पटना से सूचना है कि नीतीश सरकार ने फिर से दैनिक जागरण का विज्ञापन रोक दिया है. नीतीश कुमार मीडिया हाउसों को काबू में रखने के लिए विज्ञापन रोकने का खेल लंबे समय से खेल रहे हैं और इसमें वे सफल भी हैं. विज्ञापन रोकते ही प्रबंधन के हाथ-पांव फूल जाते हैं और सरकार की इच्छा के अनुरूप बदलाव-संशोधन प्रस्तुत कर दिया जाता है. सूत्रों का कहना है कि दैनिक जागरण, पटना का विज्ञापन पहले भी चार बार बंद किया जा चुका है. हर बार ब्यूरो चीफ सुभाष पांडेय नाराज सरकार को मनाने की कवायद कराते रहे हैं और इसमें सफल भी होते रहे हैं. सुभाष के इस रुतबे से प्रसन्न जागरण प्रबंधन अपने ब्यूरो चीफ पर कई बार मेहरबान होता रहा है. कभी कार गिफ्ट देकर तो कभी सेलरी में लंबी बढ़ोतरी करके.
इस बार मामला कुछ टेढ़ा है और कहा जा रहा है कि सुभाष पांडेय की दाल गल नहीं रही है. नीतीश कुमार और ललन सिंह में खटपट के इस दौर में सुभाष पांडेय ललन के साथ खड़े हो गए हैं. इससे सरकार नाराज है. नीतीश खफा हैं. ब्यूरो चीफ को भाव देना बंद कर दिया गया है और अब विज्ञापन भी बंद. प्रबंधन को तो इससे बहुत मतलब नहीं होता है कि आपके निजी रिश्ते किस नेता से ठीक हैं और किससे नहीं. उसे तो पैसा चाहिए होता है. विज्ञापन बंद होने से प्रबंधन अपने आर्थिक हितों पर चोट पहुंचती देख बिलबिला गया है. ब्यूरो चीफ पर दबाव पड़ने लगा है कि सब स्मूथ करो.
देखिए, अब कब विज्ञापन शुरू होता है और किन शर्तों पर. सूत्र बताते हैं कि इससे ठीक पहले लालू की रेल गाथा छपने से विज्ञापन रोक दिया गया था. सरकार की ओर से संबंधित रिपोर्टर के तबादले की मांग रखी गई और मैनेजमेंट ने इसे मान भी लिया. बस, विज्ञापन शुरू हो गया. पर अबकी सरकार क्या मांग रखती है, यह किसी को समझ में नहीं आ रहा और इसे जानने-बूझने की कोशिश में लगे हैं जागरण प्रबंधन के लोग. इस पूरे मामले में सबसे सवाल तो यही है कि क्या सरकार को मीडिया हाउसों को अपने इशारे पर नचाने के लिए विज्ञापन बंद करने या जारी रखने जैसी छूट मिलनी चाहिए?
पटना से आई एक पत्रकार की चिट्ठी पर आधारित
Haresh Kumar
February 2, 2010 at 7:08 am
सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं, आज की राजनीति में आप किसी पर पूरी तरह यकीन नहीं कर सकते। मौजूदा राजनीति का यही सच है। हमाम में सभी नंगे हैं। नीतिश कुमार ने कई खूंखार अपराधियों को जेल की हवा खिलायी इसमें कोई दो राय नहीं है, पर उनका यही तेवर उन अपराधियों पर गदहे की सींग की तरह गायब हो जाता है जो उनके समर्थक हैं जैसे अनंत सिंह इनके अपराध की कथा हरि अनंत हरि कथा अनंता दोहे पर बिल्कुल फिट बैढ़ती है। आखिर इन्हें भी तो चुनाव प्रबंधन करना है। राजनीति में एक साथ बदलाव की बयार और अपराधियों को संरक्षण की कला कोई नीतिश से सीखे। कल तक लालू के हर सही गलत कदमों में साथ देने वाले लोग कैसे इनके पाले में आते ही स्वच्छ हो जाते हैं, अरे लोगों को भी उस पाउडर का पता होना चाहिए, जिससे अपराधी पाला बदलते ही पाक -साफ हो जाते हैं। सत्ता संभालने के लिए चार-चार मुख्यमंत्री , आप खुल कर हंस भी नहीं सकते हैं, इनके कारनामों पर। दिन में एक-दूसरे को पानी पी कर कोसने वाले रात में एक साथ बैठ कर गलबहियां करते हैं। जय हो भारत माता की। एक बात मानना पड़ेगा नीतिश ने बिहार में बहुत कुछ बदला , लेकिन एक साथ सब कुछ बदलना संभव नहीं है। आशा है कि वो इस पर सोचेंगे।
Hari
February 5, 2010 at 10:03 am
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