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भिखमंगों के पीछे पड़े ख़बरों के भिखारी

हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित खबर

‘हिंदुस्तान’ को भिखमंगों से चिढ़ है. बात ‘हिंदुस्तान’ अखबार की हो रही है. अखबार ने रविवारीय अंक में दूसरे पृष्ठ पर ‘हिंदुस्तान ख़ास’ शीर्षक से एक खबर लगायी है.

हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित खबर

हिंदुस्तान अखबार में प्रकाशित खबर

‘हिंदुस्तान’ को भिखमंगों से चिढ़ है. बात ‘हिंदुस्तान’ अखबार की हो रही है. अखबार ने रविवारीय अंक में दूसरे पृष्ठ पर ‘हिंदुस्तान ख़ास’ शीर्षक से एक खबर लगायी है.

शीर्षक है- ‘अल्लाह के नाम पर दे दे बाबा’. लगभग आधे पृष्ठ में छपी इस खबर को पढ़कर लगता है अगर खबर लिखने वालों का बस चले तो देश के सारे भिखमंगों को देश निकाला दे दे. खबर के शीर्षक में भीख अल्लाह के नाम से ही क्यूं मांगी जा रही है और लेआउट में ढेर सारे दाढ़ी वाले मुसलमानों को क्यूं दिखाया जा रहा है, ये भी बड़ा सवाल है. इसी खबर में एक इनसेट की हेडिंग है ‘उदासीनता दे रही इन्हें आजादी”. माने, अगर खबर लिखने वालों के हांथ में डंडा आ जाये तो सारे भिखमंगों को जमकर लठिया दे. उत्तर प्रदेश के बेहद गरीब सोनभद्र जनपद से छापी गयी इस खबर में जनपद के पुलिस कप्तान का हवाला देते हुए कहा गया है कि भिखमंगों पर कड़ी नजर रखी जाएगी, और उन्हें संदेह होने पर हिरासत में ले लिया जायेगा. यहां तक कि भिखमंगों को खदेड़ने  के लिए एक कार्ययोजना तैयार किये जाने की भी बात कही गयी है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर समय रहते इस दिशा में सख्त कदम नहीं उठाये गए तो आने वाले दिनों में स्थिति और भी चिंताजनक हो जाएगी. अब किस बुद्धिजीवी का ये मानना है, उसका कोई जिक्र नहीं है. सोनभद्र के जिला संवाददाता बड़े खनन व्यवसायी हैं तो भिखारियों के प्रति उनका क्षोभ स्वाभाविक है, लेकिन अगर कहीं से भी हिन्दुस्तान अखबार की इस खबर से सहमति है तो ये बेहद चिंताजनक बात है.

हमें इस बात को स्वीकार करने में गुरेज नहीं होना चाहिए कि ज्यादातर अखबार ख़बरें भी सिर्फ उसी तबके के लिए लिख रहे हैं जिस तबके द्वारा या तो अखबार पढ़े जाते हैं या फिर जो अखबार के कालमों में अपनी तस्वीर के साथ शुभकामना सन्देश छपवाने के लिए पैसे दे सकें. तर्क भी बेहद अमानवीय और ये कि उनके लिए क्यूं लिखें जो एक अखबार नहीं खरीद सकता. सोनभद्र आदिवासी जनपद है. यहां पर कभी बांधों के नाम पर तो कभी बिजलीघरों के नाम पर आदिवासियों को बार-बार विस्थापित किया गया. नतीजा लाचारी, भुखमरी और फिर इस भिखमंगई के रूप में सामने आया. ज्यादातर भीख मांगने वाले भी मुफ्त में पैसा नहीं लेते. घर के आगे मंगलकारी मानर नामक वाद्ययंत्र बजाते हैं, तब हांथ फैलाते हैं. हर भीख मांगने वाले की अपनी कहानी है जो ख़बरों का हिस्सा बन सकती थी, पर नहीं बनी.

लगभग आधे पृष्ठ में छापी ये खबर खबर क्यूं है? इसका जवाब न तो शशि भैया के पास होगा और न ही अखबार के स्थानीय सम्पादक के पास. क्यूंकि बड़े अख़बारों के क्षेत्रीय संस्करणों का ये दुर्भाग्य रहा है कि प्रथम पृष्ठ पर या फिर सभी संस्करणों में छपने वाली महत्वपूर्ण ख़बरों के अलावा किसी भी जिले की खबर सम्पादक द्वारा नहीं पढ़ी जाती है. ज्यादातर ख़बरें सिर्फ डेस्क पर सजा कर प्रिंटिंग के लिए भेज दी जाती हैं. हिंदुस्तान वाराणसी यूनिट के एक साथी कहते हैं कि जब एक साथ 5-6 जनपदों के पेज छोड़ने होते हैं तो ऐसे में जनपदों से प्रकाशित होने वाली ख़बरों का न सिर्फ स्तर गिरता है बल्कि जिला संवाददाताओं की स्वेच्छाचारिता भी बढती है.

दैनिक हिंदुस्तान के सोनभद्र संस्करण में छपने वाली खबर को निश्चित तौर पर स्थानीय सम्पादक ने भी नहीं देखा होगा. अब इलेक्ट्रानिक चैनलों की तरह अख़बार भी ख़बरों के टोटे से जूझ रहे हैं. ज्यादातर अख़बारों में ख़बरें डेस्क पर ही तैयार कर ली जा रही है, संवाददाता बेहाल हैं और विज्ञापन बटोरने के औजार मात्र रह गए हैं. जिला संवाददाताओं का आवेश तिवारीअपना तंत्र है. अपने सिद्धांत हैं. ऐसे में ऐसी ख़बरें निरंतर छप रही हैं. निःसंदेह ये ख़बरों के अकाल से पैदा हुई कुंठा का नतीजा है.

लेखक आवेश तिवारी सोनभद्र में डेली न्यूज एक्टिविस्ट अखबार के ब्यूरो चीफ के रूप में कार्यरत हैं. वे हिंदी भाषा के सक्रिय ब्लागर भी हैं. आवेश ने अपने संवेदनशील और बेबाक लेखन से पहचान बनाई है.

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0 Comments

  1. NEETI SHUKLA

    January 19, 2010 at 7:20 am

    आवेश जी बधाई हो ,इसे कहते हैं ख़बरों की खबर लेना ,निसंदेह हिंदी समाचार पत्रों में ख़बरों का टोटा है और ये कहने मे हमें गुरेज नहीं है कि ये टोटा व्यावसायिक होड़ से और समझौतों की कोख से पैदा हुआ है |नतीजा इस तरह की बकवास ख़बरें हैं |जहाँ तक हिंदुस्तान का सवाल है शशि जी के आने से स्थिति में सुधार की संभावनाएं बनी हैं लेकिन हिंदुस्तान का प्रबंधन ऐसा आसानी से होने देगा ,कहना कठिन है

  2. surender sharma

    January 19, 2010 at 11:28 am

    aaves ji..kabi kabi to media achcha kam karne jati h to kuch log nahi karne dete. dukh ke sath kahna pad raha h ki aap bi kuch aisi hi bat kar rahe ho..bikhmangi hamare desh ke liye abisap h..aur kisi bi bikhiri ki koi kahani kyo n ho use jab tak hath failane ke liye majboor nahi karti jab tak uske hath sahi salamat hote h..jaydatar bhikhari aise hote h jinki koi majboori nahi hoti..isiliye is muhim ko aage badaye aur is abisap ko khatam karne me madad kare…

  3. Prabhat Sharma

    January 19, 2010 at 1:50 pm

    Sab theek hai. lekin yeh akkhbar waley yadi karodpati bhikkhariyon (netaon) ki kkhabron kee series nikale to zyada behatar hoga. sadak wale bhikkhariyon se bhi badee samasyayein hain hamarey desh mein.

  4. shahnawaz ali

    January 19, 2010 at 2:02 pm

    ek achha kadam tabhi ho sakta hai jab hum bhikariyo ko ess dhandhe se hatakar dusra rozgaar dene ki pehal karein

  5. Sam Kumar

    January 19, 2010 at 4:29 pm

    Karan saaf hain Aavesh Bhai. Har publication advt. ke chakkar main itne Dak Edtn. Launch kar deta hain ki uske baad aisi news laagne ke sivaye koi option nahi bachta hain. Sampadak bhi kitne Dak Edtn. ki news check kar sakta hain.

  6. raja

    January 20, 2010 at 2:08 pm

    avesh ji lakh lakh badhayi ho ..khabar banane walon ki apne to khub khabar le li …ye hai patrkarita …durbhavana vash kisi ki khabar banaane waalon ka to bhikhariyon se bhi badtar hashr hota hai..apne aisi patrkarita karne waalon ke muh par karaara tamacha jad diya hai jo ap badstur jari rakhen………………..

  7. ek patrkar

    January 21, 2010 at 5:30 pm

    aavesh ji tahe dil dill se aap ko salam …vakai me aap ne jo likha hai wo sirf ek saccha patrkar he likh sakta hai ….wakai me aaj har level pe patrkarita ka kcharan hua hai ..partkarita ki bachai rakhne ke leye thod kada to hone hi padega ….aaj toh yeah bhi hone laga hai ki ….kisis adhikari ke baare me koi khabar chaap do toh agle din mahina ya hafta bandh deta hai …toh aise hafta aur mahina lene waale logo ko is se alag karna hoga …

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