प्रिय यशवंत जी, आपका पोर्टल खूब पढ़ा जा रहा है। साल भर में आपने जो यश पाया है, उसके लिए आप बधाई के पात्र हैं। आपका कांसेप्ट हिट हो गया। अब थोड़ा गंभीर हो जाएं। आपके पोर्टल को लोग नानसेंस कहने लगे हैं। ये वही लोग हैं जो आपके पोर्टल की तारीफ करते थे। क्या हो गया? आपकी नीतियां चरमरा गईं या फिर लोगों का मन डोल उठा? विचारिए। फालतू बहस खड़ा करने वाले बयान क्यों छापते हैं? इसे बंद कर दें। बहस से कुछ नहीं होता। अरविंद शर्मा के बारे में जो कुछ कहा गया या जिस तरीके से संत शरण अवस्थी जी के बारे में विशु जी ने लिखा, वह पत्रकारिता की मर्यादा का तो उल्लंघन है ही, हमारी-आपकी साख पर भी इसलिए बट्टा लगाता है कि हमने इसे प्रकाशित क्यों किया? जो दारू पीने वाला है, वह दारू पीयेगा ही। हमारे छाप देने से वह संत क्योंकर हो जाएगा? आपका पड़ोसी आपको किसी बात पर गाली दे सकता है। क्या वह खबर है आपके लिए? इस पोर्टल पर कई अच्छे-अच्छे इंटरव्यू पढ़ने को मिले, कई सकारात्मक खबरें मिलीं।
आपने शशि शेखर जी, एसएन विनोद जी, विनोद शुक्ला जी, पुण्य प्रसून वाजपेयी जी, आलोक तोमर जी सरीखे नामचीन हस्तियों की अच्छाइयों को लोगों के समक्ष रखा। उसी पोर्टल पर कीचड़ की भाषा बोलने वालों को क्योंकर खड़ा कर रहे हैं? बहुत सारी चीजें ऐसी हैं जिन्हें छापना जरूरी है पर आप नहीं छापते। मीडिया में शोषण की खबरें छापें। किसी ने बेहतर काम किया हो तो उसे छापें। गाली छापने से ही रेटिंग बढ़ेगी क्या? लगातार विवादास्पद लेख या बयान छाप कर हम अपनी रेटिंग तो बढ़ा सकते हैं पर विश्वसनीयता का संकट हम ही खड़ा कर लेंगे। लोग आपके लिखे को हल्के में लेने लगें तो लिखने का क्या फायदा? अफसोस मेरे भाई। ऐसा शुरू हो गया है। एक मित्र की बात मान लेंगे तो लगेगा कि मिशन अभी बरकरार है।
नमस्ते
आनंद सिंह
वाराणसी