लखनऊ में पिछले दिनों 19वें उमेश डोभाल स्मृति समारोह का आयोजन किया गया। इसमें ट्रस्ट की तरफ से मुख्य अतिथि प्रख्यात पत्रकार और लेखक कुलदीप नैय्यर ने आकाशवाणी के उत्तरायण कार्यक्रम से लोकभाषा के प्रसार में उल्लेखनीय योगदान के लिये 75 वर्षीय बंशीधर पाठक जिज्ञासु को अंगवस्त्र, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिन्ह नकद राशि प्रदान कर सम्मानित किया। युवा पत्रकार नीरज को प्रशस्ति पत्र, नकद राशि, प्रतीक चिन्ह व अंगवस्त्र देकर पुरस्कृत किया गया।
कुलदीप ने ‘बदलाव के दौर में मीडिया’ विषय पर स्मारिका का विमोचन भी किया। यह कार्यक्रम किसी पत्रकार की मृत्यु की स्मृति में होने वाला अकेला कार्यक्रम है जो 19 साल से लगातार आयोजित हो रहा है। इस कार्यक्रम के जरिए दिवंगत पत्रकार उमेश की जनपक्षधरता को याद किया जाता है। सच लिखने की खतिर 25 मार्च, 1988 को उमेश की शराब माफिया ने हत्या कर दी थी। समारोह में मीडिया में आए बदलाव पर एक परिचर्चा का आयोजन किया गया जिसमें वीरेन्द यादव, मुकुल, नसीरूद्दीन, आनन्द बल्लभ उप्रेती, राजीव लोचन शाह आदि ने अपने विचार रखे। संचालन वरिष्ठ पत्रकार गोविन्द पन्त राजू ने किया।
समारोह में 4 प्रस्तावों को ध्वनिमत से पारित किया गया, जो इस प्रकार हैं-
- इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जनसरोकारों की पत्रकारिता करे और उसकी जिम्मेवारी सुनिश्चित की जाए।
- बाजारवाद व तकनीकी बदलाव के कारण आज छोटे बड़े पत्रों में अनेक विकृतियां पैदा हो चुकी हैं। उन्हें सुधारा जाए ताकि जनपक्षधरता की उनमें स्थापना हो सके।
- पब्लिक ब्राडकास्टिंग सिस्टम को सुधारा जाए। इसके लिये पहल हो ताकि जनता के धन से चल रहा मीडिया अपनी पुरानी गरिमा को पा सके और अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सके।
- उत्तराखण्ड व देश के अन्य प्रदेशों में संघर्षशील पत्रकारों, राजनैतिक व मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का जो निर्मम दमन किया जा रहा है उसे हर हालत में बंद किया जाए। अभिव्यक्ति की आजादी सुनिश्चित की जाए।
इस मौके पर अपने संबोधन में मुख्य अतिथि कुलदीप नैय्यर ने कहा- ”मैने जब पत्रकारिता आरम्भ की तो एक विचार मन में था कि जो भी लिखूंगा देश के लिये लिखूंगा। इसलिये जब भी मैं लिखता हूं यह सोचकर लिखता हूं कि देश की हानि न हो। देश और सरकार दो अलग बातें हैं।” मीडिया में आए बदलाव पर श्री नैय्यर बोले- ”आज मीडिया बदल रहा है। आज यह मालिक से डरता है, सरकार से डरता है, अपराधियों व पैसे वालों से भी डरता है। यदि समाज के लिये कुछ करना है तो इस डर को दूर करना होगा। पहले मीडिया संस्कारित था और अपने मूल्यों को बनाए रखते हुए अपनी जिम्मेवारी को बखूबी निभाता था। मीडिया में आजकल कोई भी मालिक किसी भी पत्रकार को किसी भी कारण निकाल सकता है पहले ऐसा नहीं था। आज मालिक की आजादी ज्याद है, उसमें काम करने वाले की कम। इस पर सोचना होगा। इसको देखते हुये ही नेहरू जी वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट लाये थे। लेकिन आज पत्रों में कान्ट्रैक्ट वाली व्यवस्था लागू होती जा रही है। यह गलत है। इसके विरूद्ध यदि न्यायालय में जाया जाए तो इसे रोका जा सकता है। आज के दौर में नये प्रेस कमीशन की आवश्यकता है। मैंने प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह को इस बाबत एक पत्र लिखा है। देश में तीसरे प्रेस कमीशन का गठन होना चाहिये ताकि बदलाव के दौर में नई चीजें उसमें परिभाषित हो सकें। संभवत: आने वाली सरकार ऐसा करेगी। पत्रकारिता ऐसा क्षेत्र है जहां ईमानदारी के साथ काम हो सकता है। पहले अखबार विपक्ष की भूमिका निभाया करते थे और सरकार में बैठे लोग भी मीडिया की बात को गम्भीरता से सुनते थे। नेहरू जी महीने के अन्तिम सोमवार को दो घण्टे पत्रकारों के साथ बैठते थे ताकि पूरा देश एक साथ चल सके। पत्रकारों से बातें तो होती ही थीं, साथ में कई बाते समझाते भी थे। 1964 के बाद आये प्रधानमिन्त्रयों में से शास्त्री जी, इंदिरा गांधी, देवगौड़ा, राजीव गांधी व मनमोहन सिंह ने एक-एक प्रेस मुलाकात की। आज ऐसा नहीं है। नेहरू जी समझते थे कि मीडिया की आजादी की बजाय अभिव्यक्ति की आजादी ज्यादा महत्वपूर्ण है।”
श्री नैय्यर ने कहा कि भारत में कार्यपालिका-न्यायपालिका में कई बातें अच्छी तय हुईं। मसलन, कौन-सी योग्यता वाला व्यक्ति क्या करेगा? लेकिन उसने यह तय नहीं किया कि चुन कर जाने वाले व्यक्ति के लिए योग्यता क्या हो? इसी से सारी गडबड़ी पैदा होने लगी क्योंकि नीतियों का निर्धारण संसद से होता है और चुनकर जाने वाले लोग इसी संसद में पहुंचते हैं। कुलदीप नैय्यर ने पाकिस्तान बनने के बाद देश में पैदा हुई कई विशेष परिस्थितियों की चर्चा की। उन्होंने खालिस्तान, सिख विरोधी दंगों, गुजरात दंगों का भी जिक्र किया। वे गांधी जी और जयप्रकाश के बारे में भी बोले। श्री नैय्यर का कहना है कि आज की संसदीय व्यवस्था ऐसी हो गई है जिसमें कोई करोड़पति ही चुनाव लड़ सकता है। मजलूमों की बात करने वाला कोई नहीं है। यह चिंताजनक है। आजादी के इतने साल बाद भी गराबों की तादाद कम नहीं हुई है।