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दिल्ली प्रेस व परेशनाथ से जेपी ने नाता तोड़ा

[caption id="attachment_17336" align="alignleft" width="71"]जयप्रकाश पांडेयजयप्रकाश पांडेय[/caption]सेलरी स्ट्रक्चर में गड़बड़ी के कारण दुखी होकर संस्थान छोड़ने की चर्चा : अपने करियर और जिंदगी के कीमती 14 वर्ष दिल्ली प्रेस के नाम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार और दिल्ली प्रेस के पब्लिशिंग एडिटर जयप्रकाश पांडेय ने इस्तीफा दे दिया है. दिल्ली प्रेस के मालिक परेशनाथ के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे और उनके हित में सक्रिय रहे जेपी पांडेय ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया, इसको लेकर कई तरह के कयास हैं.

जयप्रकाश पांडेय

जयप्रकाश पांडेय

जयप्रकाश पांडेय

सेलरी स्ट्रक्चर में गड़बड़ी के कारण दुखी होकर संस्थान छोड़ने की चर्चा : अपने करियर और जिंदगी के कीमती 14 वर्ष दिल्ली प्रेस के नाम करने वाले वरिष्ठ पत्रकार और दिल्ली प्रेस के पब्लिशिंग एडिटर जयप्रकाश पांडेय ने इस्तीफा दे दिया है. दिल्ली प्रेस के मालिक परेशनाथ के साथ चट्टान की तरह खड़े रहे और उनके हित में सक्रिय रहे जेपी पांडेय ने अचानक इस्तीफा क्यों दिया, इसको लेकर कई तरह के कयास हैं.

बताया जा रहा है कि दिल्ली प्रेस में हिंदी और अंग्रेजी मैग्जीनों के बीच जबर्दस्त सेलरी डिफरेंस के कारण जेपी पांडेय नाखुश थे और उन्होंने प्रबंधन के सामने हिंदी वालों के साथ दोयम बर्ताव न करने की बात कई बार उठाई. प्रबंधन को सेलरी के मुद्दे पर जेपी पांडेय का आक्रामक रुख रास नहीं आया. साथ ही, सेलरी डिफरेंस कम करने की दिशा में प्रबंधन ने कोई कदम भी नहीं उठाया. इससे खफा जेपी ने इस्तीफा दे दिया.

उल्लेखनीय है कि दिल्ली प्रेस की मैग्जीन कारवां में लंबे चौड़े पैकेज पर लोग नियुक्त किए गए हैं जबकि हिंदी पत्रिकाओं में बेहद कम सेलरी पर लोग काम करते हैं. बताया तो यहां तक जाता है कि अंग्रेजी वालों की सेलरी में जितना इनक्रीमेंट हुआ है, हिंदी वालों की कुल सेलरी ही उतनी है. जेपी पांडेय 14 साल पहले जब दिल्ली प्रेस से जुड़े तो उस समय स्थितियां और भी खराब थीं लेकिन उनकी पहल पर काफी कुछ चीजें सुधरीं. पर हिंदी-अंग्रेजी के मीडियाकर्मियों के बीच जो सेलरी का गैप है, वह बड़ा मुद्दा बन चुका है. सूत्रों का कहना है कि अंग्रेजी वाले कर्मियों को टैक्सफ्री सेलरी दी जा रही है तो हिंदी वालों की सेलरी से टैक्स काटा गया. इन्हीं सब चीजों से जेपी पांडेय का मोहभंग हो गया और उन्होंने समझौता करने की जगह प्रबंधन को अपना इस्तीफा भेज दिया.

भड़ास4मीडिया ने जब जेपी पांडेय से इस बारे में संपर्क किया तो उन्होंने सिर्फ इतना कहा- ‘हां, मैं इस्तीफा दे चुका हूं. मैंने दिल्ली प्रेस और परेशनाथ जी के साथ जुड़कर काफी कुछ सीखा व पाया. मेरी शुभकामनाएं इस समूह के साथ हैं.’ उनसे जब इस्तीफा देने के कारण के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कुछ भी कहने से इनकार कर दिया. आगे की योजना के बारे में जयप्रकाश पांडेय ने कहा कि दो-तीन जगहों से नौकरी के आफर हैं लेकिन वे अब नौकरी नहीं करना चाहते. खुद का एक टैबलायड वीकली अखबार लांच करने की योजना बना रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि 9 भाषाओं में 31 पत्रिकाओं के प्रकाशन के साथ देशभर के करोड़ों पाठकों के बीच पहुंचने वाले दिल्ली प्रेस पत्रिका समूह में पहली बार कोई पत्रकार पब्लिशिंग एडिटर बना. जेपी दिल्ली प्रेस के 70 सालों के इतिहास में इस पद तक पहुंचने वाले पहले पेशेवर पत्रकार हैं. महज 17 साल की उम्र में पत्रकारिता शुरू करने वाले जय प्रकाश पाण्डेय दिल्ली प्रेस ज्वाइन करने से पहले वाराणसी से प्रकाशित ‘स्वतंत्र भारत’ व ‘गांडीव’ तथा दिल्ली में फीचर एजेंसी ‘न्यूज ट्रस्ट आफ इंडिया’ से जुड़े थे.

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0 Comments

  1. arvind kumar singh

    April 27, 2010 at 2:34 pm

    jp jaise pratibadh aur imandar patrkar ki apni alag haisiyat hai.is ghatnakram se dilli press ko bhavishya me pachtava hoga.jp ne jitne samarpit bhav se kam kiya hai,uski jitni sarahne ki jaye kam hai.jp jaldi hi achhi jagah par honge. hamari shubhkamna hai.

  2. SUBHASHISH ROY

    April 27, 2010 at 3:57 pm

    R Sir,
    Its deprssing news for us. But hope that your new project will compansete the gap very soon.
    Best wishes.
    Subhashish Roy,
    Jharkhand.

  3. RRT

    April 28, 2010 at 10:57 am

    Jai Prakash bhaiya ke sath pure desh ki shubhkamna hai. Inka kuchh nahin bigadega aur inhen bahut jald isase bhi bada ohda milega.

  4. shashi

    April 29, 2010 at 3:12 pm

    J P Bhai maine suna hai ki aap koi weekly newspaper nikalne ki soch rahe hai. Meri aapko salah hai ki aap viklang bankar editor ki post par na baithe balki aap kisi achchhe news channel ya news paper se jude. tabhi aap ki kad kathi ko shoot karega.

  5. ANIL

    April 29, 2010 at 6:13 pm

    Delhi Press me jai prakash ji ka etane dino tak tike rahana hi aashcharya ki bat hai.Ve bade aur yogya JOURNALIST hai.Arvind kumar singh jaise sr journalist ne unke bare me thik likha hai.Jaha tak delhi press ki bat hai,usake editor ILNA ke self style president hai,per patrakaro ka shoshan unka dharm hai..
    Paiso ke liye eman khona waha ki purani kahani hai.
    Best wishes for J.P. ji

    ANIL

  6. shashi

    April 30, 2010 at 6:00 pm

    Jai prakash bhai aap achche patrakar hai ya nahi thik se nahi kah paunga but aapko delhi press me jo kuchh mila vo sab chamcha giri ke bal par mila.

  7. Sharif Omer - Secy - Bihari NRI Sabha - Saudi Arabia

    May 1, 2010 at 10:07 am

    I dont know much about Delhi Press, but I know Mr. Pandey’s contribution in making our beloved Saras Salil as India’s top magazine. I saw him in a few events back home too. It is a great loss to the readers who always used to look forward to his writeups in Saras Salil. I am surprised, Saras Salil’s staff should also face this sort of salary discrimination against very very small english magazine staff – strange, I think the owners would realise their mistake and invite back Mr. Pandey to join again. Good people are not found everyday. Omer

  8. sunita

    May 3, 2010 at 11:22 am

    Delhi Press me maine bhi kaam kiya hai.J.P.ji ne hamesha waha her kisi ki madad hi ki hai.Editorial staff ko jitna samman unake wakt me mila,pahle kabhi nahi tha.jaha tak hindi-english patrakaro ko milane wale paise ki bat hai,unhone hamesha dono ki barabari ka dhyan rakha.
    kya yeh such nahi ki WOMENS ERA ke incharge ki salary aaj bhi 30000 bhar hai.kewal paresh nath ke bete ke staff ki salary hi lakho me hai.
    jaha tak wym jaise logo ki bat hai,,,,,jo patrakarita me kewal pet bharane aate hai aur jinka makasad bahati ganga me hath dhona hota hai…uname va bhikhariyo me ferk kya hota hai.
    ve dharm aur dharmatma aur J.P. dwara Delhi Press ke liye kiye gaye yogdan ko kya samjhenge.
    Aiso per sirf taras hi khaya ja sakata hai.

  9. आदित्य कुमार श्रीवास्तव

    May 7, 2010 at 5:25 am

    मै भी कभी देल्ली प्रेस मै एक कोरेस्पोंडेंट की हेसियत से एक साल कम कर चूका हु सिर्फ छः महीने मे मेरी सेलरी बढ़ा दी गयी और ऑफर लेटर भी दे दिया गया मुझे नहीं पता ये किसकी मेहरबानी थी पर मुझे बताया गया की परेश नाथ मेरे प्रदर्शन से खुश है ये मेरे मेहनत और प्रतिभा का पुरष्कार था समस्या ये थी की दिवेश नाथ मेरे बौस थे और मेरा इन्क्रीमेंट परेश नाथ ने किया था ! मुझे नहीं पता था की इन दोनों मे आपसी खटपट चलती है समस्या वहा शुरु हुई जब आर्ट फिल्ड कवर करने वाली एक महिला कर्मी ने इस्तीफा दे दिया और कुछ दिनों के लिए मुझे ये कार्यभार भी सौप दिया गया मैंने लगातार कई नामी कलाकारों का साक्षात्कार लिया और छपा पर यह काम मेरे जमीर के खिलाफ था इसलिए की हर साक्षात्कार के लिए मुझे कलाकारों से उसकी एक महँगी पेंटिंग मांगने को कहा जाता था मैंने कई सारे पेंटिंग्स लाये भी पर मै दुखी था इसलिए की अब मै पत्रकार नहीं था एक दलाल हो गया था पेंटिंग लाने वाला दलाल ….मुझे नहीं पता दिवेश नाथ को किसने क्या कहा..पर एक दिन उन्होंने अपने केबिन मै बुला कर मुझे डाटा और नौकरी से निकाल दिया…इस ग्रुप मे चारो तरफ गन्दी राजनीति फैली है और कौन कब किसके खिलाफ क्या कर देगा कोई नहीं जानता …हलाकि इससे कम्पनी को कोई नुक्सान नहीं होता क्योंकि पत्रकार कुकुरमुत्तो की तरह मौजूद है जो एक अदद नौकरी की तलाश मे रहते है पर इतना तय है की ये ग्रुप विश्वासपात्र और योग्य कर्मचारियों को खोता जा रहा है विश्वनाथ जी द्वारा स्थापित एक पवित्र संस्था को अब गाली भी दी जातीहै

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