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दुख-दर्द

राडिया के बाद जेडीए! ये कैश कार्ड किसी नकदी से कम नहीं

[caption id="attachment_19276" align="alignleft" width="66"]भुवनेश जैनभुवनेश जैन[/caption]जयपुर विकास प्राधिकरण में हाल ही हुई एक घटना ने यह उजागर कर दिया है कि मीडिया को भ्रष्ट करने की कोशिश ऊपर से नीचे तक हर जगह चल रही है। पिछले दिनों राडिया प्रकरण खुलने के बाद मीडिया से जुड़े बड़े नामों की असलियत सामने आ गई थी। अब जयपुर विकास प्राधिकरण में नए साल के उपहार के रूप में कैश कार्ड बांटने की घटना सामने आई है। इससे पता चलता है कि मीडिया को लालच देकर उसका मुंह बंद करने के प्रयास हर स्तर पर हो रहे हैं।

भुवनेश जैन

भुवनेश जैन

भुवनेश जैन

जयपुर विकास प्राधिकरण में हाल ही हुई एक घटना ने यह उजागर कर दिया है कि मीडिया को भ्रष्ट करने की कोशिश ऊपर से नीचे तक हर जगह चल रही है। पिछले दिनों राडिया प्रकरण खुलने के बाद मीडिया से जुड़े बड़े नामों की असलियत सामने आ गई थी। अब जयपुर विकास प्राधिकरण में नए साल के उपहार के रूप में कैश कार्ड बांटने की घटना सामने आई है। इससे पता चलता है कि मीडिया को लालच देकर उसका मुंह बंद करने के प्रयास हर स्तर पर हो रहे हैं।

अफसोस की बात यह है कि मीडिया का बड़ा वर्ग इस तरह के उपहारों या नकदी को अधिकार समझकर ग्रहण कर रहा है और जाने-अनजाने भ्रष्टाचार और घोटालों में शामिल हो रहा है। मीडिया का मुंह बंद रखने के लिए तरह-तरह के प्रलोभन दिए जाने लगे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि आज पत्रकारिता के पेशे में ऎसे लोगों का जमावड़ा बढ़ने लगा है, जो इन प्रलोभनों की ओर आकर्षित होकर इस पेशे में आ रहे हैं। साधारण प्रेस कॉन्फे्रंस का कवरेज करने के लिए मंहगे उपहार या नकदी के लिफाफे बांटना तो आम हो गया है। जितनी बड़ी गड़बड़ी उतना बड़ा उपहार! अफसरों को यह सुविधा हो गई है कि खूब घोटाले करो, पर प्रेस का मुंह बंद करना सीख लो। इसी प्रचलन ने प्रेस के बड़े हिस्से को बिकाऊ माल की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया है।

कहीं संपादकों के आतिथ्य की व्यवस्था की जाती है तो कहीं सरकारी क्वार्टर वितरित किए जाते हैं। एक समय विभिन्न विधाओं और वर्गो को संरक्षण देने के लिए उन्हें प्राथमिकता और रियायत के आधार पर जमीन देने की सरकारों की नीति रही है। इनमें स्वतंत्रता सेनानी, कलाकार, पत्रकार, साहित्यकार आदि वर्ग शामिल थे। धीरे-धीरे बाकी वर्गो को भुला दिया जाना और सिर्फ पत्रकारों को रियायतें देना यह बताता है कि आज सरकारी नीतियों में “संरक्षण” के बजाय “प्रलोभन” का उद्देश्य प्रमुख हो गया है।

“पत्रिका” में ऎसे कई दृष्टांत मिल जाएंगे, जब पत्रकारों को प्रलोभन देने की घटनाएं सामने आने पर महंगे उपहारों को कठोर पत्रों के साथ लौटाया गया है। ऎसे प्रलोभनों की चमक में राह भटकने वाले कई पत्रकारों को नौकरी से भी हाथ धोना पड़ा है। हाल ही की घटना में जयपुर विकास प्राधिकरण ने पत्रकारों को बुला-बुलाकर एक्सिस बैंक के कैश कार्ड दिए। ये कैश कार्ड किसी नकदी से कम नहीं हैं। चाहे इसमें दी गई रकम से खरीदारी करो, चाहे एटीएम से कैश निकलवाओ। सरकार के जिम्मेदार मंत्री, प्राधिकरण के अफसर और धन प्राप्त करने वाले पत्रकारों को इस कारगुजारी पर अफसोस नहीं होता?

पत्रिका के संवाददाता अभिषेक श्रीवास्तव व मुकेश शर्मा को भी पेशकश की गई, पर उन्होंने कार्ड लेने से इनकार कर दिया। हम यहां यह संकल्प दोहराना चाहते हैं कि यदि पत्रिका का कोई संवाददाता किसी से भी समाचार के बदले कुछ मांगता है तो पहले हमें सूचना दें। तुरंत कार्रवाई की जाएगी। मीडिया को लोकतंत्र का प्रहरी माना जाता है। जब लोकतंत्र के तीनों स्तंभों में कहीं कोई गड़बड़ी हो तो मीडिया से अपेक्षा की जाती है कि वह उसे उजागर करेगा, लेकिन जब उसका मुंह प्रलोभनों से बंद कर दिया जाएगा तो जनता का पैसा लुटता रहेगा और कोई सवाल नहीं कर पाएगा।

लेखक भुवनेश जैन राजस्थान पत्रिका के संपादक हैं. उनका यह लिखा राजस्थान पत्रिका अखबार में प्रवाह नामक उनके कालम में प्रकाशित हो चुका है. वहीं से साभार लेकर इसे प्रकाशित कर रहे हैं.

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0 Comments

  1. महेश अग्रवाल

    January 20, 2011 at 11:00 am

    श्री मान भुवनेशजी,
    प्रणाम,
    आपका आशीर्वचन “सवाल कौन करेगा “पढ़ा | दिल खुश हो गया | इस विधा में आप जेसे खुद मुख्तियार हैं अभी , इस कारण बहुत कुछ ठीक ठाक चल रहा है | आपको साधुवाद, आपने पूरे राजस्थान को दिखाया की जयपुर में पत्रकारिता में कैसे -2 लोगों का जमावड़ा है जो खुद को खुदा और किसी भी कानून से भी उपर समझते है , और जिनके इशारे पर राजतन्त्र चलता है , दौड़ता है |
    पत्रिका इन सबसे इतर है यह भी आज आपके प्रवाह से मालूम हुआ | मेरा मानना है की जयपुर और छोटे शहर भीलवाडा में थोडा फर्क है ,वहां की बड़ी -बड़ी बातें यहाँ तक नहीं पहुंचती है | मसलन खबर छपवाने के लिए गिफ्ट लेने और चुनाव में पैड न्यूज़ का चलन करने में भीलवाडा मे तो पत्रिका पीछे नहीं है | वे स्वयं चुनाव में एक पक्ष के खिलाफ एड बनाते है और दूसरे से उस एड का पैसा वसूल करते है ,हराने की धमकी भी देते है |चांहे तो पूर्व मंत्री कालूलाल गुर्जर से ही पूँछ लो |गत विधान सभा और अभी नगर परिषद् चुनाव में पत्रिका ने कितनी पैड न्यूज़ छापी यह पत्रिका का भीलवाडा संस्करण मंगवाकर खुद जांच ले |
    पत्रिका के आदर्श का सेम्पल यह है की एक प्रेस वार्ता के छह गिफ्ट पत्रिका तक पहुंचते रहे है | गत पांचस्थानीय संपादकों के घर ऐसे गिफ्ट ड्राइंग रूम और कबर्ड की शोभा बढ़ाते अब भी मिल जायेंगे |गलत काम करने और अपनी शान बघारने वाले तो खबर छपवाने के लिए घरों तक अपने दलाल भेज देते है | भीलवाडा में तो यह चलन मे है |अभी नगर परिषद् चुनाव में दोनों प्रत्याशियों से एलसीडी टीवी और अलमीरा पोलिंग से पहले बार्गेन हुयी ,पता करें की ये कहाँ लगे है | पैड न्यूज़ का भी चाहे तो हम आपको अमाउंट बता सकते हैं |
    यह केवल एक सेम्पल भर है कथा भी लिखी जा सकती है | आदर्श घर से शुरू हो तो अच्छा लगता है | केवल दूसरों पर अंगुली उठाना ठीक नहीं कहा जायेगा आपने फिर भी अच्छी शुरुआत की, यह एक बहस में तब्दील हो और मीडिया में कुछ सुधार हो तो लिखा गया सार्थक है |
    आपके प्रयास को एक बार फिर साधुवाद ,
    धन्यवाद
    महेश अग्रवाल
    भीलवाडा

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