पुराने अमर उजालाइटों के चेहरों पर रौनक लौटी : अमर उजाला छोड़ हिंदुस्तान पहुंचे पत्रकार शशि शेखर के आने की खबर से परेशान : इन दिनों अमर उजाला के मीडियाकर्मी सिर्फ एक सवाल आपस में पूछते घूम रहे हैं। सवाल यही है- शशिशेखर की जगह कौन ले रहा है? जो दो नाम पिछले 24 घंटे से हवा में तैर रहे हैं वे नाम हैं वरिष्ठ पत्रकार अजय उपाध्याय और अमर उजाला, चंडीगढ़ के संपादक उदय कुमार का। कई लोग अमर उजाला, नोएडा के वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला का भी नाम ले रहे हैं तो कुछ लोग गोविंद सिंह को अगला दावेदार बता रहे हैं। भड़ास4मीडिया के पास अभी तक जो जानकारी है, उसके मुताबिक प्रबंधन ने फिलहाल किसी के नाम पर मुहर नहीं लगाई है। ये सारे नाम पत्रकारों द्वारा सुनियोजित तरीके से उछाले और प्रचारित किए गए हैं। अंदरखाने से छनकर आ रही खबरों के मुताबिक बहुत संभव है कि अब अमर उजाला प्रबंधन अपनी पिछली कार्यपद्धति पर लौट जाए।
मतलब, यूनिटों का काम डायरेक्टर खुद आपस में बांट लें। उनके अधीन उनकी पसंद के स्थानीय संपादक रखे जाएं। विकेंद्रित व्यवस्था के तहत अखबार निकाला जाए। शशिशेखर के पहले अमर उजाला की यूनिटें अलग-अलग डायरेक्टरों की निगरानी में संचालित होती थी। बरेली समेत कई यूनिटें (कानपुर, बनारस, इलाहाबाद, मुरादाबाद आदि) राजुल माहेश्वरी देखते थे तो आगरा समेत कई यूनिटें अशोक अग्रवाल और अजय अग्रवाल की निगरानी में थीं। अतुल माहेश्वरी नोएडा और मेरठ समेत कई यूनिटों का कामकाज देखते थे। अजय अग्रवाल के अमर उजाला से अलग हो जाने के बाद आसार यही हैं कि अशोक अग्रवाल और उनके पुत्र मनु आनंद आगरा यूनिट के कामकाज को देखें।
जहां तक नए ग्रुप एडिटर की बात है तो सूत्र बताते हैं कि शशिशेखर के जाने के बाद नए ग्रुप एडिटर का नाम निदेशक द्वय अशोक अग्रवाल और अतुल माहेश्वरी के बीच सहमति से ही तय होगा। महीने-दो महीने से यह चर्चा आम थी कि शशिशेखर के कारण अशोक अग्रवाल और उनके पुत्र मनु आनंद नाराज चल रहे हैं और अमर उजाला की किसी भी यूनिट के कामकाज को देखना बंद कर दिया है। यह भी कहा गया कि जब तक शशिशेखर अमर उजाला से जाएंगे नहीं, अशोक अग्रवाल और मनु आनंद की नाराजगी कायम रहेगी। पर यह सारी चर्चाएं कभी पुष्ट नहीं हो पाईं। भड़ास4मीडिया ने एक बार अशोक अग्रवाल से संपर्क किया था तो उन्होंने किसी भी तरह की नाराजगी को निराधार बताया था। मनु आनंद की कथित नाराजगी को भी उन्होंने अफवाह बताया था। उनका कहना था कि पारिवारिक वजहों से मनु अपना समय परिवार को दे रहे हैं, नाराजगी जैसी किसी बात का कोई मतलब नहीं।
सूत्रों का कहना है कि ग्रुप एडिटर के रूप में अभी तक किसी का नाम फाइनल नहीं हुआ है। संभव है कि 5 सितंबर को प्रबंधन नाम तय या घोषित करे। 5 सितंबर ही वह तारीख बताई जा रही है जिस दिन शशिशेखर अमर उजाला से विदा लेंगे और हिंदुस्तान ज्वाइन करेंगे। इसके पहले शशिशेखर के हिंदुस्तान ज्वाइन करने की तारीख एक सितंबर बताई गई थी।
शशिशेखर ने जब अमर उजाला ज्वाइन किया था तब वे इसकी मेरठ यूनिट देखते थे। धीरे-धीरे अपने काम, प्रबंधन व दक्षता के जरिए निदेशक अतुल माहेश्वरी का विश्वास जीतते गए और एक-एक कर सभी यूनिटें उनके अधीन आती गईं। आगरा के स्थानीय संपादक सुभाष राय, वाराणसी के स्थानीय संपादक संजीव क्षितीज, नोएडा के प्रभावशाली संपादक राजेश रपरिया, इलाहाबाद के संपादक प्रभात सिंह समेत कई मजबूत स्तंभों को एक-एक कर अमर उजाला से विदा होना पड़ा था। इस वक्त अमर उजाला की प्रत्येक यूनिट में शशिशेखर के रखे और प्रमोट किए गए संपादक काम कर रहे हैं। अगर यह कहा जाए कि इस वक्त अमर उजाला के संपादकीय विभाग में उपर से नीचे तक, ज्यादातर लोग शशिशेखर के हाथों रखे हुए या उनके विश्वासप्राप्त हैं तो गलत नहीं होगा। बरेली यूनिट से वीरेन डंगवाल के इस्तीफा देने के बाद शशिशेखर का ‘अश्वमेध यज्ञ’ पूरा हो गया और वे एक तरह से अमर उजाला के निर्विवाद चक्रवर्ती सम्राट बन गए। पर अमर उजाला के चेयरमैन अशोक अग्रवाल की नाराजगी शशिशेखर के राह की बड़ी रुकावट बन गई थी। इस बीच हिंदुस्तान जैसे बड़े अखबार का आफर मिलने पर शशिशेखर और अमर उजाला, दोनों के संकट दूर हो गए। दोनों को रास्ता मिल गया है। दोनों की ही इज्जत बच गई है।
शशिशेखर के जाने की खबर ने पुराने अमर उजालाइटों के चेहरे पर रौनक ला दी है। जो लोग इन दिनों उपेक्षित हैं, हाशिए पर पड़े हैं, दूसरे संस्थानों में काम कर रहे हैं, बेरोजगार हैं, वे सभी अमर उजाला के निदेशकों से संपर्क साधने में जुट गए हैं। ये लोग उम्मीद कर रहे हैं कि एक बार फिर अमर उजाला के पुराने दिन लौटेंगे। पर शशिशेखर के करीबी एक पत्रकार ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि शशिशेखर ने ज्वाइन करने के बाद जिस तरह से अमर उजाला के मठ सिस्टम को तोड़ा, वह इस अखबार के लिए फायदेमंद साबित हुआ। यह अखबार देखते ही देखते प्रसार के मामले में बहुत आगे निकल गया। लेआउट, खबरों और जवाबदेही के मामले में केंद्रीकृत विकेंद्रण की व्यवस्था ने अमर उजाला के अंदर की राजनीति को पूरी तरह समाप्त कर दिया। सभी लोग सिर्फ और सिर्फ काम पर ध्यान लगाने लगे। पहले अमर उजाला के बरेली, आगरा, मेरठ के मठों के आपसी द्वंद्व की वजह से अखबार का काफी नुकसान होता था।
जो भी हो, इस वक्त देश के दो बड़े हिंदी दैनिक अमर उजाला और हिंदुस्तान के अंदर जबर्दस्त हलचल मची हुई है। अमर उजाला में काम कर रहे ज्यादातर लोग अगले संपादक के नाम की पुष्टि करने में जुटे हैं तो हिंदुस्तान के लोग शशिशेखर के आने से अपने भविष्य के बारे में गुणा-गणित कर रहे हैं। हिंदुस्तान में पिछले कुछ महीनों में ढेर सारे लोग अमर उजासा से इस्तीफा देकर पहुंचे हैं। ये लोग विशेषतौर पर परेशान हैं कि अमर उजाला छोड़ने की सजा कही उन्हें हिंदुस्तान में तो नहीं मिलने वाली है। पर सभी यह भी सोच रहे हैं कि शशिशेखर जिस बड़े पद पर आ रहे हैं, वहां वे किसी से निजी खुन्नस या बदला नहीं लेंगे। पर शशिशेखर के अतीत को देखते हुए, उनके स्वभाव को देखते हुए और उनके मूड को जानते हुए ज्यादातर लोग आशंकित हैं कि उन्हें शशिशेखर के राज में परेशान किया जा सकता है। वहीं, हिंदुस्तान के मिजाज को जानने वाले लोग कह रहे हैं कि यहां प्रबंधन इतना अधिक हावी रहता है कि किसी को यूं ही परेशान कर नहीं निकाला जा सकता है। कोई निकाला तभी जाता है जब प्रबंधन निकालना चाहता है।
उधर, अमर उजाला प्रबंधन के बेहद करीबी एक सूत्र का कहना है कि शशिशेखर ने अपना इस्तीफा अतुल माहेश्वरी को सौंप तो दिया है पर उन्होंने अपनी ओर से अभी हां या ना, कुछ नहीं कहा है। यह भी संभव है कि अगर अतुल माहेश्वरी शशि शेखर को रोकें तो वो रुक जाएं। शशि शेखर की खासियत रही है कि वे जिस भी संस्थान में रहे हैं, वहां के मैनेजमेंट के लिए पूरी तरह लायल रहकर काम करते रहे हैं। अमर उजाला के मामले में कहा जा रहा है कि शशि शेखर के इस्तीफे को स्वीकार करना प्रबंधन की आंतरिक मजबूरी भी है क्योंकि शशिशेखर को लेकर शीर्ष प्रबंधन के बीच मतभेद पैदा हो गए थे। इस मतभेद को दूर करने के लिए शशि शेखर का इस्तीफा स्वीकारा जाना करीब-करीब तय है।