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यह तानी मौसी और उसकी नन्ही भांजी की कहानी है

फिल्म 'कैरी' का एक दृश्यसमीक्षा : फिल्म- कैरी : यह फिल्म इंसानी रिश्तों का मार्मिक ताना-बाना है जो सीधी-साधी कहानी को सहज ढंग से कहती है. इसमें संगीत और कैमरे के जरिए दृश्यों को खूबसूरत रंग-रूप दिया गया है. हर दृश्य बीती यादों का फ्रेम दिखता है. हर कलाकार आसपास का आदमी लगता है. इसलिए फिल्म खत्म होने के बाद भी दर्शक कुछ देर के लिए सोचता रहता है. वह कुर्सी से तुरंत नहीं उठ पाता. यह फिल्म तानी मौसी और उसकी नन्ही भांजी की कहानी है. कहानी में 10 साल की बच्ची मां-बाप के मरने पर श्रीपू मामा के साथ तानी मौसी के घर आती है. तानी की कोई संतान नहीं है. वह बच्ची को हर खुशी देने का भरोसा देती है. लेकिन वह खुद खुशियों से दूर है. तानी के पति भाऊराव को उसकी जरा भी फ्रिक नहीं. भाऊराव और घर की नौकरानी तुलसा का नाजायज रिश्ता है. तुलसा भी भाऊराव की आड़ से मालकिन को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकती. इन हालातों से परेशान तानी जिदंगी को अपने हाल पर छोड़ देती है. लेकिन भांजी के आने के बाद वह फिर से जीना चाहती है.

फिल्म 'कैरी' का एक दृश्य

फिल्म 'कैरी' का एक दृश्यसमीक्षा : फिल्म- कैरी : यह फिल्म इंसानी रिश्तों का मार्मिक ताना-बाना है जो सीधी-साधी कहानी को सहज ढंग से कहती है. इसमें संगीत और कैमरे के जरिए दृश्यों को खूबसूरत रंग-रूप दिया गया है. हर दृश्य बीती यादों का फ्रेम दिखता है. हर कलाकार आसपास का आदमी लगता है. इसलिए फिल्म खत्म होने के बाद भी दर्शक कुछ देर के लिए सोचता रहता है. वह कुर्सी से तुरंत नहीं उठ पाता. यह फिल्म तानी मौसी और उसकी नन्ही भांजी की कहानी है. कहानी में 10 साल की बच्ची मां-बाप के मरने पर श्रीपू मामा के साथ तानी मौसी के घर आती है. तानी की कोई संतान नहीं है. वह बच्ची को हर खुशी देने का भरोसा देती है. लेकिन वह खुद खुशियों से दूर है. तानी के पति भाऊराव को उसकी जरा भी फ्रिक नहीं. भाऊराव और घर की नौकरानी तुलसा का नाजायज रिश्ता है. तुलसा भी भाऊराव की आड़ से मालकिन को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं चूकती. इन हालातों से परेशान तानी जिदंगी को अपने हाल पर छोड़ देती है. लेकिन भांजी के आने के बाद वह फिर से जीना चाहती है.

फिल्म मराठी के लोकप्रिय लेखक जी. ए. कुलकर्णी की कहानी पर आधारित है. इसी कहानी को अमोल पालेकर ने फिल्म ‘कैरी’ के रूप में पेश किया है. यहां ‘कैरी’ का मतलब एक बच्ची के बड़े बनने के अनुभवों से है. इसमें एक औरत के जीने की तमन्ना को भी पंख लगे हुए हैं. तानी एक घरेलू औरत है. वह घर की चार दीवारी के हर सुख और दुख से खुश है. तानी अपनी भांजी को सुरक्षा और ममता का ऐसा आंचल देना चाहती है जिससे उसका बचपन बचा रहे. तानी अपने बचपन की उम्मीदों को ताजा करना चाहती है. वह प्यार के इस एहसास को संवारना चाहती है. वह पूरे जोश से मासूम बच्ची की एक-एक चाहत को बचाना चाहती है. तानी ने अपनी जिंदगी पर होने वाले अत्याचारों पर चुप्पी साध ली है. लेकिन वह बच्ची को लेकर उठने वाली छोटी अंगुली को बर्दाश्त नहीं कर सकती. ऐसी किसी भी आशंका की आहट सुनते ही वह समाज के तयशुदा पैमानों के खिलाफ बोलने लगती है. उस वक्त एक औरत के अंदर की ताकत का पता चलता है.

तानी अपने पति की मार से टूट जाती है. बच्ची के मन पर बिखरते हुए घर का असर न पड़े इसलिए तानी उसे श्रीपू मामा को लौटा देती है. विदाई के समय तानी मौसी अपनी भांजी से आसपास देखने, पूछने और जानने की बातें कहती हैं. कहते हैं कच्ची उम्र की खट्टी-मीठी घटनाओं का असर उम्र भर रहता है. बच्ची ने तानी मौसी की आंखों में एक सुंदर कल की झलक देखी थी. उसने तानी मौसी की गर्म गोद से हौसला पाया था. उसके मन में तानी मौसी के होने का एहसास बना रहा. उसने तानी मौसी की नर्म अंगुलियों से मर्दों की दुनिया में आगे बढ़ने का रास्ता ढ़ूढ़ लिया. आखिरकार तानी मौसी के व्यक्तित्व के असर ने उस बच्ची को बड़ी लेखिका  बना दिया. इस फिल्म को एक कहानी की तरह ज्यों का त्यों रख दिया गया है. इससे एक पाठक की तरह दर्शक को भी अपनी तरह से सोचने और समझने का मौका मिलता है. अंत में संदेश देने की औपचारिकता से फिल्म अपना असर खो सकती थी.

फिल्म : कैरी, अवधि : 96 मिनट, निर्देशक : अमोल पालेकर

कलाकार :  योगिता देशमुख, शिल्पा नवलकर, मोहन गोखले, लीना भागवत


शिरीष खरेलेखक शिरीष खरे सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए पत्रकार हैं। पत्रकारिता की डिग्री लेने के बाद चार साल तक डाक्यूमेंट्री फिल्म संगठन में शोध और लेखन का कार्य किया। उसके बाद दो साल तक ‘नर्मदा बचाओ आन्दोलन’ से जुड़े रहे। इन दिनों ‘चाइल्ड राईट्स एंड यू, मुंबई’ के ‘संचार विभाग’ से जुड़े हुए हैं। शिरीष से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है।
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