लखनऊ की कोर्ट नंबर एक में सुनवाई जारी : भास्कर और डीबी कार्प के नाम पर आईपीओ लाकर 385 करोड़ रुपये जुटाने का इरादा पालने वाले रमेश चंद्र अग्रवाल, सुधीर अग्रवाल और गिरीश अग्रवाल के सामने नई मुश्किल आ गई है। इनके खिलाफ लखनऊ की एक अदालत में पीआईएल (पब्लिक इंट्रेस्ट लिटिगेशन) दाखिल किया गया है। इसमें आईपीओ पर रोक लगाने की मांग की गई है। आधार बनाया गया है भास्कर पर मालिकाना हक के विवाद को। पीआईएल में कहा गया है कि आरएनआई ने भास्कर का मालिक चार लोगों को माना है तो कोई कैसे अकेले आईपीओ ला सकता है।
भास्कर के चार मालिकों वाले आरएनआई (भारतीय समाचार पत्र पंजीयक) के आदेश को भी सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज किया गया है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में दैनिक भास्कर का मालिकाना हक ‘द्वारिका प्रसाद अग्रवाल एंड ब्रदर्स’ के पास माना है। पीआईएल में यह भी बताया गया है कि दैनिक भास्कर का ब्रांड नेम महेश प्रसाद अग्रवाल (अखबार के संस्थापक द्वारिका प्रसाद अग्रवाल के भाई) के पुत्र संजय अग्रवाल के नाम रजिस्टर्ड है जो इन दिनों दैनिक भास्कर की झांसी यूनिट के निदेशक हैं और उनकी अलग कंपनी है जिसका डीबी कार्प से कोई लेना-देना नहीं है।
‘द्वारका प्रसाद अग्रवाल ऐंड ब्रदर्स’ में महेश प्रसाद और उनके बेटे संजय अग्रवाल की लगभग 30 फीसदी हिस्सेदारी है। यह फर्म दैनिक भास्कर की मालिक फर्म है। पीआईएल में रमेश चंद्र अग्रवाल पर आरोप लगाया गया है कि वे फर्जी कागजात के जरिए खुद को पूरे दैनिक भास्कर समूह का मालिक बताकर जनता का पैसा सिर्फ अपनी कंपनी के लिए एकत्रित करने का प्रयास कर रहे हैं, जो गलत है। जब सब कुछ विवादित हो तो आईपीओ कैसे लाया जा सकता है। अगर डीबी कॉर्प के पास दैनिक भास्कर टाइटल के ही पूरे अधिकार नहीं हैं, तो कंपनी इस ब्रांड नेम का सहारा लेते हुए आईपीओ लाकर पैसे कैसे जुटा सकती है?
उधर, डीबी कॉर्प से जुड़े लोगों का दावा है कि अखबार के टाइटल को लेकर कोई विवाद शेष नहीं है। बेवजह का विवाद खड़ा किया जा रहा है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से जुलाई 2003 में ही फैसला आ चुका है। आरएनआई के पत्र की प्रतियां ग्वालियर, इन्दौर, झांसी, जबलपुर, भोपाल के डीएम (जिला अधिकारी) के पास भेजी जा चुकी हैं। इस पत्र में लिखा है दैनिक भास्कर का टाइटल अपडेट किया जा चुका है। मालिकाने की स्थिति 29 जून 1992 से पहले की उसी स्थिति में बहाल किया जा चुका है जब यह पांच जगह पांच अलग कंपनियों के नाम से पंजीकृत किया गया था। स्थिति स्पष्ट करने को 18 जून 2004 को आरएनआई के उस पत्र की कॉपी को भी भेजा जा चुका है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में जिक्र है। इसमें लिखा गया है कि दैनिक भास्कर के पांचों मालिकों ने कोर्ट के फैसले को मान लिया था।’ हर मालिक इस आदेश को मान रहा है।
डीबी कार्प के सूत्रों का कहना है कि आईपीओ के रेड हेरिंग प्रॉस्पेक्टस में जोखिमों के बारे में लिख दिया गया है। इसमें साफ लिखा गया है… ‘दैनिक भास्कर पर डीबी कॉर्प के मालिकाना हक को हमारे प्रमोटरों में से एक के कुछ रिश्तेदारों के साथ-साथ कुछ अन्य ने चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट के साल 2003 में फैसले के बाद 18 जून 2004 को भारतीय समाचार पत्र पंजीयक के पत्र से दैनिक भास्कर अखबार पर रमेश चंद्र अग्रवाल का हक साबित हो गया है। लेकिन इसके बाद भी डीबी कार्प कोई आश्वासन नहीं दे सकता कि भविष्य में ऐसे दावे या अन्य विवाद नहीं उठाए जाएंगे।’ ऐसे विवाद उठाने से कंपनी की प्रतिष्ठा और नाम खराब हो रहा है। आईपीओ के प्रॉस्पेक्टस में यह भी कहा गया है… ‘हो सकता है भविष्य में दैनिक भास्कर के किसी और राज्य से प्रकाशन पर भी प्रतिबंध लग जाए। फिलहाल हम उत्तर प्रदेश में दैनिक भास्कर का प्रकाशन नहीं कर सकते हैं क्योंकि दूसरी पार्टियां यहां प्रकाशन कर रही हैं। हम इस बात का भी कोई आश्वासन नहीं दे सकते कि जहां हम इस अखबार का प्रकाशन नहीं करते हैं वहां और कोई भी इस अखबार का प्रकाशन नहीं करेगा। दूसरे पक्षों के साथ हुए समझौते के तहत हम महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में अखबार का प्रकाशन नहीं करेंगे।’
सूत्रों के मुताबिक लखनऊ की कोर्ट नंबर एक में इस मामले पर सुनवाई जारी है। रमेश चंद्र अग्रवाल और उनकी कंपनी की तरफ से कई वकील अदालत में मौजूद हैं। आज शाम तक सुनवाई खत्म होने व फैसला आने की संभावना जताई जा रही है।