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उसे ‘बिहारी’ कह कर बुलाते हैं!

आगरा में एक अखबार में काम कर रहे बिहार के एक पत्रकार के प्रति यह कैसी जहरीली मानसिकता : पत्रकार प्रबंधन के अंग के रूप में स्थापित संपादक से प्रताड़ित हों, यह तो देखने में आता है, लेकिन पत्रकार प्रदेशवाद या जातिवाद या किसी अन्य वाद के कारण अपने सहयोगियों से ही अपमानित-प्रताड़ित होता हो, यह देखने-सुनने में नहीं आता है। एक दुखद स्थिति है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में बिहार के निवासी एक युवा तेजस्वी, प्रतिभाशाली एवं अच्छी भाषा के जानकार पत्रकार के साथ यही सब हो रहा है।

अमरेंद्र कुमार

आगरा में एक अखबार में काम कर रहे बिहार के एक पत्रकार के प्रति यह कैसी जहरीली मानसिकता : पत्रकार प्रबंधन के अंग के रूप में स्थापित संपादक से प्रताड़ित हों, यह तो देखने में आता है, लेकिन पत्रकार प्रदेशवाद या जातिवाद या किसी अन्य वाद के कारण अपने सहयोगियों से ही अपमानित-प्रताड़ित होता हो, यह देखने-सुनने में नहीं आता है। एक दुखद स्थिति है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में बिहार के निवासी एक युवा तेजस्वी, प्रतिभाशाली एवं अच्छी भाषा के जानकार पत्रकार के साथ यही सब हो रहा है।

वह पत्रकार बिहार के निवासी हैं और संप्रति आगरा के एक बड़े अखबार में बतौर संवाददाता काम कर रहे हैं। उनकी पकड़ विज्ञान पत्रकारिता पर भी है। इतनी प्रतिभा और योग्यता होने के बावजूद उनके सहयोगी उन्हें अपमानित करने के ख़याल से उनके साथ बदसलूकी करते हैं। मैं उस पत्रकार और अखबार का नाम जान-बूझ कर नहीं लिख रहा हूं कि कहीं उन्हें और न प्रताड़ित-अपमानित किया जाए, जिससे आगरा में उनका रहना भी मुश्किल हो जाए। उनकी नौकरी भी जा सकती है। पत्रकारों की नौकरी तो वैसे भी कांटे की नोंक पर ओस का एक कतरा है, जिसे हर लमहा, गिर जाने का खतरा है। ऐसी स्थिति में उनकी भी नौकरी कभी जा सकती है।

उक्त पत्रकार को हास्य का पात्र बनाने के उद्देश्य से ‘बिहारी’ कहा जाता है, नाम लेकर नहीं पुकारा जाता है। यह उन्हें अपमानित करने का एक तरीका है। उक्त पत्रकार जब पहली बार उत्तर प्रदेश या उतराखण्ड जाने वाले थे, तो मैंने करियर के खयाल से कहा था कि अगर आपको बाहर के अखबार में करना हो, तो दिल्ली के अखबार में काम शुरू करें। दिल्ली में भेदभाव जैसा नहीं है। पत्रकारों की बिरादरी में तो कभी प्रान्तवाद और जातिवाद नहीं चला, लेकिन यह कैसे एक नया ज़हर फैलने लगा है। यह बात मेरे जैसे वरिष्ठ पत्रकार पत्रकार को सालने वाली है कि बिहार में उत्तर प्रदेश और दिल्ली के कई अखबार हैं, पत्रकार हैं, स्थानीय संपादक हैं, लेकिन कभी इस तरह की संकीर्ण भावना यहां के पत्रकारों के मन में नहीं आयी।

एक दिन सुबह-सुबह उक्त पत्रकार का फोन आया। बोलने लगे- अब तो अपमान का घूंट पी कर यहां रहना सम्भव नहीं है। कृपया बिहार अमरेंद्र कुमारमें किसी अखबार में नौकरी दिलवाने में मदद करें। फिलहाल उक्त पत्रकार बिहार के एक छोटे अखबार में शीघ्र आ रहे हैं, लेकिन चिन्ता यह होती है कि उत्तर प्रदेश मे यह कैसी जहरीली पौध उग रही है? इसका नतीजा क्या होगा?

लेखक अमरेन्द्र कुमार वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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0 Comments

  1. faiz

    January 21, 2010 at 3:41 am

    aap ne kisi ke dard ko mehsus kya, yeh apne apne aap me badi baat hai , aap meri tarf se us reporter ko bol de ki pehle dost ladna shikho likh lo , phir sab sudhar jayenge.

  2. Sujeet Kumar

    January 21, 2010 at 6:34 am

    it’s very bad, he must strongly oppose to it. job comes and go but noone should compromise with his or her self-respect. he loses job, he can contact me, i guess he is working with any hindi banner, i can arrange better job for him if he is really talented

  3. Anil Kant Verma

    January 21, 2010 at 8:50 am

    bihari hone mein sharm kaise?

  4. satya prakash azad

    January 22, 2010 at 1:35 am

    agar itne se dar gae, pareshan ho gae to phir patrakarita kaise hogi. mushkilen or viprit halat patrakar ko or majboot karti hain.

  5. MANISH MISHRA

    January 22, 2010 at 4:15 am

    Amrendrajee ne wakai ek patrakar ke aatm samman ko pahunche thes ka masla samne rakha hai. Patrakar buddhijeeve hote hain, reporting ke sath hi unse prabuddh hone ki aasha ki jati hai.
    Agar Sampadak ya baki ke sahkarmi ‘BIHARI’ kaha kar bulate hi hain bihari bhai ko chahiye ki we aise logon ko jutey mar kar naukri chhode…. Naukri mil jayegi….gaye Aatmsamman se dabboo ban kar rah jayenge….. patrakarita kya khak kar payenge

  6. pankaj

    January 22, 2010 at 10:11 am

    ye bihari Dainik Jagran ka reporter Krishan Kumar Kislay hy.

  7. jaishankersuman

    January 22, 2010 at 10:51 am

    बिहारी पत्रकारों को अन्य प्रान्तों में अपमानित बिहारी वरिष्ठ पत्रकारों और संपादको के कारन होना पड़ता है क्योकि मैं खुद इस अपमान को झेला हूँ और झेल रहा हूँ लेकिन मैं एक ही बात कहना चाहता हूँ कि मुझे तो अपनो ने लूटा गैरो में कहाँ दम था मेरी किस्ती वह डूबी जहा पानी का था , अमरेंदर जी आपने जो कुछ लिखे है उसके लिये आपको धन्यवाद कोई तो है जो पत्रकार का अपमान समझा

  8. ramkumar

    January 22, 2010 at 7:55 pm

    एक उत्तर प्रदेशवासी की पीड़ा
    अमरेन्द्र जी ने एक बिहारी की पीड़ा बताई लेकिन वह शायद नहीं जानते कि कृष्ण किसलय कितनी कम आईक्यू के रिपोर्टर हैं। वह कितने झूठ बोल रहे हैं। क्या आप बता सकते हैं कि छंटनी अभियान के दौरान उनका नाम क्यों आया था। आखिर मेरा क्यों नहीं आ गया। वजह साफ है कि वह काम नहीं करना जानते। यही नहीं एक आदमी काम तो नहीं करना जानता लेकिन समझाने पर सीखने की कोशिश करता है। परंतु उसने कभी यह उत्सुकता नहीं दिखाई। आप उसके नकारात्मक मानसिकता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि मुख्य विकास अधिकारी कार्यालय में उनका संक्षिप्त नाम केके को कूड़ा करकट कर दिया गया था। एक दिन जब मेरे परिचित ने मुझे बताया तो मैं सन्न रह गया। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि चार माह की रिपोर्टिंग में उसने एक बाईलाइन खबर तो दूर एेसी भी खबर नहीं दी, जो शहर के पहले पेज पर लग जाए। एक और उदाहरण देना चाहूंगा। जब मायावती के जन्म दिन पर हजारों की भीड़ यहां जीआईसी मैदान में जमा थी, तब उनसे एक सहयोगी संवाददाता रूपेश चौधरी ने वहां जाने के लिए कहा। इस पर उनका जवाब था कि हम वहां जाकर क्या करेंगे शाम को विज्ञप्ति आ जाएगी। यही नहीं शाम को खबर भी रात नौ बजे के बाद इस नाकारा संवाददाता ने तब लिखी जब प्रेस रिलीज आ गयी। अमरेन्द्र जी सच पूछो तो केके जैसे बिहारी बाबू को तो आगरा के अधिकारियों का शुक्रगुजार होना चाहिए कि एेसे व्यक्ति की नौकरी एक साल चला दी। यदि इनकी जगह मैं होता तो तीन दिन में निकालकर बाहर कर देता। आप देख लेना जिस बिहारवाद के नाम पर उन्हें नौकरी मिल रही है वहां भी छह माह में गारंटी से बाहर हो जाएंगे। इसके बाद मैं आपसे आपके बिहारवाद को गाली देने के बारे में जवाब चाहूंगा।

  9. Amit Kumar

    January 23, 2010 at 10:10 am

    ramkumar jee ,pratibha na hona or gali dena do bate hai .or ye aap bhi shayad jante honge. ise kahi se theek parampara ki shuruyat nahi kahi ja sakti

  10. umesh

    January 23, 2010 at 7:11 pm

    मैने खबर और कमेंट्स पढ़े तो सब जानने की इच्छा हुई। पता भी किया। अब सच्चाई के नजदीक पहुंचा हूं। सोचता हूं कि सबको इससे परिचित कराऊं। बात बिहारी से शुरू हुई थी एेसे में इस पर तो विस्तृत बात होनी ही चाहिए। सबकी पीड़ा है कि कृष्ण किसलय को बिहारी कहकर अपमानित किया जाता था। परंतु मैं केके से जवाब चाहूंगा कि वह दैनिक जागरण तो दूर आगरा के किसी भी अखबार से जुड़े एक पत्रकार या किसी अन्य व्यक्ति का नाम बता दें, जिसने उन्हें कभी इस नाम से पुकारा हो। हां, एेसा कहकर वह सहानुभूति जरूर हासिल कर सकते हैं, जो उन्हें भविष्य के लिए नौकरी दिलाने में मददगार हो सकता है। मैं जागरण का पत्रकार नहीं हूं परंतु इस सुलहकुल और प्यार की नगरी पर दाग आ रहा था, तो मुझे जवाब देने को मजबूर होना पड़ रहा है। मुझे जागरण के अपने सहयोगी पत्रकारों से बातचीत में पता चला कि केके को बहुत सहयोग दिया। वहां के पूर्व सिटी इंचार्ज ने तो उन्हें एडीटिंग डेस्क का काम न आने पर भी उन्हें सीखने का पूरा अवसर दिया परंतु वह खबरों का प्रूफ भी ढंग से न पढ़ सके। बाद में वह रिपोर्टिंग में आए तो उनके पास स्कूटर नहीं था। एेसे में मूलरूप से आगरा के एक सहयोगी रिपोर्टर ने उन्हें अपना स्कूटर उपलब्ध कराया। उनसे १५ दिन में लौटाने का वायदा किया गया परंतु पांच माह तक वापस न किया। इस बीच संयोग से स्कूटर देने वाले पत्रकार के पुत्र का एडमीशन व्यावसायिक शिक्षा के लिए हो गया तो उन्होंने ढाई माह बाद वाहन मांगा लेकिन वापस नहीं किया। खबरची अपने सूत्र मुशिकल से स्थानांतरित करते हैं परंतु इस कार्य में भी उन्हें पूरा सहयोग दिया गया। वैसे आपको बता दें कि आगरा में बिहार के सन्मय प्रकाश भी संवाददाता हैं, जरा उनसे पूछकर देखिये कि कभी कोई दिक्कत हुई। पीयूष गौतम डीएलए में कार्यरत हैं लेकिन कभी कोई शिकायत नहीं हुई। तीन बिहार के पत्रकार अमर उजाला आगरा में भी हैं लेकिन कभी किसी को परेशानी नहीं हुई। केके को एक एक साल से दिक्कत क्यों नहीं थी। अब अचानक क्या हो गया। दरअसल वह अपनी अकर्मण्यता छिपाने के लिए ही बिहारी होने का दांव लगा सकते हैं। परंतु केके नहीं जानते इससे भारतीयता पर प्रहार होता है। आखिर इसी के बल पर तो हम यूपी और बिहार के भैय्या लोग महाऱाष्ट्र राज से लड़ते हैं। अब मैं और क्या लिखूं। बुिद्धजीवी तबका समझदार है। वैसे केके के प्रति मेरी पूरी सहानुभूति है और एक प्रार्थना भी कि वह नौकरी पाएं लेकिन एेसे कलुषित दाव न खेलें, जो समाज को क्षति पहुंचाए।
    उमेश

  11. विकास

    January 24, 2010 at 6:23 am

    भेदभाव तो दिल्ली में भी है…. बस फर्क इतना है… कि वहां बिहारवासी प्रताड़ित हो रहा है… और यहां बिहारवासी प्रताड़ित करते हैं…. दिल्ली की मीडिया में किसी भी गैर-बिहारी का प्रवेश मुश्किल है….. क्योंकि ज्यादातर मध्य स्तर के अधिकारी, जोकि पहले स्तर का साक्षात्कार लेते हैं…. या साक्षात्कार के लिए बुलाते हैं, वो बिहारवासियों को ही तरजीह देते हैं… हालांकि एक-आध दूसरों को भी बुला लेते हैं…. ताकि कहने को न रह जाए…

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