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जी, भड़ास4मीडिया अंग्रेजी पोर्टलों का भी बाप बना !

Yashwant Singhहिंदी वाले साथी हैं इस सफलता के सूत्रधार, आपको दिल से प्रणाम 

कल तक कहते थे : हिंदी मीडिया की खबरों का नंबर वन पोर्टल. अब कहेंगे : भारतीय मीडिया की खबरों का नंबर वन पोर्टल।  लांच होने के दो माह बाद ही हिंदी मीडिया की खबरों का सबसे बड़ा पोर्टल बन गया था भड़ास4मीडिया। अब जबकि पहला हैप्पी बर्थडे मनाने में दो माह बाकी हैं, पूरी विनम्रता से बताना चाहता हूं, भारत में मीडिया की खबरों के किसी भी भाषा के किसी भी पोर्टल से बड़ा हो गया है आपका भड़ास4मीडिया

Yashwant Singh

Yashwant Singhहिंदी वाले साथी हैं इस सफलता के सूत्रधार, आपको दिल से प्रणाम 

कल तक कहते थे : हिंदी मीडिया की खबरों का नंबर वन पोर्टल. अब कहेंगे : भारतीय मीडिया की खबरों का नंबर वन पोर्टल।  लांच होने के दो माह बाद ही हिंदी मीडिया की खबरों का सबसे बड़ा पोर्टल बन गया था भड़ास4मीडिया। अब जबकि पहला हैप्पी बर्थडे मनाने में दो माह बाकी हैं, पूरी विनम्रता से बताना चाहता हूं, भारत में मीडिया की खबरों के किसी भी भाषा के किसी भी पोर्टल से बड़ा हो गया है आपका भड़ास4मीडिया

खासकर अंग्रेजी के जितने भी पीआर नुमा पोर्टल मीडिया की खबरों के नाम पर चलाए जा रहे हैं, भड़ास4मीडिया उनको भी पछाड़ने में कामयाब हो गया है। ऐसा हम आंकड़ों के आधार पर कह रहे हैं। प्रतिदिन चार लाख हिट्स और पचास हजार पेज व्यू के चलते भड़ास4मीडिया ने यह बड़ी उपलब्धि हासिल की है।  भड़ास4मीडिया को जब पिछले साल मई महीने के अंतिम सप्ताह में शुरू किया था, तो मुझे कतई अंदाजा नहीं था कि यह पोर्टल साल पूरा होने से पहले ही देश के सभी, अंग्रेजी के भी, दिग्गज पोर्टलों को मात देकर नंबर वन की कुर्सी पर पहुंच जाएगा।

यह हिंदी भाषा और हिंदी मीडियाकर्मियों के चलते हुआ, यह मैं गर्व से कह सकता हूं। इस उपलब्धि के पीछे सिर्फ और सिर्फ आप हैं। हिंदी की जय हो। हिंदी वालों की जय हो। आपने न सिर्फ सच्ची खबरों, सूचनाओं और जानकारियों को यथाशीघ्र हम तक पहुंचाकर इस पोर्टल को अपडेट व जीवंत बनाए रखने में योगदान दिया बल्कि जब-जब भी हम लोगों को निराशा हुई, धमकियां मिली, अवसादग्रस्त हुए, आपके सपोर्ट-उत्साह के बदौलत फिर ऊर्जावान होकर काम में जुटे। सच कहूं तो भड़ास4मीडिया की ताकत वो आम मीडियाकर्मी ही हैं जो अपने-अपने संस्थानों में तमाम तरह की विसंगतियों के बीच बेहतर करने-रचने की कोशिश करते हैं। मार्केटिंग क्षेत्र के कई गुरुओं ने मुझे बार-बार समझाया कि मीडिया संस्थानों के प्रबंधन के पक्ष में खड़े होइए ताकि आपको उनसे विज्ञापन मिल सके और पोर्टल को प्राफिट ओरिएंटेड बनाया जा सके। लच्छेदार बातें सुनकर कई बार मन मचला लेकिन जब-जब दुविधाग्रस्त हुआ, किसी दूर के मीडियाकर्मी साथी की ऐसी दुखभरी कहानी मेल पर देखता जिसे पढ़ने के बाद अमानवीय और अंधे प्रबंधन से घिन होने लगती। तब ‘प्रबंधन और पैसे की ऐसी-तैसी’ कहते हुए आम मीडियाकर्मियों के पक्ष में और तगड़े से खड़ा हो जाता।

प्रबंधन का पक्ष देने से गुरेज नहीं है, मीडिया हाउसों की अच्छाइयां प्रकाशित करने से परहेज नहीं है लेकिन आम मीडियाकर्मियों की आवाज न उठाने की कीमत पर प्रबंधन का फेवर भड़ास4मीडिया को कतई नहीं चाहिए, यह स्पष्ट कहना चाहता हूं। एक बात मीडिया के साथियों से भी कहना चाहूंगा। कई बार बहुत ज्यादा अपेक्षाएं कर लेते हैं आप। बिहार के एक टीवी पत्रकार साथी ने मेल के जरिए जानकारी दी कि उनके चैनल का एक ब्यूरो चीफ ज्यादा विज्ञापन दिलाने के चलते दूर भड़ास4मीडियाबैठे बास का खास हो गया है। इस वरदहस्त के चलते मनमानी पर उतारू है। सबको झिड़कता और डांटता रहता है। केवल एक को बख्शता है और वह बास के साथ केबिन के अंदर कई घंटे बैठी रहती है, दरवाजा बंद करके। उस साथी की जिद थी कि यह खबर मैं हर हाल में प्रकाशित करूं पर यह अनुरोध करना भी नहीं भूले कि उनका नाम किसी रूप में सामने नहीं आना चाहिए। भई, जब महिला पत्रकार ने कोई शिकायत नहीं की, आप अपने नाम से छपवाना नहीं चाहते तो फिर खबर कैसे बनती है यह?

प्रिंट के एक साथी ने लंबी खबर भेजी कि उनके स्थानीय संपादक जी अपने केबिन में दिन भर पूजा करते रहते हैं और अंधविश्वास की खबरों को बढ़ावा देते हैं, उनके चलते बहुत सारे लोग परेशान है….आदि-आदि। वे भी जिद करते रहे कि इसे प्रकाशित करिए। अमां यार, क्यों नान न्यूज को न्यूज बनवाते हो। जिंदगी जीने का हर आदमी का अपना तरीका होता है। हर बास से ज्यादातर अधीनस्थ परेशान रहते हैं। क्या इसी आधार पर खबरें बनने लगे?  फिर तो आप भी जब बास बनोगे तो ढेर सारे लोग आपसे परेशान रहेंगे। दिक्कत कई बार हमारे-आप के अंदर होती है लेकिन दोष मढ़ने के लिए दूसरे का सिर तलाशते रहते हैं। बास बेचारा सबसे आसान शिकार होता है।

ऐसा नहीं कि बास बदमाश नहीं होते बल्कि कहावत यही है कि बास बदमाशी भी करे तो उसे राइट सर कहिए। भड़ास4मीडिया ने कई बास लोगों को पोल खोली है, लेकिन तथ्यों के साथ, पत्रकारीय पैमाने को अपनाते हुए। एक तरह से कहा जाए तो मीडिया के लिए देश का हर विभाग, संस्थान, तंत्र खबर का पार्ट होता है जिसे उसके रिपोर्टर कवर करते हैं तो भड़ास4मीडिया के रिपोर्टरों के लिए एकमात्र बीट मीडिया है। तो कहीं न कहीं हमारे-आपके बीच में एक चीज साझा है वह है पत्रकारीय कसौटी, पत्रकारीय मर्यादा, पत्रकारीय गरिमा। हम दोनों कोशिश करें इसे ज्यादा से ज्यादा अपनाने की।

भड़ास4मीडिया शुरू करते वक्त मेरे दिमाग में मकसद के रूप में क्रांति करना कतई नहीं था और आज भी नहीं है। थोड़ा सा पीछे ले चलूंगा। दिल्ली में आए मुझे दो साल नहीं हुए हैं लेकिन शुरुआती एक साल में मुझे सौ तरह की परेशानियों और दिक्कतों को झेलना पड़ा। नतीजा हुआ कि अखबार से नौकरी गई। एक मित्र की मेहरबानी से मोबाइल कंपनी में मार्केटिंग के फील्ड में काम करने निकला। मार्केटिंग के गुन सीखने-आजमाने के साथ-साथ भड़ास ब्लाग के जरिए वेब ज्ञान भी सीखता रहा। तो कंटेंट, तकनालजी और मार्केटिंग को मिलाकर भड़ास ब्लाग से आगे की चीज, मीडिया सूचनाओं का एक पोर्टल प्लान किया और तुरत-फुरत एक्जीक्यूट भी कर डाला। 40 हजार रुपये के शुरुआती निवेश से शुरू हुआ भड़ास4मीडिया अब अपने ही आमदनी के बल पर एक अलग छोटे-मोटे आफिस से संचालित हो रहा है, एक टीम काम कर रही है, हम लोगों का दिल्ली में दाल-रोटी का खर्चा निकल जा रहा है, कंप्लीट जाब सैटीसफेक्शन के सुख को इंज्वाय कर रहे हैं। हम भदेस और देहाती टाइप लोगों के लिए दिल्ली की छाती पर पैर धंसाकर इतना सुख पा लेना, मेरे खयाल से ठीक-ठाक हिसाब-किताब है। कहने का आशय ये कि मीडिया की गंदगी साफ करने की मंशा से यह पोर्टल नहीं शुरू किया गया, जैसा की कई आदर्शवादी पत्रकार साथी सोचते-कहते हैं। वैसे, कहने को मैं भी गाल बजा सकता हूं कि यह क्रांति का मंच है, आदर्श पत्रकारिता का प्रहरी है पर मुझे इस तरह की शाब्दिक लफ्फाजियों से हमेशा से चिढ़ रही है। जो सच है उसे साहस के साथ कहना चाहिए। मैं हमेशा यही कहना चाहूंगा कि यह पोर्टल मेरी मजबूरियों की उपज है। या, मेरे प्रयोगधर्मी स्वभाव की देन है। या, मीडिया की अच्छी-बुरी सूचनाओं को समान भाव से सबके सामने रखने की अवचेतन सोच का प्रतिफलन है। या फिर भड़ास ब्लाग से आगे जाकर हिंदी वेब के फील्ड में एक प्रयोग करने की इच्छा का मूर्त रूप है। …जो भी कह लीजिए।

तो मैं कह रहा था कि भड़ास4मीडिया का मकसद मीडिया में क्रांति करना कतई नहीं रहा है। यह पोर्टल मीडिया के एडिटोरियल सेक्शन से जुड़े लोगों की सूचनाओं, गतिविधियों, जानकारियों को एक मंच प्रदान करने के उद्देश्य से शुरू किया गया। हम पत्रकार अफवाहों और कनबतियों के आधार पर अपने प्रोफेशन की सूचनाओं-खबरों को पाने के आदी रहे हैं जिसमें ज्यादातर सूचनाएं झूठी या फिर नमक-मिर्च लगाकर उड़ाई-फैलाई जाती रही हैं। भड़ास4मीडिया ने मीडिया के अंदरखाने चलने वाले खेल-तमाशे के सच-झूठ को ईमानदारी से आप तक पहुंचाने की कोशिश की है। इन खबरों के आने से कई बार स्वनामधन्य मान्यवरों के चेहरे की चमक कम हुई है और इसके चलते वे लोग हम लोगों को तरह-तरह से धमकाने-चेताने को प्रेरित हुए हैं लेकिन हमने किसी के त्वरित गुस्से के कारण रिएक्शन में जाकर कुछ अनाप-शनाप लिखने-करने से परहेज किया। धैर्य के साथ दूसरे पक्ष की बातों को भी सुना गया और उसे ईमानदारी के साथ प्रकाशित भी किया गया।

किसी भी नए उद्यम, उपक्रम, मंच या संगठन को चलाने के लिए आर्थिक मदद चाहिए होता है। मुझे यह कहने में झिझक नहीं कि जिन लोगों को मैंने अपना समझा था, जो लोग मेरे 14 साल के पत्रकारीय जीवन की घनिष्ठ दोस्ती की उपलब्धि थे, जिनका मैंने हर संभव भला किया, जो मेरे सबसे करीब-खास हुआ करते थे, उनमें से ज्यादातर ने भड़ास4मीडिया शुरू होने के बाद मेरी किसी तरह से कोई मदद न की। आर्थिक तो छोड़िए, नैतिक मदद तक देने में कंजूसी बरती। जिन लोगों से जुमा-जुमा दो-चार महीनों का परिचय रहा, नेट के जरिए दोस्ती हुई, भड़ास ब्लाग के जरिए अपनापा हुआ, भड़ास4मीडिया के कारण परिचय बढ़ा, उन सभी ने हर तरह से मदद की। ऐसे ही लोगों के चलते भड़ास4मीडिया आज न घाटे में है और न हम लोग भुखमरी के कगार पर हैं। इन सभी लोगों का हृदय से धन्यवाद।

आप लोगों को भी सबक ले लेना चाहिए। जिसे आप अपना मानते हैं, जरा टेस्ट लेकर देखिए, कहीं किसी लालच से तो आपसे नहीं जुड़े हैं वे जनाब। वो लालच बहुत छोटा भी हो सकता है। इतना छोटा कि आप से रोजाना वे दो घंटे बात कर अपना मूड फ्रेश कर लेते हों, अपनी भड़ास निकाल लेते हों और आप इसलिए झेलते रहते हैं कि मेरे प्रिय हैं। जिंदगी है बाबू। हर रोज कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। हम देहाती तो भोग-भोग के ही सीखते हैं। जितना झेलते हैं, उतना सीखते जाते हैं। बस, गिरने पर हिम्मत न हारिए। उठिए, धूल पोंछिए और फिर जुट जाइए सामने वाले को पटकने में।

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भड़ास4मीडिया के लिए देश के कई हिस्सों में मीडियाकर्मी कंटेंट व विज्ञापन के लिए कार्य कर रहे हैं। इसके जरिए वे हमें मजबूती देने के साथ-साथ अपने लिए नया विकल्प तैयार कर रहे हैं। इससे लगता है कि भड़ास4मीडिया का सेकेंड फेज शुरू हो गया है, विस्तार का। हमें हर जिले में ऐसे ही जुझारू साथी चाहिए। भड़ास4मीडिया पर विज्ञापन देकर कई मैग्जीनों-अखबारों-संस्थानों ने अपनी पहचान, धमक और संपर्क बनाने-बढ़ाने में सफलता हासिल की है। कम पूंजी वाले अखबारों-मैग्जीनों-संस्थानों के लिए हमने बेहद कम दर पर विज्ञापन प्रकाशित करने की व्यवस्था शुरू की है। देश भर के हजारों छोटे-मझोले मीडिया हाउसों के संचालकों से अपील करना चाहूंगा कि वे भड़ास4मीडिया को अपने मंजिल का हमराही मानें। अपने मीडिया माध्यम की पहचान बढ़ाने व विस्तार करने के लिए इस पोर्टल की मदद लें।

पत्रकार साथियों से कहना चाहूंगा कि सिर्फ नौकरी पर टिके रहने के बजाय अब अपने लिए भी कुछ काम शुरू करने का मन बनाएं। बाटी-चोखा डॉट कॉम से लेकर तंदूरी चिकन ठेला लगाने तक की योजना मेरे दिमाग में चलती रहती है लेकिन वक्त नहीं मिलता कि और कुछ करूं। काम कोई छोटा और बुरा नहीं होता। हर छोटा काम एक दिन बड़ा बनने की संभावना रखता है। जरूरत केवल साहस, सोच और समझ की होती है। व्यापार (बिजनेस, उद्यम) को नौकरी से हमेशा अच्छा माना गया है। हिंदी पट्टी वालों की नौकरी करते रहने की ट्रेडीशनल सोच को अब बदलने की जरूरत है। बिना एमबीए किए एमबीए वालों से ज्यादा अच्छा बिजनेस करके दिखाने की जरूरत है और यह माद्दा हिंदी वालों में है। मंदी, छंटनी और नो वैकेंसी के इस दौर में जो भी पत्रकार साथी कुछ नया करना चाहेगा, भड़ास4मीडिया टीम उसे हर तरह से मदद प्रदान करेगी।

अब जबकि भड़ास4मीडिया देश भर के मीडियाकर्मियों के बीच पहुंचने वाला नंबर वन पोर्टल हो गया है, मैं इंतजार कर रहा हूं कुछ ऐसे साथियों का जो भड़ास4मीडिया के भविष्य के साथ अपना भविष्य देख रहे हों और नया रचने (विजन), नया बनाने (तक्नालजी), मुद्रा उपजाने (सेल्स), खबर लिखने (कंटेंट) से लेकर नाजायज के खिलाफ सड़क पर उतर कर जंग लड़ने तक का हर काम सहज भाव से करने को तैयार हों। धरती वीरों से खाली नहीं है, यह मैं हमेशा मानता रहा हूं, जरूरत बस वीरों को तलाशने की।

उम्मीद करता हूं आप सभी मेरे लिखे की गल्तियों को माफ करेंगे और अच्छाइयों को याद रखेंगे। मैं उन सभी लोगों को माफ कर चुका हूं जिन्होंने कभी किसी तरह से मेरा अहित किया है। मैं हमेशा आगे देखता हूं।

मुश्किलें बहुत हैं पर हौसला है,  पंख कटे हैं पर जज्बा-जुनूं है।।

हर दिन युद्ध-सा लड़ता-जीता हूं,  हर दिन नया सबक सीखता हूं।।

गर न रहे तो भी रहेगी बात,  याद रहेंगे कुछ को मेरे जज्बात।।

भई, अभी लिखा है, अपना ही शेर है 🙂  तवज्जो चाहूंगा, [email protected] पर मेल का इंतजार करूंगा। 

आभार के साथ

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यशवंत

एडिटर, www.Bhadas4Media.com, No.1 Indian Media News Portal

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0 Comments

  1. Shravan Shukla

    September 25, 2010 at 12:21 pm

    saari baate 16 aane dil ko chhoone waali or sach hai…sher kaafi achcha hai..gaahe bagaate aap sher-0-shayri ka ek slot bana jeediye…dil ko chhoone waala…jai ho GURU JI

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