दिल्ली के साहित्य अकादेमी सभागार में रमणिका फाउंडेशन एवं शिल्पायन प्रकाशन द्वारा आयोजित लोकार्पण समारोह में संजीव खुदशाह द्वारा लिखित पुस्तक ‘आधुनिक भारत में पिछड़ा वर्ग’ का लोकार्पण वरिष्ठ साहित्यकार एवं ‘हंस’ पत्रिका के संपादक राजेन्द्र यादव ने किया। मुख्य अतिथि राजेन्द्र यादव ने अपने वक्तव्य में कहा कि चार पांच ऐसी जातियां हैं जो कि न दलित हैं न पिछड़ी हैं। जिन्हें त्रिशंकु जातियां भी कह सकते हैं। इन जातियों के पास कोई फिलास्फर नहीं है, जबकि दलितों के पास डॉ. अम्बेडकर तथा फूले हैं।
उन्होंने कहा कि जातिवाद की जड़ता परिवार में निहित है। भारतीय समाज का पारिवारिक ढांचा इतना मजबूत है कि टूटता ही नहीं है। व्यक्तिगत स्तर पर हम लोग जो भी क्रांतिकारी चर्चा कर लें, लेकिन परिवार को हम बदल नहीं सकते। इसलिए हम परिवार से कटे लोग हैं। समाज के परिवर्तन के लिए परिवार की सोच में परिवर्तन लाना होगा। उन्होंने विश्लेषणात्मक शोधात्मक एवं वैज्ञानिक तथ्यों पर आधारित पुस्तक की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री रमणिका गुप्ता ने कहा कि ये सुखद बात है कि आधुनिक भारत में पिछड़े वर्ग की जांच पड़ताल लेखक संजीव खुदशाह ने अंबेडकरवादी दृष्टिकोण से की है। विडंबना ये है कि हमारा पढ़ा-लिखा समाज भी आज तक अपनी जाति नहीं छोड़ पाया है, तो हम अनपढ़ समाज से इसकी उम्मीद कैसे कर सकते हैं, जो सदियों से जाति की गुलामी को ढोता आ रहा है। समाजशास्त्रा के इस विषय पर ये पुस्तक लिखकर श्री संजीव खुदशाह ने गंभीर बहस का एक अच्छा मौका दिया है।
कार्यक्रम के आरंभ में पुस्तक पर समीक्षात्मक आलेख का पाठ रमेश प्रजापति ने किया। वरिष्ठ आलोचक एवं समाज सेवी मस्तराम कपूर ने कहा कि पिछड़े वर्ग की समस्या पर चर्चा करने से पूर्व पिछड़ा वर्ग को परिभाषित करना आवश्यक है। जातीय आधार पर जनगणना कराने से इनकी वास्तविक स्थिति का ज्ञान हो सकता है, लेकिन नेहरू ने इसे होने नहीं दिया। विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय ने अपने वक्तव्य में कहा जातिवाद देश के अतीत से भी जुड़ा है और देश के भविष्य से भी। उन्होंने लेखक से तथा उपस्थित सभी साहित्यकारों से आह्न किया कि जाति-व्यवस्था का केवल विश्लेषण न कर वे जाति व्यवस्था के विरोध में हुए आंदोलनों का जिक्र करते हुए, जाति-व्यवस्था के विरोध में लिखें। पुस्तक के लेखक संजीव खुदशाह ने अपने लेखकीय वक्तव्य में कहा कि ऐसा नहीं कि पिछड़े वर्ग के पास फिलोस्फर नहीं थे। फुले एवं पेरियार पिछड़ी जाति के लेखक थे लेकिन पिछड़ों ने उन्हें न मानकर दलितों ने माना। कार्यक्रम का संचालन रमणिका फाउंडेशन के मीडिया प्रभारी सुधीर सागर द्वारा किया गया।
maharaj singh parihar
January 17, 2010 at 4:57 am
akhir jativad se hamen kab chhutkara milega. bakvas kafee hotee hai lekin jativad majboot ho raha hai. jativadi sammelan aur sabhaon men apne ko budhijeevee kahne wale log adhik hoten hen. yah dohrapan jav samapt hoga tabhi jativad khatam hoga.