हिंदुस्तान, मेरठ के रेजीडेंट एडिटर दिनेश मिश्रा की जमानत हो गई है. उनके आज मेरठ लौटकर काम संभालने की संभावना है. दिनेश की जमानत कल ही हो गई थी. एक पुराने मामले में पेशी पर हाजिर न होने के कारण पिछले दिनों पंजाब की एक कोर्ट ने उन्हें दो दिनों के लिए न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया था. दो दिन की अवधि पूरी होने के बाद कोर्ट में जमानत यायिका दायर की गई. कोर्ट ने याचिका स्वीकार कर लिया.
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मैं भी जेल जाते-जाते बचा था
वकीलों की नासमझी से फंस जाते हैं पत्रकार : अदालत ने कभी भी मीडियाकर्मियों की (मेरा आशय केवल कलमघसीटों से है) मजबूरियां नहीं जानी हैं। संपादक, प्रकाशक और मुद्रक जो कि अकसर सभी अखबारों में मालिक होते हैं, वह खबरों से संबंधित हरेक मानहानि के केस पर लंबे अरसे तक बीमारी की पर्चियां लगाकर बच जाते हैं और बाद में एग्जम्पशन ले लेते हैं। फंसते हैं तो केवल पत्रकार। दिनेश जी से मेरा नाता बड़े और छोटे भाई जैसा रहा है। जब दैनिक भास्कर को चण्डीगढ़ से लांच किया गया था तो वह भास्कर की कोर टीम में थे और मैं भी इस टीम के प्रादेशिक प्रभाग का सदस्य था। मैंने पहले हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला में बतौर ब्यूरो चीफ ज्वाइन किया। तब खुद श्री गिरीश अग्रवाल जी को लगा था कि धर्मशाला में एक वरिष्ठ सहयोगी को तैनात किया जाना चाहिए क्योंकि वहां पर महामहिम दलाई लामा और करमापा सहित तिब्बत की निर्वासित सरकार का मुख्यालय मैकलोडगंज में है। मैंने कार्यभार सम्भाला। काम भी किया।
अदालतों को भी मजबूरी समझनी चाहिए भाई..
[caption id="attachment_15694" align="alignleft"]अजय शुक्ल[/caption]यशवंत भाई! आप सही कहते हैं अति कहीं भी हो बिल्कुल गलत होता है। हमारे शस्त्रों में भी अति और दुर्भावना से बचने को कहा गया है। यही नहीं, यह भी बताया गया है कि अगर आपके पास राजदंड हो तो क्षमा और मजबूरी को पहले परखना चाहिए। यशवंत जी, यह बात तब की है जब आप लखनऊ जागरण नहीं आये थे। मैं जब 1994 में दैनिक जागरण, लखनऊ में उप संपादक के तौर पर काम करने पहुंचा था तो दिनेश सिटी रिपोर्टर हुआ करते थे। नगर निगम और रेलवे उनकी बीट थी। मैं डेस्क पर था, कभी कॉपी जांचते वक्त उनसे कुछ कह देता तो वे वरिष्ठ होने के बाद भी बड़ी शलीनता से जवाब देते थे। जब मैं क्राइम रिपोर्टर बना तो कई मौकों पर हमने साथ काम किया। उनके जैसे नियमों के पालन के प्रति सजग शालीन व्यक्ति कम मिलते हैं। मैंने चुनाव की रिपोर्टिंग करने का तरीका उनसे ही सीखा था, तब न्यूज चैनलों का वक्त नहीं था। हमें खुद ही सूचनाएं एकत्र करनी होती थीं और चुनाव आयोग से सूचनाएं भी इतनी आसानी से नहीं मिलती थीं।
तो यह है इस देश में अदालतों का सच!
[caption id="attachment_15698" align="alignleft"]कुमार सौवीर[/caption]मुझे लगता है कि अब अदालतों के कामकाज को लेकर भी समीक्षा का काम सम्भालने का मौका समाचारकर्मियों को सम्भाल लेना चाहिए। दरअसल, अदालतों के कामकाज में हस्तक्षेप न करने की एक परम्परा सी चली आ रही है। कब से? शायद शुरू से ही। और इसे बनाया है वकीलों ने। मुअक्किलों को भयभीत करने के लिए इससे बेहतर और क्या हो सकता है कि वादी को चुप रहने को कहा जाए और जो कुछ कहना है वकील ही कहे। लहजा कुछ ऐसा हो ताकि एक भौकाल बना रहे कि जज साहब का मिजाज जरा भी गड़बड़ाया तो सब किया धरा चौपट हो जाएगा, और अदालत की अवमानना अलग से कहर की तरह टूटेगी और अदालत का कहर खुदा के कहर से कम नहीं होता…. यह सब बातें अदालतों के बारे में लोगों के दिमाग में ठूंस-ठूंस कर भरी जा चुकी हैं। किसी भी अदालत में पहुंच जाइये। डायस पर बैठे हमारे-आपके जैसे शख्स को काला कोट पहने वकील लोगों द्वारा आनरेबुल कह कर सम्बोधित किया जाता है और काला कोट पहन कर जिरह करते व्यक्ति को वही आनरेबुल लोग लरनेड कहते हैं। यानी आनरेबुल व्यक्ति के लिए यह जरूरी नहीं कि वह लरनेड हो, जबकि इसके ठीक उलट यह जरूरी नहीं होता कि लरनेड व्यक्ति आनरेबुल हो।
अपडेट (अंतिम) : अदालतों को अतिवाद से बचना चाहिए
हिंदुस्तान, मेरठ के आरई को जेल भेजे जाने की घटना पर त्वरित प्रतिक्रिया : दिनेश मिश्रा की पहली छवि जो मेरे दिमाग में उभरती है, वह यह कि वे सीधे-सज्जन, संयत और कम बोलने वाले इंसान हैं। उनसे मेरा पहला परिचय लखनऊ में हुआ। तब मैं लखनऊ में पत्रकार बनने की लालसा से आया था। दिनेश मिश्रा उन दिनों दैनिक जागरण, लखनऊ में बतौर रिपोर्टर कार्यरत थे। उनसे हजरतगंज स्थित दुर्गा दादा की कम्युनिस्ट पार्टी वाली लिट्रेचर की दुकान पे अक्सर मुलाकात हुआ करती थी। बाद में जब मैंने दैनिक जागरण, लखनऊ ज्वाइन किया तो अंतर्मुखी व्यक्तित्व वाले दिनेश दैनिक जागरण छोड़कर भास्कर की तरफ कूच कर गए थे। उनके बारे में सूचनाएं मिलती रहती थीं पर बात नहीं हुई। ग्वालियर से उन्होंने भास्कर के स्थानीय संपादक पद से इस्तीफा दिया तो उनसे फोन पर एक बार बात हुई, इस्तीफे वाली खबर की पुष्टि के लिए। उन दिनों भी दिनेश मिश्रा और उनका परिवार एक बड़े हादसे से दो-चार हो चुका था।
अपडेट (2) : मानसा में बुडलाडा स्थित कोर्ट ने जेल भेजा
एक अन्य जानकारी के अनुसार दिनेश मिश्रा को न्यायिक हिरासत में भेजने वाली अदालत पंजाब के मानसा जिले की बुडलाडा सब डिवीजन में स्थित है. इस बुडलाडा में स्थित उप अदालत में रोडवेज के डिप्टी जनरल मैनेजर ने मानहानि याचिका दायर की थी. बात तबकी है जब दिनेश मिश्रा दैनिक भास्कर, पटियाला यूनिट के प्रभारी थे. उस समय लुधियाना की यूनिट लांच नहीं हुई थी.
अपडेट 1 : हिंदुस्तान, मेरठ के आरई दिनेश मिश्रा जेल गए
ताजी सूचना के अनुसार जेल भेजे जाने वाले रेजीडेंट एडिटर का नाम दिनेश मिश्रा हैं और वो इन दिनों दैनिक हिंदुस्तान, मेरठ में रेजीडेंट एडिटर के पद पर कार्यरत हैं। मिली जानकारी के अनुसार पंजाब की किसी अदालत में कोई मामला चल रहा था। यह मामला तबका है जब दिनेश मिश्रा दैनिक भास्कर में संपादक हुआ करते थे। किसी खबर पर अवमानना का मामला दायर किया गया था।
प्रारंभिक खबर : ‘हिंदुस्तान’ के आरई जेल गए
अभी-अभी सूचना मिली है। हिंदुस्तान अखबार के एक रेजीडेंट एडिटर जेल भेज दिए गए हैं। उन्हें जेल भेजने का आदेश अदालत ने दिया। वजह क्या है, यह जानकारी नहीं मिल पाई है पर सूत्रों का कहना है कि अखबार से संबंधित किसी मामले में उन्हें जेल भेजा गया है।