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मर्जी चले तो एडिट पेज व पोलिटिकल ब्यूरो बंद कर दूं!

[caption id="attachment_17019" align="alignleft" width="130"]अंचल सिन्हाअंचल सिन्हा[/caption]हिंदी पत्रकारिता का नया चेहरा : हिंदी पत्रकारिता का मतलब भले ही कागजों में न बदला हो लेकिन व्यवहार में इसका चेहरा बदल गया है. इसकी अगुआई की है इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने. यह पत्रकारिता से ज्यादा फिल्म बनाने का जरिया बन गया है. हाल ही में इसी विषय पर ‘रण’ नामक जो फिल्म आई है, उसने यह बात लगभग प्रमाणित कर दी है कि खबरें कैसे बनाई जाती हैं. कुछ अतिशयोक्तियों को नजरंदाज करें तो इस फिल्म में अनेक महत्वपूर्ण बातें उठाई गई हैं. उनमें से एक यह कि पहले मीडिया का काम था कि जो घटना हो गई है या जिसे होने की संभावना है, उसे दिखाया जाय। अब मीडिया का काम हो गया है जबरन किसी बात को घटना बताना और उसकी रिपोर्टिंग करना. कई बार तो इलेक्ट्रानिक मीडिया अपने तकनीक से घटना को गढ़ता है और उसे ऐसे दिखाता है जैसे कोई तूफान आ गया हो.

अंचल सिन्हा

अंचल सिन्हा

अंचल सिन्हा

हिंदी पत्रकारिता का नया चेहरा : हिंदी पत्रकारिता का मतलब भले ही कागजों में न बदला हो लेकिन व्यवहार में इसका चेहरा बदल गया है. इसकी अगुआई की है इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने. यह पत्रकारिता से ज्यादा फिल्म बनाने का जरिया बन गया है. हाल ही में इसी विषय पर ‘रण’ नामक जो फिल्म आई है, उसने यह बात लगभग प्रमाणित कर दी है कि खबरें कैसे बनाई जाती हैं. कुछ अतिशयोक्तियों को नजरंदाज करें तो इस फिल्म में अनेक महत्वपूर्ण बातें उठाई गई हैं. उनमें से एक यह कि पहले मीडिया का काम था कि जो घटना हो गई है या जिसे होने की संभावना है, उसे दिखाया जाय। अब मीडिया का काम हो गया है जबरन किसी बात को घटना बताना और उसकी रिपोर्टिंग करना. कई बार तो इलेक्ट्रानिक मीडिया अपने तकनीक से घटना को गढ़ता है और उसे ऐसे दिखाता है जैसे कोई तूफान आ गया हो.

इस समय मीडिया का रोल कई बार इतना संशय वाला हो जाता है कि लगता है कि वह किसी नेता को चमकाने के लिए ही रह गया है. लालू यादव ने कैसे मीडिया मैनेज किया था, सभी जानते हैं. अब राहुल गांधी के लिए पूरा मीडिया उनकी ऐसी छवि बनाने में जुट गया है जैसे एक अकेले राहुल ही देश की दिशा बदल सकते हैं. पर क्या यह सच नहीं कि केवल एक दिन की ड्रामेबाजी से देश नहीं बदलता. बाल ठाकरे, राज ठाकरे और सामना की चर्चा अगर नेशनल मीडिया न करे तो दो दिन में उनकी राजनीति हवा हो जाय. पर मीडिया को यह लिखने में मजा आता है कि ठाकरे की मांद में घुसकर सीना तानकर लौट आए राहुल.

पूरे मीडिया जगत को यह भरोसा हो चला है कि पाठक और दर्शक केवल अपराध ही देखते पढ़ते हैं. हिंदी पत्रकारिता का भी नया चेहरा कमोबेश ऐसा ही बन गया है. इस नए चेहरे को बनाने में मीडिया के एक बड़े समूह के हिंदी अखबार ने अग्रणी भूमिका अदा की है. लेकिन उसकी कार्यप्रणाली को हिंदी के दूसरे छोटे अखबारों ने नहीं समझा. उस बड़े अखबार ने देश भर में सबसे पहले अपनी लोकप्रियता बढ़ाई. देश भर में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले अखबारों में दूसरों के साथ उसका नाम बना तब उसने एक नया रास्ता बनाया.

दूसरे अखबार आते ही उसकी नकल करने में लग जाते हैं. इससे वे अपना पाठक वर्ग तो नहीं ही पैदा कर पाते हैं, किसी बड़े अखबार का पाठक भी नहीं तोड़ पाते. बाद में पाठकों के बाजार में वे धीरे धीरे लुप्त होते जाते हैं. इस व्यावहारिक सच्चाई को न तो अखबार का मालिक समझ पाता है, न ही संपादक. और आगे चलकर अखबार को बंद करने की हालत हो जाती है.

यह सच है कि किसी भी अखबार के जीवन के लिए पाठक कोई बड़ा प्रभावशाली काम नहीं करता, अखबार केवल विज्ञापन के जोर पर ही चलता है. लेकिन पाठक वर्ग के कारण समाज के हिस्से में अखबार की एक इमेज जरूर बनती है. और यह इमेज ही अगर घटियापन की ओर ले जाने का रास्ता दिखाने लगे तो विज्ञापन देने वाला भी सौ बार सोचता है. इसलिए किसी भी अखबार को सबसे पहले आम पाठकों के लिए स्वीकार्य बनाया जाना चाहिए. उसे हर स्टॉल पर दिखना भी चाहिए. विज्ञापनों के लिए घूमने वाला प्रतिनिधि इसी इमेज को लेकर व्यापारियों के यहां जाता है. इतनी-सी मौलिक बात अगर नए पैदा होने वाले अखबारों के मालिक नहीं समझ पाते और उनका प्रहार गंभीर बातें करने वालों पर ही होने लगता है तो उसे बाजार में असफल होना तय है.

छोटे-मोटे अखबारों में खासतौर से यह बात ज्यादा ही महसूस की जा रही है. असल में इनमें से ज्यादातर हिंदी अखबारों के लोग यह दलील देते हैं कि अंग्रेजी अखबारों ने जो ट्रेंड बना दिया है उसे ही अपनाना चाहिए. इसके लिए वे यहां तक कहते हैं कि अंग्रेजी अखबारों के संचालकों ने यह भी सिखाया है कि हिंदी में पाठकों को जोडऩे के लिए जमकर सेक्स और अपराध को छापो. एक मित्र कहते हैं कि वे अंग्रेजी माध्यम से पढ़कर बड़े हुए हैं इसलिए उन्हें केवल अंग्रेजी ही पसंद हैं. यह और बात है कि वे खुद एक छोटे से हिंदी अखबार में ही काम करते हैं और सरकारी अधिकारियों और प्रिय मित्रों से कहते हैं कि वे फलां अखबार में फलाने बड़े पद पर आ गए हैं. एक दिन उनके एक मित्र ने टोक दिया- भैया, तुम अंग्रेजी के इतने गुण गाते हो, वहां जाने का प्रयास क्यों नहीं करते? बोले- वे लेते ही नहीं. उनका दावा है कि हिंदी के ज्यादातर पाठक संपादकीय पेज नहीं पढ़ते इसलिए उसे बंद कर देना चाहिए.

उन जैसे ही एक दूसरे पत्रकार मित्र ने संपादकीय की दैनिक बैठक में कहा कि उनका वश चले तो अखबारों से न केवल संपादकीय पेज बंद कर दूं बल्कि पालिटिकल ब्यूरो ही बंद कर दूं, कौन पढ़ता है राजनैतिक खबर? इसमें पेज और मालिक का पैसा और समय बर्बाद होता है. वे इस बयान को अक्सर दोहराते रहते हैं. एक दिन मालिक को लगा कि बात तो यह बंदा ठीक कहता है. अगर ऐसा कर दिया जाय तो अखबार के खर्चे में हजारों रुपए की बचत भी हो सकती है. ठीक भी है, जब एजेंसी से ही काम चल सकता है तो दूसरे रिपोर्टरों और ब्यूरो पर पैसे खर्च करने का औचित्य क्या है. लिहाजा फैसला ले लिया गया. लोगों ने उन्हें बधाई दी. मालिक ने आपका कहा मान लिया. पर क्या इससे अखबार का भला हो पाएगा? क्या अखबार छिछोरे व सस्ती खबरों से अपनी पहचान बनाने में सफल हो सकेगा?

लेखक अंचल सिन्हा वरिष्ठ पत्रकार हैं.

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0 Comments

  1. sandip thakur

    March 4, 2010 at 10:28 am

    Aam janta ki nazar mei political leaders ki hi credibility per question mark lag gya hai to usse juri news ka kya kahin.koun biswas karega netayo se juri khabaro per. yahi karan hai ke mhangaye(price rise) jase mudde per bhi kisi political party ka band safal nahi ho pata hai.yadi political news ki readership hoti to MAYA,RAVIVAR,DINMAN,SUNDAY OBJERVER jase magazine aur newspaper aaj top per hone chahiye theye.aaj ye kahan hain? sawal political or non political reporting ka nahi hai.aaj hum bazarbad ke dor se gugar rahi hain.bazar ka ek sidhant hai ki wohi tekega jo bekega.lala bhi dukan mein uss toothpaste ko utha kar peche rakh deta hai jo nahi bikta hai.aaj ke is dour mein koi bhi malik newspaper ya chanel SAMAJSUDHAR ke liye toh nikalata naih hai.newspaper bechana hai to aap ko wohi chapana parega jo adhikansh readers ko pasand hai.ek survey kye mutabik edit page ke readership mahaj 2 percent hai.2 percent readers ki pasand ko dhayan mein rakh newspaper nikalana chahiye ya 98 percent ke leye,zara socheye.
    sandip thakur

  2. Rajni Kant Mudgal

    March 2, 2010 at 8:34 am

    nice article. I have also worked in a national newspaper for more than 36 yers. I remember when a editor of Hindustan was asked not to give publicity to Ch.Devi Lal He scumbbed to it. During page making, he used to visit every page, removing even 16 pt. heading of Devi Lal. But results were different. Devi Lal won. He (Devi Lal) cut down Advertisement from Haryana to this newspaper. The Great Editor was Mr. Vinod Mishra. Rajni Kant Mudgal

  3. Manjula

    March 2, 2010 at 8:35 am

    uchit hi kaha hai

  4. एस. के. सुमन

    March 2, 2010 at 5:11 pm

    अंचल बाबू आप कहां काम करते हैं मुझे नहीं मालूम। पर आपके लेख से मुझे घोर आपत्ति है। जो व्यक्ति अखबार चलाता है उसका मकसद पैसा कमाना होता है। उसे जहां लगेगा कि पैसा व्यर्थ में खर्च हो रहा है वह कटौती करेगा। उससे आपको तकलीफ नहीं होनी चाहिए। जहां तक एडिट पेज की बात है सचमुच अंचल बाबू उसके पढ़ने वालों की संख्या नाममात्र की ही रह गई है। हिंदी अखबारों में विशेष रूप से। पाठक अखबारों में हल्की खबरों पर जोर देता है। किसी भी कारोबार में पाठक भगवान होता है यह तो आप भी जानते होंगे। कोई अपने भगवान को कैसे नाराज करेगा? इसलिए मालिक जो कर रहा है सही कर रहा है। आप हताशा (इस शब्द को लिखने के लिए माफी) लेख लिख कर मत निकालिए। जब समाज गंभीर खबरों को पढ़ने लगेगा, मालिक भी गंभीर खबरों की तरफ ध्यान देंगे। जहां तक राजनैतिक खबरों का सवाल है किसी भी कमजोर आर्थिक स्थिति वाले अखबार का काम एजेंसी से चल सकता है। उसके लिए ब्यूरो रखने की जरूरत नहीं। वैसे आपको मालूम होगा कि राजनितिक पत्रकारिता करने वाले कितने लोग इमानदारी से काम करते हैं। अधिकतर पॉलिटिकल रिपोर्टर दलाली का काम करते हैं और वही खबरें देते हैं जो एजेंसियों में आती हैं। बहुत कम मौलिक काम करने वाले लोग हैं। मुझे नहीं मालूम कि आप किस अखबार की बात कर रहे हैं, पर मैं इतना जरूर कह रहा हूं कि मालिक ने जो किया है सही किया है।

  5. एस.के.सुमन

    March 2, 2010 at 5:18 pm

    अंचल बाबू धीरे-धीरे यह अखबार ही बंद होने वाले हैं और आप कहां एडिट पेज के चक्कर में पड़े हुए हैं। होने दीजिए बंद आप मस्ते रहीए तनाव मत लीजिए।

  6. pradeep yadav

    February 14, 2012 at 5:56 am

    es visal suchna ke samundar par patrikarita ne apna samrajya sthapit kar liya hai aur fir ptrikarita ka netik rup se brast ho jana desh aur samaj ke anukul nahi hai aaj ptrikarita pujivadi sattao ke talube chat raha hai
    ptrikarita sirf dalal ki bhumika mai hai kya ptrikarita ka apna koi mat nahi hota kya patrikarita ka apna koi sambidhan nahi hota jab ki sachchai yah hai patrakarita suchao ko niyantrit karta hai .kisi suchna ko pramukhta se prasaran adhik samay tak kisi ka samanya prasaran
    kam samay dekar manlijiye T V chenal kisa suchna ko 1. bar prasarit karte hai aou kisi dusri khabar ko bar bar prasarit karte hai bar bar prasarit karne ka arth bilkul saf hai . ki patrakarita ne use pramukhta di hai use buddivadi tarike se pramadit karne ki kosis ki gayi hai .pichle sal 2011 mai brastachar ke khilaf aandolan huye 400 laks kaladan vaps layo tatha kaledan ko rastriy sampatti ghosit karo agar yesa hoga to desh ke bahar tatha desh ke andar in dono morcho par kaladan rastriy sampatti hojayega esiliye patrikarita midia ne RAM DEV ke brastachar ke virudh aandolan ko SIRF RAMDEV ka aandolan banadiya brastacha kaladan rastriy mahatva ki bat hai parantu patrikarita ne suchnao ko niyantrit kiya auo use nakaratmak banadiya jab ki anna hjare ko pramukhta digayi akhir kyo kiyoki agar patrikarita RAM DEV ke aandolan ko samany prasarit karta hai aur anna ke aandolan ki comentri karta hai
    midia in dono aandolano ko nakaratmak prasarit karta to patrikarita astinva khatre mai padh jata isliye midia ne anna ko adhik suvidha janak mana kyoki agar lokpal banana bhi padha jan davav mai to use savedhani sanstha ka darja de dege bahut bad mai anna ko pramukhta dekar 400laks vaps lana tatha black money ko rastriy sampatti ghosit ho
    tatha arthik apradh ke liye kathor dand ho yesi mango bale andolan ko nisakriy karna .lokpal se kuch nahi hoga kyoki agar sarkar ne lokpal ko savedhanik sanstha bana bhi diya to uska bhi hasra chunav aayog ki tarah hoga 11-02-2012 ko congres party ke kanoon mantri salman khursid ne us savedhinik sansta ki dajjiya udhadi hai fir lokpal ka kya hoga . pradeep yadav firozabad up

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