देश के मशहूर हिंदी साप्ताहिक ‘चौथी दुनिया’ की पहल पर पश्चिम बंगाल के हिंदीभाषियों की समस्याओं व उनके विकास की संभावनाओं पर विचार-विमर्श करने के लिए एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। 16 जनवरी को कोलकाता के राजस्थान सूचना केंद्र में आयोजित संगोष्ठी में कोलकाता की लगभग पूरी संपादकमंडली जुटी। गोष्ठी का संयुक्त संयोजक था ‘पश्चिम बंग हिंदीभाषी समाज’। चर्चा के दौरान पश्चिम बंगाल में हिंदीभाषियों की स्थिति, चाय बागानों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, उद्योगों के बंद होने से हिंदीभाषी श्रमिकों की दयनीय हालत, उच्च माध्यमिक परीक्षाओं में हिंदी प्रश्नपत्र देने, हिंदी अकादमी के गठन और साथ-साथ हिंदीभाषियों की कुछ बुनियादी खामियों की भी चर्चा हुई।
संगोष्ठी की अध्यक्षता पश्चिम बंगाल के पूर्व पुलिस महानिदेशक दिनेश चंद्र वाजपेयी ने की। शुरुआत करते हुए नाट्यकर्मी प्रताप जायसवाल ने बंगाल में हिंदी नाटक के प्रति नजरिया बदलने की बात कही तो प्रो. अनय ने हिंदी शिक्षा के रास्ते की बाधाओं और हिंदी स्कूलों की अनियमितताओं की ओर संकेत किया। पूर्व माकपा सांसद व हिंदीभाषी समाज के संरक्षक मोहम्मद सलीम ने भाषा के नाम पर कट्टर रुख नहीं दिखाने का आग्रह किया, क्योंकि भाषा का मुद्दा हमेशा ही संवेदनशील होता है। हालांकि उन्होंने बताया कि माध्यमिक की परीक्षाओं में प्रश्नपत्र दिलवाने के लिए उन्होंने कितना प्रयास किया। उन्होंने कहा कि भाषा के मुद्दे को व्यावहारिकता के आधार पर उठाया जाना चाहिए। साहित्यकार ध्रुवदेव मिश्र पाषाण और ताजा टीवी के निदेशक विश्वंभर नेवर ने पश्चिम बंगाल हिंदी अकादमी गठित नहीं होने पर चिंता जाहिर की। मालूम हो कि पश्चिम बंग हिंदी अकादमी हिंदी बुद्धिजीवियों की आपसी गुटबाजी के कारण फिर से जिंदा नहीं हो पा रही है।
चौथी दुनिया के पश्चिम बंगाल ब्यूरो प्रमुख बिमल राय ने कहा कि पत्रकार के सोचने का दायरा बड़ा होना चाहिए, ताकि वे समाज के सामने चुनौती के रूप में खड़े कुछ अहम मामलों पर अपनी राय से प्रशासन व जनमानस को प्रभावित कर सकें। इसके लिए किसी सामुदायिक संस्था का इंतजार न कर खुद चौथे स्तंभ को इसकी पहल करनी चाहिए, उन्होंने एक प्रस्ताव रखा कि इससे जुड़े मसलों पर विचार के लिए पत्रकारों का कोई फोरम बनाया जा सकता है या नहीं। राजस्थान पत्रिका के प्रभारी राजीव हर्ष ने कहा कि अगर हिंदी को सही मायनों में राष्ट्रभाषा का दर्जा मिल जाये तो बहुत सारी समस्याओ का स्वत: ही हल निकल सकता है। भारत मित्र के संपादक मोहम्मद इसराइल अंसारी ने भी कुछ मुद्दों पर प्रकाश डाला। संगोष्ठी में सन्मार्ग के संपादक हरिराम पांडेय भी थे और उनका कहना था कि हिंदी समाज को अपनी पहचान बरकरार रखने के लिए विलंब किये पहल शुरू करनी चाहिए। पत्रकार राज मिठौलिया भी मौजूद थे। संचालन केशव भट्टड़ ने किया और अंत में गोष्ठी के संयुक्त संयोजक बिमल राय ने धन्यवाद ज्ञापन किया।