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48 घंटे का जीएम

पीपुल्स समाचार, ग्वालियर का हाल : जीएम प्रदीप अग्रवाल फिर पहुंचे राज : छह माह में तीसरे संपादक ने ज्वाइन किया : एक और ब्यूरो चीफ ने पीपुल्स से इस्तीफा दिया : एक बार फिर खबर पीपुल्स समाचार के ग्वालियर संस्करण से आ रही हैं। पहली खबर तो यह है कि यहां पर महाप्रबंधक के रूप में ज्वाइन करने वाले प्रदीप अग्रवाल ने 48 घंटे के भीतर ही पीपुल्स समाचार से नाता तोडऩा बेहतर समझा और पहुंच गए अपने पुराने संस्थान राज एक्सप्रेस में। इसके साथ ही पीपुल्स समाचार एक बार फिर महाप्रबंधक विहीन यूनिट हो गया।

<p style="text-align: justify;"><strong>पीपुल्स समाचार, ग्वालियर का हाल : जीएम प्रदीप अग्रवाल फिर पहुंचे राज : छह माह में तीसरे संपादक ने ज्वाइन किया : एक और ब्यूरो चीफ ने पीपुल्स से इस्तीफा दिया : </strong>एक बार फिर खबर पीपुल्स समाचार के ग्वालियर संस्करण से आ रही हैं। पहली खबर तो यह है कि यहां पर महाप्रबंधक के रूप में ज्वाइन करने वाले प्रदीप अग्रवाल ने 48 घंटे के भीतर ही पीपुल्स समाचार से नाता तोडऩा बेहतर समझा और पहुंच गए अपने पुराने संस्थान राज एक्सप्रेस में। इसके साथ ही पीपुल्स समाचार एक बार फिर महाप्रबंधक विहीन यूनिट हो गया।</p> <p>

पीपुल्स समाचार, ग्वालियर का हाल : जीएम प्रदीप अग्रवाल फिर पहुंचे राज : छह माह में तीसरे संपादक ने ज्वाइन किया : एक और ब्यूरो चीफ ने पीपुल्स से इस्तीफा दिया : एक बार फिर खबर पीपुल्स समाचार के ग्वालियर संस्करण से आ रही हैं। पहली खबर तो यह है कि यहां पर महाप्रबंधक के रूप में ज्वाइन करने वाले प्रदीप अग्रवाल ने 48 घंटे के भीतर ही पीपुल्स समाचार से नाता तोडऩा बेहतर समझा और पहुंच गए अपने पुराने संस्थान राज एक्सप्रेस में। इसके साथ ही पीपुल्स समाचार एक बार फिर महाप्रबंधक विहीन यूनिट हो गया।

दूसरी खबर यह है कि ग्वालियर में पीपुल्स समाचार का प्रकाशन शुरु हुए छह माह का समय बीता है पर इन छह माह में तीन संपादक तैनात किए जा चुके हैं। लांचिंग हरिमोहन शर्मा ने कराई। पांच माह में उनका तबादला भोपाल कर दिया गया और उन्होंने संस्थान को गुडबॉय बोलने में देरी नहीं की। दूसरे संपादक बनाए ईशान अवस्थी। उन्हें इंदौर से ग्वालियर भेजा गया था। वे भी मात्र दो दिन के संपादक रह सके।

जब किसी भी प्रतिष्ठिïत पत्रकार ने संस्थान की हालत देखते हुए पीपुल्स समाचार में संपादक बनने से इनकार कर दिया तो सत्रह रोज पहले ही चीफ क्राइम रिपोर्टर (पीपुल्स समाचार, भोपाल) से समाचार संपादक बनाकर ग्वालियर भेजे गए मनोज वर्मा को शनिवार को पीपुल्स समाचार का संपादक बना दिया गया।

इस बीच संस्थान में मची भगदड़ को आगे बढ़ाते हुए जूनियर रिपोर्टर ईशा आनंद ने भी संस्थान छोड़ दिया है। पीपुल्स समाचार ग्वालियर के बारे में कहा जा रहा है कि यहां के सभी ब्यूरो चीफों से कहा जा रहा है कि वे हर माह अखबार को निश्चित धंधा दिलवाएं। धंधे के टॉरगेट के बोझ को देखते हुए पीपुल्स समाचार के ब्यूरो चीफ दूसरे अखबार से जुड़ रहे हैं। भिंड के ब्यूरो चीफ रविंद्रसिंह कुशवाह पहले ही पत्रिका के मुरैना ब्यूरो से जुड़ चुके हैं तो शिवपुरी में तैनात रिपोर्टर सेम्युअल दास ने पीपुल्स को छोड़ पत्रिका का दामन थाम लिया।

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0 Comments

  1. umesh

    June 1, 2010 at 5:37 pm

    पीपुल्स समाचार ग्वालियर से कुछ लोगों को हटाया गया। सही है। एक- दो ने संस्थान छोड़ दिया। यह भी सही हो सकता है। जो हटाए गए या छोड़ गए वे इतने ही काबिल होते तो उन्हें कहीं न कहीं नौकरी तो मिल ही जाती। ये लोग आज कहां हैं… कहीं नहीं ना। पत्रकारिता में आवागमन सतत प्रक्रिया है। जो समय की धारा के साथ चलते हैं वे ही बहते रहते हैं। ठहरे हुए लोग जब ऐसी स्थिति को प्राप्त होते हैं तो उन्हें कहीं ठौर नहीं मिलता।

  2. isu

    June 1, 2010 at 5:39 pm

    Jalo mat. Barabri karo

  3. Rajesh kumar

    June 1, 2010 at 5:41 pm

    राजेश
    जो लोग काबिल नहीं होते वे दूसरों की उन्नति से जलते हैं। भाई लोगों जलना-भुजना छोड़कर बराबरी करने की कोशिश करो। लकीर मत मिटाओ बल्कि अपनी लकीर बढ़ी करने में यकीन करो। जो आगे बढ़ रहा है वह उसके लायक है। आप भी लायक बनो।

  4. ishwar chand

    June 1, 2010 at 10:04 am

    do kodi k log akhbar chalane chale hai……pehle…..khud ko to sambhal le …..fuck idiots……..

  5. sanjay kaushik

    June 1, 2010 at 6:35 am

    peoples raipur & bilaspur unit shuru hone ke pahle he tala lag chuka hai, ab jaldi he bhopal unit ka bhi dabba gol hone wala hai.bhopal unit me puri tarah gutbazi hawi hai & yahan ka editor hona dusre newspaper ka senior sub-editor hone ke barabar hai. peoples samachar ke shuru hone ke pahle jo hordings lagayee gayee thi, usme jor-shor se ye bataya gaya tha ki akhbaar jo rachne ja rha hai history. us samay to longon ne iski khub khilli udai, par ab samajh aa rha hai, yah akhbar hakikat me itihaas rach rha hai, employees ko nikalkar, chairman & ceo ke adurdarshi decision se, editor pe editor badalkar, altu-falut logon ko uppar lavel par jodkar….agay bhi iska yahi hasra hoga, gr vijayvargiya & company nahi cheti to.

  6. कमल शर्मा

    May 31, 2010 at 11:00 am

    धंधा दिलाने या पैसे लाकर देने का जो लक्ष्‍य संपादकीय विभाग के लोगों को दिया जा रहा है उसे देखते हुए पत्रकार पीपुल्‍स समाचार छोड़ रहे हैं तो यह सही कदम है। मार्केटिंग वाले कुछ कर नहीं सकते, मालिकों की ताकत अखबार चलाने की है नहीं तो क्‍यों खोला न्‍यूज पेपर। केवल अपने दूसरे बिजनैस जमाने के लिए अखबार नाम का सहारा लिया जा रहा है।

  7. shelendra dixit

    May 30, 2010 at 4:33 pm

    Subah 10 :30 se sham 7:30 tak ke GM. yani ki 9:30 ghante ke GM

  8. Ronit Sharma

    May 30, 2010 at 1:15 pm

    This is not good indication for news paper.

  9. ramkumar

    June 2, 2010 at 2:50 pm

    बीसीए करके पत्रकारिता करने की इच्छा रखने वाली वर्कर के जाने को अगर भगदड़ कहते हैं तो जानकारी अपडेट करने की कृपा करें। इस समय संस्थान में एडिटोरियल टीम के सदस्यों की संख्या 35 है जबकि लॉचिंग से लेकर अब से 15 दिन पहले तक यह संख्या 30 से अधिक कभी नहीं रही। रही बात संपादक के आने या न आने की या लगातार संपादक बदलने की तो कोई भी अखबार सिस्टम के तहत कर्मचारियों की निष्टा के बूते ही निकाला जाता है। पीपुल्स समाचार का ग्वालियर संस्करण भी इसी तरह निकल रहा है। न तो यह कंटेंट के मामले में किसी से कमजोर है और न ही प्रेजेंटेशन के मामले में। बढ़ते प्रोफेशनलिज्म के चलते संस्थान छोड़ना और दूसरे संस्थान से जुड़ना अब प्रक्रिया का हिस्सा है। ईशा आनंद पत्रकार नहीं थी वह अब एक बार फिर अपनी पढ़ाई प्रारंभ कर चुकी हैं जबकि अन्य साथी बढ़ी हुई सैलरी के साथ अन्य संस्थानों में गए हैं फिर इसे भगदड़ कैसे कह सकते हैं कृपया स्पष्ट करें।

  10. ramkumar

    June 2, 2010 at 3:17 pm

    बीसीए करके पत्रकारिता करने की इच्छा रखने वाली वर्कर के जाने को अगर भगदड़ कहते हैं तो जानकारी अपडेट करने की कृपा करें। इस समय संस्थान में एडिटोरियल टीम के सदस्यों की संख्या 35 है जबकि लॉचिंग से लेकर अब से 15 दिन पहले तक यह संख्या 30 से अधिक कभी नहीं रही। रही बात संपादक के आने या न आने की तो कोई भी अखबार सिस्टम के तहत कर्मचारियों की निष्टा के बूते ही निकाला जाता है। पीपुल्स समाचार का ग्वालियर संस्करण भी इसी तरह निकल रहा है। न तो यह कंटेंट के मामले में किसी से कमजोर है और न ही प्रेजेंटेशन के मामले में। बढ़ते प्रोफेशनलिज्म के चलते संस्थान छोड़ना और दूसरे संस्थान से जुड़ना अब प्रक्रिया का हिस्सा है। ईशा आनंद पत्रकार नहीं थी वह अब एक बार फिर अपनी पढ़ाई प्रारंभ कर चुकी हैं जबकि अन्य साथी बढ़ी हुई सैलरी के साथ अन्य संस्थानों में गए हैं फिर इसे भगदड़ कैसे कह सकते हैं कृपया स्पष्ट करें।

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