खबर है कि मायावती के जन्मदिन पर चंदा न देने वाली सुगर मिलों के अफसरों और मालिकों पर मुकदमे दर्ज हो रहे हैं. यह हम नहीं बल्कि तीन जनप्रतिनिधि कह रहे हैं. इसकी खबर दैनिक जागरण ने प्रकाशित की है. दैनिक जागरण, बिजनौर में छपी खबर को पढ़ने से पता चलता है कि यूपी में किस तरह वसूली का कार्यक्रम जोरों पर चल रहा है. यहां बता दें कि दैनिक जागरण वालों की भी अपनी सुगर मिल वेस्ट यूपी में है और सुगर मिलों की यूनियन में जागरण की सुगर मिल के मालिक काफी दखल रखते हैं. इसलिए सुगर मिलों की परेशानी और उत्पीड़न की खबर इस अखबार में प्रकाशित भी हो गई. आइए, दैनिक जागरण, बिजनौर में 14 जनवरी 2010 को प्रकाशित खबर पढ़ें…
‘चंदा न देने वालों पर मुकदमा’
बिजनौर, जाका: मुख्यमंत्री मायावती के जन्मदिन पर निजी मिलों द्वारा चंदा नहीं देना शायद उनकी गन्ना आपूर्ति बंद कर सकता है, क्योंकि चंदा नहीं देने पर सरकार के प्रशासनिक अफसर मिल अफसरों एवं उनके मिल मालिकों के खिलाफ मुकदमे दर्ज करा रहे हैं।
पूर्व सांसद मुंशीराम पाल ने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार चीनी उद्योगों पर ताला डलवाना चाहती है। मिल मालिकों व मिलों के अफसरों के खिलाफ घटतौली की रिपोर्ट दर्ज कराकर उनसे अवैध वसूली करना चाहती है, ताकि मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर बड़े से बड़ा तोहफा दिया जा सके। उन्होंने कहा है कि सरकार को किसानों के हितों की चिंता नहीं है। सरकार का मकसद केवल अवैध वसूली कर अधिक से अधिक धन एकत्रित करना है। इस उत्पीड़न के खिलाफ कहीं मिल मालिक पेराई बंद न कर दें।
पूर्व गन्ना मंत्री स्वामी ओमवेश ने कहा है कि यह केवल चंदा उगाही का प्रोग्राम है। सभी अफसर मुख्यमंत्री को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता हैं। मुख्यमंत्री के साथ-साथ उनके मंत्री भी मिलों के अफसरों से वसूली करने में जुटे हुए है। उन्होंने बताया कि जन्मदिन पर चांदपुर में आरामशीन व सेलर वाले व्यापारियों से एक लाख की मांग की गई है। उन्होंने दावा किया कि चांदपुर क्षेत्र का व्यापारी संगठित होकर एक दिन सड़क पर उतर आयेगा। पूर्व राज्यमंत्री मूलचंद चौहान ने कहा कि जिले में मिलों के खिलाफ इस तरह की कार्रवाई से यह साफ जाहिर होता है कि सरकारी अफसर मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर चंदा देने को वैध वसूली मान रहे है। साथ ही उनपर दबाव बना रहे हैं। उन्होंने कहा पिछले साल भी मुख्यमंत्री के जन्मदिन पर मिलों से 5-6 रुपये प्रतिकुंतल की वसुली की गई थी। ऐसे में मिलें किसानों को बढ़ा हुआ गन्ना मूल्य कैसे भुगतान कर पायेगी?
dharmendra kumar sharma
January 17, 2010 at 1:43 pm
ye koun si nayi baat hai mayawatiji ke janamdin par, har saal is tarah wasooli hoti hai Bahujan Smaj Party ke dwara, aur kaha jata hai ki log apni marzi se chanda dete hai, party fund ke liye,
aur bhaiya, satta sukh hai, abhi to behan ji ki dason ungaliyan ghee me hai. lathi bhi unhi ki hai aur aam janta, adhikari, karobari sabhi unke liye bhais hai.
sabhi ka din aata hai, AUR kabhi to uoont pahad ke neeche aayega
praween kumar
January 17, 2010 at 3:44 pm
mayabati se jyada unaki parti ke neta jyada chanda ugahi karte hai.mayabati ke janmdivash par to charchaye aam ho jati hai lekin har mah mage jane vale chande se koyi kaise bache.jiska shikar sabase jyada sarkari nokari paye vyakti ko i ona parhata hai..tabi to aligarh mai vijali vibhag ne MLC chonao me 25 lakh rupayo ka chanda BSP ko diya …..: janta to aawaz udaye lekin media bhi to maya ke khilaf kuchh nahi bol pa raha hai.jo bol raha hai use alag alag tareeke se pareshan kiya jo ja raha hai..
shalini
January 17, 2010 at 4:39 pm
good news keep it up
sudhir pahwa
January 18, 2010 at 6:05 am
श्रीमान यशवंतजी,
यदि समाचार माध्यमों से जुडी आपकी इतनी बढ़िया साईट पर भाषा की शुद्धता नहीं है तो आपकी यह कवायद निरर्थक ही कही जाएगी.
माननीय यशवंतजी सुगर नहीं होती है शुगर होती है पर आपने हर जगह सुगर लिखा है. बेहतर होता आप चीनी मिल या शक्कर कारखाना लिखते.
इसके लिए आपको जरूर ही किसी प्रूफ रीडर को नियुक्त करना जरूरी है. मेरी सलाह आपको नागवार लग सकती है, कृपया इसे अन्यथा ना लें.
sudhir pahwa
January 18, 2010 at 6:43 am
श्रीमान यशवंतजी,
यदि समाचार माध्यमों से जुडी आपकी इतनी बढ़िया साईट पर भाषा की शुद्धता नहीं है तो आपकी यह कवायद निरर्थक ही कही जाएगी.
माननीय यशवंतजी सुगर नहीं होती है शुगर होती है पर आपने हर जगह सुगर लिखा है. बेहतर होता आप चीनी मिल या शक्कर कारखाना लिखते.
इसके लिए आपको जरूर ही किसी प्रूफ रीडर को नियुक्त करना जरूरी है. मेरी सलाह आपको नागवार लग सकती है, कृपया इसे अन्यथा ना लें.
Daulat Singh Chauhan
January 18, 2010 at 7:18 am
मीडिया में जबसे प्रतिस्पर्धा शुरू हुई है, अखबार अौर चैनल मालिकों का बहुधंधी होना आम बात हो गया है। अखबार के धंधे के अलावा अगर उसके मालिक का अौर कोई धंधा है। उस पर यदि सरकार या सत्ता की अोर से कोई हमला होता है अौर वह अखबार उसके खिलाफ कुछ लिखता है तो उसे हमला करने वाला अासानी से यह कहकर खारिज कर सकता है कि खबर गलत है अौर निहित स्वार्थ के वशीभूत लिखी गई है। एेसे में सवाल यह है कि इस दौर में क्या विशुद्ध रूप से अखबार चलाना नामुमकिन हो गया है। क्योंकि स्पर्धा के चलते अखबारों को न तो ग्राहक से पूरे पैसे मिल पा रहे हैं न विज्ञापन से। दोनों ही मोर्चों पर गला काट प्रतिस्पर्धा है। आमजन जिनके िलए लिख कर अखबार सत्ता अौर बाजार की ताकतों से लड़ाई मोल लेता उसे तो इस बात से कोई मतलब ही नहीं है। उसे तो आधी से भी कम कीमत पर बाजार में नया उतरने वाला सस्ते से सस्ता अखबार सच लिखने वाले से ज्यादा िप्रय लगने लगता है। यह कोई नहीं सोचता कि सस्ता बेचने वाला जो लिख रहा है वह जनता के नहीं उसे पैसा देने वाले के हित में लिख रहा है। यही वजह है िक आज अखबारों के भी बकायदा घराने बन गए हैं। वे पब्लिक इशयू लाकर बाजार सै पैसा बटोर रहे हैं। एेसे अखबार भला कैसे बाजार के हितों पर आम जनता के हितों को प्राथमिकता देंगे। इस पर सस्ते अखबारों के पीछे भागने वाले पाठकों को अब विचार करना ही होगा।
Rishi Dixit
January 18, 2010 at 10:51 am
आप बधाई के पात्र हैं जो इतनी मीठी खबर से इतनी बड़ी नेता का मुंह कड़वा कर रहे हैं।
ishant
January 20, 2010 at 7:50 am
chanda wasul ki yeh partha kewal u.p. me hi nahi simit hai… yeh to har state me waypariyo per thopi jaati hai,,, parantu iss parkar ki khabare kinhi karno per hi parkashit ho paati hai….. iss parkar ka sach to har patarkar lik sakta hai., parantu inhe parkashit karne me companiya bahot soch samajh kar kadam uthati hai,,,,,