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मीडियावाले ने मरने से बचा लिया उन्हें

रोहतक के पत्रकार धीरेंद्र के जज्बे को सलाम : पत्रकार धीरेंद्र हरियाणा के रोहतक शहर में रहते हैं. कलमकारों के बारे में कहा जाता है कि उनके अंदर जमाने भर की संवेदना-संवेदनशीलता होती है. उन्होंने यह साबित भी किया. धीरेंद्र की आंखों के सामने सड़क हादसे में एक परिवार के कई लोग सड़क पर इधर-उधर बेहोश गिर पड़े. कार वाले ने स्कूटर सवार दंपति को टक्कर मार दी थी. धीरेंद्र बेहोश पड़े बच्चों-परिजनों को अस्पताल ले गए. सबसे छोटा बच्चा न बच सका. बाकी सभी ज्यादा चोट के बावजूद समय से अस्पताल पहुंचने से खतरे से बाहर हैं. धीरेंद्र ने पूरे वाकये को लिखकर भड़ास4मीडिया के पास भेजा है. धीरेंद्र ने जिस संवेदनशीलता का परिचय दिया, उसके कारण पूरी पत्रकार बिरादरी को उन पर गर्व है. पूरे घटनाक्रम को धीरेंद्र के शब्दों में पढ़िए. -एडिटर

<p align="justify"><font color="#003366">रोहतक के पत्रकार धीरेंद्र के जज्बे को सलाम : </font>पत्रकार धीरेंद्र हरियाणा के रोहतक शहर में रहते हैं. कलमकारों के बारे में कहा जाता है कि उनके अंदर जमाने भर की संवेदना-संवेदनशीलता होती है. उन्होंने यह साबित भी किया. धीरेंद्र की आंखों के सामने सड़क हादसे में एक परिवार के कई लोग सड़क पर इधर-उधर बेहोश गिर पड़े. कार वाले ने स्कूटर सवार दंपति को टक्कर मार दी थी. धीरेंद्र बेहोश पड़े बच्चों-परिजनों को अस्पताल ले गए. सबसे छोटा बच्चा न बच सका. बाकी सभी ज्यादा चोट के बावजूद समय से अस्पताल पहुंचने से खतरे से बाहर हैं. धीरेंद्र ने पूरे वाकये को लिखकर भड़ास4मीडिया के पास भेजा है. धीरेंद्र ने जिस संवेदनशीलता का परिचय दिया, उसके कारण पूरी पत्रकार बिरादरी को उन पर गर्व है. पूरे घटनाक्रम को धीरेंद्र के शब्दों में पढ़िए. -एडिटर</p>

रोहतक के पत्रकार धीरेंद्र के जज्बे को सलाम : पत्रकार धीरेंद्र हरियाणा के रोहतक शहर में रहते हैं. कलमकारों के बारे में कहा जाता है कि उनके अंदर जमाने भर की संवेदना-संवेदनशीलता होती है. उन्होंने यह साबित भी किया. धीरेंद्र की आंखों के सामने सड़क हादसे में एक परिवार के कई लोग सड़क पर इधर-उधर बेहोश गिर पड़े. कार वाले ने स्कूटर सवार दंपति को टक्कर मार दी थी. धीरेंद्र बेहोश पड़े बच्चों-परिजनों को अस्पताल ले गए. सबसे छोटा बच्चा न बच सका. बाकी सभी ज्यादा चोट के बावजूद समय से अस्पताल पहुंचने से खतरे से बाहर हैं. धीरेंद्र ने पूरे वाकये को लिखकर भड़ास4मीडिया के पास भेजा है. धीरेंद्र ने जिस संवेदनशीलता का परिचय दिया, उसके कारण पूरी पत्रकार बिरादरी को उन पर गर्व है. पूरे घटनाक्रम को धीरेंद्र के शब्दों में पढ़िए. -एडिटर

अक्षित को न बचा पाने का मलाल है मुझे

-धीरेंद्र कुमार-

सिर्फ पत्रकार ही नहीं इंसान भी हैं हम : बात अपने मुंह मियां मिट्ठू बनने की है, लेकिन कहूंगा जरूर। लोगों का रवैया पत्रकारों के प्रति नकारात्मक होता जा रहा है, कुछ वाजिब कारण भी हैं और कुछ धारणा बन चुकी है। हमारे बारे में सोच है कि पत्रकार बने फिरते हैं हम, आत्मा खबरों के नीचे दब चुकी है। हर घटना और हादसे को खबर के नजरिए से देखते हैं और उस हादसे में लीड न्यूज की संभावनाएं तलाशते हैं, हमारी आत्माएं जो मर चुकी होती हैं, क्योंकि हमें खबर के अलावा कुछ नहीं सूझता और हमें इसके अलावा कोई सोचने भी नहीं देता। ऐसा कुछ सोचने से पहले जरा ये भी पढ़िए। लोगों की धारणा के विपरीत पहली बार एहसास हुआ है कि हम पत्रकार से पहले इंसान हैं और आत्मा भी जग गई, इसका मुझे गर्व भी है, लेकिन दुख ज्यादा।

दरअसल रोहतक शहर के सेक्टर-1 में आंखों के सामने हुए एक सड़क हादसे ने इस कदर झझकोरा की कैमरा और कलम कहां होते हैं, कुछ याद नहीं रहा। पूरा परिवार बाइक पर सवार होकर बाजार जा रहा था कि सामने से आ रही अनियंत्रित इनोवा गाड़ी ने टक्कर मार दी और पति-पत्नी और दो बच्चे हवा में तकरीबन 10 फीट उपर उछल गए। दृश्य चूंकि आंखों के सामने था, इसलिए हादसे को अंजाम देकर भागने की फिराक में गाड़ी चालक को दबोचने की कोशिश की, लेकिन उसकी गाड़ी का सामने का हिस्सा जमीन पर टकराने की वजह से अपने आप रूक गया। इसलिए घायलों की तरफ भागा, पहले बच्चे को उठाया, जिसकी उम्र तकरीबन 4 साल थी, बेहोश था। फिर महिला को उठाने की जहमत की, लेकिन अकेले से कुछ नहीं बन पाया, कपड़े भी फट गए थे, उपर से बेहोश थी। दूसरी महिला की मदद ली, लेकिन करें क्या! अस्पताल ले जाने के लिए पहले साधन का इंतजाम किया, एक भला आदमी था, झट से अपनी गाड़ी पास में लगा दी।

महिला का पति भी बुरी तरह से घायल था, लेकिन उसे होश था। मुझसे हाथ जोड़कर अपने बच्चों के बारे में पूछा! मैने कहा सब ठीक है, आपकी पत्नी भी और बेटा भी। छोटा बेटा कैसा है, यह सवाल सुनते ही मैं बगैर जवाब दिए इधर-उधर देखने लगा, सड़क के कोने में फुटपाथ से सटा हुआ बच्चा मुझे दिखाई दिया, झट से उसे उठाया, शायद वो भी अपने भाई और मां की तरह बेहोश था, जैसा मैने सोचा। दोनों बच्चों और उनके मां-बाप को गाड़ी में डालकर मेडिकल में चला तो रास्ते में बच्चे को गोद में लिए हुए उसकी स्थिति पर कुछ अजीब-सा लगा। सांस शायद थम चुकी थी। मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी। जैसे-तैसे कर रोहतक पी.जी.आई. मेडिकल पहुंचा तो डाक्टरों ने इलाज शुरू कर दिया, लेकिन मेरी सबसे ज्यादा चिंता एक साल के छोटे बच्चे अक्षित के प्रति थी, हुआ भी वही।

अक्षित की धड़कन चेक करने के बाद डाक्टरों ने मुझे सिर्फ सॉरी कहा। मैं बेदम-सा बाहर आ गया, कुछ देर सन्न रहकर मैं बड़े बच्चे आर्यन के पास पहुंचा, वो होश में आ गया था और छोटी-मोटी चोट से कराह तो रहा था, लेकिन खतरे से बाहर था। बच्चों की मां सुमन के पास जाकर देखा तो वह होश में आ चुकी थी, लेकिन उसे चोट इतनी थी कि वह ये भी नहीं जान पाई कि उसके बच्चे और पति कैसे हैं। खैर, यहां भी कुछ सुकून मिला, लेकिन सुमन का पति अनिल बेशक होश में था, लेकिन उसके पैर में बुरी तरह से चोट आई हुई थी और बार-बार अपने बच्चों के बारे में पूछ रहा था। मैंने उसे यही जवाब दिया कि सब ठीक है, आप चिंता मत कीजिए। मैंने उन्हे झूठ बोला, शायद मेरा झूठ ही ऐसे हालात में उनके लिए सुकून का जवाब था। बाद में मैंने उनके परिवार को फोन करके मेडिकल बुला लिया और उनकी देखभाल उनके हवाले कर वापिस घर आ गया।

इस घटना के बारे में बाद में स्थानीय मीडिया को पता चला तो कवरेज के लिए घटनास्थल पर पहुंचे। लेकिन मौके पर होने के बावजूद मेरे पास कोई कवरेज नहीं थी, पीड़ित परिवार के नाम का भी बाद में ही पता किया था, जब मेडिकल में पर्ची बनवाई। पहली बार एहसास हुआ कि खबर से पहले भी कोई जिम्मेदारी होती है। लग रहा है कि अच्छा काम किया, आरोपी भी पकड़ में आ गया और तीन लोगों को बचा लिया, लेकिन उससे भी बड़ा दर्द है कि अक्षित को नहीं बचा पाया! सोचता हूं काश! मैं डाक्टर होता, तो शायद रास्ते में कृत्रिम सांस दे पाता, जानते हुए भी कि अक्षित को सिर में अंदरूनी चोट लगी हुई थी, पर फिर भी दिल इस बात को मानने को तैयार नहीं।

आज पहली बार महसूस हुआ कि हम खबरों को जिस ढंग से प्रस्तुत करते हैं वह हमारा धंधा है। लोग हमें बेशक कठोर समझे, लेकिन हमारे अन्दर का इंसान मरा नहीं है। आज हुए इस हादसे के बाद तो लगता है शायद हमारा हृदय ही आम आदमी की अपेक्षा अधिक विचलित है, वैसे भी ऐसे मामलों में पुलिस की कागजी कार्रवाई भले आदमी को पीछे रहने के लिए विवश कर देती है।

अब तो यही सोचता हूं काश! अक्षित को बचा पाता। भगवान उसकी आत्मा को शांति दे।

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0 Comments

  1. RAJIV

    March 12, 2010 at 12:38 pm

    धीरेंद्र जी, आपको ढेर सारी बधाई, इसीलिए कहा जाता है कि इंसानियत कभी नहीं मरती। आप साधुवाद के पात्र हैं। आपने पत्रकारों की लाज बचाई है

  2. dr satish tyagi

    March 12, 2010 at 10:21 am

    ek aise daur main jab patrakarita kuchh logo ki vajah se aam logo ki najro main pratistha kho rahi hai ,dhirender jaise yuva mujhe aaswast karte dikhte hain ki nirash hone ki jaroorat nahi hai.dhirender ko main vyaktigat roop se jaanta hun,un se yahi ummeed thi.he upholds the values of ideal journalism.may god bless him.

  3. deepak bhardwaj

    March 12, 2010 at 7:25 am

    dear yashwant, plz provide dherender`s contact number, we want to talk with him. he doing best of a jounalistic life.
    plz.

  4. jeetu

    March 12, 2010 at 8:07 am

    welldone dhirendra bhai. mujhe aapka anubhav apna lag raha hai, main bhi aise haalaat se gujra hoon.ek patrakar hone k nate humko aap par abhiman hai.

    achha hota aapse baat kar pata. yashwant ji agar dhirendra ji ka phone ho to dijeyega.

  5. rachna

    March 11, 2010 at 11:23 pm

    dhirendra ji, hoon to main bhi media mein lekin kam hi media walo ko pasand karti hoon. kyuki ab to media mahez paise kamane ka ek dhanda bankar reh gaya hai. lekin aapka ye jajba wakai mein aapko samman ka hakdar bana deta hai. aapke is punya kaam ka fal bhagwan aapko jaroor dega, aisa mera vishvas hai…

  6. rachna

    March 11, 2010 at 11:24 pm

    good dhirendra ji keep it up….

  7. deepak khokhar rohtak

    March 11, 2010 at 10:17 pm

    balkfu;r dk blls cM+k mnkgj.k vkSj dksbZ ugha gks ldrkA /khjsanz HkkbZ vkius ftl ftEesnkjh ds lkFk dke fd;k] ml tTcs dks lyke

  8. Raju

    March 11, 2010 at 11:42 am

    प्रिय धीरेंद्र, पूरे पत्रकारों को ही नहीं देश-भर की सभी जीवित आत्माओं को आप पर गर्व है । पत्रकारिता में सही ख़बर देना पत्रकार का धर्म होता है लेकिन आपने उससे भी ब़ड़ा धर्म निभाया है – मानव धर्म का । आपकी बेहद संवेदनशीलता और भावुकता आपकी वर्णित पंक्तियों में स्पष्ट अनुभव हो रही है ।
    अक्षित के न बच पाने के दुख से मेरा मन भी भारी हो उठा है । ईश्वर ने शायद उसकी जीवन यात्रा इतनी ही लिखी थी – मन समझाने के लिए यही बातें उठ रही होगीं । वही दिल्ली जैसे महानगरों की कई बड़ी सडकों पर हर माह न जाने कितनी दुर्धटनाएं होती हैं और उनमें से कितने ही लोग काल-कवित हो जाते हैं । इनमे बहुत से बचाए जा सकते हैं अगर कोई धीरेंद्र जैसा इंसान वहां पंहुचता रहे ।
    धीरेंद्र भाई प्रणाम है , सलाम है आपको और आपकी भावनाओं को ।

  9. bhopali

    March 11, 2010 at 10:05 am

    aapko salam aur hamesha aise moko par insaniyat ka farz hum sab patrkar nibhay aisi asa hai.

  10. n

    March 11, 2010 at 9:18 am

    jyada kuch kehte banta nahin par na jane kyon aankhein nam hone ko hain, pata nahin kyon, shayad samvedna apne insaan hone ka aahsaas karva rahi hai.
    aap ke liye bahut bahut shubhkamnaein, bahut bahut aashirwaad. khush raho dost.

  11. jayanti sarathe

    March 11, 2010 at 8:13 am

    apke jajbe ko salam.

  12. jayanti sarathe

    March 11, 2010 at 8:11 am

    >:(:D:( dheerender ji apne sahi kaha ki reporter aj pehle insan hai . log bhale ab hum patrkaro ko savedanheen kehte ho lekin aj bhi savedna hum patrkaro mai he hai. abhi bhi hamre pass ek mishan hai samaj ko har terh se jagruk karna. logo ke madad karna.

  13. ANUJ NARWAL

    March 11, 2010 at 7:16 am

    DOST AAPKE IS JAJBE KO DEKH KAR YE KAHUGA KI AAJ AAP SESE LOGO KI SAKAT JARURAT HAI. KHASTOR PAR MEDIA ME.

  14. Anil Dubey

    March 11, 2010 at 5:41 am

    Dheerandra bhai,
    hum sabhi ko aap par garv hai, aap sacche patrkar hai
    sabhi ko aapse prena leni chahiye

  15. deepak khokhar rohtak

    March 12, 2010 at 10:38 pm

    dhirender ji aapke jajbe o salam.

  16. Rishi Naagar

    March 12, 2010 at 11:24 pm

    Hats off to you!

  17. ALOK PURANIK

    March 12, 2010 at 11:34 pm

    बहुत सही जी। जमाये रहिये इसी तरह अपने जज्बे को।

  18. payal

    March 13, 2010 at 12:51 am

    dheerendra jee ko medis salaam karti hai….

  19. RAVI MALIK

    March 13, 2010 at 5:11 am

    DHIRENDER BHAI ! HAMEN GARV HAI AAP PAR ! AAPKO SALAM[b][/b]

  20. Sunil Balyan

    March 13, 2010 at 12:49 pm

    Dear Dhirender,
    Good work! I salute you for your wonderful work.Moreover its a positive step to improve Media Image in public eye.I think others should learn a lesson from remarkable work.
    My condolence to the victim family
    God bless you

  21. tarun

    March 13, 2010 at 6:37 pm

    cheers dhirendra…i proud of ur friendship. asli journalist ban gaye ho tum. log tumhara number maang rahe hain.
    anyone want to communicate 2 dhirendra his contact below.

    [email protected], 09813172122.

    thank`s again

  22. Rajesh Bhar

    March 14, 2010 at 5:12 am

    ajj kal bahut kam asey reporter hain jinkey andar insaniyat bachi hai… but muhey garv hai ki rohtak ka reporter dhirender unmey se ek hai……… we r proud of him.

  23. satyendra kumar

    March 14, 2010 at 7:11 am

    shabash dhirendra bhai.hame patrakar ke sath aadmi hone ki bhi jarurat hai. aapne bata diya.

    satyendra
    Jamshedpur.

  24. Ankit Mathur

    March 15, 2010 at 5:15 am

    धीरेन्द्र, आपके जज़्बे को सलाम.

  25. Pardeep Sahu

    March 15, 2010 at 5:46 am

    DHIRENDER BHAI ! aaj ke jamane me ese patarkar bahut he kam hai.

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