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साहित्य

राजधानी रिटर्न बंदर

मेलबाजी की सुखद-दुखद दुनिया में कई अच्छे मेल लोग अपने सभी संपर्कों को फारवर्ड कर देते हैं. ब्लागर अपनी पोस्ट का लिंक पढ़ने-पढ़ाने के अनुराध के साथ भेजते हैं तो कुछ साथी दूसरों की तरफ से आए इंट्रेस्टिंग मेल को फारवर्ड करते रहते हैं. कुछ रोचक, सामाजिक संदेश देने वाली तस्वीरें मेल पर यहां से वहां दौड़ती रहती हैं. कल एक मेल पर निगाह अटक गई. हिंदी में लिखी एक कहानी. विक्रम-बेताल स्टाइल में. आधुनिक संदर्भों के साथ. लेखक हैं गिरीश पंकज. पढ़ा तो मजा आया. सुख क्या है, इस पर बहुत सुंदर कहानी है. कई लोग दुखों के पहाड़ को ही सुख मानकर उसे पाने में जुटे रहते हैं. पहली बार कहानी तो यूं ही पढ़ जाएं लेकिन दूसरी बार ‘बंदर’ की जगह ‘पत्रकार’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहानी पढ़ें. देखिए, क्या अर्थ निकलता है. बिना स्वीकृति कहानी प्रकाशित करने के लिए गिरीश पंकज जी से क्षमा याचना. -यशवंत


मेलबाजी की सुखद-दुखद दुनिया में कई अच्छे मेल लोग अपने सभी संपर्कों को फारवर्ड कर देते हैं. ब्लागर अपनी पोस्ट का लिंक पढ़ने-पढ़ाने के अनुराध के साथ भेजते हैं तो कुछ साथी दूसरों की तरफ से आए इंट्रेस्टिंग मेल को फारवर्ड करते रहते हैं. कुछ रोचक, सामाजिक संदेश देने वाली तस्वीरें मेल पर यहां से वहां दौड़ती रहती हैं. कल एक मेल पर निगाह अटक गई. हिंदी में लिखी एक कहानी. विक्रम-बेताल स्टाइल में. आधुनिक संदर्भों के साथ. लेखक हैं गिरीश पंकज. पढ़ा तो मजा आया. सुख क्या है, इस पर बहुत सुंदर कहानी है. कई लोग दुखों के पहाड़ को ही सुख मानकर उसे पाने में जुटे रहते हैं. पहली बार कहानी तो यूं ही पढ़ जाएं लेकिन दूसरी बार ‘बंदर’ की जगह ‘पत्रकार’ शब्द का इस्तेमाल करते हुए कहानी पढ़ें. देखिए, क्या अर्थ निकलता है. बिना स्वीकृति कहानी प्रकाशित करने के लिए गिरीश पंकज जी से क्षमा याचना. -यशवंत


राजधानी रिटर्न बंदर

-गिरीश पंकज-

हठी विक्रमादित्य ने एक बार फिर शव को अपने कंधे पर लादा और गंतव्य की ओर चल पड़ा। बेताल मुस्कराया और बोला- “हे राजन्, तुम देश के आम आदमी की तरह बड़े परिश्रमी हो लेकिन उसके हिस्से भी अंततः कुछ नहीं आता। बिल्कुल तुम्हारी तरह। खैर, तुम्हें अभी बहुत दूर जाना है, इसलिए समय बिताने के लिए एक कहानी सुनाता हूँ।”

विक्रमार्क को मौन देख बेताल बोला-“मैं समझ गया। तुम इंसानों की कहानियां सुन-सुन कर बोर हो चुके हो न। चलो, इस बार तुम्हें एक बंदर की कहानी सुनाता हूं।”

विक्रमार्क मुस्करा पड़ा। यह देख कर बेताल ने फौरन कहा-“यह हुई न कोई बात! तो सुनो। राजन, किसी जंगल में काले मुंह का एक बंदर रहा करता था, जिसे लोग लंगूर भी कहते हैं। उस जंगल में लंगूर का एकक्षत्र राज्य था, क्योंकि उसे देख कर लाल मुंह के सारे बंदर पलायन कर गए थे। लाल मुंह होने के कारण ये बंदर अपने आप को श्रेष्ठ प्रजाति का मानते थे। मनुष्यों जैसी रंगभेद की मानसिकता बंदरों में भी काम कर रही थी।

एक दिन बंदरों के सरदार ने कहा, “काले मुंह के बंदर के साथ रहना प्रोटाकाल के खिलाफ होगा। बेहतर यही है कि यह जंगल ही छोड़ दिया जाए।”

एक बंदर बोला-“लेकिन जंगल कहीं हो तब न! अब तो सारे जंगल ही साफ हो चुके हैं। उनकी जगह  गगनचुंबी इमारतें तन गयी हैं।”

पर बाकी सभी बंदरों ने अपने सरदार की बात पर सहमति की मुहर लगा दी।

सरदार अतिमहत्वाकांक्षी और खुराफाती था। वह अपने कुछ साथियों के साथ राजधानी कूच कर गया। उसने सुन रखा था कि राजधानी में घूर की किस्मत भी संवर जाती है, फिर वह तो बंदर था।

कुछ बंदर जो कम खुराफाती थे, वे कस्बों में जाकर बस गए।

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और जो बंदर बेचारे बेहद शरीफ किस्म के थे, वे मदारियों के हत्थे चढ़ गए।

शहरी बंदर अपनी आदत के अनुसार लोगों के कपड़े फाड़ने लगे। खाने–पीने के सामान चुरा कर भागने में जुट गए, लेकिन राजधानी के बंदर तो अति करने लगे। आखिर वे राजधानी में थे न! कभी संसद भवन पर जा कर बैठ जाते, तो कभी नेताओं के घर जाकर उनके कपड़े उतारने लगते। और उन्हें नंगू-पतंगू करने की फिराक में लगे रहते। तरह-तरह से परेशान करते। कभी दिमाग में आतंकवाद सवार होता, तो बंदर राहगीरों को काट खाते। पूरा देश जिन नेताओं से त्रस्त था, वे नेता इन बंदरों से त्रस्त हो गए थे। नेताओं का मन तो करता था, कि इन बंदरों का काम तमाम कर दें, लेकिन पशु-अधिकार आयोग के डर के कारण कुछ कर नहीं पा रहे थे।

कहानी सुनाते-सुनाते बेताल ने विक्रमाक्र पर नज़र डाली। उसे लगा कि विक्रमार्क थक चुका है। उसकी गति धीमी पड़ती जा रही है। बेताल मुस्काराते हुए बोला, “राजन, तुम इस बेताल का बोझ नहीं उठा पा रहे हो, देश का बोझ कैसे उठाओगे? चाहो तो, कुछ क्षण के लिए विश्राम कर लो।”

विक्रमार्क ने केवल सिर हिलाया। बेताल ने कहानी आगे बढ़ाई, “हे राजन्, राजधानी के नेता बंदरों के आतंक से त्रस्त हो चुके थे। इनसे मुक्ति का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। तभी एक दिन नेताजी से मिलने उनके गाँव का एक मुँहलगा सेवक राजधानी आया। बंदरों के आतंक को देख कर वह बोला, “माई-बाप, इसका हल तो चुटकियों में हो सकता है।”

नेताजी खुश होकर बोले, ”अरे, जल्दी बताओ। इन बंदरों ने तो हाइकमान की तरह जीना हराम कर दिया है।”

मुंहलगे सेवक ने कहा- ”कुछ नहीं करना है। बस केवल गांव से लंगूर मंगवा दें। इहां के लाल-मुंह के सारे बंदर अपने आप छूमंतर हो जाएंगे।”

नेताजी को बात जम गई। उन्होंने गांव में रहने वाले अपने चमचा-इन-चीफ से चलित-वार्ता की और आदेश दिया कि फौरन एक लंगूर पकड़ कर ले आओ। नेताजी का आदेश पाकर चमचे ने अपने भाग्य को सराहा, फिर सोचने लगा कि लगे हाथ राजधानी के किसम-किसम के सुख भोगने का अवसर मिलेगा। उसने जंगल के उसी लंगूर की पकड़ने में सफलता हासिल कर ली, जो जंगल में बहुत दिनों से एक छत्र राज्य कर रहा था। पहले तो लंगूर बड़ा दुखी हुआ, लेकिन जैसे ही उसे पता चला, कि उसे राजधानी जाना है, तो वह भी रोमांटिक हो कर तरह-तरह की मधुर कल्पनाएँ करने लगा। राजधानी में रहते हुए उसकी तो किस्मत ही सँवर जाएगी। यही सोच कर लंगूर को अपने पकड़े जाने का मलाल जाता रहा।

लंगूर खुशी-खुशी राजधानी की ओर चल पड़ा। वह राजधानी में उतरा भी, लेकिन अचानक उसके मन में न जाने क्या विचार आया, वह चमचे के हाथ की रस्सी छुड़ा कर जंगल की ओर भाग खड़ा हुआ। चमचे ने उसे खूब तलाश किया लेकिन लंगूर कहीं नज़र ही न आया।

”हे राजन्, अब तुम्हीं बताओ, कि लंगूर ने आखिर ऐसा क्यों किया? तुम सोच-समझ कर मेरे इन प्रश्नों के सही-सही उत्तर दो, वरना तुम्हारे सिर के टुकड़े-टुकड़े हो जाएंगे।”

विक्रमार्क से रहा न गया। उसने बोलना शुरू किया- “बड़ी सीधी-सी बात है। पहले तो लंगूर ने सोचा कि राजधानी में लाल मुँह के बंदरों को मैं खदेड़ दूँगा। इसके एवज में मुझ इनाम मिलेगा। हो सकता है कि भविष्य में वह राजनीति में भी आ जाए। क्या भरोसा, कहीं से चुनाव लड़ने का ही मौका हाथ लग जाए। पाँलिटिक्स में कुछ भी संभव है। राजधानी में रहते हुए तो घूरे के दिन भी फिर जाते हैं। कभी भी मौका हाथ लग सकता है। नेता बन गया तो समझो पौ बारह। मज़ा ही मज़ा है। लेकिन फिर बंदर ने ठंडे दिमाग से सोचना शुरू किया, कि जैसे-जैसे वह राजनीति में रमता जाएगा, उसके अंदर का बंदरत्व जाता रहेगा, और वह भी मनुष्यों जैसी हरकतें करने लगेगा। और यहीं से बढ़ने लगेंगी उसकी परेशानियां। रिश्वतखोरी करना, सुरा-सुंदरियों में डूबना, विरोधियों पर लाठी- गोली चलवाना, बंगले में मादक द्रव्यों का सेवन करना आदि-आदि अनेक ख़तरनाक आदतें पड़ जाएंगी। करोड़ों रुपए कमाने लगूँगा तो आयकर वाले भी पीछे पड़ जाएंगे। गुप्तचर छापे मारेंगे। सुप्रीम कोर्ट करेशान करेगी। मीडिया वाले तो जीना ही हराम कर देंगे। भविष्य में होने वाली इन तमान परेशानियों के बारे में सोच-सोच कर लंगूर बुरी तरह घबरा गया। अय्याशियाँ….. घोटाले ….जेल… बदनामी …! लंगूर को लगा, कि राजधानी शुरू में तो बहुत मज़ा देगी लेकिन अंत बड़ा दुखद होगा। उसे बहुत से दृष्टांत भी याद आने लगे, इसलिए उसने निर्णय किया कि जंगल में उछल-कूद करते हुए सुख-चैन का जीवन जीना ही बेहतर होगा। बस, यही सोच कर लंगूर राजधानी से पलायन करके जंगल वापस लौट गया और और सुख-चैन से रहने लगा। रही नेता जी की, नेताजी लाल मुँह के बंदरों से कैसे निपटे, तो लंगूर लेकर नेताजी की सेवा में आने वाले चमचे ने दिमाग से काम लिया। राजधानी में पहुँच जाने के कारण वैसे भी उसका दिमाग कुछ ज्यादा ही तेज हो चुका था। राजधानी की मिट्टी की यही खाखियत थी, कि उसके स्पर्श मात्र से मूर्ख भी दिमागदार हो जाता और विकलांगों में भी दौड़ने की ताकत आ जाती थी। पंगु चढ़ै गिरिवर गहन। चमचे ने राजधानी के ही एक बंदर को किसी तरह से पकड़ने में सफलता प्राप्त कर ली, और उसके लाल मुँह पर पक्का काला रंग पोत कर उसे ही लंगूर बना कर पेश कर दिया। बस, सारे बंदर नौ दो ग्यारह हो गए। नेताजी ने खुश होकर चमचे को इनाम-इकराम दिया, सो अलग।”

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विक्रमार्क के मौन होते ही बेताल ने ठहाका लगाया और जाकर डाल पर लटक गया।

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0 Comments

  1. Akhilesh

    March 10, 2010 at 10:55 am

    Bhaiya, Rajdhani return Ek bandar Dhanbad me bhi aaya tha 2008 me. Ajibo-garib harkat karta tha. Usne yaha ke kale muh wale kuchh bandaro ka Aapna shagird bana liya aur Sharab Mafia, Guessing mafia, political leaders ko pareshan karna chalu kar diya. Usne Lal muh wale bandaro ko kala muh wale bandar me change ho jane ka offer diya. Jo Nahi hue unka bantadhar ho gaya aur jo huye uska aur bantadhar ho gaya. At last Rajdhani return bandar ko be-aabru hokar maidan chhodna pada. Aaj we TASH ke 52 patton me Journalism ki nai sambhawnaye talash raha hai.

  2. girish pankaj

    March 14, 2010 at 6:25 am

    apni vyangy-rachana ko lambe antaraal k baad parh kar achछ्a laga. sachmuc bandar ki jagah patrkar kar dene se bhi rachana naya arth dene lagati hai.

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