दलाली पर मीडिया डिबेट का आयोजन तो हो गया लेकिन इस डिबेट में मीडिया वालों ने दलाली में फंसे मीडिया वालों का नाम लेना उचित ना समझा. जितने भी वक्ता थे, सबने नीरा राडिया, ए. राजा. 2जी स्पेक्ट्रम, टेलीकाम स्कैम आदि का उल्लेख बार-बार किया, बाजार को पानी पी-पी कर कोसा, भ्रष्टाचार व दलाली की निंदा करते रहे लेकिन इस क्रम में बरखा दत्त और वीर सांघवी का जिक्र तक नहीं किया गया. सिर्फ एक शख्स ने जिक्र किया पर उनके नाम लेते ही हल्ला मच गया.
मंचस्थ महानुभावों की ओर से कहा जाने लगा कि जो लोग यहां नहीं मौजूद हैं, उनका नाम नहीं लिया जाना चाहिए. फाउंडेशन फार मीडिया प्रोफेशनल की तरफ से दलाली प्रकरण पर मीडिया डिबेट का आयोजन किया गया. ‘Lobbyists, government and media: Dangerous Liaisons?’ विषय पर आयोजित डिबेट में शामिल होने के लिए इंडिया इंटरनेशनल सेंटर के आडिटोरियम में काफी लोग पहुंचे.
सीनियर जर्नलिस्ट एनआर मोहंती ने अपने संबोधन में बरखा और वीर का जिक्र किया तो मंचासीन वरिष्ठ पत्रकारों ने इस पर आपत्ति कर दी. इन लोगों का कहना था कि बरखा वीर का नाम नहीं लिया जाना चाहिए क्यों ये लोग यहां मौजूद नहीं है. पर इन लोगों को कुछ लोगों ने यह कहकर चुप करा दिया कि जब नीरा राडिया और ए. राजा यहां मौजूद नहीं हैं तो उनको नाम क्यों लिया जा रहा है? बरखा दत्त और वीर सांघवी का नाम लेने और न लेने के मामले पर काफी शोर शराबा हुआ.
चंदन मित्रा और मनीष तिवारी का संबोधन गुडी गुडी रहा. विवादित मुद्दे पर बोलने व स्टैंड लेने से बचते रहे. बरखा और सांघवी का नाम इन लोगों ने नहीं लिया. विवेक देबराय ने मीडिया वालों द्वारा सरकार के लिए दलाली किए जाने का जिक्र तो जरूर किया लेकिन मीडिया के बड़े दलालों का नाम लेने से बचते रहे.
कुल मिलाकर सेमिनार पूरी तरह फ्लाप रहा. खाए-पीए-अघाए लोग मंचों पर बैठकर जिस तरह की बातें करते रहते हैं, वैसी ही बातें यहां भी हुईं. ये लोग भी जानते हैं कि उनकी थकाऊ-पकाऊ बातों से कुछ होने जाने वाला नहीं हैं पर इस देश व दिल्ली में ढेर सारे संगठन, ट्रस्ट, संस्थाएं सिर्फ गोष्ठियों, सेमिनारों, आयोजनों के सहारे जिंदा रहती हैं और अपनी सार्थकता का एहसास करने का दिखावा करती हैं, सो ऐसे सेमिनार, डिबेट, गोष्ठियों आदि का आयोजन होता रहेगा और कथित बड़े नाम इसमें मंचासीन होकर कुछ न कुछ बकते रहेंगे. इनके बके को, इनके गाल बजाने को लोग एक कान से सुनकर दूसरे कान से निकाल दिया करेंगे क्योंकि पाखंडपूर्ण भाषण कभी देश व समाज के दिल को नहीं छुआ करते.
kothari dinesh
May 27, 2010 at 5:58 am
ghar me agar gandagi pav pasar rahi he,to samay rahte gharwalo ko uska treatment karana hi hoga. varna ye gandgia pure ghar ko hi ganda sabit kar degi
shashi bhushan
May 23, 2010 at 7:44 am
bilkul sahi likha hai aapne
EKHLAQUE
May 23, 2010 at 8:29 am
BIRADRI KO BIRADRI KI SHIKAYAT PAR NARAZGI HO BHI CHAHIYE. BUT SWAHIIMANI AADMI TO KAHEGA HI. LIHAJA CHOR KO CHOR KAHNA BAHADURI KA KAAM HAI.
Haresh Kumar
June 16, 2010 at 1:13 pm
इन लोगों की कथनी और करनी में बड़ा फर्क होता है। दिन के उजाले में कुछ और कहते हैं और रात के अंधेरे में कुछ और। अपनी जरुरत और पसंद को देखते हुए, स्थान विशेष पर इनका भाषण विशेष होता है और इसके लिए भी ये पैसे लेते हैं। हर चीज पहले से तय होती है, किसको कितना बोलना है और क्या बोलना है. जुवां फिसली तो फिर अगले आयोजन से नाम गायब। रोटी का सवाल है, जो न कराये। मीडिया में काम करने वाला हर बंदा इन लोगों को पहचानता है।