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हलचल

महाकुंभ : सरकारी झूठ पर मीडिया की मुहर

हरिद्वार में स्नान

12 वर्षों पर लगने वाले महाकुंभ की हरिद्वार में गज़ब चहल-पहल है। उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद इस नए राज्य की मेजबानी में प्रारंभ हुआ है महाकुंभ। मकर सक्रांति स्नान से इसकी विधिवत शुरुआत हो गई। 14 जनवरी से आरम्भ होकर 28 अप्रैल तक कुल 11 स्नान होने हैं। इसमें तीन शाही स्नान होंगे। समूचे उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी के बीच मकर सक्रांति स्नान को लेकर प्रशासन तैयार था। मीडिया भी तैयारी में था। सभी चैनलों में जैसे लाइव दिखाने की होड़-सी लगी थी। नामचीन चैनलों का दल-बल अपनी ओवी वैन के साथ एक दिन पहले से ही मौके पर था। पल-पल की खबर हर चैनल किसी भी कीमत पर अपने दर्शकों को देने के लिए आतुर था। हो भी क्यों नहीं,जब एक-एक चैनल ढाई-ढाई दर्जन की फौज मौके पर कई कैमरों संग तैनात करेगा।

हरिद्वार में स्नान

हरिद्वार में स्नान

12 वर्षों पर लगने वाले महाकुंभ की हरिद्वार में गज़ब चहल-पहल है। उत्तराखण्ड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद इस नए राज्य की मेजबानी में प्रारंभ हुआ है महाकुंभ। मकर सक्रांति स्नान से इसकी विधिवत शुरुआत हो गई। 14 जनवरी से आरम्भ होकर 28 अप्रैल तक कुल 11 स्नान होने हैं। इसमें तीन शाही स्नान होंगे। समूचे उत्तर भारत में कड़ाके की सर्दी के बीच मकर सक्रांति स्नान को लेकर प्रशासन तैयार था। मीडिया भी तैयारी में था। सभी चैनलों में जैसे लाइव दिखाने की होड़-सी लगी थी। नामचीन चैनलों का दल-बल अपनी ओवी वैन के साथ एक दिन पहले से ही मौके पर था। पल-पल की खबर हर चैनल किसी भी कीमत पर अपने दर्शकों को देने के लिए आतुर था। हो भी क्यों नहीं,जब एक-एक चैनल ढाई-ढाई दर्जन की फौज मौके पर कई कैमरों संग तैनात करेगा।

ऐसे में लाजिमी रूप से वह चाहेगा कि उनके रिपोर्टर कुछ अलग करें। पर अलग करने का यह कौन-सा तरीका है? मौका था मकर सक्रांति स्नान का। समय यही कोई सुबह के सात बजे होंगे। कोहरे की चादर से सूर्यदेव हल्का-हल्का दिखाई दे रहे थे तथा तापमान भी कम था। हर किसी को उस पल का इंतजार था कि हरकी पैड़ी पर स्नान कर रहे लोगों को शूट कर अपने-अपने चैनलों में दिखाया जाए। अभी घाटों पर भीड़ जुटी भी नहीं थी कि खबरिया चैनलों के लाइव दे रहे संवाददाताओं ने चंद हजारों की भीड़ को लाखों में बताना शुरू कर दिया। कुछ ने शाम तक चालीस लाख तो कुछ ने 25 लाख तक लोगों के स्नान की भविष्यवाणी कर दी। स्नान संपन्न होने के बाद मेला डीआईजी ने शाम के वक्त प्रेस ब्रीफिंग कर बताया कि कुल दस लाख लोगों ने स्नान किया है। परन्तु तब तक तो बात आधा करोड़ तक जा चुकी थी। हास्यास्पद यह रहा कि जब इन चैनलों के कैमरे चल रहे थे तो उनमें घाट खाली दिखाई दे रहे थे। अब सवाल यह उठता है कि प्रशासन को तो भीड़ दिखाने का लाभ मिल सकता है परन्तु मीडिया आखिर प्रशासन के झूठ पर अपनी मुहर क्यों लगा रहा है? चंद हजार की भीड़ को लाखों तथा लाखों की भीड़ को करोड़ों में दिखाने से क्या लाभ?

आज से सात वर्ष पहले गुरूकुल कांगड़ी विवि की पत्रकारिता विभाग की टीम ने वरिष्ठ पत्रकार कमलकांत बुधकर जी के नेतृत्व में यह जानने का प्रयास किया कि आखिर एक समय में हरिद्वार के आश्रम, अखाड़ों, होटलों में कितने लोग रह सकते हैं तथा सभी घाटों पर कितने लोग एक साथ स्नान कर सकते हैं? इस टीम का मैं भी हिस्सा था। मामले की पड़ताल के बाद पता चला था कि सरकारी आंकड़े सच्चाई से लगभग चार गुने बैठते हैं तथा उनके झूठ पर अपनी मुहर लगाता है मीडिया। हरिद्वार का क्षेत्रफल साढ़े बारह किमी है तथा हरकी पैड़ी का विस्तारित क्षेत्रफल लगभग आठ हजार वर्ग मीटर। रह गये घाटों की बात करें तो ये लगभग डेढ़ लाख वर्ग मीटर में फैले हैं। परन्तु स्नान के दिनों मे 80 फीसदी लोग हरकी पैड़ी पर ही स्नान करते हैं। अन्य घाटों पर 20 फीसदी लोग जाते हैं। आने वाले स्नानों में यह प्रतिशत जरूर घट-बढ़ सकता है।

गत दिवस स्नान में रेलवे ने भी सभी तैयारियां की थी परन्तु स्टेशन अधीक्षक समरेन्द्र गोस्वामी का कहना है कि रेल अधिकांश खाली थीं तथा कुल 2 हजार यात्री दिन भर में आए। पार्किंग की जहां तक बात करें तो वहां चंद हजार निजी कारें थीं। इनकी संख्या पांच हजार से दस हजार भी मान ली जाए तो प्रति कार पांच आदमी के हिसाब से अधिकतम पचास हजार आंकड़ा बैठता है। सरकारी बसों में भी इससे ज्यादा आमद नहीं हो सकती है। ऐसे में मीडिया द्वारा दिखाया गया 25 लाख व 40 लाख का क्राउड आखिर पहुंच कैसे गया? हरकी पैड़ी पर इतनी जगह नहीं कि एक साथ लाखों लोग स्नान कर सकें। ऐसे में मीडिया में ये कहना कि लाखों आ गये, आखिर इसका पैमान क्या है?

महज अंदाजे के आधार पर कोई 25 लाख लोगों को नहला रहा है तो कोई 40 लाख। सच्चाई यह है कि कुल जमा तीन लाख लोगों ने हरकी पैड़ी पर स्नान किया होगा। पल पल की खबर देने की होड़ तो अच्छी पर इस तरह आंकड़ों में असमानता का क्या औचित्य है? ग्यारह स्नानों में प्रशासन छह करोड़ लोगों के आने की बात कर रहा है। हो भी क्यों नहीं, हमारे बंधुओ का बस चला तो वह छह क्या दस करोड़ तक संख्या पहुंचा देंगे।

हरिद्वार से स्वतंत्र शिवा की रिपोर्ट

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0 Comments

  1. govind goyal

    January 16, 2010 at 5:25 am

    ye hui naa baat. ise kahte hain reporting. milk ka mlik ganga jal ka gnga jal.na teri na meri. do or do char or keval char.narayan narayan

  2. avinash

    January 16, 2010 at 7:10 am

    swatantra siva aapki report kabile tarif hai…keep it up

  3. Arun Kumar

    January 16, 2010 at 8:52 am

    janab aapki ye report sahi ahi ki mahakumbh k pehle shahi snnan mai koi 3 lakh log hi dubka laga paye ho, kintu prashasan ka 6 karore ka aankara aapko bada lag raha hai. jabki jaise jaise taapmaan badega waise waise logon ki bheed bhi badegi or maine delhi k logon mai jo utsukta haridwaar jane ki dekhi hai us se to garmiyon tak ye aankda hi chhota ho jayega….. to ise tes match ki dhimi shuruaat hi samjhiye…… ranon ka ambaar lagna to baki hai…………….

  4. rajesh 9752404020 journalist

    January 16, 2010 at 2:22 pm

    it is not first occasion, when no. of pilgrims was counted by journalist without knowing the fact, crow management, etc. most of the journalist even do not know how mela administration counts the crowd of total pilgrims, who take bath in kumbh, whether it may be in allahabad, ujjain, trayambkeswar or haridwar. the basic of all the four holy place of kumbh is totally different. i had reported and tried to understand the ABC of mela, saints, mandleswar, sadhu, politics of Akhara parisad, politics of mela administration and the state govt’s policy to deal all type of matters, including crowd in main bathing day or parva, various type of disputes in the mela area. so far as i know, the reporters should first know the basic of kumbh, concept, history, different activities of sanits, mahants, incharge of camps etc. i am writing this, because i have covered mahakumbh-2010 four months before mela started (sept, 1999) for a national english daily. even, to understand the big and so called saints, i took break in journalism and lived with ‘big saint’ of different sect, observed their daily routine and activities. as much as i knew them, my curiosity………! it is tremendous opportunity for every media person, who are reporting or deputes to show actual and positive picture of kumbh, discourage so-called saints and encourage true Sadhak, in the interest of country, religion as well as to restore ‘credibility of media’, else……… what will happened? people will first check the report and say, TV me jo dikhaya voh sahi hai kya…….?

  5. sanjay pathak journalist

    January 16, 2010 at 3:23 pm

    Bhai Swatantra ki report dekhi. Sadhuwad. Shiva asal mai media mai aajkal jyadatar log naye hain wo thodi si bheed dekh kar hazaron mai pans jaate hain. Phir jahan sarkar aisi ho jo media ki haan main haan milati ho to phir kaise sahi likh ya bol payenge?

  6. सूर्योदय कुमार

    January 17, 2010 at 6:17 am

    बात जब ‘क्या मिला’ पर पहुंची है तो इसका अर्थशास्त्र भी समझ लीजिए। अगर टीवी चैनलों के पत्रकार ये कहने लगते कि भीड़ महज तीन लाख है, तो यह कोई बड़ा इवेंट नहीं बन पाता। जब लाइव टेलिकास्ट के लिए भारी भरकम खर्च कर के और विज्ञापन जुटा कर प्रायोजकों से कहा गया है कि वो सदी के पहले ‘ऐतिहासिक महाकुंभ’ के प्रसारण में भागीदार बन रहे हैं तो उन्हें आप कैसे कह सकते हैं कि यह आयोजन टांय टांय फिस्स हो गया है? कई चैनलों में तो जब असाइनमेंट से खबर आई कि स्नान के लिए भीड़ नहीं जुटी है तो आउटपुट ने कहा कि कैमरे को भीड़-भाड़ वाले एरिया की रिकॉर्डिंग करने भेजो और उसे ही बार-बार दिखाओ। अब लोग ठंढ के कारण इस महापर्व का लाभ नही उठा पाए तो भला न्यूज चैनल इससे क्यों चूकें? एक बात साफ-साफ समझ लीजिए, ये तथाकथित न्यूज चैनल दर्शकों के लिए नहीं, विज्ञापनदाताओं के लिए चलते हैं।

  7. dinesh mansera ndtv nainital

    January 17, 2010 at 12:37 am

    bahut had tak mai bhi aapki baat se sahmet hu..DIG 10 lakh bata rahe hai wo bhi bada charha har..aapki report ko salaam bhai

  8. pratul

    January 17, 2010 at 2:53 am

    media me kam padhe likhe logon aur unke moorkh sampadkon kee badolat aisi reporting aam hai.yun bhee kumbh andhvishwaas ka doosra naam hai.itne saare logon ke nahane se amrit to nahi haan kuch skin diseases zaroor shradhaluon ko prapt hongi.

  9. डॉ.कमलकांत बुधकर

    January 17, 2010 at 3:53 am

    शिवा, तुम्‍हारा आलेख बिलकुल सही है। मैं तो वहीं था हरकी पौड़ी पर सुबह आठ बजे जब एक स्‍वनामधन्‍य टीवी चैनल के स्‍वनामधन्‍य वरिष्‍ठ पत्रकार दुनिया को बता रहे थे कि सवेरे सवेरे 25 लाख लोग हरकी पौड़ी पर नहा चुके हैं। इस ढूठ पर तो सरकार ने भी मुहर नहीं लगाई। वहीं संजय पुल पर खड़े मेलाधिकारी आनन्‍द बर्धन से जब बात हुई तो वे खुद 25 लाख की बात पर ठठा कर हंस पड़े। बोले आपके ही साथी कह रहे हैं, हम क्‍या कहें।
    तुमने सही पूछा है कि इतना झूठ बोलकर क्‍या मिलेगा मीडिया को। या वे बताएं कि क्‍या मिल चुका है

  10. ajit singh rathi

    January 17, 2010 at 10:28 am

    एक बार एक बेटे अपनी माँ से कहा की मुझे पंचायत में जाना है. माँ ने कारण पूछा तो बच्चे ने कहा की मैंने शर्त लगायी है कि मुर्गी के तीन टांग होती है. यह सुनकर माँ हैरान हुई और बोली शर्त तो तुम पहले ही हार चुके हो. बेटे ने कहा, शर्त तो मै तब हारूंगा जब दो टांग कहूँगा. कुछ इसी तरह का हाल हमारे पत्रकारों का भी है. एक बार भीड़ चालीस लाख कही तो पीछे कैसे हटे. कुम्भ की भीड़ का आंकड़ा भी मुर्गी की तीन टांग बताने की तरह ही था. लेकिन आगे भी आपको नज़र रखनी होगी वर्ना भीड़ सौ करोड़ तक भी जा सकती है.

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