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कहिन

ये हत्यारे पत्रकार

दैनिक न्यायाधीश में प्रकाशित खबरवो मुठभेड़ नहीं, पत्रकारों की सहमति मिलने के बाद दो बेगुनाहों की ठंडे दिमाग से की गई हत्या थी : 2 सितम्बर, 2003 : आदिवासियों का कलमकार कहे जाने वाले छोटे कद के विजय विनीत के लिए के लिए ये दिन भुलाना शायद बहुत मुश्किल होगा. दोपहर के 11 बजे थे जब अचानक जागरण कार्यालय की घंटी घनघना उठी… “मैं देव कुमार बोल रहा हूं, जरुरी खबर देनी थी. एस.पी. सत्यनारायण ने अभी बिरलाजी के गेस्ट हाउस में प्रेस मीटिंग बुलाई थी. सारे पत्रकार वहां थे. उन्होंने बताया है कि हमने दो लुटेरों को पकड़ा है, अगर आप मदद करें तो हम गोली मरवा दें. ये कई लोगों को लूट चुके हैं”

दैनिक न्यायाधीश में प्रकाशित खबर

दैनिक न्यायाधीश में प्रकाशित खबरवो मुठभेड़ नहीं, पत्रकारों की सहमति मिलने के बाद दो बेगुनाहों की ठंडे दिमाग से की गई हत्या थी : 2 सितम्बर, 2003 : आदिवासियों का कलमकार कहे जाने वाले छोटे कद के विजय विनीत के लिए के लिए ये दिन भुलाना शायद बहुत मुश्किल होगा. दोपहर के 11 बजे थे जब अचानक जागरण कार्यालय की घंटी घनघना उठी… “मैं देव कुमार बोल रहा हूं, जरुरी खबर देनी थी. एस.पी. सत्यनारायण ने अभी बिरलाजी के गेस्ट हाउस में प्रेस मीटिंग बुलाई थी. सारे पत्रकार वहां थे. उन्होंने बताया है कि हमने दो लुटेरों को पकड़ा है, अगर आप मदद करें तो हम गोली मरवा दें. ये कई लोगों को लूट चुके हैं”

“आपने क्या कहा?” विजय ने लगभग थरथराते हुए पूछा.

दूसरी तरफ से आवाज आई- “हम लोगों ने ओके कर दिया।”

“अरे! ये क्या किया आप लोगों ने देवकुमार जी, जो करना है करो, मगर यही कहूंगा कि आप लोग ये अच्छा नहीं कर रहे”, विजय ने लगभग कांपते हुए कहा।

3 सितम्बर, 2003 : ‘दैनिक जागरण’ के मुख्य पृष्ठ पर देव कुमार की बाईलाइन खबर “पुलिस मुठभेड़ में दो लुटेरे मारे गए”। ‘हिंदुस्तान में खबर- ‘सोनभद्र पुलिस को बड़ी सफलता- लूट के चौबीस घंटे के भीतर लुटेरों का खात्मा’।

लगभग सभी अख़बारों में पुलिस की बहादुरी के चर्चे।

3 जनवरी, 2010 : फास्ट ट्रैक कोर्ट ने जनपद के चर्चित रानटोला  मुठभेड़ कांड को सोमवार को फर्जी करार देते हुए इसमें शामिल 14 पुलिसकर्मियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई है। साथ ही गोली चलने वाले पुलिस कर्मियों पर एक एक लाख और अन्य  पर पचास पचास हजार रुपए का अर्थदंड लगाया है।

11 जनवरी, 2010 : मृतकों में से एक प्रभात के पिता लल्लन श्रीवास्तव जो कि बिहार के गढ़वा में अध्यापक हैं, कहते हैं-“भैया अगर पत्रकार लोग चाहते तो हमारा बेटा नहीं मारा जाता। वो लोग पुलिस वालों को ये अपराध करने से रोक सकते थे। अब इन्हें सजा मिल भी जाए तो क्या, हमारा बेटा तो लौट कर नहीं आएगा। आप जानते हैं? वो हर कक्षा में प्रथम आता था।”

ये महज किसी घटना से जुड़ा रोजनामचा नहीं है, ये हिन्दुस्तानी पत्रकारिता के मौजूदा चरित्र से जुड़ा एक बेहद खौफनाक दस्तावेज है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के होनहार छात्र प्रभात श्रीवास्तव और उसी के गांव के रमाशंकर शाहू को पुलिस ने आउट ऑफ़ टर्न प्रमोशन पाने के लिए पत्रकारों की मदद से मौत के घात उतार दिया था। घटना कुछ ऐसे थी। सन 2003 की शुरुआत होते ही सोनभद्र के पिपरी थाना क्षेत्र के रंटोला जंगल में वाहन लूट की कई घटनाएं हुई थी.इससे पुलिस की काफी किरकिरी हुई। ऐसी ही लूट की एक घटना 2 सितम्बर 2003 को भी घटी थी। घटना के महज चौबीस घंटे के भीतर सोनभद्र पुलिस ने झारोखास रेलवे स्टेशन से 4 लोगों को उठा लिया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक के. सत्यनारायण ने बेगुनाहों की हत्या से पहले पत्रकारों को गेस्ट हाउस में बुलाया। इसमें कई बड़े अख़बारों के ब्यूरो प्रमुख भी शामिल थे।

मौके पर मौजूद एक पत्रकार बताते हैं कि जब एसपी ने उन युवकों को मारने में सहयोग देने की बात कही तब सबने तत्काल पूरा सहयोग देने का आश्वासन दे दिया।अगले ही पल कप्तान ने फोन पर ही गोली मारने के आदेश दे दिए। फिर क्या था, पुलिस ने दोनों युवकों को रंटोला के जंगल में खड़ा करके नजदीक से गोली मार दी। वहीँ अन्य दो को जेल भेज दिया। आश्चर्यजनक ये भी था कि पत्रकार पुलिस की ही गाड़ी से घने जंगलों के बीच स्थित उस जगह पर पहुंचे जहां दोनों युवकों की लाशें पड़ी थी। विजय विनीत, जो कि उस वक़्त जागरण में ही थे, बताते हैं कि हमने शाम को एडिटोरियल में कहा कि  मुठभेड़ फर्जी है लेकिन कोई मानने को तैयार नहीं था। हमें कहा गया कि जब सब अखबार पुलिस का ही वर्जन छापेंगे तो हम क्यूं नहीं छापें? चूंकि उस वक़्त हिंदुस्तान के ब्यूरो प्रमुख और अन्य अखबार वाले भी एसपी की प्रेस वार्ता में मौजूद थे। अतएव सबने वही छापा जो पुलिस ने कहा।

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मारे गए दोनों युवक झारखण्ड के गढ़वा जिले के मेराल गांव के रहने वाले थे। इसमें से एक प्रभात कुमार के पिता राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापक थे। प्रभात के खिलाफ किसी भी थाने में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं थी। जब प्रभात और उसी के गांव के रमाशंकर शाहू को पुलिस ने पकड़ा तब वह एन.टी.पी.सी बीजपुर में अपनी बहन के घर से लौट रहे थे। बड़े अख़बारों और पत्रकारों द्वारा इस पूरे मामले में लीपापोती का काम यहीं ख़त्म नहीं हुआ। घटना के बाद लगातार कई एपिसोड छाप-छाप कर तमाम समाचार पत्र पुलिस के गुनाहों पर पर्दा डालते रहे। प्रभात के पिता अखबार के दफ्तरों में चक्कर काटते रहे मगर किसी ने उनकी व्यथा को नहीं प्रकाशित किया।

उस वक़्त हत्या के इस मामले में पत्रकारों की भूमिका को लेकर सर्वप्रथम खबर छापने वाले दैनिक न्यायाधीश के सम्पादक रघुबीर जिंदल कहते हैं- ‘आज देश के अधिकांश पत्रकार, सत्ता और सत्ता के नुमाइंदों से गलबहियां डाले ख़बरें लिख रहे हैं। हम वही लिखते हैं जो वो कहते हैं, हम वही सोचते हैं जो वो चाहते हैं। ये पतन का चरम ही नहीं है, ये अपराध भी है। इस एक मामल्र में पत्रकारों का अपराध घटना में आजीवन कारावास की सजा पाए अपराधियों से कम नहीं है, इस चरित्र को बदले जाने की जरुरत है।’ रघुबीर जिंदल का कहना गलत भी नहीं है। विज्ञापन मिलने के लालच और सरकारी मशीनरी से झूठे सम्मान मिलने की इच्छा के एवज में हम बहुत कुछ गिरवी रख दे रहे हैं। यहां तो सिर्फ दो बेगुनाहों की हत्या हुई। कई बार आम आदमी की भूख, बेबसी और लाचारी भी हमारे कलम के चलते ही पैदा हो जाती है।

आज ये लिखने से थोड़ी देर पहले मेरी मुलाक़ात प्रभात की बहन से हुई। वो कहती हैं- ‘आप लोग प्रभात को बचा लेते तो आप लोगों का क्या बिगड़ जाता? उसे बेवजह पुलिस वालों ने मार दिया। उसे मारने से किसी को क्या मिला?”.मेरे पास जवाब नहीं थे। आवेश तिवारीमैं सोचने लगा… प्रभात की बहन को क्या पता कि खबर का असली चेहरा कैसा होता है!

लेखक आवेश तिवारी सोनभद्र में डेली न्यूज एक्टिविस्ट अखबार के ब्यूरो चीफ के रूप में कार्यरत हैं. वे हिंदी भाषा के सक्रिय ब्लागर भी हैं. आवेश ने अपने संवेदनशील और बेबाक लेखन से पहचान बनाई है.

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0 Comments

  1. Patrakar Tomar, Gwalior

    January 15, 2010 at 5:13 am

    aavesh ji ye jo kuch bhi ho raha hai or patrakaron ne jo bhi kiya iska ahasas patrakaon ko tab hoga jab unka apna koi priy vyakti farji muthbhed main maar diya jayega or in logon ke paas pachtane ke liye bhi samay kam pad jayega. aise patrakaron or aisi patrkarita per sharm aati hai. sharm aati hai ki aise patrakar hamare samaj main hain. inhe to chourahe per bandhkar pagal kutte chod dena chahiye.

  2. Siddharth Kalhans

    January 15, 2010 at 6:57 am

    आवेश जी पत्रकारिता का यही येहरा हम लोग कई बार राजधानी लखनऊ में भी देख चुके हैं। यहां तो पांच आतंकवादी तक एसी ही मुडभेड़ में मारे जा चुके हैं। सोनबद्र के तो कहने ही क्या यूपी के सब जिलों से ज्यादा ताकतवर हैं वहां लोग। बस कुछ ही बचे हैं जो ईमानदारी से काम कर जनता का पक्ष लिख रहे हैं।

  3. jenny shabnam

    January 15, 2010 at 8:21 am

    आवेश जी,
    एक पत्रकार होते हुए भी पत्रकारिता का छुपा सच जो हम सभी जानते हैं बेबाकी से आपने लिख दिया है| मुठभेड़ के नाम पर न जाने कितने बेगुनाह मारे जाते हैं, और असली गुनाहगार के साथ पत्रकार और पुलिस जश्न मनाती हैं| पुलिस और पत्रकार दोनों की अहम् भूमिका होती है किसी भी अपराध पर काबू पाने में या अपराधी की पुष्टि केलिए| आज अपराधियों के साथ ये दोनों भी अघोषित अपराधी बन चुके हैं और दोनों ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है| अफ़सोस ज़रूर होता है कि कुछ गिने चुने ऐसे पत्रकारों और पुलिसकर्मियों की वजह से समस्त पत्रकार और पुलिस समुदाय बदनाम हो चुकी है और अपराधियों की एक नयी कौम इनकी वजह से निरंतर पैदा हो रही है|
    ऐसे तथ्यपूर्ण और सशक्त लेखन के लिए बधाई! शुभकामनाएं!

  4. sanjay yadaw

    January 15, 2010 at 9:42 am

    aap ko in patrakaro se darr nahi lagta hai.anjammmmmmmmm

  5. mahendra srivastava

    January 15, 2010 at 9:57 am

    विजय विनीत और मैं काफी समय तक कई अखबारों में काम कर चुका हूं… विजय को जहां तक मैं जानता हूं वो पुलिस की हरकतों को बैबाक तरीके सामने लाने वाले रहे हैं… अन्याय के खिलाफ खुद मोर्चा संभाल लेना उनकी आदत में शुमार है। गजरौला के नन कांड में उन्होंने जिस बेबाकी खबरें दीं.. उसे मैं ही नहीं साथ के तमाम लोग याद करते हैं।
    लेकिन दोस्त मैं बड़े अदब के साथ कहना चाहता हूं.. यहां तुमसे एक बड़ी भूल की है… बेगुनाहों को मारे में सिर्फ सोनभद्र के पत्रकारों का ही नहीं .. कहीं न कहीं तुम्हारी भी गल्ती रही है। अगर देव को तुमने साफ साफ मना कर दिया होता और इतना ही नहीं अगर एक पुख्ता जानकारी मिली थी तो वाराणसी में आई जी को तुम खुद इस बात की जानकारी देते। खैर अब बात पुरानी हो गई… लेकिन पूरी कहानी पढ़कर दुख हुआ और अपने अजीज दोस्त की चुप्पी से शर्मिंदगी।

  6. Anil Saxena

    January 15, 2010 at 11:12 am

    pit patrikarita ki inteha ho gai ha . Patrkar dalali ke sath administration ke bure kamo ka bhi sath dene lag gai ha . Mujha to sharam aane lagi he ki me kyo kar patrikarita ka hissa bana . system ko me sudhar nahi sakta vahi man ka likh nahi sakta , bus system ko dekh kar dukhi ho sakta hu . kya aaj patrikarita ek mission ka rup ho sakti he ? Kadapi nahi . Es kes me salangn officers ko sakht saja honi chahiye aur ese patrkaro ko bhi doshi mante huye saja milni chahiye . Lakin esi patrkarita ke nam per thu .

    Anil Saxena
    VOI Udaipur Rajasthan

  7. Anil Saxena

    January 15, 2010 at 11:13 am

    Sir
    pit patrikarita ki inteha ho gai ha . Patrkar dalali ke sath administration ke bure kamo ka bhi sath dene lag gai ha . Mujha to sharam aane lagi he ki me kyo kar patrikarita ka hissa bana . system ko me sudhar nahi sakta vahi man ka likh nahi sakta , bus system ko dekh kar dukhi ho sakta hu . kya aaj patrikarita ek mission ka rup ho sakti he ? Kadapi nahi . Es kes me salangn officers ko sakht saja honi chahiye aur ese patrkaro ko bhi doshi mante huye saja milni chahiye . Lakin esi patrkarita ke nam per thu .

    Anil Saxena
    VOI Udaipur Rajasthan

  8. Anil Saxena

    January 15, 2010 at 11:16 am

    Sir
    pit patrikarita ki inteha ho gai ha . Patrkar dalali ke sath administration ke bure kamo ka bhi sath dene lag gai ha . Mujha to sharam aane lagi he ki me kyo kar patrikarita ka hissa bana . system ko me sudhar nahi sakta vahi man ka likh nahi sakta , bus system ko dekh kar dukhi ho sakta hu . kya aaj patrikarita ek mission ka rup ho sakti he ? Kadapi nahi . Es kes me salangn officers ko sakht saja honi chahiye aur ese patrkaro ko bhi doshi mante huye saja milni chahiye . Lakin esi patrkarita ke nam per thu .

    Anil Saxena
    VOI Udaipur Rajasthan

  9. deepak upadhyay

    January 15, 2010 at 1:25 pm

    Hi, Awesh it is good to read your story that people like us who have moral resposibility of socity are become muders. hats of to you dear

  10. Rupesh kumar Chief Photographer Daily News Activist

    January 15, 2010 at 1:38 pm

    Sathiyo ab patrkaar hai hi kaha lagbhag lagbhag to dalal hi hai mere khayal se to un patrkaro ko bhi doshi mante huye saja milni chahiye jo is hatya me samil the…

  11. S.K. Upadhyay

    January 15, 2010 at 1:50 pm

    Aavesh ji

    Aap aaj is baat ka khulasa kar kar aapni kayarta ka parichay de rahe hai. us samay aap ka aavesh jo aaj nikla hai kaha so raha tha. kya aap ki aawaj aap ki aawaj aap ki nukari kho jane ke bhay ke samne dab gayi. aap to patrakar hai pure prashashn ke sampark mein rahte hai. aap ne hi kyu aawaj nahi uthai.

    Shame on you.

    Bhagwan aap ke zamir ko zannat bakshe

  12. sanjay mishra editor mumbai news

    January 15, 2010 at 1:57 pm

    चर्चा -परिचर्चा में अपनी वाक्पटुता से कोई बाज़ आना नहीं चाहता, बोलने में मानो लोगो को महारत हांसिल हो चूका है अपराध जगत की पत्रकारिता करने वाले पत्रकार अच्छी तरह से जानते है की पुलिस मुठभेड़ वास्तव में क्या होता है ? मसलन के तौर पर मुंबई में पुलिस मुठभेड़ वाकई अँधेरी पश्चिम स्थित लोखंडवाला में देखा गया था जिसे आज भी मुंबई वासी याद करते हैं जिसमे कुख्यात माया डोलस सहित कई दुर्दांत अपराधियों को इंस्पेक्टर ए ए खान व उनकी टीम ने मुठभेड़ के दौरान मार गिराया था जहाँ शाम के वक्त अँधेरा होने की वजह से दो दो जनरेटर वैन लगाये गए थे लेकिन उस एन काउंटर के अलावा और कौन सा ऐसा एन काउंटर हुआ जिस में पुलिस और अपराधी दोनों तरफ से गोली चला रहे थे कुल मिला कर एन काउंटर को मुंबई के खबरी भूमि पूजन कहते हैं और सूत्र बताते हैं की एन काउंटर से पूर्व अपराधी को किसी अज्ञात जगह पर ले जाया जाता था और पहले उससे फिरौती मांगी जाती थी और फिरौती की रकम न मिलने की सूरत में आला अधिकारी की अनुमति लेकर तथा कथित अपराधी का एन काउंटर कर दिया जाता था उसके बाद वही खबर मीडिया की सुर्खी बन जाती है की फलाना कंपनी या फलाना गिरोह का शार्प शूटर पुलिस मुठभेड़ के दौरान ढेर ! माता सरस्वती की आराधना करने वाले कलम के पूजारिओं को ये समझना ही होगा कि ” सच परेशान जरूर हो सकता है किन्तु पराजित नहीं” इससे ऐसा प्रतीत होता है कि कलम की आज़ादी अब पत्रकारों से मानो छीन ली जा रही है या फिर कलम की मर्यादा को बेच दिया जा रहा है लेकिन ये भी सही है कि कुछ लोगो की गलती सभी लोगो पर नहीं थोपी जा सकती शायद यही कारण है कि हमें अब भी इंतज़ार है उस पल की जब कलम की धार और कैमरे की पैनी नज़र से होगा हर अपराधी बेनकाब ! और अख़बारों व टीवी चैनलों पर परत दर परत होंगे कई खुलासे !

  13. rajnish chauhan

    January 15, 2010 at 2:54 pm

    आवेश जी के इस लेख को पढ़ कर मुझे बड़ी हैरानी हो रही है, उसकी वजह ये है की शायद सभी एन्कोउन्टर की हकीकत हम जानते हैं लेकिन कई बार ऐसा होता है की पुलिस अधिकारी पत्रकारों से सहयोग मानते हैं| ये सहयोग इसलिए नहीं होता की इसके बदले पत्रकारों को कुछ मिलने वाला है बल्कि इसलिए की समाज की कई ऐसी बुराई हैं जो वास्तव में जड़ से ही खत्म की जा सकती हैं| हर बदमाश का एन्कोउन्टर करना तो ठीक नहीं है लेकिन सच्चाई येही है की बहुत से समय पुलिस के इस रुख को देखने के बाद ही बदमाश सुधरते हैं| पश्चिमी उत्तर प्रदेश से जुड़े होने के नाते मैंने देखा है की यहाँ के अपराधी कितने शातिर और बेख़ौफ़ हैं लेकिन यही वो लोग हैं जो अपनी मौत को मंडराता देख इंसानियत का पाठ सिख जाते हैं| जब कुछ साल पहले यहाँ एन्कोउन्टर का दौर चला और चुप चाप अपने बिलों में घुस गये थे| यहाँ मैं एन्कोउन्टर को सही ठहराने में नहीं लगा लेकिन जिस तरह आवेश जी ने बताया की सभी पत्रकारों को एस.पी साहब ने पहले बुलाया और फिर ये किया और किसी ने भी इस दौरान कोई आपत्ति नहीं जताई तो शायद मारे गये लोग इसी काबिल थे| बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जो आँखों के सामने होते हुए भी नहीं छापी जाती मेरे सामने ही अब तक 16 एन्कोउन्टर हो चुके हैं| लेकिन इनमे से कोई भी ऐसा एन्कोउन्टर नही था जो कहा जाए किसी निर्दोष का किया गया था, सभी ऐसे लोगो के थे जो आतंक का पर्याय बन गये थे| कुछ ऐसे भी थे जो निर्दोष थे और मुझे इस बात की ख़ुशी है की मेरी व मेरे अन्य वरिष्ठ बड़े भाइयो की आपत्ति के बाद उनके साथ कुछ गलत नहीं हुआ| कहते हैं वास्तविक स्थिति सामने होने के बाद ही निर्णय लिया जा सकता है.. जो मेरे सामने नहीं है| इसलिए मैं येही कहूँगा की अगर कोई निर्दोष और बेगुनाह इस तरह मारा गया है तो उसके लिए आपकी कलम तलवार बननी चाहिए और अगर वो इसी हश्र के लायक था तो शायद ……….. इस रिक्त स्थान की तरह ख़ामोशी में ही समझदारी है| ये आपके- मेरे या पुलिस के लिए नहीं बल्कि समाज के लिए जरुरी था|

  14. arun

    January 15, 2010 at 6:17 pm

    AF´F³FZ ªFû d»F£FF W`X ½FWX d³FÀQZWX IYFRYe dQ»F ÀFZ d»F£FF W`XÜ AFªF IYe ´FÂFIYFdSX°FF IYF WXF»F FbSXF W`XÜ »Fû¦F A´F³FZ ªFSXF ÀFZ RYF¹FQZ IZY d»FE IbYLX ·Fe IYS³û IYû °F`¹FFSX WXFZ ªFF°FZ W`ÔXÜ
    A÷Y¯F VF¸FFÊ

  15. priya

    January 16, 2010 at 3:31 am

    opppppppsss

    what a horrible news
    oh god what is happening in your world
    how can common people trust on the system

  16. यशवंत सिंह

    January 16, 2010 at 9:49 am

    विजय विनीत ने इस मामले में शामिल पत्रकारों पर कार्रवाई के लिए एक पत्र भारतीय प्रेष परिषद को भेजा था, जो इस प्रकार है….

    सेवा में,
    अध्यक्ष
    भारतीय प्रेस परिषद
    फरीद कोट हाउस, कापरनिकस मार्ग
    नई दिल्ली 110001
    विषय- छ: वर्ष पूर्व सोनभद्र में हुई पुलिस मुठभेड़ में पत्रकारों की भूमिका की जॉंच के सम्बन्ध में।
    महोदय,
    दो सितम्बर 2003 को सोनभद्र पुलिस ने पिपरी थाना क्षेत्र के रनटोला के जंगल में प्रभात कुमार श्रीवास्तव व रमाशंकर साहू निवासी मेराल थाना गढवा झारखण्ड को मुठभेड़ में मार गिराया था। उस दिन इस घटना करीब घण्टे भर पहले लगभग 11 बजे रेनुकूट दैनिक जागरण संवाददाता देव कुमार ने ब्यूरो कार्यालय सोनभद्र में फोन किया। उन्होंने पूछा क्या ब्यूरो चीफ चन्द्रकान्त पाण्डेय जी हैं।मैेंने हॉं कहा तो चन्द्रकान्त जी ने पहले मुझसे कहा कि पूछिये क्या बात है। मैं जागरण कार्यालय में बतौर संवाददाता कार्यरत था और हमारी पत्रकारिता का बारहवॉं साल था।देव कुमार जी ने जो कहा मैं सुनकर सन्न रह गया और सारी बात ब्यूरोचीफ से बतायी। उन्होेंेेने देव कुमार जी को काफी फटकार लगायी और फिर फोन रख दिया गया।देव कुमार जी का कहना था कि एस.पी.के.सत्यनारायणा यहां बैठक किये हैं। कई पत्रकार है। एस..पी. का कहना है कि लुटेरे कई बार रनटोला के जंगल में लूट कर चुके है। दो लूटेरे पकड़े जा चुके है। आप लोग सहयोग करें तो इन्हें मुठभेड़ दिखाकर मार दिया जाय।पत्रकारों ने उनकी बात पर सहमति जता दी है। इस घटना के बाद ब्यूरो चीफ चन्द्रकान्त पाण्डेय व हमने इस मामले में जो दो अन्य लड़के पकड़े गये थेे, उन्हें भी अपर पुलिस अधीक्षक प्रतीक कुमार मिश्र स्वयं चोपन पुलिस के साथ लेकर जंगल की तरफ जा रहे थे। उनसे कहा कि पुलिस ने दो लड़को को रनटोला के जंगल में मार दिया है। आप कृपया जिन दो लड़कों को पकड़े है, उन्हें नियमानुसार थाने में गिरफ्तार दिखा दें। इस पर रामप्रवेश व उसके साथ का एक लड़का मुठभेड़ में मारे जाने से साफ बच गये।इसके बाद उस दिन बतौर पत्रकार हमारी कलम पहली बार हार गई। हम लोग चाहकर भी सही कहानी प्रकाशित नहीं करा सके। पहली बार हाथ में कलम पकड़ने का दु:ख हुआ। इसके तीन दिन बाद हमने बतौर पीपुल्स यूनियन फॉर ह्यूमन राइट्स राज्य कमेटी सदस्य के रूप में जब तमाम समाचार पत्रों को मुठभेड़ की कहानी प्रकाशित करने को दी तो सिर्फ इलाहाबाद से प्रकाशित दैनिक ´´न्यायाधीश´´ के संपादक डा. रघुवीर चन्द जिन्दल ने प्रथम पेज पर खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। अब जब मामले को अदालत ने फर्जी करार देते हुए 14 पुलिस कर्मियों को आजीवन करावास तथा कुछ को एक लाख तथा कुछ को पचास-पचास हजार रूपये अर्थ दण्ड से दण्डित किया है तो ऐसे में मामले की एक बार पुन: नये सिरे से जांच होनी चाहिए। पत्रकारों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर एक ऐसी गाईड लाइन बनायी जानी चाहिए जिससे इस तरह के मामलों में मीडिया पर कीचड़ न उछलने पाये।आज के दौर में जिस तेजी से पत्रकारिता पतन की ओर जा रही है वह चिन्तनीय है।
    अत: आप से अनुरोध है कि आप इस मामले की जांच कर एक दिशा निर्देश जारी करें। ताकि पत्रकारिता की गरिमा धूल धूसरित न होने पाये।
    धन्यवाद !
    भवदीयविजय विनीत
    पत्रकार
    सोनभद्र
    फोन 9415677513
    Email.- [email protected]
    [email protected]
    [email protected]

    प्रतिलिपी-
    1. अध्यक्ष मानवाधिकार आयोग नई दिल्ली
    2. अध्यक्ष इण्डियन फेडरेशन आफ विर्कंग जर्नलिस्ट
    3. मुख्य मन्त्री उत्तर प्रदेश
    4. प्रमुख सचिव उत्तर प्रदेश
    5. गृहमन्त्री भारत सरकार
    6. अध्यक्ष प्रेस क्लब सोनभद्र

  17. prakash singh

    January 20, 2010 at 7:59 am

    yeh dhek nahi

  18. asvin varshni

    January 20, 2010 at 10:22 am

    Aise Patrakaro Ko Bichh Chok par Jute Aur Chappal Marni Chahiye ….

  19. rajeev Kumar

    January 23, 2010 at 9:01 am

    Same this type Bloddy Police and Jouralism.

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