विनम्र गौरव-बोध के साथ आपको सूचित करते हुए हुए हर्ष हो रहा है कि साप्ताहिक समाचार पत्र चौथी दुनिया को लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है. लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स की तरफ से जारी नेशनल रिकॉर्ड 2010 प्रमाण-पत्र में चौथी दुनिया को देश का सबसे पहला साप्ताहिक समाचार पत्र घोषित किया गया है, जो श्री संतोष भारतीय के संपादकत्व में अंकुश पब्लिकेशंस की तरफ से प्रकाशित हो रहा है. आप यह जानते ही हैं कि चौथी दुनिया 1986 में लॉन्च हुआ था.
15 मार्च 2009 को उसकी फिर री-लॉन्चिंग की गई. आपके सहयोग और समर्थन से चौथी दुनिया अपनी सैद्धान्तिक जमीन पर पूर्व की तरह अब भी अडिग है और अपने सजग अस्तित्व का सार्थक एहसास करा रहा है, रोगग्रस्त व्वस्था के शिकार आम लोगों की आवाज़ और अभिव्यक्ति बन रहा है. चौथी दुनिया उन शोषितों और उत्पीड़ितों के साथ लगातार खड़ा है, जिनकी आवाज उन्हीं के देश में दबा दी गई.
चौथी दुनिया आम आदमी के अधिकार की लड़ाई की ताकत भी बन रहा है और माध्यम भी… देश का यह आम आदमी चौथी दुनिया को अपना खास साथी मानता है. चौथी दुनिया की इससे बड़ी उपलब्धि और क्या हो सकती है…
सधन्वाद
डॉ. मनीष कुमार
संपादक (समन्वय)
चौथी दुनिया
anil
June 15, 2010 at 5:20 am
santosh ji bahut mubarkbad
dharmendra
June 15, 2010 at 5:37 am
satosh ji, hardik shubhkamnyen aapaki is upalabdhi par.
dharendra,
sr. sub editor
[email protected]
mahanagar kahaniyan,
delhi
vijay singh
June 15, 2010 at 6:28 am
sir mumbai me bhi chudhi duniya uplabdh karae.badi kripa hogi.
S.P. Sinha, Patna
June 15, 2010 at 7:07 am
‘चौथी दुनिया’ की उपलब्धियों के लिए संतोष भारतीय बधाई के पात्र हैं। किंतु उनके इस दावे पर कि ‘चौथी दुनिया’ देश का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र है, मुझे आपत्ति है। यह दावा सरासर गलत है। देश का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र पटना (बिहार) से ‘विश्वबंधु’ टाइटल के अंतर्गत सन 1960 में निकला था। समाचार पत्र आकार में प्रकाशित ‘विश्वबंधु’ का प्रसार तब पूरे देश में था और लोकप्रिय था। विश्वनाथलाल और विजय किशोर उसके संपादक हुआ करते थे। बाद में बालमुकुंद राही भी इसके संपादक बनें। राहीजी को नक्सलियों ने तब गला काटकर मार डाला था, जब वे एक सभा को संबोधित कर रहें थे। बाद में ‘विश्वबंधु’ पटना और मुजफ्फरपुर से दैनिक के रूप में निकलने लगा था। ‘विश्वबंधु’ के बाद पटना से ही समाचार पत्र आकार में 1959-60 में ‘स्वतंत्रता’ नाम से साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु हुआ था। फिर पटना से ही देवव्रत शास्त्री के ‘हिमालय संदेश’ को 1962 में खरीदकर बड़े आकार में साप्ताहिक समाचार पत्र के रूप में चंद्रमोहन मिश्र, विश्वनाथलाल, विजय किशोर और एस. एन. विनोद ने पटना से प्रकाशन शुरु किया था। फिर 1980 में एस.एन. विनोद ने रांची से ‘जनता टाइम्स’ के नाम से बड़े आकार में साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन शुरु किया था।
अत: संतोष भारतीय का यह दावा कि ‘चौथी दुनिया’ देश का पहला साप्ताहिक समाचार पत्र है, बिलकुल गलत है। अपने विज्ञापन में संतोषजी ऐसा दावा न करें।
koi
June 15, 2010 at 8:01 am
galat baat karte hain, bhadon ke baad janm hua aur kahte hain ki aisi baad nahin dekhe,kub se ho jo no.1 ho gaye, jhansa mat do
sanju
June 15, 2010 at 8:55 am
badhai,
ake bhut acchi printing ,paper,contants ke sath nikal rha paper ko,
sath he,M.P.C.G ke 4 page,patrikarta,khoobsurti,ka sundar meal,ban kr mil rha hi,pr dhayan de ki BY POST ghar bhajne ki appki koshish me POST- OFFICE OFFICE’S ka ashhyog,kahi mushkil na peada kr de ? sath hi lokpriyta hatu bigapan pr be app zarur dhayan denge,
Satosh ji, aapaki is upalabdhi par,aur puri TEEM &REPORTOR’S ko ake bar fir hardik shubhkamnyen, sadhubad…………
sanjay choudhary ,jabalpur m.p.9425324302
yogesh
June 15, 2010 at 9:58 am
लगता है यहां संतोष भरतियां के चमचे सबसे ज्यादा हैं। टेबल राईटिंग वाली स्टोरी पर आधारित घटिया सामग्री प्रकाशित होती है।
बधाई देने वाले उपर कॉमेट देने वाले एस.पी. सिन्हा के बातों को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। उन्होंने चौथी दुनिया से पहले प्रकाशित सप्ताहिक के नाम गिना दिया।
फिर संतोष भरतियां ने कौन-सा तिकड़म लगाकर इसे पहला सप्ताहिक बता कर रिकार्ड बना लिया। ?
saroj kumar singh
June 15, 2010 at 10:29 am
sir bahut badhai
ravishankar vedoriya gwaloir
June 15, 2010 at 10:33 am
limka book main chuthi duniya ka naam aaya iske sabhi sadasya tarif ke kabil hai is nai uplabdhi ke liye badai hai sabko
chandresh sharma, corespondent. chatra-jharkhand
June 15, 2010 at 12:09 pm
santosh bhartiya ji ke chowthi dunia ko limka book me pahle saptahik akhbar hone ka awsar prapt hua. iske liye unke sath sath, unki teem ko bhi hardik badhai.
Baba
June 16, 2010 at 5:25 am
क्या बेवकूफी है.. लिम्का बुक भी लगता है [b] विज्ञापन[/b] छापने लगा है. जो अखबार १९८६ मे शुरु हुआ और ६ साल बाद[b] शहीद[/b] भी हो गया. फिर १७ साल बाद उसे फिर से प्रकाशित किया जा रहा है २००९ से यानि इस अखबार के प्रकाशन को या तो ६ साल समझा जाए या फिर १ वर्ष (२००९-२०१०). मेरे हिसाब से साप्ताहिक अखबार वह है जो अपने प्रारंभ से अभी तक (२०१०) तक लगातार प्रकाशित होता रहा है. ये बीच में १७ साल की गैप मारने के बाद भी सबसे पहला… समझ में नहीं आया.