एक बात मैं बोलना चाहती हूं, खुशवंत सिंह और अतुल अग्रवाल के प्रकरण में। जितनी बात ये सच है कि हम हिंदुस्तानी सेक्स के मामले में जितने हिप्पोक्रेटिक और डबल स्टैंडर्ड हैं, उतने ही डबल स्टैंडर्ड हैं हम हिंदू देवी-देवता या हिंदू संतों या साध्वियों के क्रिटिसिज्म में। दरअसल, हम बड़े आराम से यह कह देते हैं कि गुजरात दंगों में मुस्लिमों को मारा गया। सारा देश उन्हें न्याय दिलाने में लग गया है पर क्या कोई स्वात से भगाए गए हिंदुओं और सिखों के लिए कंपेनिंग कर रहा है? दूसरी हमारी पत्रकारिता का लहजा बहुत खराब हो गया है। खुशवंत सिह से आप असहमत हो सकते हैं पर उन्हें गाली देने का कोई प्वाइंट नहीं बनता।
वैसे, खुशवंत सिंह ने अपनी बेटी के बारे में भी लिखा है, बड़ी बेबाकी से, जब वो टीन एज के दौर से गुजर रही थी। अपनी मां को लेकर वो आबेस्ड नहीं हैं, इसलिए आप उनको मां की गाली दे दें, उन्हें फर्क नहीं पड़ता। ये डिस-क्वालीफिकेशन नहीं, इसे मैं क्वालीफिकेशन मानती हूं। इसका मतलब है कि आप डी-अटैच्ड हैं, जो गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है। पर खुशवंत जी को भी इस तरह की बातें उमा भारती, साध्वी प्रज्ञा के बारे में नहीं कहना चाहिए था।
रही बात उनके ”कंपनी आफ वोमेन किताब” की तो उन्होंने जो लिखा है, उसी तरह से ज्यादातर पुरुष स्त्रियों के बारे में सोचते हैं लेकिन जब सामने बोलने की बात आती है तो हम ची-ची करते हैं। मैंने प्रायः हर सभ्य आदमी को मां-बहन की गाली देते देखा है। वो क्या है? मीडिया में ही आप ले लें, पीएचडी स्टूडेंट्स के बारे में बात कर लें, किसी भी फील्ड यहां तक कि राजनीति भी, क्या ये जगह महिलाओं के लिए सुरक्षित है? किसी भी समाज में रात के अंधेरे में औरतों के लिए सुरक्षा नहीं है। मतलब खुशवंत सिंह से भी बड़े खतरनाक लोग इस समाज में हैं। अतुल जी उनके बारे में क्यों नहीं लिखते?
यह टापिक काफी लंबा-चौड़ा है। मेरा बस यही कहना है कि खुशवंत सिंह ने अगर चारों औरतों के बारे में सेक्सुअली कुछ एक्स्ट्रीम लिख कर गलत किया है तो अतुल जी ने जिस भाषा का प्रयोग किया है वो बहुत सही बात नहीं है। फिर अतुलजी रेड लाइट एरिया में बिकने वाली उन औरतों के बारे में क्या कहेंगे जिन्हें भेड़ बकरी की तरह से आज भी सभ्य समाज में बेचा जाता है। इसमें सारा समाज मिला हुआ है, कुछ आंख बंद करके कुछ आंख खोल कर। उनके बारे में आप क्या कहेंगे? आजकल हम कुछ भी पाजिटिव सोचना ही बंद कर चुके हैं। जरा पाजिटिव सोचें, समाज और अपने सेहत के लिए ये बहुत जरूरी है।
-माधवीश्री
स्वतंत्र पत्रकार और पत्रकारिता शिक्षक
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