शीर्षक आपको आपत्तिमिश्रित प्रतिक्रिया के लिए उकसा रहा होगा लेकिन कुछ देर ठहर जाइये. शायद थोड़ी देर बाद आप भी यही शीर्षक दोहराने को बाध्य हो जाएँ. बात हो रही है मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के जिगर के छल्ले “कृष” की. डालमेशियन नस्ल के ये “डीओजी साहेब” पिछले दिनों बीमार पड़ गए. जब भोपाल के जानवरों के अस्पताल में बीमारी का इलाज़ ठीक तरह से नहीं हो पाया तो इन्हें फटाफट एयर एम्बुलेंस से जबलपुर ले जाया गया. जबलपुर वेटरनरी यूनिवर्सिटी के डीन महोदय सहित डॉक्टरों की एक पूरी टीम उनके इलाज़ में जुट गई. इस दौरान जबलपुर के सर्किट हाउस के दो कमरे मुख्यमंत्री निवास के नाम से आरक्षित रहे. सर्किट हाउस से वेटरनरी कोलेज तक की दूरी 12 किलोमीटर है, लिहाजा चार गाड़ियों का काफिला पूरे समय “कृष बाबा” की देखभाल में जुटा रहा. हालांकि पता चला की “कृष बाबा” को कोई गंभीर बीमारी नहीं थी। बस थोड़ा खाने-पीने से उनका मन उचट-सा गया था.
डॉक्टरों की टीम ने अपनी पूरी उर्जा इसका कारण पता लगाने में लगा दी और आखिरकार “कृष बाबा” सकुशल अपनी ओवरहालिंग करा कर वापस भोपाल आ गए. जबलपुर में भी कृष बाबा संयत रहे। सर्किट हाउस में बाकायदा टहलते, कूदते रहे- पेड़ों पर, दीवालों पर “पानी भी दिया”. खानसामे के हाथों का बना लजीज नॉनवेज भी चखा. कोशिश थी कि मीडिया की नज़र कृष बाबा पर नहीं पडे लेकिन मुए ये मीडिया वाले पहुँच गए. कुछ चैनलों ने ये खबर चलाई भी, तो कांग्रेस की युवा ब्रिगेड सक्रिय हो गई और विरोध करने लगी. यहाँ मुख्यमंत्री का जन संपर्क दुरुस्त करने वाले अमले ने मीडिया का विरोध किया कि मीडिया ज़रा-सी बात को बेवजह तूल दे रहा है.
बात भी सही है. प्रदेश में बीमारी से मरने वालों कि तादात बाकी प्रदेश से कम है, गर्भवती महिलाओं की मौतें बेशक ज्यादा है और इसकी वजह… समय पर अस्पताल न पहुंचाने का साधन न मिल पाना है. इसमें सरकार की गलती थोड़े है. आदिवासी इलाकों में लोग खाट पर लाद कर ज़िंदा आदमी को चार कन्धों के सहारे अस्पताल लाने में मीलों पैदल चलते हैं और कई बार रास्ते में ही मरीज़ की मौत हो जाती है तो उसी खाट को उलटा करके लिटा कर मुर्दे को वापस ले जाते हैं. इसमें भी मुख्यमंत्री की क्या गलती है? कुपोषण से पिछले साल कई बच्चों की मौत हो गई, खूब हल्ला मचा तो सरकार ने जांच बैठा दी जिसकी रिपोर्ट आज तक नहीं आई. इसमें भी मुख्यमंत्री की क्या गलती है? मुख्यमंत्री तो आम आदमी कहलाने में खुद को फक्र महसूस करते हैं. वैसे ही आम आदमी हैं जैसे अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा….. भाई, तो जब ओबामा का कुत्ता चर्चा में आ सकता है तो हमारे आम आदमी के कुत्ते का जिक्र क्यों नहीं मीडिया में हो सकता. हालाँकि कृष बाबा को कुत्ता लिखने में मेरी कलम काँप रही है लेकिन क्या करूँ लिखना पड़ेगा. शिवराज प्रचारित करते हैं कि वे लोगों के दुःख-दर्द से इतने दुखी हो जाते हैं कि उन्हें रात को नींद नहीं आती.
जरा सोचिये, सूबे का इतना संवेदी मुखिया अगर अपने कुत्ते के लिए भावनाएं नहीं रखता तो उस पर पक्षपात करने के आरोप घर के अन्दर से नहीं लगने लगते. वैसे हमने पड़ताल की कि कृष बाबा का मन खाने से उचाट क्यों हुआ? दरअसल कृष बाबा सबसे ज्यादा अटैच हैं भाभी जी यानी साधना सिंह से… ये वाजिब भी है… शिवराज जी सूबे के विकास में इतने व्यस्त हैं कि उनके पास बच्चों के लिए वक़्त नहीं है तो कृष बाबा के लिए कहाँ से वक़्त निकाले…? भाभी साधना जी पिछले दिनों बीमार हो गई थीं, मुंबई में 10 दिनों तक भर्ती रहीं, उनका पीठ का आपरेशन हुआ था. भाभीजी मुख्य मंत्री निवास से बाहर थीं तो कृष बाबा का मन उचाट हो गया, वो बेचारे देशी भाषा में कहें.. तो बुरी तरह से हींड गए थे. भाभी जी तो लौट आईं लेकिन कृष बाबा की सेहत नहीं सुधरी और इतना हो-हल्ला मच गया. अब वो बेहद स्वस्थ हैं और उनकी किलकारियों से पूरा मुख्यमंत्री निवास गूँज रहा है. आईएएस अधिकारियों की भी सांसे संयत हो गई हैं. वेटरनरी कोलेज के डीन को कई आला अधिकारियों ने फोन करके बधाई दी. सूबे का इतना संवेदी मुखिया ईश्वर सभी को दे, इसी उम्मीद और कृष बाबा के दीर्घायु होने की
कामना के साथ……….यहाँ मैं इतना जरुर लिखूंगा, इस जोखिम के बावजूद कि ऐसा लिखकर मुझ पर वामपंथी होने का लेबल लग सकता है कि……… कही श्वान पकवान उड़ाते कही उदर आहत है.
लेखक प्रवीण दुबे हिंदी न्यूज चैनल ‘न्यूज 24’ के लिए मध्य प्रदेश के स्पेशल करेस्पांडेंट के बतौर भोपाल में कार्यरत हैं। प्रवीण से संपर्क करने के लिए आप [email protected] पर मेल कर सकते हैं।