एक संपादक जी को गर्म हवा के गुब्बारे में घूमने का शौक चढ़ा। भाई साब ने नीचे वालों से बंदोबस्त करने के लिए कहा। हो गया। और एक दिन भाई साब गुब्बारे में निकल लिए। कुछ समय बाद उन्हें अहसास हुआ कि वे खो गए हैं। उन्होंने उंचाई थोड़ी कम की और नीचे एक व्यक्ति को देखा। वे कुछ और नीचे आए तथा चीख कर कहा, “मैं भटक गया हूं। क्या आप मेरी सहायता कर सकते हैं। मुझे घंटे भर पहले ही एक मीटिंग में पहुंचना था। पर मुझे यह भी नहीं समझ में आ रहा है कि मैं कहां हूं।“
नीचे वाले व्यक्ति ने जवाब दिया, “आप गर्म हवा के गुब्बारे में हैं, जमीन से करीब 30 फीट की उंचाई पर हैं। आप 40 व 41 डिग्री नॉर्थ लैटीट्यूड तथा 59 और 60 डिग्री वेस्ट लैटीट्यूड के बीच हैं। गुब्बारे में लटके संपादक जी ने मन ही मन नीचे खड़े व्यक्ति को भर पेट गरियाया और कहा, “साला इंजीनियर कहीं का। अपनी काबिलियत दिखा रहा है।“ पर उस व्यक्ति से कहा, जरूर आप इंजीनियर हैं। नीचे वाले व्यक्ति ने कहा, “जी हां, पर आपको कैसे पता चला?”
संपादक जी ने कहा, “आपने जो कुछ मुझे कहा वह तकनीकी तौर पर सही है। पर आपकी यह सूचना मेरे किसी काम की नहीं है। और तथ्य यह है कि मैं अभी भी खोया हुआ हूं। सच कहूं तो आपसे मुझे कोई सहायता नहीं मिली। उल्टे आपने मेरा समय खराब किया।“
नीचे वाले इंजीनियर ने पूछा, “आप संपादक हैं क्या?”
“हां मैं संपादक ही हूं। पर आपको कैसे पता चला?” गुब्बारे में लटके संपादक ने पूछा।
इंजीनियर ने कहा, “आपको पता नहीं है कि आप कहां हैं या कहां जा रहे हैं। आपको मीटिंग में जाना था पर गुब्बारे में घूमने निकल गए। आपको कुछ पता नहीं है कि मीटिंग में पहुंचने के लिए क्या करना है और आप अपने नीचे वाले से उम्मीद कर रहे हैं कि आपको इस संकट से निकाल दे।“
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Comments on “भड़ासी चुटकुला (22)”
Great, beyond any comment or compliment.
great..hahaha..maza aa gaya
ye media hai… aur aise darjano dishahin sampadak desh ko disha de rahe hain. Jai ho.
badhiya hai…
क्या वो किसी अखबार के कार्यकारी संपादक थे।