भाई यशवंतजी, आपकी टिप्पणी ‘शशिशेखर का इमोशनल अत्याचार’ पढ़ी। मुझे इस बात की खुशी है कि कम से कम आपने इस बेबाक टिप्पणी के माध्यम से हिंदुस्तान या कहूं कि शशिशेखर की सोच को पाठकों के समक्ष कायदे से रखा। यह बहुत जरूरी भी था। शशिशेखर अगर सोचते हैं कि हिंदुस्तान ने अखबार उत्तर प्रदेश की राजधानी के एक महंगे होटल में प्रदेश के हालात पर चंद ऐलिटों को बुलाकर, जायकेदार खाना खिलाकर और ठंडे कमरों में बैठाकर बहुत बड़ा तीर मार लिया हो तो यह हास्यास्पद है। शशिशेखर जी, महंगे होटलों में बैठकर किसी देश या प्रदेश की दशा-दिशा तय नहीं की जाती। इतनी बात तो आप और हम, सभी जानते-समझते हैं। ऐसे बेमतलब के आयोजन कर प्रदेश ही नहीं बल्कि देश के गरीब तबके का भी खुलकर मजाक उड़ाया जा रहा है।
अरे, ये ऐलिट होते कौन हैं प्रदेश की दशा-दिशा तय करने-करवाने वाले? पहले ये अपने जीवन की तो दशा-दिशा तय कर लें। इन्हें अपना पता नहीं है, चले हैं उत्तर प्रदेश के हालात को संभालने-संवारने। जनता के बीच जाने की हिम्मत कर नहीं पाते और बात करते हैं विजन 2020 की। शशिशेखरजी, आपने जिस जनता के लिए इतना बड़ा आयोजन किया, आखिर उसकी उपस्थिति इसमें क्यों नहीं थी? जनता के प्रतिनिधि के नाम पर जो लोग ऐसे समारोहों में दिखते हैं, दरअसल सही मायने में वे ही जनता की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार हैं। जिन्हें उत्तर प्रदेश के हालात पर चर्चा करने के लिए बुलवाया गया, इनमें से एक भी व्यक्ति मुझे ऐसा नहीं दिखा जिसका सीधा सरोकार देश की जनता से हो। आप लोगों से वर्तमान तो संभल नहीं रहा और सपने 2020 को संवारने के देख रहे हैं। क्या लफ्फबाजी है। आज उत्तर प्रदेश के जो हालात हैं, उसे बिगाड़ने में एक अकेले नेता या मंत्री ही नहीं, हम-आप पढ़े लिखे भी कहीं हद तक जिम्मेदार हैं। जो अमीर है वो और अमीर हो जाना चाहता है। देश, प्रदेश या जनता जाए भाड़ में।
शशिशेखरजी, ऐसे आयोजन कम से कम मेरी निगाह में समय और संसाधन की बर्बादी है। हां, जनता व प्रदेश का भला हो न हो, इस आयोजन से एचटी ग्रुप की ब्रांडिंग व मार्केटिंग जरूर अच्छी हो जाएगी। इन समागमों और समिटों का खेल जिन्हें पता है, वे खूब समझते हैं कि इनके जरिए किस तरह रेवेन्यूज जनरेट किया जाता है। अखबारों को अपने पाठकों के साथ जो ईमानदारी का व्यवहार करना चाहिए उसे तो वे कर नहीं रहे। अखबारों को पत्रकारिता के जिन मानदंडों का पालन करना चाहिए, उसे तो वे कर नहीं रहे। करने चले हैं देश और प्रदेश का भला। मुझे लगता है कि इस प्रकार के बेमतलब के आयोजनों के जरिए खुद को महान बनाने की इच्छा रखी जाती है। अगर आपको क्रांति करने का इतना ही शौक है तो इसे अखबार और पत्रकारिता के माध्यम से करिए। क्या फायदा ऐसे महंगे आयोजनों को करने से, जहां आम जनता व उनके मुद्दों की उपस्थिति ही शून्य हो।
शुभकामनाओं सहित
अंशुमाली रस्तोगी
संपर्क : ‘विनोद भवन’, 4/88, बिहारीपुर खत्रियान, बरेली – 243 001 उ. प्र.
फोन : 09897220640, 09808323783, 05812555674
मेल : [email protected]
ब्लाग : हथौड़ा