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साहित्य

इस्लाम से बगावत की किताब है ‘दोज़ख़’

विमोचन समारोह

जैगम इमाम के उपन्यास का विमोचन : टीवी पत्रकार और लेखक सैयद जैगम इमाम के उपन्यास ‘दोजख’ का विमोचन सोमवार शाम दिल्ली के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में किया गया। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब का विमोचन जाने-माने साहित्यकार और ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी के विख्यात आचोलक नामवर सिंह ने की। इस मौके पर बोलने वालों में आईबीएन सेवन के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष, मशहूर साहित्यकार अनामिका और शोधकर्ता शीबा असलम फहमी शामिल थीं। मंच संचालन सीएसडीएस से जुड़े रविकांत ने किया। समारोह में कई छोटे-बड़े टीवी व प्रिंट जर्नलिस्ट मौजूद थे। कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत अतिथियों को फूल भेंटकर की गई।

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जैगम इमाम के उपन्यास का विमोचन : टीवी पत्रकार और लेखक सैयद जैगम इमाम के उपन्यास ‘दोजख’ का विमोचन सोमवार शाम दिल्ली के मंडी हाउस स्थित त्रिवेणी कला संगम में किया गया। राजकमल प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस किताब का विमोचन जाने-माने साहित्यकार और ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता हिंदी के विख्यात आचोलक नामवर सिंह ने की। इस मौके पर बोलने वालों में आईबीएन सेवन के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष, मशहूर साहित्यकार अनामिका और शोधकर्ता शीबा असलम फहमी शामिल थीं। मंच संचालन सीएसडीएस से जुड़े रविकांत ने किया। समारोह में कई छोटे-बड़े टीवी व प्रिंट जर्नलिस्ट मौजूद थे। कार्यक्रम की औपचारिक शुरुआत अतिथियों को फूल भेंटकर की गई।

कार्यक्रम में सबसे पहले अपनी बात रखते हुए आईबीएन7 के मैनेजिंग एडीटर आशुतोष ने कहा कि उन्हें इस उपन्यास को पढ़कर अपना बचपन याद गया। उन्होंने अपने वक्तव्य में बनारस, मिर्जापुर और चंदौली की भाषा का इस्तेमाल किया और कहा कि जैगम का उपन्यास भाषा के स्तर पर लाजवाब है। उन्होंने उपन्यास के संदर्भ के जरिए मुस्लिम समाज को लेकर पैदा की जा रही भ्रांतियों पर भी कड़ा प्रहार किया। दोज़ख़ को इस्लाम से बगावत की किताब बताते हुए आशुतोष ने साफ कहा कि मुसलमान अब उस अंदाज में नहीं जीना चाहता जैसा किताबों में लिखा गया। आशुतोष ने इस मौके पर उपन्यास के कई अंश भी पढ़े और उपन्यास में मौजूद कई घटनाओं का विश्वेषण किया। उन्होंने इसे एक क्रांतिकारी किताब बताया और उम्मीद जताई कि ऐसा साहित्य समाज के लिए एक नया संदेश लाएगा।

वहीं दूसरी तरफ शोधकर्ता शीबा असलम फहमी ने उपन्यास को दिल के फैसलों की किताब बताया। मासूम दास्तानगोई जिसका राजनीतिकरण नहीं किया जा सकता। शीबा ने इस उपन्यास के गंभीर पक्षों की व्याख्या की और कहा इसे कट्टरता और मजहब से जोड़ा जाना सही नहीं है। ये बच्चे की कहानी है जो अपनी रौ में जीने पर यकीन रखता है और उसके इर्द गिर्द घटनाएं कैसे घटती हैं ये सबकुछ इस उपन्यास की मार्फत दिखाया गया।

कार्यक्रम में अपने विचार व्यक्त करते हुए। साहित्यकार अनामिका ने उपन्यास के कुछ अंश पढ़कर सुनाया। उपन्यास में लिखे गए ठेठ गाली के बारे में उन्होंने कहा कि यह गाली नहीं बल्कि अंतरंगता है। यह फूलगेंदवा की तरह है …गाली नहीं है। एक बच्चे के मनोविज्ञान के अभूतपूर्व चित्रण की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि क्या ये जरुरी है कि किसी के मरने के बाद जलाने और दफनाने जैसी बातों को बहुत तरजीह दी जाए। उन्होंने उपन्यास के मुख्य पात्र की घुटन और तड़प पर विस्तार से बातें की और कहा कि हमें अल्लन जैसे तमाम बच्चों के बारे मे सोचना चाहिए। आखिर हम कैसा समाज चाहते हैं। अनामिका ने बच्चों पर लिखे गए दुनियाभर के कई उपन्यासों का जिक्र किया और कहा कि कम से कम बच्चों को उनकी मुताबिक जीने की आजादी मिलनी चाहिए। दोज़ख़ के नायक अल्लन को प्रेमचंद के मशहूर पात्र हामिद से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि आज अगर हामिद होता वो हामिद नहीं अल्लन होता।

विख्यात लेखक राजेंद्र यादव ने उपन्यास का जनवादी पक्ष सामने रखा। उन्होंने एक बच्चे के मनोविज्ञान की चर्चा की। राजेंद्र जी ने कहा कि ऐसे उपन्यास के लिए सैयद ज़ैग़म प्रशंसा के पात्र हैं. मैं उन्हें धन्यवाद देता हूँ। आज जैसा माहौल है उसमें हर चीज पर सवाल है। मेरे लिए यह उपन्यास ऐसे ही कुछ सवाल उठाता है। हिंदू मुस्लिम रिश्तों पर ये उपन्यास बेहतरीन है। राजेंद्र जी ने दोज़ख में लिखी गई गालियों के संदर्भ में अपने भाषण के दौरान गाजीपुर के मशहूर लेखक राही मासूम रजा का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ये एक बेहद सरल भाषा है जो दिल को छूती है।

कार्यक्रम में दिए गए अध्यक्षीय भाषण में…नामवर सिंह ने सबसे अलग तरह से अपनी बात रखते हुए , उपन्यास को विशुद्ध प्रेम कथा करार दिया। उन्होंने कहा कि जैगम नाम अर्थ शेर होता है और जैगम ने शेर की तरह लिखा है। बिना डरे। नामवर सिंह जी ने कहा कि उन्हें डर था ये उपन्यास चंदौली, बनारस की भाषा में पड़कर कहीं आंचलिक न हो जाए लेकिन नहीं ये खड़ी बोली का उपन्यास है जिसकी प्रस्तुति चकित करती है। उन्होंने कहा कि उपन्यास में कोई बड़ा प्लाट नहीं है बल्कि स्थितियां हैं. दरअसल उपन्यास के माध्यम से छोटी सी बूंद में समुद्र की बात कहने की कोशिश की गयी है।

उपन्यास के लोकार्पण समारोह में आजतक के न्यूज़ डायरेक्टर क़मर वहीद नक़वी, न्यूज़ 24 के मैनेजिंग एडिटर अजित अंजुम, दिल्ली आजतक के प्रमुख अमिताभ, तेज के शैलेन्द्र कुमार झा, वरिष्ठ पत्रकार रामशरण जोशी, स्टार न्यूज के रवींद्र त्रिपाठी, आजतक के डिप्टी एक्जीक्यूटिव एडिटर राणा यशवंत, प्रसिद्द एंकर सईद अंसारी, प्रख्यात रंगकर्मी महमूद समेत अखबारों और टेलीविजन चैनल से जुड़े कई मीडियाकर्मी मौजूद थे।

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0 Comments

  1. wasique

    February 13, 2010 at 6:08 am

    Novel ko to maine nahi padha likin itna kah sakta hoon ki Novel men muslim samaj ko galat bataya gaya hoga, jo sahi hosakta hai, likin islam ke qanoon par sawal nahi uthya hoga. kitab mile to padh kar comment kiya jasakta hai.
    wasique Ph.D. Scholar

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