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सिटी चीफ के सताए डेस्क इंचार्ज ने इस्तीफा भेजा

सूचना है कि दैनिक जागरण, कानपुर के चीफ रिपोर्टर संजीव मिश्रा के दुर्व्यवहार से परेशान होकर सिटी डेस्क इंचार्ज अशोक सिंह ने अपना इस्तीफा प्रबंधन के पास भेज दिया है. सूत्रों का कहना है कि लोकल पेजों पर खबरों के डिस्प्ले, कामकाज और अन्य कई चीजों को लेकर संजीव मिश्रा हर वक्त अशोक सिंह पर धावा बोले रहते थे. लगातार उत्पीड़न, दबाव व तनाव से परेशान अशोक ने इस्तीफा देकर मुक्ति पाना ही उचित समझा. 

<p align="justify">सूचना है कि दैनिक जागरण, कानपुर के चीफ रिपोर्टर संजीव मिश्रा के दुर्व्यवहार से परेशान होकर सिटी डेस्क इंचार्ज अशोक सिंह ने अपना इस्तीफा प्रबंधन के पास भेज दिया है. सूत्रों का कहना है कि लोकल पेजों पर खबरों के डिस्प्ले, कामकाज और अन्य कई चीजों को लेकर संजीव मिश्रा हर वक्त अशोक सिंह पर धावा बोले रहते थे. लगातार उत्पीड़न, दबाव व तनाव से परेशान अशोक ने इस्तीफा देकर मुक्ति पाना ही उचित समझा.  </p>

सूचना है कि दैनिक जागरण, कानपुर के चीफ रिपोर्टर संजीव मिश्रा के दुर्व्यवहार से परेशान होकर सिटी डेस्क इंचार्ज अशोक सिंह ने अपना इस्तीफा प्रबंधन के पास भेज दिया है. सूत्रों का कहना है कि लोकल पेजों पर खबरों के डिस्प्ले, कामकाज और अन्य कई चीजों को लेकर संजीव मिश्रा हर वक्त अशोक सिंह पर धावा बोले रहते थे. लगातार उत्पीड़न, दबाव व तनाव से परेशान अशोक ने इस्तीफा देकर मुक्ति पाना ही उचित समझा. 

सूत्रों का कहना है कि संजीव के दबाव से अशोक काफी दिनों से परेशान थे. पिछले दिनों पेज एक पर गई एक लोकल खबर का शेष नहीं लग पाने के मामले में संजीव मिश्रा अशोक सिंह पर माफीनामा लिखने का दबाव बना रहे थे. सूत्रों का कहना है कि अशोक ने इस गल्ती के लिए सारी भी बोल दिया था पर संजीव माफीनामा लिखकर देने पर अड़े रहे. आखिरकार माफीनामा की जगह अशोक ने इस्तीफानामा भेज दिया. सूत्रों का कहना है कि इस दौर में जब नौकरियां मुश्किल से मिला करती हैं, अगर कोई शख्स किसी परेशानी की वजह से इस्तीफा देता है तो सोचा जा सकता है कि वह परेशानी कितनी बड़ी होगी, उस पर कितना दबाव रहा होगा और वह किस मानसिक यंत्रणा में जी रहा होगा.

सूत्रों का कहना है कि संजीव मिश्रा जागरण प्रबंधन के काफी करीबी हैं. वे वर्षों से सिटी चीफ के रूप में काम कर रहे हैं. जागरण के मालिकों के नजदीकी  होने से उन्हें काम करने-कराने की खुली छूट मिली हुई है. इसी कारण वे कई बार खुद को स्थानीय संपादक से भी उपर मान बैठते हैं और अपने सहकर्मियों पर अनावश्यक दबाव बनाने लगते हैं. 

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0 Comments

  1. md khan

    January 26, 2010 at 10:23 am

    sir galti kisi se bhi ho sakti he .

  2. sagarbandhu

    January 26, 2010 at 10:36 am

    Dainik me kuch galtio ko najarandj kar dena chahia. Dainik me kuch galitia swabahik tour par ho jaati hai. kisi khabar ke shesh ke nahi lagna. dainik me mamuli galati mani jati hai. Iske liye kisi sahyogi par jyada dabav nahi banana chahie. ghatna ke bare me phadhne se lagata hai ki mishrajee kisi aur karan se dabav bana rahe hai. kisi ko istifa dene par majbur karana achhi baat nahi hai. mishra jee wakth se dare. wakth kisi ko maf nahi kartha hai. aap jagran mai hai. jagran ki kryashaili ke bare me sabko pata hai.

  3. Prem sharma

    January 27, 2010 at 4:22 pm

    ye bahut galat baat hai. sanjeev mishra khuda nahi hain…..yadi wo kisi ko naukari de nahi sakte to kisi ka lene ka bhi unhe haq nahi hai……

  4. Anam

    February 4, 2010 at 5:35 am

    [b] संजीव मिश्रा जागरण प्रबंधन के काफी करीबी हैं. वे वर्षों से सिटी चीफ के रूप में काम कर रहे हैं. जागरण के मालिकों के नजदीकी होने से उन्हें काम करने-कराने की खुली छूट मिली हुई है. इसी कारण वे कई बार खुद को स्थानीय संपादक से भी उपर मान बैठते हैं. [/b]
    यह आधा सच है. दरअसल उनके पास जो डेरी है वहां मक्खन बहुत बनता है. तीन वर्ष से चीफ रिर्पोटर हैं. पर डमी. स्थानीय संपादक के इतर एक कदम नहीं जा सकते. रक्षा मंत्रालय से संबद्ध होने के बाद भी जागरण में सेवायें देने वाले एक सहयोगी और दो-तीन गुरू-चेलों के जरिये खेल चल रहा है. मालिकान भी अनजान नहीं है. हां, यह जरूर है कि शायद वह इंतजार कर रहे हैं जहाज में छेद होने का. अपने बेस (यहां पर मतलब कानपुर ) में कोई कायदे का अखबार जिस दिन दस्तक देगा. एक और टाइटेनिक देखेगी पत्रकार बिरादरी.

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