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अपडेट (अंतिम) : अदालतों को अतिवाद से बचना चाहिए

हिंदुस्तान, मेरठ के आरई को जेल भेजे जाने की घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया : दिनेश मिश्रा की पहली छवि जो मेरे दिमाग में उभरती है, वह यह कि वे सीधे-सज्जन, संयत और कम बोलने वाले इंसान हैं। उनसे मेरा पहला परिचय लखनऊ में हुआ। तब मैं लखनऊ में पत्रकार बनने की लालसा से आया था। दिनेश मिश्रा उन दिनों दैनिक जागरण, लखनऊ में बतौर रिपोर्टर कार्यरत थे। उनसे हजरतगंज स्थित दुर्गा दादा की कम्युनिस्ट पार्टी वाली लिट्रेचर की दुकान पे अक्सर मुलाकात हुआ करती थी। बाद में जब मैंने दैनिक जागरण, लखनऊ ज्वाइन किया तो अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले दिनेश दैनिक जागरण छोड़कर भास्कर की तरफ कूच कर गए थे। उनके बारे में सूचनाएं मिलती रहती थीं पर बात नहीं हुई। ग्वालियर से उन्होंने भास्कर के स्थानीय संपादक पद से इस्तीफा दिया तो उनसे फोन पर एक बार बात हुई, इस्तीफे वाली खबर की पुष्टि के लिए। उन दिनों भी दिनेश मिश्रा और उनका परिवार एक बड़े हादसे से दो-चार हो चुका था।

<p align="justify"><strong>हिंदुस्तान, मेरठ के आरई को जेल भेजे जाने की घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया : </strong>दिनेश मिश्रा की पहली छवि जो मेरे दिमाग में उभरती है, वह यह कि वे सीधे-सज्जन, संयत और कम बोलने वाले इंसान हैं। उनसे मेरा पहला परिचय लखनऊ में हुआ। तब मैं लखनऊ में पत्रकार बनने की लालसा से आया था। दिनेश मिश्रा उन दिनों दैनिक जागरण, लखनऊ में बतौर रिपोर्टर कार्यरत थे। उनसे हजरतगंज स्थित दुर्गा दादा की कम्युनिस्ट पार्टी वाली लिट्रेचर की दुकान पे अक्सर मुलाकात हुआ करती थी। बाद में जब मैंने दैनिक जागरण, लखनऊ ज्वाइन किया तो अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले दिनेश दैनिक जागरण छोड़कर भास्कर की तरफ कूच कर गए थे। उनके बारे में सूचनाएं मिलती रहती थीं पर बात नहीं हुई। ग्वालियर से उन्होंने भास्कर के स्थानीय संपादक पद से इस्तीफा दिया तो उनसे फोन पर एक बार बात हुई, इस्तीफे वाली खबर की पुष्टि के लिए। उन दिनों भी दिनेश मिश्रा और उनका परिवार एक बड़े हादसे से दो-चार हो चुका था। </p>

हिंदुस्तान, मेरठ के आरई को जेल भेजे जाने की घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया : दिनेश मिश्रा की पहली छवि जो मेरे दिमाग में उभरती है, वह यह कि वे सीधे-सज्जन, संयत और कम बोलने वाले इंसान हैं। उनसे मेरा पहला परिचय लखनऊ में हुआ। तब मैं लखनऊ में पत्रकार बनने की लालसा से आया था। दिनेश मिश्रा उन दिनों दैनिक जागरण, लखनऊ में बतौर रिपोर्टर कार्यरत थे। उनसे हजरतगंज स्थित दुर्गा दादा की कम्युनिस्ट पार्टी वाली लिट्रेचर की दुकान पे अक्सर मुलाकात हुआ करती थी। बाद में जब मैंने दैनिक जागरण, लखनऊ ज्वाइन किया तो अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले दिनेश दैनिक जागरण छोड़कर भास्कर की तरफ कूच कर गए थे। उनके बारे में सूचनाएं मिलती रहती थीं पर बात नहीं हुई। ग्वालियर से उन्होंने भास्कर के स्थानीय संपादक पद से इस्तीफा दिया तो उनसे फोन पर एक बार बात हुई, इस्तीफे वाली खबर की पुष्टि के लिए। उन दिनों भी दिनेश मिश्रा और उनका परिवार एक बड़े हादसे से दो-चार हो चुका था।

दिनेश मिश्रा के लिए पिछले डेढ़ बरस काफी परेशान करने वाले रहे। जमीन से उठकर संपादक की कुर्सी पर पहुंचे इस मेहनती और प्रतिभावान पत्रकार पर भीमकाय दुख ने तब धावा बोला जब वे सपरिवार वर्ष 2008 के नवंबर महीने में करनाल के एक मंदिर में दर्शन के लिए गए थे। भगवान को जाने क्या मंजूर था कि उनकी कार का एक्सीडेंट एक ट्रैक्टर से हो गया। दिनेश मिश्रा तो कम चोटिल हुए पर उनकी पत्नी बुरी तरह जख्मी हो गईं। वे काफी दिनों तक बेहोश रहीं और कई महीनों तक आईसीयू में नाजुक स्थिति में पड़ी रहीं। अब भी वे डाक्टरी सलाह से बेड रेस्ट पर हैं। दिनेश दर्शन करने इसलिए जा रहे थे क्योंकि उनका तबादला दैनिक भास्कर, पानीपत के संपादक पद से दैनिक भास्कर, ग्वालियर के संपादक पद पर किया गया था। वे नई जगह काम संभालने जाने से पहले जो कुछ हो रहा है, उसके लिए भगवान को शुक्रिया कहने गए थे। दर्शन करके पानीपत लौटते वक्त दुर्घटना हुई थी।

उस दुःस्वप्न से उबर रहे दिनेश मिश्रा और उनके परिवार को यह नया झटका लगा है। उन्हें एक ऐसे मामले में जेल जाना पड़ा है जिनमें वे सीधे तौर पर इनवाल्व नहीं हैं। जिस रिपोर्टर ने खबर लिखी, वो तो अग्रिम जमानत कराकर बच गया पर दिनेश मिश्रा पूरे मामले को गंभीरता से न लेने के कारण जेल चले गए। एक खराब परंपरा अपने मीडिया हाउसों में है कि जब कोई रिपोर्टर या संपादक संस्थान छोड़ देता है तो उसके मुकदमें की पैरवी करना भी संस्थान बंद कर देता है। रिपोर्टर या संपादक को खुद झेलना पड़ता है। अमर उजाला, पंजाब से कई रिपोर्टर जब कुछ वर्ष पहले दैनिक जागरण में आ गए तो भी अमर उजाला में काम करने के दौरान खबरों के कारण हुए मुकदमों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा। ये रिपोर्टर आज भी अपनी-अपनी तारीखों पर पंजाब की अदालतों के चक्कर लगाते रहते हैं। ऐसा लगभग हर एक मीडिया हाउस में है। दिनेश मिश्रा का मामला सभी पत्रकारों-संपादकों के लिए चेतावनी भी है कि अगर उन पर कोई मुकदमा है तो वे उसे सीरियसली लें। यूं ही टालते रहना और अनदेखी करते रहना भारी पड़ सकता है। संकट की इस घड़ी में भड़ास4मीडिया टीम दिनेश मिश्रा के साथ खड़ी है। हम उम्मीद करते हैं कि वे दो दिन बाद फिर से अपने काम पर लौट आएंगे।

हालांकि, अभी कई तथ्य आने बाकी हैं, सारी जानकारियां पता चलनी बाकी हैं फिर भी जो कुछ सामने है, उसके आधार पर कुछ बातें कही जा सकती हैं। खासकर छोटी और निचली अदालतों से यह अपेक्षा की जानी चाहिए कि वे मानहानि टाइप ऐसे मामलों में आरोपी के बैकग्राउंड  (चाल-चलन, व्यवहार, कार्य आदि) को देखकर ही इतना बड़ा फैसला करें। यूं ही सेकेंड्स में किसी सीधे-सज्जन और निर्दोष आदमी को जेल भेजने का आदेश दे देने से भले ही कोर्ट के शक्तिशाली होने का पता चल जाता हो और कोर्ट की हनक से सब डर जाते हों पर इसे किसी मायने में उचित नहीं कहा जा सकता है। किसी जिले के कस्बे की अदालत होने के कारण और भी ज्यादा सावधानी की उम्मीद की जाती है क्योंकि ऐसी अदालतें खुद गाहे-बगाहे कई तरह के आरोपों से दो-चार होती रहती हैं और सवालों के घेरे में खड़ी दिखती हैं। ऐसी अदालतों से अपेक्षा की जाती है कि वे अतिवादी फैसले लेने से पहले दस बार सोचें ताकि उनके बर्ताव से पहले से खराब निचली अदालत की छवि पर और बट्टा न लग सके।

हम कोर्ट का सम्मान करते हैं, कोर्ट के इस फैसले का भी सम्मान करते हैं लेकिन उसके अतिवादी कदमों की अगर आलोचना करने की जरूरत पड़ी तो जरूर की जाएगी। इस देश में लोकतांत्रिक परंपरा रही है हर कृत्य पर बहस करने की और उसके गुण-दोष की शिनाख्त करने की, और इससे निचली अदालतें भी मुक्त नहीं हैं। याद रखिए, गांधी सरीखे महान नेताओं ने कहा और हमेशा से इस बात का पक्ष लिया कि किसी निर्दोष को किसी हालत में सजा नहीं होनी चाहिए, भले ही इसके लिए दस अपराधियों को छोड़ना पड़े। कुछ इसी तरह की बात कही है गांधी ने, जिसे हम आप अक्सर जेलों के उपर चस्पा लिखा पाते हैं।

यशवंत

एडिटर, भड़ास4मीडिया

yashwant@bhadas4media

मीडिया से जुड़ी खबरें भड़ास4मीडिया तक पहुंचाने के लिए आप [email protected] पर मेल या फिर 09999330099 पर एसएमएस कर सकते हैं.

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0 Comments

  1. shahnawaz ali

    January 18, 2010 at 12:28 pm

    meri hindustan shamli beureo par rehte hue unse rozana khabro ko lekar baat hoti thi] jo hamesha or zyada behtar karne ke liye mujhe prerit karte rahe; jahan tak mein jaanta hoon wo ek achhe insaan hain; unke sath aisa suna dukh hua
    shahnawaz ali

  2. elizabeth

    January 18, 2010 at 1:05 pm

    plz do not mud such great personality in media sector. it is shameless!

  3. ambuj

    January 18, 2010 at 1:07 pm

    we are with you dinesh sharma.
    dont worry, now your name and image has been excelled.

    remember
    SAACH KO AANCH NAHI

  4. KUMAR SAUVIR, LUCKNOW

    January 18, 2010 at 1:37 pm

    eq>s yxrk gS fd vc vnkyrksa ds dkedkt dks ysdj Hkh leh{kk dk dke lEHkkyus dk ekSdk lekpkj dfeZ;ksa dks lEHkky ysuk pkfg,A vjvly] vnkyrksa ds dkedkt esa gLr{ksi u djus dh ,d ijEijk lh pyh vk jgh gSA dc ls&&&’kk;n ‘kq: ls ghA vkSj bls cuk;k gS odhyksa usA eqvfDdyksa dks Hk;Hkhr djus ds fy, blls csgrj vkSj D;k gks ldrk gS fd oknh dks pqi jgus dks dgk tk, vkSj tks dqN dguk gS odhy gh dgsA ygtk dqN ,slk gks rkfd ,d HkkSdky cuk jgs fd tt lkgc dk fetkt tjk Hkh xMcMk;k rks lc fd;k /kjk pkSiV gks tk,xk] vkSj vnkyr dh voekuuk vyx ls dgj dh rjg VwVsxh vkSj vnkyr dk dgj [kqnk ds dgj ls de ugha gksrk&&& ;g lc ckrsa vnkyrksa ds ckjs esa yksxksa ds fnekx esa Bwal&Bwal dj Hkjh tk pqdh gSaA fdlh Hkh vnkyr esa igqap tkb;sA Mk;l ij cSBs gekjs&vkids tSls ‘k[l dks dkyk dksV igus odhy yksxksa }kjk vkujscqy dg dj lEcksf/kr fd;k tkrk gS vkSj dkyk dksV igu dj ftjg djrs O;fDr dks ogh vkujscqy yksx yjusM dgrs gSaA ;kuh vkujscqy O;fDr ds fy, ;g t:jh ugha fd og yjusM gks] tcfd blds Bhd myV ;g t:jh ugha gksrk fd yjusM O;fDr vkujscqy gksA ysfdu bruk t:j gksrk gS fd bu nksuksa LrEHkksa ds chp U;k; dh vk’kk esa fujhg [kMs yksx ;kph dgs tkrs gSaA ;kph ;kuh ;kpuk djus okyk] fHk[kkjh ;kuh fHk[keaxkA rks ;g gS gekjs yksdrkaf=d ns’k esa vnkyrksa dk lpA
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  5. subhchintak

    January 18, 2010 at 7:06 pm

    mai samanjh nahi pa raha hun ki aap unki is khabar ko parkasit karke unki tarafdari kar rahe hai ki unhe badnam kar rahe hai

  6. [email protected]

    January 19, 2010 at 2:45 am

    Bilkul baja farma rahen hain aap. Ek taraf to aap rona rote hain ki adalaten sahi kaam nahi kar rahin dusari or sampadak mahoday 6-6 taarikhon par adalat nahi jaate.
    Aapko to Chief Justice of India hona chahiye Srimanji.
    Mushkil ye hai ki adalaten, Media ki tarah suni sunaai khabaron par nahi chaltin (jaisa ki adhiktar hota hai)
    Media belagam hai lekin nichali adalaton ke upar do aur adalaten hain, jahan jawab dena padta hai. Agar nyay ki itni chinta hai to kripya Jharkhand ke farzi muthbhed me maare gaye yuvakon ke pariwar ko un akhbaaron aur patrakaron se muawaza dilwaiye aur police kaptan ko saza.

  7. munna

    January 19, 2010 at 4:21 am

    dinesh ke sath achchha nahi hua. esase patrakaron ko sabak lena chahiye ki samay ko pahachane aur chhoti-chhiti aupachaariktaon ki bhi anadekhi n karen.

    munna, aligarh

  8. Laxmi Kant

    January 19, 2010 at 4:27 am

    Yashwant Bhaiyaa; aapne bilkul sahi kahaa hai. Dinesh jee k saath jo huaa bahut galat hua. Maan Haani k mukadme mei samaachaar patra ke prabhandhan ki bhi jimmedaari banti hai ki wo pairwi kare. Kyuki Dinesh jee ne jo kiyaa wo Samaachaar Patra ki behatari ke liye he kiyaa tha. Magar Dinesh jee ko sansthaan chorne k baad Mekadma unhe akele Dekhana pad raha hai. Dinesh jee koi criminal nahi hai ki unhe jail bhejaa jae. Iss sankat mei sabhi ki duaa Dinesh jee k saath hai.

  9. रमन

    January 19, 2010 at 5:35 am

    पहली बात, दिनेश मिश्रा जी इस मामले में बतौर संपादक नहीं, बल्कि ब्यूरो प्रमुख के तौर पर ही नामित हैं। खबर चयन के लिए इस मामले में दिवंगत बाबूलाल जी जिम्मेवार थे। इस लिहाज से कानूनी तौर पर भी दिनेश मिश्रा कहीं दोषी नहीं हैं। तारीखें छूटने की जहां तक बात है तो जैसा कि उपर बताया गया है उनके एक्सीडेंट के बाद वह खुद भी तकरीबन डेढ़ माह काम पर नहीं जा पाए और डाक्टरी देखरेख में रहे। उन्हें बताया भी नहीं गया था कि पेशी पर न आने के कारण उनके खिलाफ गैर जमानती वारंट हैं, वह तो एक भले इंसान के नाते समय निकालकर धुंध के बीच गाड़ी चलाते हुए पटियाला पहुंचे थे और वहीं से खबर लिखने वाले रिपोर्टर को साथ लेकर अदालत में जा खड़े हुए। यदि मामले की स्टीक जानकारी होती तो कम से कम कानूनी तौर पर खुद को मजबूत करके वह पेशी पर आते तो शायद यह सबकुछ न होता।

  10. rahul tripathi

    January 19, 2010 at 6:56 am

    achhe insano ke saath tikdami hamesa mauke khojte rahte hain, yehi reason hai ki patrkarita ka beda gark ho raha hai.

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