
मीडिया आलोचकों ने जब यही सारी बातें चैनलों और अखबारों के लिए कभी कहा तो उनकी बातों पर कान देने के बजाय सीधा जबाब दिया जाता रहा कि आखिर हम कर भी क्या सकते हैं? उनसे कहा जाता रहा कि आप जो आमलोगों की बात कर रहे हैं आपके पास कोई निश्चित आंकड़ा है क्या? आलोचकों के पास सचमुच में कोई आंकड़ा नहीं है क्योंकि उन्होंने अब तक जो भी किताबें और लेख लिखी है वो अपने कमरों या ऑफिस केबिन में बैठकर लिखे हैं। लेकिन लोगों की बातों को सुनते और महसूस करते हुए एक नतीजे पर जरुर पहुंचे हैं। मीडिया के लोगों ने इस धारणा को सिरे से खारिज कर दिया। ये बहुत संभव है कि अधिकांश मीडिया आलोचकग जब टेलीविजन या चैनलों की आलोचना करते हैं तो सुधार के बजाय इस इरादे से करते हैं कि देशभर के चैनल और टीवी को गंगा में डुबो दिए जाएं। वो वायस होते हैं लेकिन मीडिया को चाहिए था कि इसके बीच से भी कुछ हल निकाल पाते,कुछ बेहतर करने की कोशिश करते। लेकिन इनलोगों की तरफ से एक ही जबाब आया कि आलोचना करने की परंपरा सी बन गयी है। अब देखिए इसी जेनरल कन्शसनेस की बात को रामू ने कहा कि वो लोगों के नजरिए से चैनल और मीडिया को दिखाने जा रहे हैं तो इस पर बहस शुरु हो गयी और इसका लोगों पर बहुत ही अलग किस्म का असर होगा। ये बात मैं बिना फिल्म देखे ही दावे के साथ कह सकता हूं कि जिस तरह जेनरस कन्शसनेस के तहत मीडिया के लिए कही औऱ बोली गई बातें सौ फीसदी सही नहीं होगी उसी तरह फिल्मों में भी होगा। यहां भी वायसनेस होगा लेकिन सिनेमा उन तमाम आलोचकों की आलोचना पर भारी पड़ेगा। उम्मीद करें कि मीडिया को टीआरपी से अलग भी कोई सत्ता समझ में आए। क्योंकि मीडिया के लोगों ने अभी तक टीआरीपी से अलग भी कोई पैमाना हो सकता है,एक सत्ता हो सकती है जो आगे जाकर चैलेंज करेगी इसे गंभीरता से नहीं लिया।..
dinesh mansera ndtv nainital
January 20, 2010 at 12:39 am
zaroorat is baat ki bhi hai ki cable mafiayo per kaise nakel kasi jaye jo manamani karke paisa leker news channels chalate hai..
faiz
January 20, 2010 at 4:29 am
amit jee aap ke vichar achchhe lage, par channel malikon ke bhi majburi bhi hai , jaise aap fee me picutre nahi kar sakte use tarah lala bhi kahin na khi se paisa kamane ke sath khabar se khelne ki jugad dekh lete hai , kul milkar hum sabhi ko sudharne ki jarurat hai , han agar sahi tasbir dikhane to media ki sabse niche tabke ki jo vastab me khabar banata hai , jan par khelkar par badle me milta kuch bhi nahi hai …… jyada malum karna hai to pehle media research karle tab ek achchhi film ban sakti hai …. abhi aap ki picture adhuri hai…..
tcare amit jeee
suraj singh
January 20, 2010 at 5:28 am
paid news ka yahi haal na sirf national channals me hai balki desh me jaghe jaghe chalne wale local cable tv news channals ka bhi yahi haal hai. pahechaan wale parshad ke ache kamo ko khoob dikhaya jata hai aur unse faistivals ke douraan add ki farmaish bhi hoti hai. jisse unki roji roti chalti hai.
ab sawaal ye ki agar ye channals aisa nahi nahi karenge. to paisa kahan se aayega aur unke souk kaise pure honge. kyoki ab to news channals ne bussniss ka roop le liya hai to agar wo pide news dikhye ya kuch janta per padne wale fark se inhe koi sarokaar nahi hai.
Rizwan Chanchal
January 25, 2010 at 9:07 am
Amitab jee aap ke vichar achchhe hi nahi balki prasansneeya bhi hai. lekin badon ki kaun kahe chotoon ko bhi aaz ke is pratiespardha bhare daur me paisa kamane ke liye khabron se samjhauta karna par raha hai theek usi tarah jis tarah paise ki chah me filmkar samaj wa rastra bhawana ko tilanjali de aise aise phoohad filmo ko janta ke samne paros dete hai jinka na kewal galat effect hi hota hai balki aam nagarikon me galat sandesh bhi jata hai . isliye mera manna to yah hai ki samaj wa rastra utthan me sahityakar, lekhak, kalakar sabhi ka mahatwapurn role hai jise sacchai ke sath emandari aur nistha se nibhaya jana jana chaiye