मीडिया का महाभारत है ‘अपने-अपने युद्ध’ : भड़ास4मीडिया पर प्रत्येक शनिवार को चर्चित उपन्यास ‘अपने-अपने युद्ध’ का धाराविहक रूप में प्रकाशन किया जाएगा। मौजूदा दशक में मीडिया के भीतर, और बाहर भी चर्चित रहे दयानंद पांडेय के उपन्यास ‘अपने-अपने युद्ध’ को जितनी बार पढ़ा जाए, अखबारी दुनिया की उतनी फूहड़ परतें उधड़ती चली जाती हैं। मीडिया का जितनी तेजी से बाजारीकरण हो रहा है, उसके भीतर का नर्क भी उतना ही भयावह होता जा रहा है। ऐसे में ‘अपने-अपने युद्ध’ को बार-बार पढ़ना नितांत ताजा-ताजा सा-लगता है। यह महज कोई औपन्यासिक कृति भर नहीं, मीडिया और संस्कृति-जगत के दूसरे घटकों थिएटर, राजनीति, सिनेमा, सामाजिक न्याय और न्यायपालिका की अंदरूनी दुनिया में धंस कर लिखा गया तीखा, बेलौस मुक्त वृत्तांत है। इसमें बहुत कुछ नंगा है- असहनीय और तीखा। लेखक के अपने बयान में—‘जैसे किसी मीठी और नरम ईख की पोर अनायास खुलती है, अपने-अपने युद्ध के पात्र भी ऐसे ही खुलते जाते हैं।’