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साहित्य

साहस का इतिहास

हरिवंशसंसार के एक सूत्र को किन लोगों ने बांधा? यह इतिहास पढ़ना और जानना, मनुष्य के साहस, संकल्प, स्पिरिट (उत्साह, ऊर्जा) और उसमें निहित संभावनाओं से रुबरु होना है. पात्र अलग-अलग हैं, पर सबमें साहस है. धर्य है. बेचैनी है. अंधेरे में छ्लांग लगाने का माद्दा है. इसी क्रम में निराशा भी है. मौत से मुठभेड़ भी. यह इतिहास या विवरण लिखा है, पीटर आगटन ने. पुस्तक का नाम है, वॉइज दैट चेन्जड द वर्ल्ड (समुद्री यात्राएं जिन्होंने दुनिया को बदल दिया). पीटर इसके पहले इंडेवर (प्रयास, कोशिश, उद्यम) पुस्तक लिख चुके हैं. इतिहास से जुड़ी, जो खूब बिकी. चर्चित रही. पेशे से वह कंप्यूटर इंजीनियर हैं. दुनिया के पहले सुपरसोनिक एयरलाइंस बनाने के काम में वह जुटे थे. साथ ही ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में इतिहास से जुड़े प्रसंगों पर व्याख्यान भी देते रहे. पिछ्ले 25 वर्षों से. अब उनकी यह किताब आयी है. लगभग 212 पेजों की. पुस्तक लंदन में छपी. भारत में पेंगुइन इंडिया के सौजन्य से वितरित. कीमत 595 रुपये. पुस्तक का आकार सामन्य से बडा़.  नक्शे, पोट्रेट, तसवीरें, ऐतिहासिक स्केच, रेखाचित्र और पेंटिंग वगैरह.

हरिवंश

हरिवंशसंसार के एक सूत्र को किन लोगों ने बांधा? यह इतिहास पढ़ना और जानना, मनुष्य के साहस, संकल्प, स्पिरिट (उत्साह, ऊर्जा) और उसमें निहित संभावनाओं से रुबरु होना है. पात्र अलग-अलग हैं, पर सबमें साहस है. धर्य है. बेचैनी है. अंधेरे में छ्लांग लगाने का माद्दा है. इसी क्रम में निराशा भी है. मौत से मुठभेड़ भी. यह इतिहास या विवरण लिखा है, पीटर आगटन ने. पुस्तक का नाम है, वॉइज दैट चेन्जड द वर्ल्ड (समुद्री यात्राएं जिन्होंने दुनिया को बदल दिया). पीटर इसके पहले इंडेवर (प्रयास, कोशिश, उद्यम) पुस्तक लिख चुके हैं. इतिहास से जुड़ी, जो खूब बिकी. चर्चित रही. पेशे से वह कंप्यूटर इंजीनियर हैं. दुनिया के पहले सुपरसोनिक एयरलाइंस बनाने के काम में वह जुटे थे. साथ ही ब्रिटेन के विश्वविद्यालयों में इतिहास से जुड़े प्रसंगों पर व्याख्यान भी देते रहे. पिछ्ले 25 वर्षों से. अब उनकी यह किताब आयी है. लगभग 212 पेजों की. पुस्तक लंदन में छपी. भारत में पेंगुइन इंडिया के सौजन्य से वितरित. कीमत 595 रुपये. पुस्तक का आकार सामन्य से बडा़.  नक्शे, पोट्रेट, तसवीरें, ऐतिहासिक स्केच, रेखाचित्र और पेंटिंग वगैरह.

उम्दा कागज पर आकर्षक छपाई. इस पुस्तक में विवरण है, मनुष्य के शुरूआती साहसिक समुद्री यात्राओं के वर्णन. कोलंबस या अन्य नाविक, जिन्होंने दुनिया ढ़ूढ़ी, उनकी यात्राएं ही इस भाव से शुरू हुई कि शायद अब लौटना न हो. मानवीय संकल्प का सौंदर्य, साहस का सौंदर्य, सपनों का सौंदर्य, हर साहसिक यात्रा की एक-एक पंक्ति में या शब्द में है. मौत से जूझते मनुष्य की ललक और आकांक्षा की बातें. फिर उन खतरनाक यात्राओं में धीरे-धीरे सरकता समय. समुद्री तूफान का खौफ, निराशा, पस्ती, हर क्षण मौत से साबका. एक-एक लहरों पर थिरकता जीवन-मौत का नृत्य. फिर भी नया कुछ खोजने-ढूंढने की जिद. हर यात्रा का सारांश लगभग यही. अनेक मिट गये. कुछ बचे. फिर भी खोजने की जिद बन्द नहीं हुई. इस तरह कैसे समुद्री नाविकों, साहसी अन्वेषकों, धुनी लोगों, समुद्री डकैतों-लुटेरों के संकल्प ने विश्व इतिहास को आकार दिया. पुस्तक में सबसे पहले समुद्री यात्रा करनेवाले फिनिशियन लोगों के वृतांत हैं. बार्थो लोम्यू डायस और वास्को-डी-गामा की बातें हैं अमेरिका के खोज से जुड़ी सामग्री है. पहली बार जिसने दुनिया का चक्कर लगाया, उसके ब्योरे हैं. फ्रांसिस ड्रेक की साहस भरी कथा है. असली रॉबिनसन क्रूसो की कहानी है. प्रशांत महासागर में यात्रा करने वाले कैप्टन कुक की बातें हैं. इस तरह धरती के अंत तक, धरती की तलाश करनेवालों की बातें हैं.

भूमिका में पीटर ने लिखा है, मनुष्य में अज्ञात को जानने की प्रवृति है. क्षितिज पार यात्राएं कर नए दृश्य, नयी दुनिया खोजने की भूख रही है. यह मनुष्य के साहस का स्वभाविक रुझान है, जिसने दुनिया को पत्थर युग से यहां पहुंचाया. पीटर कहते हैं हम पश्चिमी लोग यही मानते हैं कि ग्रीस और रोम का उदय से दुनिया खोजने की शुरुआत हुई. पर पूरब के लोग इससे इत्तफाक नहीं रखेंगे. रोम के उदय के हजारों साल पहले एशिया और इंडोनेशिया के लोग निकल पड़े थे. इनमें से अधिकांश धरती पर ही यात्रा करनेवाले और नया खोजनेवाले थे. पर साथ ही समुद्री यात्राएं उन्होंने आरंभ की. उन द्वीपों और सुनसान जगहों पर वे पहुंचे, जहां कोई रहता नहीं था. ईसा से बहुत पहले चीन धरती पर बहुत बड़ा और विकसित देश था. लेकिन चीनियों को जापान, भारत के साम्राज्यों से स्पर्धा थी. चीन के नौसैनिक बड़े थे. इन देशों ने समुद्र में यात्रा करने वाली नावें बनायीं. कुछेक ने नौसैनिक बेड़ा खड़ा किया. प्रशांत महासागर की लहरों पर भी इनके निशान दर्ज हुए.

बाद में बड़ी समुद्री यात्राओं को, यूरोप के बड़े देशों और साम्राज्यों ने स्पांसर (प्रायोजित) किया. यह सब महज व्यापार के लिए नही हो रहा था. ये पश्चिमी देश या लोग नयी भूमी, नयी धरती की तालाश में थे. ज्ञान की खोज में भी. इस तरह उपनिवेश बनाने और नयी दुनिया खोजने की भूख बढ़ी. पूरब की तलाश हमेशा से उत्सुकता से की गयी. चाहे कोलंबस हो या कबोट या मेशलान या अनेक अनाम, जो इस खोज के ज्वार से पीड़ित थे, पर जो अनाम रहते हुए लहरों में समा गये.

पीटर कहते हैं कि यह बड़ी यात्राओं की कथा है, जिसने ज्ञान बढ़ाने, खोजने और दुनिया के नक्शे बदलने-बनाने में मदद की. वे हमेशा यह भी कहते हैं कि हम सौभाग्यशाली हैं कि हमारे पास पुराने जर्नल (पत्र, पत्रिका) हैं, जिनमें अनेक ऐसी महान समुद्री यात्राओं का आंखो देखा वृतांत है. पीटर कहते हैं कि ये वृतांत खुद अपने किए पढ़ सकते हैं उन लोगों के शब्दों, विचारों और जुबानों में, जिन्होंने तब दुनिया ढूंढी, जब समुद्री जहाज नही बने थे. यात्राएं नितांत असुरक्षित थीं. फिर भी मनुष्य के हौसले ने इस अज्ञात संसार में छलांग लगा कर दुनिया को आकार दिया. पहले अध्याय में मानव जीवन के शुरुआती दिनों की यात्राओं के वर्णन हैं. फीनिशियन के. यह तब का है, जब लिखित रिकार्ड उपलब्ध नहीं थे. ईसा के तुरत बाद आयरलैंड के सेंट प्रीडेन ने सबसे पहले साहसिक समुद्री यात्राएं की. अटलांटिक महासागर में. अनगढ़ (प्रीमिटिव) खुली नाव में. इस तरह जब उन्होंने पहला पहाड़ देखा, तो उन्हें जलती आग की लौ नजर आयी. आसमान साफ था. पीछे सूरज की रोशनी थी और फिर इसी पृष्ट्भूमि में पहड़ की लंबी चोटियों का नजारा. इस तरह के एक-एक दृश्य का वर्णन, जिसे मनुष्य ने पहली बार देखा.

शुरुआती दिनों में नार्वे के एक खास समूह की नावें सबसे सुन्दर और तेज साबित हुईं. 1580 में भूगोलविद रिचर्ड हैकलुड समुद्री यात्राओं पर सामग्री एकत्र कर रहे थे, तो उन्हें एक नया तथ्य मिला. वेल्स परंपरा में. 400 वर्ष पहले अटलांटिक पार करने के संकेत. वहां के एक दरबारी कवि या चारण ने अपने गीतों में इसे गाया था. चीन के मिंग राजाओं के काल (1415-1421) में चीनी नाविकों ने दुनिया के बहुत इलाकों में सफल यात्राएं कीं. इन राजाओं ने बेड़े खड़े किये,जिनका काम था, दुनिया को ढ़ूढ़्ना. चीनी सर्वश्रेष्ठ खगोलविद भी थे. उन्हें तारों की गति का बेहतर ज्ञान था. इससे वह धरती की गति को जोड़ कर देखते थे. 1394-1460 के बीच पुर्तगाल के नाविकों ने भी दुनिया को मापा और अफ्रीका तक गये. उन्होंने 1481-1473 के बीच ग्यारह मुल्कों, द्वीपों, महाद्विपों की खोज की. 1481 में पोप ने एक आदेश जारि किया. इसका आशय था कि मध्याह्न रेखा (लैटट्यूड) के दक्षिण के इलाके पुर्तगाल के होंगे. उतर के इलाके स्पेन के होंगे. पुर्तगाल के दो बड़े नाविकों ने पूरब की यात्रा की और भारत को खोजना चाहा. 1487 से 1497 के बीच. पहली यात्रा बार्थो लोम्यू डायस ने की. दूसरी सफल यात्रा वास्को-डी-गामा ने.

डायस पहला यूरोपियन था, जो अफ्रीकी महाद्वीप के सबसे दक्षिण तक पहुंचा. पर उसके साथियों ने वहं से आगे बढ़ने से इनकार कर दिया. इस तरह वह सही रास्ते पर रह कर भी भारत नहीं खोज सका. उसके साथ के नाविक थक गये थे. भयंकर तूफानों से. जीवन की उम्मीद खो बैठे लोग. डायस ने सबको संबोधित किया. अपने सम्राट के सम्मान को स्मरण कर आगे यात्रा का संकल्प दोहराया. दो दिन लोग फिर आगे बढ़े, पर पस्त होकर पीछे लौटे. अंतत: इस रास्ते को वास्को डी गामा ने ढ़ूढ़ा. वास्को डी गामा के नाविकों-साथियों ने भी एक पड़ाव पर लगभग विद्रोह कर दिया. समुद्री तूफान, घटता राशन, हर पल मौत की आहट के बावजूद वास्को डी गामा अडिग रहा. अपने लोगों को प्रेरित करता रहा और इस तरह उसने भारत ढ़ूढ़ निकाला. इसी तरह कोलंबस के अमेरिका खोज की कहानी है. रोमांच से भरी, साहस और पस्त होते हौसले की भी बातें. फिर अमेरिका ढ़ूंढ लेने का सुख. इस तरह दुनिया के मशहूर नाविकों की खोज यात्राओं पर यह किताब, न सिर्फ विशेषज्ञों के लिए जरूरी है, बल्कि हर एक सामान्य पाठक के लिए उपयोगी है क्योंकि यह मनुष्य के साहस, संकल्प, और शौर्य की गाथा है. कुछ नया खोजने, ढ़ूढ़ने की बातें हैं, तब जब न कोई साधन था, न तकनीक थी, न इन यात्राओं में सुरक्षा थी और न इनमे कोई भौतिक लाभ था.


लेखक हरिवंश देश के प्रमुख हिंदी अखबारों में से एक प्रभात खबर के प्रधान संपादक हैं. नई किताबों पर उनका नियमित कालम प्रभात खबर में ‘शब्द संसार’ नामक स्तंभ में प्रकाशित होता है. वहीं से साभार लेकर इस आलेख को प्रकाशित किया जा रहा है. हरिवंशजी से संपर्क के लिए [email protected] का सहारा ले सकते हैं.

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