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नेताजी का मीडिया हाउस

असम के कांग्रेसी नेताओं और खासकर मंत्रियों के बीच इन दिनों मीडिया हाउस पर कब्जा जमाकर अपनी राजनीति चमकाने की प्रवृति ने जोर पकड़ा है। असम में जनमत बनाने में मीडिया और प्रिंट मीडिया की भूमिका उल्लेखनीय रही है। यहा मीडिया एक तरफ से विपक्ष की भूमिका निभाता रहा है।

<p align="justify">असम के कांग्रेसी नेताओं और खासकर मंत्रियों के बीच इन दिनों मीडिया हाउस पर कब्जा जमाकर अपनी राजनीति चमकाने की प्रवृति ने जोर पकड़ा है। असम में जनमत बनाने में मीडिया और प्रिंट मीडिया की भूमिका उल्लेखनीय रही है। यहा मीडिया एक तरफ से विपक्ष की भूमिका निभाता रहा है। </p>

असम के कांग्रेसी नेताओं और खासकर मंत्रियों के बीच इन दिनों मीडिया हाउस पर कब्जा जमाकर अपनी राजनीति चमकाने की प्रवृति ने जोर पकड़ा है। असम में जनमत बनाने में मीडिया और प्रिंट मीडिया की भूमिका उल्लेखनीय रही है। यहा मीडिया एक तरफ से विपक्ष की भूमिका निभाता रहा है।

राजनीतिक पूर्वाग्रहों से बहुत हद तक मुक्त यहां के अखबारों का असर व्यापक होता है। चुनाव में अखबार और मीडिया अन्य माध्यम कई बार सरकार का भविष्य तय करती है। ऐसे में यहां का हर समर्थ व्यक्ति अखबार निकलता चाहता है या मीडिया के किसी अन्य माध्यमों में धन लगाना चाहता है। इस सूची में नेता भी शामिल है और उनका यह धंधा विभिन्य कारणों से चल भी निकला है।

असम के सबसे ताकतवर मंत्री डा. हिमंत विश्व शर्मा ने दो साल पहले एक हिमंत विश्व शर्मा न्यूज चैनल- ‘न्यूज लाइव’ खोला और अब मनोरंजन चैनल-‘रंग’ भी चालू कर दिया। उनकी पत्नी इस चैनल की प्रबंध निदेशक हैं। यह चैनल तटस्थता दिखाने के लिए विपक्षी नेताओं को भी कवर करता है लेकिन पक्षपात के साथ जबकि हिमंत शर्मा को जब भी अपनी बात कहनी होती है चैनल के स्टूडियो पहुंच जाते हैं।

पूर्व केंद्रीय मंत्री मतंग सिंह के न्यूज चैनल ‘एनईटीवी’ के प्रबंधन से हुए हिमंत शर्मा के झगड़े ने उन्हें अपना ही चैनल खोलने की प्रेरणा दी। मतंग सिंह की पत्नी और ‘एनईटीवी’ की प्रबंध निदेशक मनोरंजन सिंह द्वारा हिमंत के खिलाफ मोर्चा खोलने के कारण हिमंत शर्मा को लगा कि उन्हें इसकी काट के लिए अपना न्यूज चैनल लाना ही होगा। मंत्री होने का फायदा उठाते हुए उन्होंने केबल आपरेटरों को अपने चैनल को प्रसारित करने की बाध्य किया।

इतना ही नहीं प्रतिद्वंद्वी चैनल को न दिखाए जाने के लिए भी आपरेटरों को मजबूर किया। पार्टी में दूसरे मंत्रियों को नीचा दिखाने के लिए भी वह अपने चैनल का उपयोग करने से नहीं चूकते। प्रायोजक कंपनियों पर दबाव डालकर विज्ञापन लाए जाते हैं। कुल मिलाकर चैनल चल निकला है और अच्छा व्यापार कर रहा है। इससे उत्साहित होकर उन्होंने मनोरंजन चैनल ‘रंग’ भी आरंभ कर दिया है। अब योजना एक असमिया अखबार निकालने की है।

राज्य के वन मंत्री रकीबुल हुसैन ने बीमार से असमिया अखबार ‘जनसाधारण’ को ही खरीद लिया। अब अखबार ठीक-ठाक निकल रहा है। इस अखबार के बहाने हुसैन अपने फोटो भी अखबार में छाप लेते हैं और चूंकि एआईयूडीएफ नेता अजमल बदरुद्दीन से नहीं पटती है इसलिए उनके खिलाफ कोई समाचार छापने का कोई मौका भी नहीं चूकते।

असम के पूर्व परिवहन मंत्री और कांग्रेसी नेता अंजन दत्त ने पिछले विधानसभा चुनाव में हार के बाद एक मीडिया हाउस ही खरीद लिया। अब अपने अखबार के संडे मैगजीन का संपादकीय खुद लिखते हैं। अखबार में गहरी रुचि लेते हैं और पत्रकारिता को राजनीति से ज्यादा कठिन काम मानते हैं। अखबार के तीन संस्करण प्रकाशित होते हैं। विधानसभा चुनाव करीब है तो राजनीति में उनकी सक्रियता बढ़ गई है। उनके कार्यक्रम अखबार में सचित्र प्रकाशित होते हैं।

असम के उद्योग और बिजली मंत्री प्रद्युत बरदलोई का अपना एफएम चैनल ‘गपशप’ है। असम का यह पहला निजी एमएम चैनल अन्य चैनलों के मुकाबले सबसे अधिक लोकप्रिय है। उनकी पीआर कंपनी तो पहले से है ही अब वे प्रिंट मीडिया में आने को भी उत्सुक हैं। असम के संस्कृति मंत्री भरत चंद नराह भी एक बीमार अखबार खरीद कर उसे चमकाने की जुगत में हैं। यू तो उनका यह पुराना सपना रहा है। लेकिन पत्नी रानी नराह के फिर से सांसद बन जाने के कारण उनका उत्साह बढ़ गया है।

लेखक रविशंकर रवि गुवाहाटी के पत्रकार हैं. उनका यह लिखा संडे नई दुनिया मैग्जीन में प्रकाशित हुआ है. वहीं से साभार लेकर यहां प्रकाशित किया गया.

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0 Comments

  1. Sapan Yagyawalkya

    February 24, 2010 at 7:56 am

    neta hi kya ab to udyoggharane,thekedar aur apradhi bhi media ki takat ka apne hit mein upyog(?) karne lage hain.SapanYagyawalkya.Bareli(MP)

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