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डा. मनीष की रिपोर्ट पर बिहार में विवाद शुरू

‘चौथी दुनिया’ के 19-25 अप्रैल 2010 के अंक में पहले पन्ने पर जो लीड स्टोरी प्रकाशित हुई है, उस पर बिहार में विवाद शुरू हो गया है. लीड स्टोरी की हेडिंग है ‘मेरे खिलाफ लिखना मना है’. इस रिपोर्ट के जरिए चौथी दुनिया के एडिटर (समन्वय) डा. मनीष कुमार ने बिहार की मीडिया पर सरकारी तंत्र के आतंक का खुलासा किया है. पहले मनीष की रिपोर्ट के एक अंश को पढ़ें. जो विवाद शुरू हुआ है, उस पर खबर बाद में. -एडिटर

डा. मनीष कुमार

‘चौथी दुनिया’ के 19-25 अप्रैल 2010 के अंक में पहले पन्ने पर जो लीड स्टोरी प्रकाशित हुई है, उस पर बिहार में विवाद शुरू हो गया है. लीड स्टोरी की हेडिंग है ‘मेरे खिलाफ लिखना मना है’. इस रिपोर्ट के जरिए चौथी दुनिया के एडिटर (समन्वय) डा. मनीष कुमार ने बिहार की मीडिया पर सरकारी तंत्र के आतंक का खुलासा किया है. पहले मनीष की रिपोर्ट के एक अंश को पढ़ें. जो विवाद शुरू हुआ है, उस पर खबर बाद में. -एडिटर


मेरे खिलाफ लिखना मना है

डा. मनीष कुमार

डा. मनीष कुमार

अगर अख़बार चारण का काम करने लगेंगे तो जनता के सवालों को सरकार तक कौन पहुंचाएगा? : सरकार की योजनाओं और कामों को प्रचारित करने के लिए जनसंपर्क विभाग होता है. हर सरकार यही चाहती है कि उसके अच्छे कामों का प्रचार हो और सरकार की कमज़ोरियां बाहर न आएं. सरकार की विफलताओं और कमजोरियों को जनता के सामने लाना मीडिया का काम है. लेकिन बिहार में स्थिति अलग है. बिहार में अघोषित सेंसरशिप लागू है. पटना के अख़बारों ने नीतीश सरकार की ग़लतियों और बुराइयों को छापना बंद कर दिया है. सरकार के ख़िलाफ़ ख़बर छापने पर अख़बार मालिकों को माफी मांगनी पड़ती है और ख़बर लिखने वाले पत्रकार को सजा मिलती है. बिहार के मीडिया ने सरकार के सामने घुटने टेक दिए हैं और वह जनसंपर्क विभाग की तरह काम कर रहा है. पटना के एक शख्स को जनता की समस्याओं को लेकर बटाईदारी क़ानून के बारे में एक ख़बर छपवानी थी.

यह ख़बर नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ थी. वह शख्स पटना के सारे अख़बारों के दफ़्तरों के चक्कर लगाता रहा, लेकिन हर अख़बार ने इस ख़बर को छापने से मना कर दिया. इस शख्स को अख़बार के दफ़्तरों में बताया गया कि जो ख़बर आप छपवाना चाहते हैं, वह नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ है, इसलिए हम नहीं छाप सकते. उस शख्स ने अपनी ख़बर एक इश्तेहार के रूप में छपवाने की कोशिश की, लेकिन फिर भी किसी अख़बार ने उस ख़बर को छापने की हिम्मत नहीं की. बिहार के अख़बारों पर नज़र डालें तो एक अजीबोग़रीब पैटर्न दिखता है. पहले पेज पर सरकार के अच्छे कामों का बढ़ा-चढ़ा ब्यौरा मिलता है, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अच्छी तस्वीर होती है और बाक़ी जगह पर हत्या, बलात्कार और लूट की ख़बरें होती हैं. जितना विकास हुआ नहीं, अख़बार उससे कहीं ज़्यादा ढोल पीटते हैं. नीतीश कुमार के विरोधियों, दूसरे नेताओं और उनके विचारों को ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता है. बिहार के कुछ पत्रकारों से बात करने पर पता चला कि वे राज्य की समस्याओं के बारे में लिखना चाहते हैं, लेकिन उनकी कलम को रोक दिया जाता है. जिस अख़बार में नीतीश सरकार के ख़िलाफ़ ख़बर छप जाती है, उस अख़बार को सरकारी विज्ञापन मिलना बंद हो जाता है. यह तब तक बंद रहता है, जब तक अख़बार के मालिक बिहार सरकार के मुखिया के पास जाकर गिड़गिड़ाते नहीं हैं.

बिहार के पत्रकारों ने बताया कि कुछ दिन पहले हिंदी के एक बड़े अख़बार ने बिहार सरकार के ख़िलाफ़ एक ख़बर छापी. ख़बर की हेडिंग थी- मुख्यमंत्री जी, शराब बड़ी जालिम होती है. इस स्टोरी में एक्साइज डिपार्टमेंट के एक घोटाले की कहानी थी. यह ख़बर छपते ही इस अख़बार को मिलने वाले सारे सरकारी विज्ञापन बंद हो गए. मालिकों ने घुटने टेक दिए. संपादक-मालिकों को माफी मांगनी पड़ी और रिपोर्टर को पटना से ट्रांसफर करके झारखंड के जंगलों में नक्सलियों की ख़बर लेने भेज दिया गया. फिलहाल इस बीच मालिकों में से एक ने नीतीश कुमार के विरोधियों से हाथ मिला लिया. उन्होंने नीतीश के विरोधियों को बताया कि सरकार ज़्यादती कर रही है. बिहार में सरकार के खिलाफ़ और विपक्ष की ख़बरों को प्रमुखता देने का अंजाम क्या होता है, आदि बातें आम हैं. यही वजह है, बिहार के अख़बारों और समाचार चैनलों की रिपोर्टों से बस यही लगता है कि बिहार में सब कुछ ठीक चल रहा है.

ज़्यादातर अख़बार और न्यूज़ चैनल चारणों की तरह नीतीश सरकार की शान में क़सीदे ऐसे पढ़ते और लिखते हैं कि जैसे आप बिहार सरकार का चैनल देख रहे हों या फिर बिहार सरकार के पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट का कोई पर्चा पढ़ रहे हों. इस साल चुनाव होने वाले हैं. नीतीश सरकार अपने पांच साल पूरे करने वाली है, लेकिन इस कार्यकाल के दौरान क्या-क्या कमियां रहीं, यह छापने या दिखाने की हिम्मत कोई भी अख़बार या न्यूज़ चैनल नहीं कर सका. कुछ लोग यह कह सकते हैं कि बिहार सरकार मीडिया को मैनेज कर रही है, लेकिन सच्चाई यह है कि मीडिया ख़ुद बिकने के लिए बाज़ार में खड़ा है. सरकार को उसे मैनेज करने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि वह ख़ुद मैनेज होने के लिए तैयार बैठा है. अब जब मीडिया ही सरकार के पब्लिक रिलेशन का काम करने लग जाए तो ऐसे में अख़बारों और न्यूज़ चैनलों से क्या उम्मीद की जाए. नीतीश कुमार की सरकार पहले से बेहतर तरीक़े से बिहार में काम कर रही है.

इसमें कोई शक़ नहीं है कि विकास के काम हो रहे हैं. यह भी सच है कि इस साल होने वाले चुनाव की नज़र से देखा जाए तो फिलहाल नीतीश बढ़त की स्थिति में हैं. वह अपने विरोधियों से आगे चल रहे हैं, लेकिन यह वॉक ओवर वाला मामला नहीं है. थोड़ी सी स्थिति बदलने से नीतीश कुमार के लिए चुनाव जीतना मुश्किल हो सकता है. हैरानी की बात यह है कि बिहार के अख़बार जिस तरह से राजनीतिक रिपोर्ट पेश कर रहे हैं, उससे यही लगता है कि मीडिया नीतीश कुमार को चुनाव से पहले ही विजयी बनाने में लगी है. ऐसा लगता है कि बिहार के अख़बार नीतीश सरकार के पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट में तब्दील हो चुके हैं. बिहार में क्या ज़मीन के बंटवारे की स्थिति सुधर गई है, क्या हर शहर और ग्रामीण इलाक़ों में पीने का साफ़ पानी मिलने लगा है, क्या बिहार में बेरोज़गारी पर जीत हासिल कर ली गई है, क्या बिहार की स्वास्थ्य-चिकित्सा व्यवस्था ठीक हो गई है, क्या महादलितों की समस्याओं का हल हो चुका है, क्या बाढ़ग्रस्त इलाक़ों में राहत का काम सही तरीक़े से हो चुका है, क्या बिहार में नरेगा जैसी योजनाओं में कोई भ्रष्टाचार नहीं है, क्या बिहार में सरकारी दफ़्तरों में घूसखोरी ख़त्म हो गई है, क्या बिहार में शिक्षा व्यवस्था बेहतर हुई है और क्या बिहार में क़ानून व्यवस्था की हालत अच्छी हो गई है?

किसी पत्रकार ने यह हिम्मत नहीं जुटाई कि कोसी के सच को सामने लाया जाए. बिहार के  कई पत्रकार कहते हैं कि सरकार के ख़िलाफ़ ख़बर लिखने का मतलब नौकरी से हाथ धोना है. लेकिन, विज्ञापन का लड्डू दिखाकर बिहार सरकार जो खेल कर रही है, वह नया नहीं है. हमें यह भी याद रखना चाहिए कि 2004 के चुनावों में एनडीए की सरकार ने भी शाइनिंग इंडिया के विज्ञापन के  नाम पर मीडिया को करोड़ों रुपये दिए थे. उस व़क्त भी अख़बारों और टीवी चैनलों ने चुनाव से पहले एनडीए की सरकार को विजयी घोषित कर दिया था. उस चुनाव का परिणाम क्या निकला, यह भी हम लोगों के सामने है. सरकार के जनसंपर्क विभाग की तरह काम करना बिहार में पत्रकारिता का नया चेहरा है. क्या कारण है कि हड़ताल से बिहार में पूरा तंत्र चरमरा जाता है और अख़बारों में इस ख़बर को अंदर के पन्नों में छोटी सी जगह मिल पाती है. क्यों सरकार के विरोधियों को विलेन के रूप में पेश किया जाता है. नीतीश सरकार ने सरकारी विज्ञापनों का इस्तेमाल कर अख़बार मालिकों को लालच दिया और अख़बारों को पालतू बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. बिहार के  कुछ वरिष्ठ पत्रकार बताते हैं कि अख़बारों को भेजे गए विपक्षी दलों के बयान छपने से पहले मुख्यमंत्री की टेबल पर पहुंच जाते हैं. यहां तक कि दिल्ली से चलाई गई ख़बरों को लेकर मुख्यमंत्री कार्यालय से निर्देश आते हैं कि सरकार की नकारात्मक छवि वाली ख़बरें न छापी जाएं.

बिहार में यह अघोषित सेंसरशिप बहुत ही सुनियोजित ढंग से लागू की गई है और अख़बारों को अपने हित में इस्तेमाल कर उन्हें राज्य सरकार का एजेंट बना डाला गया है. मंदी के दौर में नीतीश सरकार ने मीडिया की कमज़ोरी को भलीभांति समझा और सरकारी विज्ञापन को एक हथियार की तरह इस्तेमाल किया. ऐसे-ऐसे हथकंडे अपनाए गए, जिन्हें हम तानाशाही से जोड़ कर देख सकते हैं. लालू-राबड़ी की सरकार के  दौरान बिहार में जंगलराज पर हमेशा कुछ न कुछ ख़बरें छपा करती थीं, लेकिन वर्तमान दौर में ख़बर छापने से पहले इस बात का ख्याल रखा जाता है कि सरकार के मुखिया का राजनीतिक क़द कम न हो जाए. दरअसल, नीतीश सरकार ने मीडिया की कमज़ोरी को पहचान लिया है. और, यह कमज़ोरी है विज्ञापन की. नीतीश सरकार ने विज्ञापनों के सहारे मीडिया को नियंत्रित रखने का काम बख़ूबी किया है. सूचना एवं जनसंपर्क विभाग की ओर से साल 2005 से 2010 के बीच (नीतीश कुमार के कार्यकाल के चार सालों में) लगभग 64.48 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिए गए. जबकि लालू-राबड़ी सरकार के कार्यकाल के अंतिम 6 सालों में महज़ 23.90 करोड़ रुपये ही ख़र्च हुए थे.

मिली सूचना के मुताबिक़, सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ने साल 2009-10 में (28 फरवरी 2010 तक) 19,66,11,694 (लगभग 20 करोड़) रुपये के विज्ञापन जारी किए हैं, जिनमें से 18,28,22,183 (लगभग 18 करोड़ से ज्यादा) रुपये के विज्ञापन प्रिंट मीडिया और 1,37,89,511 (लगभग डेढ़ करोड़) रुपये के विज्ञापन इलेक्ट्रानिक मीडिया को दिए गए. इतना ही नहीं, नीतीश सरकार के चार वर्ष पूरे होने पर एक ही दिन में 1,15,44,045 (लगभग 1 करोड़ से ज़्यादा) रुपये का विज्ञापन एक साथ 24 समाचारपत्रों को जारी किया गया. इसमें भी सबसे ज़्यादा विज्ञापन एक ख़ास समूह के अख़बार को दिया गया. कुछ ख़ास अख़बारों को तो अकेले 50 लाख रुपये से ज़्यादा का विज्ञापन दिया गया है. कुछ दिन पहले पटना में बिहार में पत्रकारिता विषय पर एक सेमिनार हुआ. इस सेमिनार का आयोजन हाल में ही लांच हुए बिहार के टीवी चैनल मौर्य टीवी ने किया था. इसमें बिहार के सारे बड़े संपादक, ब्यूरो चीफ और संवाददाता मौजूद थे.

इस सेमिनार में कुछ नेता भी थे. सेमिनार में अजीबोग़रीब नज़ारा देखने को मिला. नेता पत्रकारों को खरी-खोटी सुना रहे थे और पत्रकार चुपचाप सुन रहे थे. सेमिनार से जो बात सामने आई, वह यह है कि बिहार का मीडिया सरकार द्वारा नियंत्रित संस्थान हो चुका है. सरकार जिस ख़बर को दबाना चाहती है, वह दब जाती है और जिसे लोगों तक पहुंचाना चाहती है, उसे बिना किसी विश्लेषण या टिप्पणी के छाप दिया जाता है. नीतीश कुमार अपना काम सही ढंग से कर रहे हैं. वह तो यही चाहेंगे कि वह जो काम करते हैं, उसे अख़बार में हज़ार गुना ज़्यादा दिखाया जाए. वह तो यही चाहेंगे कि उनके हर काम का प्रचार हो और जो बुरा है, उसे जनता की नज़रों से बचाया जाए. प्रजातंत्र में पत्रकारों की भूमिका इसलिए महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि उन पर यह दायित्व है कि वे सरकार के सभी क्रियाकलापों पर नज़र रखें और उसमें जो ग़लत है, उसे जनता के सामने लाएं. पत्रकारों का यह काम है कि किसी डॉक्टर की तरह शरीर की सुंदरता के अंदर से बीमारी को निकाल बाहर करना. अगर अख़बार चारण का काम करने लगेंगे तो जनता के सवालों को सरकार तक कौन पहुंचाएगा. अगर बिहार के पत्रकार यह कहें कि उनके हाथ बंधे हैं, अगर सरकार के ख़िलाफ़ ख़बर लिखने पर उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाए तो ऐसी स्थिति को क्या कहेंगे? क्या यह नहीं मान लिया जाना चाहिए कि बिहार में अघोषित सेंसरशिप है.

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0 Comments

  1. Salman Ahmed (Saudi Arabia)

    April 18, 2010 at 9:14 am

    Manish ki report par jis tarah ke comments aa rahe hain us se ye lagta hai ke Bihar ke patr kar apna asl chehra dekhna nahin chahte hain. Main bhi Bihar ka hi rahne wala hun main ye acchi tarah janta hoon ke media aour sarkar milkar aam janta ko kis tarah bewaqoof bana rahi hai.

    Media aour sarkar ka ye darama bahut suche samhe mansoobe ke tehat khela jarah hai.
    Ho sakta hai Manish aour unka akhbar doodh ka dhula hua na ho, laikin agr koi sahi bat kahe to use khule dil ke sath qubool karni chahie.

    Main ye nahi kahta ke Nitish Kumar se pahle ke log bare acche the aour Nitish Kuamar kharab hain, mera maana hai ke apne faede ke laye media aour patrkaron ko apna zameer nahin bechna chahiye.
    Agar dalali aour saouda bazi karke hi paisa kamana hi to hamare mulk men uske leye bahut bade intezam hain.

    Please rahi sahi jo media ki izzat hai usko bhi neelam na karen, hamare patrkar bhaihon ko agar chmchagiri, chaplosi, dalali aour zameer froshi hi karni hai to woh kisi dosre dhande main dalali karn sarkar ki dalali se ziyada faeda hooga.

    Hamare bahut sare patrkar bhai mere is comments ko parh kar shayed naraz hogaye honge , un naraz logon ke leye bas yahi kana hai ke,

    TAHREER MERI JAN KE JIS SE KHAFA THA WOH
    KHUD USKI HI KITAB KA WOH EQTEBAS THA

    Salman Ahmed
    Saudi Arabia
    [email protected]

  2. neeraj guwahati

    April 17, 2010 at 4:37 pm

    bihar me vikas huya nahi hai par vikasa ki taraf badh raha hai. media ko ese sakarartmak rup se lena hoga. kyonki jo bhi hai nitis ki sarkar yadi chali jati hai to phir vahi hasra hoga jo lalu ji ne kiya tha

  3. vineet kumar

    April 17, 2010 at 4:50 pm

    डॉ.मनीष ने बहुत ही संतुलित होकर लिखा है। ये एक जरुरी रिपोर्ट है और इसे व्यापक स्तर पर पढ़ा जाना चाहिए। ये अलग बात है कि जिस मंच से ये बात लिखी है वो भी विश्वसनीय और दूध का धुला नहीं है।..

  4. vikas jain

    April 17, 2010 at 4:50 pm

    sarkar ki margi se nahi, sach ke liye patrakarita ki jati hai.
    samaj or logo ke hit me. mai es ki prasansa karta hu…………

  5. Ashish Jha

    April 17, 2010 at 7:16 pm

    “बाजार बहुत गर्म है। आज कल तो नीतीश के खिलाफ लिखने पर अधिक पैसे मिल रहे हैं। जहां तक सेंसरशिप का सवाल है, तो बिहार के पुराने पत्रकार अभी भी जगन्नाथ मिश्र का वह काला प्रेस बिल को नहीं भेल पाए हैं। नीतीश के खिलाफ लिखा ही जा रहा है। पक्ष और विपक्ष दोनों तरफ लिखने के लिए दबाव है। पत्रकार नहीं अखबार के मालिक बिक रहे हैं। क्योंकि आज अखबार कोई नहीं निकाल रहा है। यह एक धंधा है।”

  6. sanjeev tiwari

    April 17, 2010 at 7:30 pm

    manish ji kya aapko bhi trp ki bhoot sawar hai kya .aap apne akhabar me bihar ki samsya to uthate nahi.doshi media ko man rahe ho jara swyam uthakar dikhao

  7. पुनीत तिवारी

    April 18, 2010 at 6:31 am

    मनीष कुमार जी, मामला रहा तो एकपक्षीय ही. बकौल आपके बिहार का मीडिया नीतिश कुमार के खिलाफ नहीं लिखता तो आप नीतिश को गरियाने का एकपक्षीय एजेंडा लेकर लाठी भांजते हुए निकल पड़े हैं. दरअसल आज मीडिया और खासकर हिंदी मीडिया की यही समस्या है. दूसरों से अलग दिखने के लिए कुछ भी कर दीजिए. हमने मान लिया कि कोई नीतिश कुमार के खिलाफ नहीं रहा और यही मौका है, हम लिख देते हैं. आप तो दिल्ली में बैठे हैं महाराज. आपको तो कोई डर नहीं था चार लोगों से बात कर लेते. न. नीतिश से भी बात करके इन सवालों का जवाब मांगते. वे न बात करते तो यही लिख देते कि नीतिश ने सवालों से कन्नी काट ली. आपके लेख में विश्वसनीयता आती. लेकिन बस, वही हवा हवाई. दूसरों में दोष ढूंढना बहुत आसान है मनीष जी. कहते हैं न, पर उपदेश कुशल बहुतेरे. आज आप अखबारों के चारणगान और पत्रकारिता की गिरता दशा पर बड़े चिंतित होते दिख रहे हैं. मगर कल जब आप इंडिया टीवी में थे तो आपको भी अपना चारणगान और पत्रकारिता के नाम पर अपनी भूत-प्रेत, नाग-नागिनछाप विशेषज्ञता बहुत भाती थी.

  8. raghav

    April 18, 2010 at 9:02 am

    और आपकी चौथी दुनिया और उसके महान संपादक किसी के गुण नहीं गाते, न वे कभी बिके और न चारण बने। मैं नहीं जानता कि आप कितने दिन से पत्रकारिता में हैं लेकिन वीपी सिंह के समय में चौथी दुनिया क्या था और वीपी सिंह गए तो बंद क्यों हो गया था…

  9. mukesh kumar sinha

    April 18, 2010 at 10:39 am

    wah bhai, aapne jo report likhi hai. wakayee DAM hai. jo kaam yahaan ke patrkaar nahi kar sake, use aapne kar dikhaya hai. aapko koti koti badhayee.

  10. सरिता सिंह

    April 18, 2010 at 3:07 pm

    ….ऐसा लगता है कि बिहार के अख़बार नीतीश सरकार के पब्लिक रिलेशन डिपार्टमेंट में तब्दील हो चुके हैं …… इस एक बाक्य को बार-बार लिखने के पीछे मनीष की मानसिकता समझी जा सकती है। जब कोई युगांतकारी परिवर्तन हो रहा होता है तो कई नकारात्मक चीजें नजरअंदाज करनी पड़ती है। फिलहाल हम मनीष की नादानियां नजरअंदाज करते हुए कह सकते हैं कि बिहार बदल रहा है तो काफी लोगों को इसका अफसोस भी है कि वे इस बदलाव का लाभ लेने से वंचित रह गए। इसमें एक तरफ नीतीश के विरोधी राजनेता हैं जो दशकों से बिहार को लूट रहे थे तो दूसरी तरफ मनीष जैसे पत्रकार, जिसे मैनेज करना नीतीश ने जरूरी नहीं समझा।

  11. anurag sharma

    April 18, 2010 at 3:33 pm

    sarkar vigyapan dekar koi bura kaam nahi kar rahi hai. aaj ki taarikh me bihar me nitish se behtar koi neta nahi hai. nitish bihar ki jaroorat hai. koi seedha dekhe ya tedha. bihar ko nitish chahiye.

  12. Dinesh Joshi

    April 18, 2010 at 4:14 pm

    Bawal ki zaroorat nahi he, yadi isme koi sacchai he to sambandhit logo ko ise gambhirta se lena chahiye. har vyakti apne vichar prakat karne k liye svatantra he. Jab media kisi k liye kuch bhi likh sakta he to media par negative likhe jane par bawal kyo ? rahi bat media k zariye hero banane ki to jaisa ki khud inhone hi likha he NDA sarkar karodo k vigyapan dene k bad bhi haar gayi. Aisa nahi he ki public media k bharose hi chal rahi he. Aaj ka pathak jagruk he aur khabar ki sacchai pata laga hi leta he. Lekin ek baat he ki agar reader k nazariye se soche to vah hamesha prashasan k khilaf padna pasand karta he. Sarkar ki zyada tarif karne wale shak ke dayre me aa hi jate he. Phir bhi Manish ji ko badhai, Is vishay par likhne k liye. Dinesh Joshi. [email protected]

  13. vijay singh

    April 18, 2010 at 6:33 pm

    अंग्रेजी में एक कहावत है कि two wrongs doesnot make a right…. बिहार में नीतिश कुमार की सरकार विकास का काम कर रही है यह बात पूरी तरह सही नहीं है. हां.. पहले की सरकार से बेहतर जरूर है. लेकिन इस लेख में डा मनीष ने जो लिखा है वह भी सही है. वैसे भी इस लेख में जो विषय उठाया गया है उसका रिश्ता इन बातों से नहीं है कि बिहार की जरूरत क्या है नीतीश बेहतर है या फिर लालू आदि आदि. काफी दिनों के बाद हमलोगों में से किसी ने मुख्यमंत्री के खिलाफ कलम उठाया है. इसका स्वागत होना चाहिए.

  14. ramanuj

    April 18, 2010 at 7:39 pm

    Rome was built not in a day…मनीष जी ये कहावत शायद आप ने जरूर सुनी होगी…..पढ़ी होगी……आज़ादी के बाद किसी ने पहली बार बिहार में बिहार को बदलने की कोशिश की है….उस पर भी आपने हमला कर दिया….आप सुदूर बिहार में अस्पताल जाकर देखिये…वर्षों बाद डाक्टर और दवाई दिखाई पड़ती है…ब्लाक में सरकारी कर्मचारी जनता की कामों पर ध्यान दे रहे है….बिहार की सड़कों में किया बद्लव हुआ ये सब को दिख रहा है….कम से कम इस विकास का साथ दीजिए….जो आजादी से लेकर पांच पहले तक नहीं हो सका…..तो इन पांच सालों सब कुछ कैसे बदल सकता है….लेकिन विकास हो रहा है…ये आप को भी मानना होगा….जो सरकार कम करेगी…..वो इसका फायदा तो बढ़ चढ कर तो लेगी ही….इतना तो हक बनता है….आप इंतना बढियां लिखते हैं किया इसके एवज में मोती रकम नहीं लेते हैं?

  15. rupesh gupta

    April 18, 2010 at 8:16 pm

    चौथी दुनिया के संपादक डॉ मनीष की रिपोर्ट ने बिहार की कलई खोलकर रख दी है….मनीष बधाई के पात्र हैं…जो काम वहां चार सालों तक एक भी मीडिया नहीं कर पाई…चौथी दुनिया ने एक आर्टिकल ने कर दिया…इससे पहले चौथी दुनिया की रंगनाथ मिश्र रिपोर्ट पर छपी लेख को लेकर संसद में हंगामा हो चुका है…चौथी दुनिया वाकई में लोकतंत्र के चौथे खंभे की अहमियत को दिखाता है

  16. Raj Agarwal

    April 19, 2010 at 6:13 am

    Respected Moderator

    After reading the article published in the newspaper it appears that they are not seeing the picture in its entirety, i.e. macro level, but still are believing that BIHAR should continue with its earlier negative image. By doing this they are ignoring a very big point that “Now India cannot grow further by just ignoring Bihar. If India has to achieve its 2020 vision, then it can be attained only all an Inclusive Growth of all the states, especially the Eastern States of Bihar, Jharkhand, Orissa, Bengal & North East”.

    The Indian GDP is growing around 7-8% (apprx), and the GDP of Bihar is ar 11.03% (2nd among all the other states after Gujrat at 11.05%)

    I would like to mention some facts about Bihar in particular and then after it is open to decide that Bihar is progressing or not.

    BIHAR – From “Bimaru” State to a Hidden Jewel !

    Bihar has more number of Graduates than Kerela

    Bihar with 3rd largest student population in India opens up a world of Brand Opportunities with the New Generation Reader

    Bihar is the 5th largest state owning Mahindra vehicles, which is greater than 6 Metros put together. Bihar showed a whopping 45% growth in automobile sales till Jan’09

    Bihar is the 4th largest Tea purchasing state in India, which is greater than 6 Metros put together

    The growth rate has been very good for at least three sectors — Construction (21.53 percent), Communications (16.01 percent) and Trade, Hotels and Restaurants (12.08 percent)

    There has been a sharp decline of around 50 percent or more in the cases of dacoity, kidnapping, road dacoity and bank robbery in 2008 over 2001
    As against 382 major cases of extremism reported in 2004, only 79 cases have been reported in 2008

    Out of 164 approved proposals for investment, 15 proposals have already been implemented and are working, one is ready for production, and as many as 49 with a total investment of Rs. 22.91 thousand crore are in the advanced stage of implementation

    The number of both foreign and domestic tourists has recorded an increase from 69.44 lakh in 2005 to 107.65 lakh in 2006 and to 105.30 lakh in 2007

    The number of motor vehicles in Bihar has increased by 239 percent in 2007

    There has been significant growth in total deposits in Bihar in 2007-08 over the previous year by Rs 11,681 crore

    Bihar had a revenue surplus of Rs 4647 crore in 2007-08. In the budget estimates of 2008-09 also, the state government projected to keep it at almost the same level

    The World Bank’s Doing Business in India 2009 report has adjudged Bihar’s capital city, Patna ahead of Mumbai and second only to New Delhi when it comes to launching a new business initiative.

    In fact, Patna’s rating is above Chennai, Kochi and Kolkata in the overall ranking for facilitating smooth business, says the World Bank Report.

    According to ASSOCHAM’s study of the employment scenario in India between April and October 2009-10, Patna registered a growth of 20.52 percent in job creation.

    The ranking assumes special significance since cities like Bhopal, Amritsar, Gwalior and Ludhiana have witnesses a decline in job creation by 26.68 per cent, 9.60 per cent, 6.27 per cent and 3.94 per cent, respectively.

    Now the question is, Is Nitish Government doing its work or Not ? The answer is simple “YES”

    Regards

    Raj

  17. Salman Ahmed, Saudi Arabia

    April 19, 2010 at 9:17 am

    Please do not abuse Chouthi Duniya’s report, accept the reality.

    Report claims that media is publishing and broadcasting every report in the presser of Nitish Kumar government. The report blames that in Bihar media is doing its work in the favor of government not public. Bihar media persons are not able to shallow this report, so they started the war of blame.
    The war of blame started by the media persons made me compelled to present the reality of the issue before you, please read this article and decide, who is right, and who is wrong? According to the RTI reply, soon after coming into power, Nitish Kumar government increased the quantum of advertisement to media by four times to what it was in the previous governments. In just the last four years of Nitish regime, from 2005-09 till February 28, 2010, the state government gave advertisement for around 38,000 odd works and spent Rs 64.48 crore on them whereas in the period of six years the Lalu-Rabri government had spent around just Rs 23.9 crore.
    As per the RTI document, in 2008-09 alone the state government spent around Rs 25.25 crore on advertisement of both print and electronic media. The manifold increase in the annual spending by the state government on advertisement is worth noting. In 2005-06 (Nitish Kumar came in power in November 2005) the state spending on advertisements was around Rs 4.49 crore. With an increase of around Rs 90 lakh, that expenditure in 2006-07 was Rs 5.4 crore. In 2007-08, there was an increase of Rs 4.25 crore, which brought the expenses to Rs 9.65 crore. And finally, in 2008-09 this yearly increase went up to Rs 15.59 crore, bringing the annual spending on advertisements to Rs 25.25 crore.
    In 2009-10 till February 28, 2010, around Rs 19.66 crore has been spent on advertisements. On November 24, 2009, on the eve of completion of four years of Nitish government, in a single day advertisements worth Rs 1.15 crore were given in 24 different national as well as regional dailies.
    These advertisements highlight the so called developmental works of the state government in the areas of health, minority development, education and socio-economic development, with the titles like “Badalta Bihar” (changing Bihar) “Nitish Kumar Ke Chaar Saal” (four years of Nitish Kumar). Delhi and Patna based Hindi dailies such as Hindustan, Dainik Jagran, Prabhat Khabar and Aj had the lion’s share of around Rs 72.5 lakh.
    On the eve of completion of four years of Nitish government the Hindi daily Hindustan had received advertisement worth Rs 37 lakh from Bihar government, the maximum among all the media organizations. In the light of above mentioned data every one can understand the partnership of media and Nitish Kumar government in Bihar economy. Now I leave every thing for the general public, public is the best judge.

  18. बोलेंगे तो बोलोगे की बोलता है

    April 19, 2010 at 9:50 am

    भाई मान गए पत्रकारिता में चाटुकारिता की सीमा पार हो गयी है. मानता हु की डॉ मनीष ने किसी कारन से ही सही बिहारी पत्रकारिता को आइना तो दिखाया. अब आइना देखते ही बिहार के चाटुकार पत्रकारों की मैंने कॉमेंट्स भी पढ़ी. अरे डूब भी मरो पटना और दिल्ली में बैठ कर बिहार सरकार का अस्सेस्मेंट करने वालो. माना की नितीश ने काम किया है. लेकिन जब काम किया है तो अपनी बुराई लिखे जाने पर इतने उबलते क्यों है. जरा जिला मुख्यालयों और सुदूर देहातो में जा के तो इनके द्वारा किए गए बिकास की सच्चाई तो जानो. शर्म करो नितीश के चाटुकारों शर्म करो नहीं तो पत्रकारिता की अगली पीढ़ी तुझे गलियाएगी. और तेरे कारन नाहक कुछ सच्चे पत्रकार को भी गली सुननी परेगी. मीडिया को बन्धकी से निकालो चमचो निकालो. कलम से पत्रकार बनो चाटुकारिता कर के नहीं.

  19. dev

    April 19, 2010 at 6:10 pm

    बधाई हो… चौथी दुनिया के पटना संस्करण को लांच करने के पहले ऐसी खबर छापकर चर्चा में आने की कोशिश लाजवाब रही।

  20. sushil

    April 20, 2010 at 7:50 am

    manish bhai ap badhayi ke patra hain jo vkius vihar de patrakaro do mldh oukat bata di auor vihar me patrakarita ke nam par chaplusi ho rahi hai:D

  21. Capt. Sanjeev Rai

    April 20, 2010 at 3:59 pm

    I must say, Manish well done.Your job is commendable. Keep it up !!!

  22. Capt. Sanjeev Rai

    April 20, 2010 at 4:03 pm

    I must say Manish well done. Your job is commendable. Keep it up !!!!

  23. gunjan

    April 22, 2010 at 6:52 am

    मनीष जी आपने बिलकुल सही लिखा है. आज कल बिहार में जिस तरह की पत्रकारिता हो रही है वो इसे मिसन के बदले चाटुकारिता में बदल गयी है. विज्ञापन के नाम पर सरकार और मीडिया हाउस के प्रबंधक पत्रकारों के कलम को कुंठित करने का काम कर रही है. आज भी बिहार में गरीबी और भ्रस्ताचार व्याप्तहै.

  24. rajiv

    April 22, 2010 at 9:16 am

    pkVqdkfjrk] pkj.kh] xq.kxku vkfn ’kCn] i=dkfjrk ij geysa ds fy, gfFk;kj ds :i esa [kwc bLrseky gksrsa gSaA ekufld :i ls vLoLF; yksxksa ds ikl ,sls ’kCn dkQh jgrs gSaA euh”k th] vkt ehfM;k dks pykus ds fy, iSls dh t:jr gksrh gS] vU;Fkk ,d v[kckj dh dher 100 :- gks tk,xh vkSj turk rd vkidh cdokl eqf’dy ls gh igqapsxhA foKkiu nkrk] ehfM;k ds fy, Hkxoku gksrk gS] vkSj Hkxoku ds f[kykQ dksbZ Hkh dkjksckjh vko+kt ugh mBkrkA /kS;Z jf[k,] vkidh Hkh lsfVax gks tk,xhA

  25. kuber nath

    April 22, 2010 at 10:23 am

    डॉ. मनीष का बिहार के पत्रकारिता,राजनीति और वहां की यथा स्थिति पर पैनी नजर वाकई काबिले तारीफ है। और निर्भिक पत्रकारिका के बहुत बड़ा उदाहरण है। जिनका मैं तहे दिल से इज्जत करता हूं।

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