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साहित्य

हवा-हवाई टीवी के लिए मैं चिन्मय चिलगोजा…

[caption id="attachment_17051" align="alignleft"]अनिल यादवअनिल यादव[/caption]एक कहानी (7) : सी. अंतरात्मा का कौतुक : सी. अंतरात्मा को कंडोम बाबा बहुत दिलचस्प आदमी लगे, उस शाम अनायास उनका स्कूटर सर्किट हाउस की तरफ मुड़ गया और वह इंटरव्यू करने के बहाने उनसे मिलने चले गए। वे इस विचित्र आदमी को एक बार फिर देखना और उसकी छवि अपने मन में ठीक से बिठा लेना चाहते थे। उन्होंने सोचा था, लगे हाथ कंडोम के आठ-दस पैकेट भी मांग लेंगे। घर में पड़े रहेंगे, कभी-कभी काम आएंगे। सी. अंतरात्मा हमेशा इतने चौकन्ने रहते थे कि उन्हें अचूक ढंग से पता रहता था कि काम की कोई भी चीज मुफ्त में या कम से कम दाम में कहां मिल सकती है। उनमें अगर यह काबिलियत नहीं होती तो प्रेस की तनख्वाह से उनकी गृहस्थी का चल पाना असंभव था। दवाओं के मुफ्त सैंपल वे फार्मासिस्टों, डाक्टरों के यहां से लेते थे, बच्चों की किताबें सीधे प्रकाशकों से मांग लाते थे, कपड़े कटपीस के रियायती दाम पर लेते थे, प्रेस कांफ्रेंसों में मिलने वाले पैड और कलमें साग्रह बटोरते थे जो बच्चों के काम आते थे।

अनिल यादव

अनिल यादवएक कहानी (7) : सी. अंतरात्मा का कौतुक : सी. अंतरात्मा को कंडोम बाबा बहुत दिलचस्प आदमी लगे, उस शाम अनायास उनका स्कूटर सर्किट हाउस की तरफ मुड़ गया और वह इंटरव्यू करने के बहाने उनसे मिलने चले गए। वे इस विचित्र आदमी को एक बार फिर देखना और उसकी छवि अपने मन में ठीक से बिठा लेना चाहते थे। उन्होंने सोचा था, लगे हाथ कंडोम के आठ-दस पैकेट भी मांग लेंगे। घर में पड़े रहेंगे, कभी-कभी काम आएंगे। सी. अंतरात्मा हमेशा इतने चौकन्ने रहते थे कि उन्हें अचूक ढंग से पता रहता था कि काम की कोई भी चीज मुफ्त में या कम से कम दाम में कहां मिल सकती है। उनमें अगर यह काबिलियत नहीं होती तो प्रेस की तनख्वाह से उनकी गृहस्थी का चल पाना असंभव था। दवाओं के मुफ्त सैंपल वे फार्मासिस्टों, डाक्टरों के यहां से लेते थे, बच्चों की किताबें सीधे प्रकाशकों से मांग लाते थे, कपड़े कटपीस के रियायती दाम पर लेते थे, प्रेस कांफ्रेंसों में मिलने वाले पैड और कलमें साग्रह बटोरते थे जो बच्चों के काम आते थे।

वहां गिफ्ट में मिलने वाले सजावटी सामानों को वे दुकानदारों को बेचकर नकद या अपने काम की चीजें लेते थे। खटारा स्कूटर उन्हें एक सजातीय थानेदार ने सुपुर्दगी में दिया था जो एक कुर्की के बाद थाने के अहाते में पड़ा सड़ रहा था। उन्हें अखबार की जो कांप्लीमेंट्री कॉपी मिलती थी, वे उसे पढ़ने के बाद आधे दाम में घर के सामने चाय वाले को बेच देते थे और इस पैसे से बच्चों को यदा-कदा बिस्कुट, नमकीन वगैरह दिला दिया करते थे।

सर्किट हाउस में घंटी बजाने के बाद कंडोम बाबा ने जैसे ही कमरे का दरवाजा खोला अंतरात्मा ने आदतन और थोड़ा उनके व्यक्तित्व के प्रभाव में झुककर, आत्मीय मुस्कान के साथ पूछा, यहां पर आपको कोई दिक्कत तो नहीं है, बेहिचक बताइएगा आप हमारे मेहमान हैं। कंडोम बाबा बिदक गए, यह सर्किट हाउस है या डकैतों का अड्डा, एक साफ तौलिया तो दे नहीं सकते दिक्कतें पूछने चले आते हैं। अंतरात्मा अकबका गए, कुछ बोल ही नहीं पाए और भड़ाक से दरवाजा बंद हो गया। पूरे सर्किट हाउस में एक ही चीकट तौलिया था जो वेटर ने कंडोम बाबा को दे दिया था। उन्होंने साफ तौलिया मांगा तो उसने उन्हें बताया कि आप ही जैसे गेस्ट लोग उठा ले जाते हैं इसलिए कोई और बचा ही नहीं है। कंडोम बाबा ने मैनेजर से शिकायत की तो उसने बताया कि इस साल अभी तक सामानों की खरीद नहीं हुई है। सी. अंतरात्मा जब इंटरव्यू मुलाकात के लिए पहुंचे, उस वक्त भन्नाए हुए कंडोम बाबा जिलाधिकारी को शिकायती पत्र लिख रहे थे और उन्होंने उन्हें सर्किट हाउस का वेटर समझ लिया था।

अंतरात्मा दफ्तर लौटकर यह किस्सा सुना रहे थे कि सिटी चीफ ने उन्हें डांटा कि ‘इतनी बड़ी खबर’ उनके पास है और वह बैठे चकल्लस कर रहे हैं। अगले दिन यह तौलिए वाली खबर कंडोम बाबा के बदनाम बस्ती दौरे के बीच में डबल कॉलम बॉक्स में छपी। कंडोम बाबा का उस दिन दिल्ली लौटना स्थगित हो गया, शाम को वह अंग्रेजी में लिखा साढ़े तीन पेज का खंडन लेकर अखबार के दफ्तर पहुंचे और वहां सी. अंतरात्मा को बैठे देखकर उनकी चीख निकल गई। वह संपादक से झगड़ने लगे कि उनका अखबार पीत-पत्रकारिता कर रहा है। खंडन में लिखा था कि आदर, आतिथ्य और सत्कार के लिए वे जिला प्रशासन व सर्किट हाउस के कर्मचारियों के आभारी हैं। तौलिए का किस्सा पूरी तरह मनगढ़ंत है। किसी रिपोर्टर ने इस बारे में उनसे बात तक नहीं की है। अखबार यह सब जिला प्रशासन की छवि बिगाड़ने के लिए कर रहा है। दरअसल जिलाधिकारी ने कंडोम बाबा को बुलाकर कह दिया था कि वे या तो तुरंत इस खबर का खंडन छपवांए या फिर अगली बार से अपने ठहरने का कोई और ठिकाना ढूढ़ लें। कंडोम बाबा का खंडन रद्दी की टोकरी में डाल दिया गया। क्योंकि पता था कि उन्हें रात में दिल्ली जाना ही जाना है और उनके दर्शन फिर कब होंगे कोई नहीं जानता।

असाइनमेंट के बीच मे ही प्रकाश पार्लर पहुंचा और छवि को लगभग घसीटते हुए बाथरूम में ले जाकर उसे प्रेगनेन्सी के होम टेस्ट की किट थमा कर दरवाजा धड़ाक से बंद कर दिया। थोड़ी देर बाद छवि ने उसे दिखाया कि इंडीकेटर साफ बता रहा था कि वह सच बोल रही थी। वह पूछना चाहता था कि तुम्हें उस लड़की के बलात्कार की बात कैसे पता चली लेकिन मुंह से निकला, कब पता चला। छवि ने उसे छुआ तो वह कांप रहा था उसने कहा, तुम्हारा तो वह हाल हो रहा है जो, मैं तुम्हारे बच्चे की मां बनने वाली हूं, का भयानक डॉयलाग सुनते ही पुरानी फिल्मों के हीरो का हुआ करता था।

अब शादी के बारे सोचना होगा जल्दी कुछ करना पड़ेगा, उसका मुंह सूख रहा था। क्योंकि भीतर लू चल रही थी।

जलसमाधि वाया चिन्मय चिलगोजा : मड़ुवाडीह में नहीं गंगा की मंझधार में एक नया संकट उठ खड़ा हुआ। एक बलिदानी हिन्दू युवक ने संकल्प  कर लिया कि अगर मकर संक्रांति तक काशी को वेश्यावृत्ति के कलंक से मुक्त नहीं किया जाता, तो वह सूर्य के उत्तरायण होते ही जलसमाधि ले लेगा। मुंडित सिर, जनेऊधारी यह युवक गले में पत्थर की एक भारी पटिया बांधकर गंगा में ही एक नाव पर रहने लगा। पहले भी एक बार वह ऐसा प्रयास कर चुका था। इसलिए प्रशासन विशेष सतर्क था। उसकी नाव के आगे और पीछे प्रशिक्षित गोताखोरों से लैस जल पुलिस की दो नावें लगा दी गईं।

जल पुलिस के पीछे महाबीरी झंडों से सजी नाव पर शंख, घंटा, घड़ियाल बजाते और बीच-बीच में हर-हर महादेव का उदघोष करते गर्व से तने समर्थक चलते थे। पीछे नावों में सवार इलेक्ट्रानिक चैनलों के क्रू रहते थे। हर क्रू को अपने इंटरव्यू की बारी के लिए समर्थकों की अगली नाव से टोकन लेना पड़ता था। जल्दबाज मीडिया की अराजकता को रोकने और युवक को पर्याप्त विश्राम देने के लिए यह व्यवस्था की गई थी। क्योंकि बोलते-बोलते उसका गला बैठ चुका था। दिल्ली और मुंबई के बड़े चैनलों ने बजरे किराए पर लेकर उन्हें ओबी वैन में बदल दिया था। वे निरंतर ‘सदाचार की गंगा से गणिका विरोध,’ ‘जल में आंदोलन,’ ‘जल समाधि’ का सजीव प्रसारण कर रहे थे।

दाएं, बाएं और बीच में कैमरे लिए विदेशी पर्यटकों की कश्तियां घुसी रहती थीं, वे उस युवक की नैतिकता, संकल्प और अभियान के विलक्षण तरीके से चमत्कृत थे। स्वीडन की ओरिएंटल फिलासफी की छात्रा माग्दालीना इन्केन इतनी प्रभावित थी कि उसने युवक से प्रेम की सार्वजनिक घोषणा कर दी थी। प्रकट तौर पर वे यही कहते थे कि उन्हें इस युवक में ईसा मसीह की छवि दिख रही है लेकिन आपसी बातचीत में गोद में रखी बिसलेरी की बोतलों को दुलराते हुए वे पुलक उठते थे कि किताबों में पढ़े मदारियों, संपेरों, साधुओं और जादूगरों के जिन करतबों को देखने के लिए वे यहां आए थे, अनायास दिख रहे हैं। इस दुर्लभ क्षण की झांकियों अपने देश ले जाकर बेचने का अवसर वे चूकना नहीं चाहते थे।

यह अंतर्राष्ट्रीय धज का अजीबो-गरीब बेड़ा भोर से लेकर रात के ग्यारह बजे तक राजघाट के पुल से रामनगर के किले के बीच गंगा में तैरता था। घाटों पर तमाशबीनों की भीड़ लगी रहती थी। जब बेड़ा उनकी नजरों से ओझल होने लगता था तो वे खीझकर हर-हर महादेव का नारा लगाते हुए गालियां बकने लगते थे और पास आने पर फिर वे प्रसन्नता से अभिवादन करते हुए हर-हर महादेव का नारा  लगाते थे। यह उदघोष ऐसा संपुट था जिसका इस्तेमाल वे प्रसन्नता, क्रोध, गौरव, हताशा, उन्माद सभी भावों को व्यक्त करने के लिए सैकड़ों सालों से करते आए थे।

वेश्याओं को धंधे के लाइसेंस दिए जाएं न दिए जाएं इस पर टीवी चैनलों पर टॉक शो हो रहे थे जिनमें वेश्यावृत्ति के विशेषज्ञ, ट्रैफिकिंग के जानकार, नैतिक प्रश्नों के शोधकर्ता, इतिहासकार, कालगर्लों के रैकेट पकड़ने वाले पुलिस अधिकारी, समाज कल्याण से जुड़े अफसर, महिला संगठनों की नेता और आम लोग धारावाहिक बोल रहे थे। गंगा में नावों पर सवार रिपोर्टर असहाय मंदबुद्धि बच्चों की तरह चीख रहे थे, ‘समूची काशी नगरी नदी और घाटों पर निकल आई है। वेश्यावृत्ति से नाराज लोग हर-हर महादेव के नारे लगा रहे हैं। पानी और पत्थर के बीच एक युवक की जान खतरे में है, उधर वेश्याओं ने अब तक रोजगार के उपायों में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है और वे मड़ुंवाडीह में ही बनी हुई है। अब देखना है प्रशासन इस चुनौती से कैसे निपटता है… मैं चिन्मय चिलगोजा… वाराणसी से हवा-हवाई टीवी के लिए।’

उधर घाट किनारे, अस्सी मोहल्ले में बुद्धिजीवियों का अड्डा कही जाने वाली एक चाय की दुकान में विश्वविद्यालयों के निठल्ले प्रोफेसर, विफल वकील, राजनीतिक दलों के हताश कार्यकर्ता, बेरोजगार, ठलुए, अधपगले भंगेड़ी, कवि, पत्रकार, लेखक और बतरसी आपस में इस मुद्दे पर जूझ रहे थे। मठों में कोठारिनों, मंदिरों में देवदासियों और सेविकाओं को लेकर औझैती के कर्मकांड में पिछड़ी, दलित औरतों के साथ व्यभिचार के उद्धरण दिए जा रहे थे तो जवाब में हर घर में चलते व्याभिचार और छिनालपन के सच्चे किस्से सुनाए जा रहे थे। कोई विवाह को खाना, कपड़ा, छत और सुरक्षा के एवज में होने वाली सामाजिक मान्यता प्राप्त वेश्यावृत्ति का सबसे बड़ा कर्मकांड बता रहा था तो जवाब में ऐसे विचार का उत्स उसके रखैल की औलाद होने में तलाशा जा रहा था। इन सबके ऊपर एक आयुर्वेदिक नुस्खा था, जिसे सभी अपनी स्मृति में सहेज लेना चाहते थे इसे एक भंगेड़ी ने वेश्यावृत्ति उन्मूलन के उपाय के रूप में सुझाया था-

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सोंठ, सतावर, गोरख गुंडी

कामराज, विजया, नरमुंडी।।

गिरै न बीज, झड़े न डंडी

पलंग छोड़ के भागै रंडी।।

उसका कहना था कि अगर कस्टमर इस नुस्खे का इस्तेमाल शुरू कर दें तो नगर वधुएं भाग जाएंगी और मड़ुंवाडीह देखते ही देखते खाली हो जाएगा। पतली गर्दन, झुकी पीठ और सूख चली जांघों वाले बुद्धिजीवी इसे याद कर लेना चाहते थे। शायद उनके अवचेतन में था कि वेश्याओं पर न सही अपनी पत्नियों, प्रेमिकाओं पर तो वे इसका इस्तेमाल कर ही सकते हैं। …जारी…

कहानी और लेखक के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए उपर की किसी तस्वीर पर क्लिक करें.

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0 Comments

  1. मनोरंजन

    March 8, 2010 at 9:14 am

    साथी, बहुत दिन बाद आपका लिखा पढ पाया। अच्‍छा लगा।
    जरा [email protected] पर भी नजर ए इनायत कर लीजिए।

  2. ved ratna shukla

    March 8, 2010 at 3:15 am

    Anilji ka to mai prashanshak hoon. itna chuteela aur saras lekhan wahi kar sakte hain.

  3. chugalkhor

    March 8, 2010 at 3:19 am

    anil ji is best writer of your portal

  4. ponga pandit

    March 8, 2010 at 3:29 am

    wah guru rojana mazza aa raha hea. kashinath singh ki agar koi kan kat raha hea to woh tumhi ho guru. kahani me remix jayada na kare.apanae anahese saswata guru ko bhi kahani mea in gusawao.ajjkal to woh swami ho gaye hea

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