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इससे अच्छा बैंक में ही मैनेजरी करना है

अंचल सिन्हा ने अखबार की नौकरी को नमस्ते और बैंक की दुनिया में फिर लौटने का फैसला लिया : अंचल सिन्हा ने अखबारी दुनिया को नमस्ते करने का निर्णय लिया है. लगभग तीस वर्ष पूर्व से वह बैंक ऑफ बड़ौदा में विभिन्न पदों और बाद में प्रबंधक के पद पर कार्य करते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहे थे.

<p style="text-align: justify;"><strong>अंचल सिन्हा ने अखबार की नौकरी को नमस्ते और बैंक की दुनिया में फिर लौटने का फैसला लिया : </strong>अंचल सिन्हा ने अखबारी दुनिया को नमस्ते करने का निर्णय लिया है. लगभग तीस वर्ष पूर्व से वह बैंक ऑफ बड़ौदा में विभिन्न पदों और बाद में प्रबंधक के पद पर कार्य करते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहे थे.</p> <p>

अंचल सिन्हा ने अखबार की नौकरी को नमस्ते और बैंक की दुनिया में फिर लौटने का फैसला लिया : अंचल सिन्हा ने अखबारी दुनिया को नमस्ते करने का निर्णय लिया है. लगभग तीस वर्ष पूर्व से वह बैंक ऑफ बड़ौदा में विभिन्न पदों और बाद में प्रबंधक के पद पर कार्य करते हुए स्वतंत्र लेखन कर रहे थे.

लगभग 3 वर्ष पहले वह बैंक से इस्तीफा देकर भास्कर समूह में आए थे. इसके पहले वह नवभारत टाइम्स और दैनिक हिंदुस्तान के पटना संस्करण में बैंक से लंबी छुट्टी लेकर दो वर्षों तक कार्य कर चुके थे. भड़ास4मीडिया से बातचीत में अंचल सिन्हा ने कहा कि बिजनेस भास्कर, महानगर और बाद में चौथी दुनिया में काम करने के दौरान उन्हें कई बार नासमझ इंचार्ज और संपादकों को झेलना पड़ा. हाल ही में उन्हें रांची के एक प्रमुख अखबार के प्रस्तावित एक संस्करण के लिए रांची बुलाया गया था, पर संपादक और एक निदेशक के बिजनेस की नीति के कारण बात नहीं बन में सकी.

उसके बाद उन्हें भोपाल के एक बड़े हिंदी दैनिक के लखनउ ब्यूरो का काम संभालने के लिए कहा गया. लेकिन साथ ही एक शर्त यह भी रखी गई कि वह इसके लिए कम से कम 5 लाख की सेक्योरिटी देने वाले दो बड़े विज्ञापन एजेंट भी जुटाने होंगे. लगभग ऐसी ही बातें दूसरे कई अखबारों में भी उन्हें सुनने को मिली.

अंचल सिन्हा ने बताया कि जब संपादकीय कंटेंट की कोई पूछ ही नहीं रही और सौ में से 99 संपादक और मालिक अखबारों में केवल मैनेजर ही चाहते हैं तो इससे अच्छा बैंक में ही मैनेजरी करना है. उन्होंने कहा कि एक विदेशी बैंक ने उन्हें बार-बार अफ्रीका बुलाया है, संभवतः दुखी और अखबारी दुनिया से हताश होकर वह अफ्रीका ही चले जाएंगे. इसके साथ ही वह जल्दी ही बैंकिंग दुनिया से जुड़ी तमाम जानकारियों के साथ एक बैंकिंग पोर्टल भी लांच करने की योजना पर काम कर रहे हैं.

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0 Comments

  1. rrdarvesh

    June 18, 2010 at 5:33 am

    bahut achhe janaab! Anchal j ko Afrika mubarak ho! or naya portal kholne ki shubhkamna bhi!

  2. engi

    June 18, 2010 at 6:36 am

    … manager hi to baithe hai..
    yeh hi to tragedy hai..

  3. Shilpi Sharma

    June 18, 2010 at 7:49 am

    Sabhi news papers, magzines, news portals ki yaheen sthiti kai. content ko koi nahi pooch raha hai. Ad kitna laoge, dalali karoge, mukhya zimmedari hogayee hai editor, journalist ke liye.

  4. Shilpi Sharma

    June 18, 2010 at 7:50 am

    Sabhi news papers, magzines, news portals ki yaheen sthiti kai. content ko koi nahi pooch raha hai. Ad kitna laoge, dalali karoge, mukhya zimmedari hogayee hai editor, journalist ke liye.

  5. bas u hi

    June 18, 2010 at 9:44 am

    chuthi duniya ke baad andh mahadveep….

  6. Haresh Kumar

    June 18, 2010 at 11:21 am

    आज कल अखबार या मीडिया का कोई भी भाग अन्य बिजनेस की तरह हो गया है। जहां न नैतिकता ना ही कोई पत्रकारिता का धर्म निभाया जाता है। बस किसी तरह से बिजनेस लाओं। चाहे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। मीडिया सिर्फ एक धंधा बन कर रह गया है। अच्छे लोग अब अपवाद स्वरुप ही मिलेंगे। उनको भी अवसर विशेष पर इस्तेमाल के लिए रखा जाता है, नुमाइश के लिए। कई लोग दूसरे धंधे को छुपाने के लिए भी इस पवित्र पेशा में आ गए हैं।

  7. Sushil Gangwar

    June 18, 2010 at 2:09 pm

    पत्रकारिता का झोल – सुशील गंगवार
    Bank ki naukri chhodkar Patrakarita me aana samjhdari or murkhta dono hai. Dono field apni jagha achhe hai. Gar aapko patrakarita me achha break mil jata hai kowi buri baat nahi hai . Patrakarita ka girta graph or kam betan par kaam karne vale majbur patrakaar kabhi kabhi to do jun ki roti ke liye taraste hai. Eska dos kisi akhbaar ke malik ko diya jaye to behtar hoga. Vah log Salary dena hi nahi jante hai. Aaj kal har TV chennal or Akhbaar me chhatni ho rahi hai. Agar aapko kisi or field me achhi naukri karke achha paisa milta hai to esme buraaee kya hai .पापा कहते थे कि बेटा बड़ा होकर बड़ा अधिकारी बनेगा -गाडी बंगला नौकर चाकर मुफ्त में मिलेगे ? बेटे ने तो टीवी देखकर देखकर कुछ और बनने का मन बना लिया था। वह भी एक पत्रकार। आज पत्रकारिता जगत में करांति है , हर बंदा लिखना और छपना चाह रहा है । नौकरी की बात करे तो जिसका जुगाड़ है वह नौकरी कर रहा है । अगर नौकरी मिल जाये तो वेतन इतना कम की गुजारा भी न हो सके – आखिर करे तो क्या करे । इसलिए नए पत्रकारों ने नयी राह पकड़ ली है । थोडा सा पैसा और जुगाड़ है तो stingership मिल जाती है . फिर वेतन कहा से आये . कभी कभार स्टोरी टीवी पर लग जाती है तो पैसा मिल जाता है. नहीं तो उलटे सीधे काम करो। इसलिए पत्रकारिता का ग्राफ गिरता जा रहा है । आज १०० लोगो में से १५ के पास ही नौकरी है । जो लोग नौकरी कर रहे तो पेट ही पाल रहे है । मै जीवन में कितने पत्रकारों से मिला, कुछ तो वीकली , मंथली पपेर magazine और केबल चेन्नल के सहारे ही जिन्दगी बसर कर रहे है . हम दूसरे सेक्टर की बात करे तो अच्छी नौकरी और अच्छा पैसा मिल रहा है ।
    http://www.sakshatkar.com
    http://www.sakshatkar-tv.blogspot.com

  8. amrit anand

    June 18, 2010 at 4:47 pm

    anchal sir ke liye bas ye hi kahunga…, ki jis nature ke wo hai…, unke ke liye ye news ka hloe sale ka market nai hai. jis insaan ne pure imandari ke sath bank me kam kiya wo is news broker ke duniya me kaha se suvive karenge.

  9. avinash aacharya

    June 19, 2010 at 4:48 am

    anchal sinha ji media ke joikhim se dar kar bhaagey hai. etney mahan patrakaar bhi nahi hai P. Sainath banana chatey they kisi ne banney na diya. esi daur me jinhey kaam karna hai wo apne tareekey se kar rahey hai. es tarah to ye dunia hi rahney laayak nahi hai. Kisi profession ko gaali dena murkhta hai. aap vyakti se ashamat ho saktey hai bas.

  10. आलोक तोमर

    June 19, 2010 at 10:12 am

    अंचल जी के दर्द को मैं समझ सकता हूँ…हालांकि सौभाग्य से मुझे प्रभाष जोशी, राजेंद्र माथुर, उदयन शर्मा जैसी विभूतियों से सीखने का अवसर मिला है मगर, ज़्यादातर अपनी खोटों की वजह से और करा बोलने-लिखने के संस्कारोंकी वजह से मैं तट पर ही रह गया और दोस्त लोगों ने सरे महाद्वीपों पर लंगर डाल लिए. किस्मत ठीक है और हिन्दी के संस्कार हैं सो बड़े-बड़े ठिकानों पर सितारा बन कर बैठे मित्र सर कह देते हैं, ये भी कहते हैं की सर आपसे बेहतर कोइ नहीं लिखता. मगर नौकरी मांगो तो पहले अवाक होने का अभिनय करते हैं–क्या मज़ाक कर रहे हैं सर!!!!!फिर ”ऊपर” बात करने का दिलासा देते हैं और फिर फोन उठाना ही बंद कर देते हैं. २२ साल की उम्र मैं हिन्दी का व्याख्याता बनने का मौका मिला था, उसे छोड़ने का दुःख कभी कभी होता है. मगर फिर सोचता हों, नियति और गुरु जनों ने तो मन खोल कर दिया था पर अपनी अंजुरियों में जो समाया सो ही समाया . सुख है की कायर नहीं हूँ, और गुजारा ठाठ से होता है. अंचल जी, आपको शुभकामनाएं.
    आलोक तोमर

  11. Anchal Sinha

    June 20, 2010 at 2:53 am

    Alok Tomar Ji samet Jin mitron ne mere liye apni pratikriyayen bheji hain, unhe dhanyavad. ek sajjan ne likha hai ki main itna bara patrakaar bhi nahin hoon, Baat bilkul sahi hai. Maine kabhi aisa koi daava nahin kiya. Main to maanta hi hoon ki ham jaise log ab rejected maal hain. Ek baar phir Shukriya.

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