राडिया राज 7 : यशवंत जी, आपने सही सवाल उठाया कि संभव है कि पुण्य प्रसून बाजपेयी को टेलीकाम घोटाले में बरखा दत्त और वीर सांघवी के किसी न किसी रूप में शामिल होने के बारे में पता था और पुण्य प्रसून ने अपने ब्लाग में इन पत्रकारों के नाम क्यों नहीं लिखे. यह सही है कि बतौर पत्रकार पुण्य प्रसून की ईमानदारी पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता लेकिन पुण्य को नाम सामने लाने ही चाहिए थे. पर संभव है कि चूंकि यह लड़ाई कारपोरेट और सरकार के बीच होने के कारण मुद्दा डायलूट होने की आशंका से पुण्य ने ये नाम जाहिर नहीं किए हों. वैसे भी यह एक सच्चाई ही है कि मीडिया ही एकमात्र ऐसा इंस्टीट्यूशन है जो अपने देश में कुछ हद तक वाच डाग की भूमिका निभा रहा है. माना कि इसमें बरखा और सांघवी शामिल रहे हों और मीडिया के कुछ और गलत लोग भी शामिल हैं. पर इस कारण सभी को बदनाम नहीं करना चाहिए. वैसे भी ए. राजा का मामला एक पत्रकार ने ही सामने लाया है. आपके ही जवाब से ऐसा लगता है कि मीडिया में जिन लोगों के बीच इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के दस्तावेज हैं उन्हें भी उन पत्रकारों के नाम मालूम होंगे जो इसमें शामिल हैं.
लेकिन वे भी और आप भी इन पत्रकारों के नाम क्यों नहीं ले रहे? क्या इसमें एक बड़े हिंदी अखबार के मालिक और एक अंग्रेजी न्यूज चैनल के सीईओ भी शामिल नहीं हैं? आपकी भी इसकी जानकारी होगी. आप क्यों इनका नाम नहीं ले रहे? क्या आपका भी इनसे याराना है? सवाल यह नहीं कि इसमें मीडिया के लोग शामिल हैं तो इनका नाम नहीं लो क्योंकि मीडिया बदनाम होती है. मुद्दा यह होना चाहिए कि पुण्य ने सरकार और कारपोरेट के बीच नेक्सस का जो मामला उठाया है, उसे उजागर किया जाए और इस नेक्सस को तोड़ा जाए. एक बार सत्ता की गंदगी दूर हो जाए तो मीडिया की गंदगी दूर होते ज्यादा समय नहीं लगेगा.
शैलेश कुमार
शैलेश जी.
जिस हिंदी अखबार के मालिक और अंग्रेजी चैनल के सीईओ की बात कर रहे हैं आप, उनके बारे में मुझे वाकई नहीं पता. चर्चाओं अफवाहों की बात मैं नहीं करता. अगर इनके शामिल होने के कोई दस्तावेज हैं तो मेरे पास भेजिए, इनके नाम पता ठिकाना सब प्रकाशित किया जाएगा, कोई माई का लाल नहीं रोक सकता.
दूसरी बात पुण्य की. पुण्य प्रसून अगर सरकार और कारपोरेट के नेक्सस पर प्रकाश डालते हैं तो उन्हें यह क्यों नहीं दिखता कि यह नेक्सस सरकार-कारपोरेट-ब्यूरोक्रेट-मीडिया का इकट्ठे बन चुका है. हम तो सरकार-कारपोरेट नेक्सस से आगे की बात कर रहे हैं. यही तो हम लोग कह रहे हैं कि अभी तक मीडिया इस नेक्सस से दूर था. शामिल भी था तो उसके प्रमाण नहीं थे लेकिन अब यह जाहिर हो चुका है कि मीडिया भी इस नेक्सस का हिस्सा है. यही असली खबर है क्योंकि कारपोरेट और सरकार के नेक्सस पर तो जाने कितनी स्टोरीज पब्लिश हो चुकी हैं. यह स्टोरी भी उसी की एक कड़ी है. पर इस कड़ी की खास कहानी यही है कि मीडिया और मीडिया के शीर्ष लोग भी दलाली में, नेक्सस में, अवैध तरीके से कमाई में कूद चुके हैं. तो, इस नेक्सस के नए ट्रेंड, नए इंस्टीट्यूशन के इनवाल्वमेंट के बारे में प्रकाश डालना चाहिए था पुण्य को और यह करते हुए उन्हें उन चेहरों को बेनकाब करना चाहिए था जो मीडिया को नेक्सस का पार्ट बना रहे हैं. पर पुण्य ने नाम क्यों नहीं खोला, यह अब भी एक सवाल है.
नाम खोलने से इशू कतई डायलूट नहीं होता बल्कि इशू जोर पकड़ता. अब जब नाम खुल गए हैं तो देश में फिर एक बहस की शुरुआत हो गई है. लोग कहने लगे हैं कि मीडिया नामक संस्थान भी अब पवित्र नहीं रहा. मीडिया का यह पतन अचानक नहीं है. पेड न्यूज का क्रमिक विस्तार ही है. जब पैसे कमाने और कमवाने की होड़ हो तो जहां भी पैसा दिखता हो, वहां मीडिया और मीडिया वाले इनवाल्व हो ही जाएंगे. पर दर्द तो ये है कि जिन चेहरों से हम उम्मीद करते थे कि वे रास्ता दिखाएंगे, मीडिया को रसातल में जाने से बचाएंगे, वे ही मीडिया के पतन के लिए गहरा गड्ढा खोदने में जुटे हुए हैं. पुण्य प्रसून ने नाम न खोलकर अपनी पत्रकारिता की सीमाओं को बता दिया है कि वे किस हद तक क्रांतिकारी बने रहना और दिखना चाहते हैं. अच्छा है, इस बहाने पुण्य की पत्रकारिता की भी सीमा सामने आई. मुझे पुण्य की ईमानदारी पर कोई संदेह नहीं है लेकिन कोई पत्रकार किस हद तक क्रांतिकारी, मिशनरी, बेबाक होगा, इसके लिए अपनी सीमा वह खुद तय करता है और पुण्य ने अगर अपने लिए एक सीमा तय की है तो इसको लेकर किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए, मुझे भी नहीं. और मैं मानता भी नहीं हूं. बल्कि मैं तो कहता हूं कि पुण्य अपनी सीमाओं में रहते हुए जितना कुछ कर रहे हैं, उसका चौथाई भी बाकी पत्रकार करते तो सूरत बदल सकती है.
आपसे उम्मीद है कि आप डाक्यूमेंट प्रोवाइट कराएंगे ताकि जिनकी आप चर्चा कर रहे हैं उनके बारे में भी प्रकाशित कराया जा सके.
आभार के साथ
यशवंत
अमित गर्ग. राजस्थान पत्रिका. बेंगलूरू.
May 8, 2010 at 12:24 pm
अगर इस मामले में वाकई सच्चाई है तो इस सारे मसले पर कलम चलने के लिए पुण्य जी को जितनी बधाई दी जाए उतनी कम है. क्योकि उन्होंने ही केवल इस गंभीर मुद्दे पर कलम चलने की हिम्मत की. किसी और पत्रकार के होंठ हिलने कि बात तो बहुत दूर रही. कलम तक नहीं उठी. उठती भी कैसे? बरखाजी और वीरजी जैसे बड़े पत्रकारों पर कुछ लिखकर बैठे बिठाये मुसीबत कौन मोल ले. ये लोग जो बड़े पत्रकार होने का तमगा लिए घूम रहे हैं. ये करेंगे देश-समाज की गंदगी की सफाई? क्या बीत रही होगी उन लोगों पर जो इन दोनों को अपना रोल मॉडल मानकर चल रहे थे. वाह रे मीडिया और मीडिया के तारणहार…!
Satya Prakash
May 8, 2010 at 4:42 pm
My God ….Barkha and Sanghwi are corrupt ? if punya is right then only GOD knows better what will happen to the 4th pillar of democracy .
[b]Punya ek punya ka kaam kar hee den plz[/b]..
DISCLOSE THE NAMES .DO IT FOR NATION .HISTORY WILL REMEMBER YOU FOR YOUR COURAGEOUS JOURNALISM .
Jai Hind ,
SATYA PRAKASH
animesh
May 8, 2010 at 6:34 pm
Ball is now in Shailesh’s court. Let him disclose the names of the newspaper owner and channel CEO. We are all with Yashwant. The less said about P P Bajpai the better.
kk chauhan
May 18, 2010 at 6:11 am
पुण्य जी को जितनी बधाई दी जाए उतनी कम है. क्योकि उन्होंने ही केवल इस गंभीर मुद्दे पर कलम चलने की हिम्मत की. किसी और पत्रकार के होंठ हिलने कि बात तो बहुत दूर रही. कलम तक नहीं उठी. उठती भी कैसे? बरखाजी और वीरजी जैसे बड़े पत्रकारों पर कुछ लिखकर बैठे बिठाये मुसीबत कौन मोल ले. ye bhi shi hai ki patrkaro main dalal ki snkhya kuch jyada ho gay hai.