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फिर तो पत्रकारिता करना मुश्किल हो जाएगा

[caption id="attachment_17315" align="alignleft" width="85"]अम्बुजेश कुमारअम्बुजेश कुमार[/caption]अलीगढ़ मामला और पत्रकारिता के मूल्य : व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आधार बना के कानून का यूं फैसले ले लेना गलत : भाई यशवंत जी, अलीगढ़ की पूरी घटना को ना तो मैं टीवी पर देख पाया और ना ही विस्तार से जान पाया था। आपकी वेबसाइट के जरिये काफी जानकारी मिली और यह पढ़ कर मन में सवालों का पुलिंदा इकट्ठा हो गया। उस पुलिंदे के कुछ अंश मैं चाह कर भी जाहिर करने से खुद को रोक नहीं पाया।

अम्बुजेश कुमार

अम्बुजेश कुमार

अम्बुजेश कुमार

अलीगढ़ मामला और पत्रकारिता के मूल्य : व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आधार बना के कानून का यूं फैसले ले लेना गलत : भाई यशवंत जी, अलीगढ़ की पूरी घटना को ना तो मैं टीवी पर देख पाया और ना ही विस्तार से जान पाया था। आपकी वेबसाइट के जरिये काफी जानकारी मिली और यह पढ़ कर मन में सवालों का पुलिंदा इकट्ठा हो गया। उस पुलिंदे के कुछ अंश मैं चाह कर भी जाहिर करने से खुद को रोक नहीं पाया।

वस्तुतः अलीगढ़ के पूरे प्रकरण को जिस तरह से प्रस्तुत किया गया है वह किसी भी नजरिये से उचित नहीं कहा जा सकता है। भारत में इस तरह के सम्बन्धों के विरोध में स्वर हमेशा उठते रहे हैं। दिल्ली हाईकोर्ट के समलैंगिकता के मामले में फैसले के बाद भी इस पर लगातार सवाल उठाये जाते रहे। अलीगढ़ के मरहूम प्रोफेसर साहब और उनका तथाकथित स्टिंग करने वाले दोनों पत्रकारों को मैं नहीं जानता लेकिन फिर भी इनसे जुड़ी खबरें देख सुन के मुझे इतना तो पता चल ही रहा है कि इन पत्रकारों को गिरफ्तार करके पुलिस ने कहीं से भी न्याय नहीं किया। हां, यह जरूर है कि निजता भंग करना अपराध है मगर क्या अगर कोई अकेले में बलात्कार करता है और उसकी सूचना अगर कोई पत्रकार दे देता है तो यह क्या निजता का उल्लंघन होगा? अगर कोई अकेले में चार-चार कन्याओं के साथ रासलीला रचाए तो उसका सच सामने लाना निजता का उल्लंघन कहा जायेगा? तब तो आज तक के हुए सभी स्टिंग आपरेशन गलत ही हैं क्योंकि बिना बताए किसी को शूट करना निजता का उल्लंघन ही है। ऐसे में यह जानना ज्यादा जरूरी है कि आखिर यह निजता है क्या? अगर ऐसे ही व्यक्तिगत स्वतंत्रता को आधार बना के कानून फैसले लेने लगे तो फिर पत्रकारिता करना मुश्किल हो जायेगा।

यह सही है कि आज पत्रकारिता जगत में सब कुछ अच्छा नहीं हो रहा है और लगातार ऐसी शिकायतें आम है कि अमुक पत्रकार ने ये किया वो किया। मगर एक बात यहां पूछा जाना लाजिमी है कि इन सबके बाद भी क्या मीडिया को उदासीन अवस्था में रख देना या फिर सरकारी बोली बुलवाने से समाज का कितना भला हो पायेगा। पत्रकारिता जगत में घुस आये चंद दलालों के वजह से सम्पूर्ण पत्रकारिता जगत को दोषी करार देना कहीं से भी ठीक नहीं कहा जा सकता है क्योंकि यह भी एक हकीकत है कि आज भी समाज में कई एक महत्वपूर्ण जगहों पर इनकी जरूरत शिद्दत से महसूस की जाती है। जेसिका लाल की बहन सबरीना लाल से अगर कोई कहे कि मीडिया की भूमिका नकारात्मक है तो शायद उनका दिल यह गवाही नहीं देगा क्योंकि गवाहों के बार-बार बदलते बयान हाई प्रोफाइल प्रतिवादी के बावजूद उसे न्याय मिला। यह निर्णय अगर न्यायपालिका की भूमिका को सशक्त करता है तो वहीं मीडिया की भूमिका को भी स्थापित करता है। सवाल यह है कि आरुषि मामला हो चाहे, सवाल के बदले नोटकांड …राजनीतिक से लेकर सामाजिक हर मुद्दे पर कई बार पत्रकारों ने अपना कर्तव्य निभाया है। कभी-कभार ऐसे आने वाले मामलों से मीडिया का चरित्र जांचने वाले अपने गिरेबान में क्यों नहीं देखते?

अलीगढ़ में एक समाचार चैनल के कुछ पत्रकारों ने जो भी किया उसे सिरे से गलत करार देना कहीं से भी उचित नहीं है क्योंकि मरहूम प्रोफेसर साहब कोई ऐसा कृत्य तो कर नहीं रहे थे जिससे उनके छात्रों में अच्छा सन्देश जाता। जो भी दिखाया गया या जो भी हुआ,  उसमें सबसे खराब बात यही रही कि प्रोफेसर साहब ने खुदकुशी कर ली। लेकिन सवाल यह है कि क्या प्रोफेसर साहब यह कृत्य करके अपने शिक्षक पद की गरिमा से खिलवाड़ नहीं कर रहे थे? एक रिक्शेवाले के साथ सम्बन्ध बना कर वह अपने छात्रों को कौन-सी शिक्षा दे रहे थे? यहां यह बताना जरूरी है कि चाहे राजनेता हो या चाहे नौकरशाह या चाहे पत्रकार हो या फिर शिक्षक… वे जिस दिन इस पेशे में जुड़ते हैं, उस दिन से उनका जीवन दूसरों के प्रति उत्तरदायी हो जाता है। ऐसे में उनका किया गया हर कृत्य निजी तो रह ही नहीं जाता। यह ऐसे पेशे हैं जिनसे नैतिकता और मर्यादा की उम्मीद अपने आप लोगों को हो जाती है लेकिन दुख है कि इनमें से किसी भी पेशे में वह नैतिकता नहीं रह गयी। ऐसे में सिर्फ पत्रकारों को ही दोषी ठहराना क्या उचित है?

दोषी सब हैं और सिर्फ अलीगढ़ ही नहीं, हर जगह ऐसे मानसिक रोगियों की कमी नहीं है। हो सकता है कि जिन पत्रकारों ने यह स्टिंग आपरेशन किया था उनका कोई अपना कोई निजी उद्देश्य या स्वार्थ रहा हो। यह भी हो सकता है कि यह करते वक्त उन्होंने पत्रकारिता की मर्यादाओं को ताक पर रख दिया हो मगर इसके लिए उन्हें जेल में डाल देना अन्तिम विकल्प नहीं है क्योंकि उनका गुनाह नैतिकता की नजर में गलत जरूर है मगर अक्षम्य नहीं क्योंकि आखिरकार उन्होंने शिक्षक धर्म को कलंकित करने वाले एक बहुरुपिया चरित्र का भण्डाफोड़ किया।

मेरा मतलब सही गलत से नहीं है मेरा मतलब सिर्फ इतने से है कि उन दो पत्रकारों को दण्डित कर देने भर से क्या इस पूरे मामले के सभी दोषियों को सजा मिल जायेगी? ऐसा करके कानून सिर्फ आगे के लिए पत्रकारों के मन में डर पैदा करेगा। किसी की निजता या फिर मर्यादा को कायम रखने की दिशा में कोई सार्थक प्रयास नहीं करेगा क्योंकि कानून का डर ऐसे कई पत्रकारों के सोच के भी कुछ अच्छा करने से रोकेगा। क्या पुलिस का डंडा चला के और डर पैदा करके स्वस्थ समाज की नींव रखना उचित है?

लेखक अम्बुजेश कुमार पुरबिहा चैनल ‘हमार टीवी’ के पॉलिटिकल कॉरेस्पान्डेन्ट हैं.

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0 Comments

  1. Naveen

    April 21, 2010 at 5:13 pm

    ये सच है कि पत्रकारिता की एक सराहनीय विधा स्टिंग ऑपरेशन पर बंदिश लगाने के तमाम बहानों का विरोध होना चाहिए… लेकिन ये भी सच है कि इस विधा के पीछे नीयत की पवित्रता को भी कहीं से भी कमतर नहीं होने देना चाहिए… क्योंकि मकसद बदलते ही काम के नतीजे बदल जाते हैं… पता नहीं एएमयू के प्रोफेसर के नितांत निजी पलों को कैमरे में कैद करने के पीछे उन पत्रकार भाइयों का क्या मकसद था… लेकिन इस बात से शायद आप भी इत्तफाक रखते होंगे… कि इस तरह के ज्यादातर कवायद चटखारे लेने के लिए…. और खुद को हिटलिस्ट में लाने के लिए ही किया जा रहा है… जहां तक बात पत्रकारीय सरोकारों से जुड़ी आपकी चिंता की है… तो मेरी राय यह है कि प्रोफेसर साहब के रिश्ते की अग्निपरीक्षा लेनेवाले पत्रकार भाइयों को भी अपने पेशे और उससे जुड़े सरोकारों के प्रति उनकी निष्ठा का एग्जाम पास करने दीजिए… और देखिए कि खोजी पत्रकारिता के साथ इनके रिश्ते की बुनियाद मौकापरस्ती के नींव पर तो नहीं रखी गयी है… और एकबात और… जो लोग भी समाज के मौजूदा ताने-बाने को चुनौती देना चाहते हैं… उनका जिगर तो फौलादी होना चाहिए… ये क्या बात हुई कि जिसे आप ललकार रहे हैं… उसका सामना करना तो दूर… उसके सामने आते ही हमेशा के लिए मैदान से भाग खड़े होते हैं… प्रोफेसर साहब जैसे तमाम लोग उनकी हुई गति के लायक ही हैं…

  2. Haresh Kumar

    April 21, 2010 at 12:09 pm

    आपका लेख मैंने पढ़ा, अच्छा लगा। लेकिन कहीं न कहीं आप अपने लेख में इस बात को रेखांकित करना भूल गए कि निजता का उल्लंघन सही चीज नहीं है। पत्रकारिता के पेशे में आज कल कई ऐसे धंधेबाज लोग आ गए हैं, जिनके कारण इस पवित्र पेशे पर आज लोग उंगली उठाने लगे हैं। यह सही है कि मीडिया के दबाव में कई केस फिर से खुले और लोगों को न्याय मिला। लेकिन इसी बीच कई ऐसे लोग भी आए, जिन्होंने इस पवित्र पेशे को कलंकित किया। हो सकता है जो पत्रकार पकड़े गए हैं, वे निर्दोष हों या हो सकता है वे सब किसी और की गंदी राजनीति का शिकार हो गए हों। निष्पक्ष जांच से ही सच का पता मालूम होगा, लेकिन जिस शख्स को इतनी पी़ड़ा और बदनामी झेलनी पड़ी और अंतत: उसने मौत को गले लगाना बेहतर समझा, ऐसे लोगों को भी कानून के द्वारा सजा मिलनी चाहिए। मैं स्पष्ट कर दूं, कि ना तो मैं किसी का पक्षधर हूं और ना ही मैं किसी का विरोध करने लिए अपनी बात रख रहा हूं। अब किसी को अपनी जिंदगी कैसे गुजारनी है इस पर उसका खुद का निर्णय होना चाहिए न कि हम और आप उन्हें बतायें। अपना देश विभिन्नताओं का देश है और इसी समाज में किन्नर और देवदासी भी सदियों से रहते आए हैं। हमारा समाज लाख प्रगति कर ले, लेकिन अभी भी वह दो समलिंगी जोड़ो को स्वीकार नहीं कर सकता। आगे आने वाले समय में क्या होगा पता नहीं। ……… समाज परिवर्तन शील है और परिवर्तन प्रकृति का नियम है। जो आज अस्वीकार्य है वह कल स्वीकार्य होगा। आपसे आग्रह है कि हर आवाज को सुने। आज समाज प्रगति के नाम पर न जाने किस गर्त में जा रहा है। पता नहीं आगे क्या होगा…………………….

  3. naresh

    April 22, 2010 at 7:40 am

    dear sir, nice to see your comment here……..

  4. Tariq ansaari

    April 23, 2010 at 5:37 am

    i want to tell you first that you have to write absolutely truth, it is a crime who had done those three journalist then nobody journalist can’t do work without police pressure of police. police will be arresting journalists again & again, i support & salute your feelings about journalists.

  5. धीरेंद्र कुमार

    April 23, 2010 at 12:49 pm

    अंबुजेश जी, माना कि आप पत्रकारिता की आजादी के लिए स्टिंग ऑपरेशन के पक्षधर हैं, लेकिन शायद आपको भी पता होगा कि आज की तारीख में निन्यानवे प्रतिशत स्टिंग ऑपरेशनों का क्या हश्र होता है। यह एक ओपेन सीक्रेट है कि स्टिंग में फंसे अफसर से लेकर कैमरे में कैद घूस लेते सिपाही तक से खबर ना दिखाने के लिए खुलेआम वसूली की जाती है। शायद आपको भी नजर आता होगा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में, जहां कभी ढेरों स्टिंग ऑपरेशन होते थे, अब एक भी कैमरा छुप कर किसी अधिकारी का ‘पर्दाफाश’ करता नजर नहीं आता। एक पत्रकार मित्र ने बताया कि इलाके के ज्यादातर जिलों में अधिकारियों ने चैनलों के स्ट्रिंगरों से ‘समझौता’ कर लिया है।
    प्रोफेसर साहब ने अपने पद का दुरुपयोग किया या नहीं, यह सवाल ही अब बेमानी है। इसी वेबसाइट पर एक खबर छपी थी कि कुछ पत्रकार अपने पद का दुरुपयोग कर के लड़कियों का शोषण करते हैं। किसी चैनल ने कभी उनका स्टिंग दिखाने की हिम्मत तो नहीं की? ब्लॉग पर बेशक सभी बड़ी-बड़ी बातें कर लें, लेकिन किसी भी स्थापित पत्रकार के बारे में छापने या टीवी पर दिखाने की हिम्मत आने की कोई उम्मीद भी नहीं दिखती। क्या ये पत्रकारिता का दोहरा चरित्र नहीं है? किसी के निजी जीवन में ताक-झांक को वैसे भी नैतिकता के लिहाज से उचित नहीं ठहराया जा सकता।

  6. anaam

    April 23, 2010 at 2:23 pm

    प्रिय हरीश, आपकी कई बातें है जिनपर मन तो कर रहा है कि जवाब लिखूं, लेकिन मेरी एक बात से ही आपके कई बातों का जवाब स्वतज् मिल जाएगा। किसको अपनी जिन्दगी कैसे गुजारनी है यह उसका खुद का निर्णय होना चाहिए। सही है यह उसका अधिकार ाी है, लेकिन ध्यान रहे कि उसका अधिकार वहीं खत्म हो जाता है जहां से दूसरे का अधिकार शुरू होता है। व्यक्ति का निर्णय बेशक उसका ाुद का हो, लेकिन कानून और समाज के लिए निधाüरित नियमों के दायरे में। क्योंंकि जहां उसने दायरा तोड़ा तो दूसरे उसे (पत्रकारों की तरह) उसकी हद बताने के लिए आगे आ ही जाएंगे। यह सही भी है और जरूरी भी।

  7. shweta

    April 23, 2010 at 6:50 pm

    ambujesh ji, aapke yeh vichar kabil-e-tareef hai ki sahi galat ka aaina dikhane mein patrakaron ki aham bhumika hoti hai…aur isko nakara bhi nahi jaa sakta…lekin ek baat aap dhyan dijiye ki kya jo iss case mein hua woh sahi tha..?
    uss professor ne kya kiya aur uska kya hashra hua iss-se mujhe koi matlab nahin, likin iss baat se zarur sarokaar hai ki maryada ka ullanghan agar uss shikshak ke liye galat tha toh unn patrakaron ke liye bhi tha…
    aur jo bhi hua woh bilkul sahi hua aisa mai bhale na kahun , par itna zarur kahungi ki saza dono ko mili…aur gunahgaar bhi dono they….
    par baat sirf isi 1 case ki nahin hai…tamam aise zimmedar peshe wale din raat dharalle se aise kukritya kar rahe hain…toh dusri orr tamam aise media karmi bhi apne peshe ka galat istemaal kar rahe hain…toh sudhar ki zarurat kya dono ko hi nahin hai ?

  8. vijay

    May 22, 2010 at 5:25 am

    comment karna bahot asaan hai , aap pehle sachhai janiye phir kuch comment likhiye, ye patrakar agar aajkal ke patrakaar hote to ye log kabhi nahi phanste, mai in logon ko jaanta , agar ye log chahte , ye khabar kisi k kano kaan nahi lagti , apna ullu sidha karte aur nikal lete, ye aaj kal ke 8 vi pass patrakar nahi hain , inhone jo kiya patrakarita kki drishti se bilkul thik kiya hai, aaj kal ke kuchh 8 vi pass patrakaron ki vajah se patrakaron ka dayera ghat ta ja raha hai, inhone andar ho rahe crime ujagar kar dikhaya hai, jiske badle mein inhe kya mila., …….. saza wo bhi be buniyad,,,,,,,, aap comments karne se pahle yadi aligarh ke kisi do panne wale akhbaar ke patrakar se bhi agar chahte to inka mob no le aap sachhai jaan sakte the , khair koi baat nahi ….. aap coments likhe….. jo inke saath hua hai wo aap k saath bhi ho sakta hai

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