इस चुनावी मौसम में जब कई बड़े अखबारों के मालिक-मैनेजर पैसा बटोरने के लिए प्रत्याशियों-पार्टियों से डील कर उनके ‘जय घोष’ की खबरें-तस्वीरें बढ़ा-चढ़ाकर प्रकाशित कर रह हैं, बहुत जरूरी हो गया है यह जानना कि चुनाव से संबंधित कवरेज के लिए दिशा-निर्देश क्या हैं। प्रेस काउंसिल ने चुनावी रिपोर्टिंग के लिए जो नियम बनाए हैं, उसे नीचे दिया जा रहा है, लेकिन उसके पहले पढ़ें बिहार के बेगूसराय जिले के एक पत्रकार साथी का पत्र-
”आज सुबह जब मैं चाय की दुकान पर पहुंचा तो वहां काफी भीड़ थी। लोग चाय की चुस्कियों के साथ अखबार की खबरें देख रहे थे। अचानक खबर देख रहे एक शख्स ने पत्रकारों को गाली देना शुरू कर दिया। मैंने सोचा क्या बात है भाई? कोई यूं ही गाली क्यों दे रहा है? इस शख्स ने इसका उत्तर भी खुद दिया।
दरअसल जिस अखबार को वह शख्स पढ़ रहा था, उसमें खबर की शक्ल में विज्ञापन था। उस शख्स का आरोप था कि पत्रकार अब पैसे लेकर प्रत्याशियों के पक्ष में खबर लिख रहे हैं। अनजान बनते हुए मैंने वह अखबार लेकर उस खबर को पढ़ना शुरू किया, जिसे पढ़ने के बाद वो शख्स गाली देने लगा था। इस खबर में एक इंडीपेंडेंट प्रत्याशी के पक्ष में आधे पन्ने की खबर थी और जो बातें लिखी हुई थीं वे बनावटी थीं और जबरन लिखी गई लग रही थी। यह स्थिति बिहार में हर जगह देखने को मिल रही है। यह अखबार कोई और नहीं बल्कि देश का नंबर वन अखबार है। मीडिया के मालिकों की नई पालिसी ने पत्रकारों को नंगा करके छोड़ दिया है। आने वाले वक्त में कहीं ऐसा ना हो कि पत्रकार अपनी विश्वसनीयता को खो दें और लोग हत्या व बलात्कार जैसी खबरों को भी प्रायोजित समझने लगें।”
अब आइए देखें, चुनाव से संबंधित करवेज के लिए प्रेस परिषद के निर्देश क्या हैं-
प्रेस का यह कर्तव्य होगा कि चुनाव तथा प्रत्याशियों के बारे में निष्पक्ष रिपोर्ट दे। समाचारपत्रों से अस्वस्थ्य चुनाव अभियानों में शामिल होने की आशा नहीं की जाती। चुनावों के दौरान किसी प्रत्याशी, दल या घटना के बारे में अतिशियोक्तिपूर्ण रिपोर्ट न दी जाए।वस्तुत: पूरे मुकाबले के दो या तीन प्रत्याशी ही मीडिया का सारा ध्यान आकर्षित करते हैं। वास्तविक अभियान की रिपोर्टिंग देते समय समाचारपत्र को किसी प्रत्याशी द्वारा उठाये गये किसी महत्वपूर्ण मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहिए और न ही उसके विरोधी पर कोई प्रहार करना चाहिए।
निर्वाचन नियमावली के अन्तर्गत सांप्रदायिक अथवा जातीय आधार पर चुनाव अभियान की अनुमति नहीं है। अत: प्रेस को ऐसी रिपोर्टों से दूर रहना चाहिए जिनसे धर्म, जाति, मत, सम्प्रदाय अथवा भाषा के आधार पर लोगों के बीच शत्रुता अथवा घृणा की भावनाएं पैदा हो सकती हों।
प्रेस को किसी प्रत्याशी के चरित्र या आचरण के बारे में या उसके नामांकन के संबंध में अथवा किसी प्रत्याशी का नाम अथवा उसका नामांकन वापस लिये जाने के बारे में ऐसे झूटे या आलोचनात्मक वक्तव्य छापने से बचना चाहिए जिससे चुनाव में उस प्रत्याशी की संभावनाएं दुष्प्रभावित होती हों। प्रेस किसी भी प्रत्याशी/दल के विरुद्ध अपुष्ट आरोप प्रकाशित नहीं करेगा।
प्रेस किसी प्रत्याशी/दल की छवि प्रस्तुत करने के लिए किसी प्रकार का प्रलोभन-वित्तीय या अन्य स्वीकार नहीं करेगा। वह किसी भी प्रत्याशी/दल द्वारा उन्हें पेश किया गया आतिथ्य या अन्य सुविधायें स्वीकार नहीं करेगा।
प्रेस किसी प्रत्याशी/दल – विशेष के प्रचार में शामिल होने की आशा नहीं की जाती। यदि वह करता है तो वह अन्य प्रत्याशी/दल को उत्तर का अधिकार देगा।
प्रेस किसी दल/ सत्तासीन सरकार की उपलब्धियों के बारे में सरकारी खर्चे पर कोई विज्ञापन स्वीकार / प्रकाशित नहीं करेगा।
प्रेस निर्वाचन आयोग/निर्वाचन अधिकारियों अथवा मुख्य निर्वाचन अधिकारी द्वारा समय समय पर जारी सभी निर्देशों/अनुदेशों का पालन करेगा।
जब भी समाचारपत्र मतदान पूर्व सर्वेक्षण प्रकाशित करते हैं तो उन्हें सर्वेक्षण करवाने वाले व्यक्तियों और संस्थाओं का उल्लेख सावधानीपूर्वक करना चाहिए एव्म प्रकाशित होने वाली उपलब्धियों के नमूने का माप एवं उसकी प्रकृति , पद्धति में गलतियों के संभावित प्रतिशत का भी ध्यान रखना चाहिए। [सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मतदान पूर्व सर्वेक्षणों पर रोक लगा दी गयी है। -सं.]
- अगर चुनाव अलग चरणों में हो तो किसी भी समाचारपत्र को मतदान पूर्व सर्वेक्षण चाहे वे सही भी क्यों न हो प्रकाशित नहीं करना चाहिए।
अफलातून के ब्लाग से साभार
Lucytr
February 14, 2010 at 12:57 am
I guess that there’s not a pretty good idea to compose the analytical essay by your own! For me, it would be better to buy the comparison contrast essay at essay writing service, just because it saves time and money.