खबरों-खुलासों का सच : भाग-4 : मुंडा और मरांडी के कार्यकाल का कुशासन : बाबूलाल मरांडी राज्य के मुख्यमंत्री बने. भ्रष्टाचार की बुनियाद उनके कार्यकाल में पड़ी. अनेक मंत्री बेलगाम थे. वे लालूजी की फिलासफी पर अमल करते थे कि राजा के शब्द ही कानून हैं. खुद लालूजी व्यवहार में इस सिद्धांत पर बहुत नहीं चले. पर झारखंड के मंत्रियों का अघोषित सिद्धांत यही था. किसी मंत्री ने पुरी में रिसार्ट खरीदा, तो कोई नक्सली पृष्ठभूमि से आकर अथाह संपत्ति जमा करने की होड़ में लग गया. खुद बाबूलाल जी के इर्द-गिर्द अनेक ऐसे पात्र जमा हो गये, जो भ्रष्टाचार के पर्याय थे. प्रभात खबर ने इन सबके खिलाफ छापा. खुद मुख्यमंत्री बाबूलाल के खिलाफ अनेक चीजें उठायीं. कुछेक मुद्दे याद हैं, जिन्हें प्रभात खबर ने उठाया. विधानसभा से लेकर सडकों तक इन मुद्दों पर चर्चा हुई.
25 करोड़ गरीबों पर सालाना 35000 करोड़ खर्च, नतीजा सिफर – (24 नवंबर 01)
कोदाईबांक बांध निर्माण में घपले की जानकारी सरकार को पहले से थी, फिर भी केसरी और दो करोड़ दिलाने पर अड़े थे ( 7 जुलाई 2002)
इच्छानुसार काम नहीं होने से नाराज हैं कुछ मंत्री – (7 मार्च 2001)
केंद्र ने झारखंड का दो सौ करोड़ रोका – (2 जुलाई 2002)
कानून तोडते हैं मंत्री, आलोचना करते हैं अफसरों की – (12 नवंबर 2001)
भ्रष्टाचार के कारण रात को नींद नहीं आती – मरांडी, (13 नवंबर 2001)
कभी भी इस्तीफा दे सकते हैं झारखंड के स्वास्थ्य मंत्री – (8 अगस्त 01)
मंत्रियों का जवाब और व्यवहार शर्मनाक – (7 मार्च 02)
झारखंड में अराजक स्थिति – हाईकोर्ट, (10 जुलाई 01)
भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी है झारखंड की सरकार – (14 जून 2001)
झारखंड में बतौर कमीशन 336 करोड की वसूली – (2002)
10 करोड के खर्च में ढाई करोड कमीशन – (24 दिसंबर 2002)
नगर विकास मंत्री को गिरफ्तार करने का आदेश – (27 मार्च 2002)
ये महज बानगी हैं, ऐसी खबरें लगातार छपती रहीं. झारखंड जन्म के साथ ही. ऐसी खबरों को छापने का परिणाम बाबूलालजी के कार्यकाल में प्रभात खबर के विज्ञापन बंद किये गये, सरकार की ओर से. ये भी आन रिकार्ड है. प्रभात खबर ने लिखकर विरोध दर्ज कराया. फिर अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बने. उनके कार्यकाल में भी भूख से लेकर भ्रष्टाचार के जो सवाल प्रभात खबर में उठे, उनसे सरकार मुश्किल में पड़ी. खासतौर से स्मरण करना चाहेंगे, सीपीआई-एमएल के विधायक महेंद्र सिंह को. विधानसभा में और विधानसभा के बाहर अकेले उनकी कारगर भूमिका यादगार है. बाबूलाल मरांडी ने भी अपने कार्यकाल में कई अफसरों को निर्देश दे रखा था कि वे महेंद्र सिंह तक सूचनाएं न पहुंचने दें या जो महेंद्र सिंह से मिलते थे, उनसे वे खफा हो जाते थे. डर से कोई अफसर उनसे मिलता नहीं था. पर वह लगातार प्रभात खबर में लिख कर मुद्दों को उठाते थे और विधानसभा में भी.
क्या पत्रकारिता की चिंता करने वाले लोगों ने तब देखा कि महेंद्र सिंह के उठाये मुद्दे या सवाल कहां छपते थे? फिर झारखंड में पहला चुनाव हुआ. 2004 के आरंभ में. जिन मंत्रियों – विधायकों के खिलाफ गंभीर आरोप सामने आये थे, प्रभात खबर ने फिर इन्हें चुनाव मुद्दा बनाया. तब लगभग सभी ऐसे मंत्री चुनाव भी हारे.
फिर चुनाव बाद 2004 में शिबू सोरेन के नेतृत्व में तत्कालीन गवर्नर ने सरकार बनवा दी. पर बहुमत उनके साथ नहीं था. प्रभात खबर ने अकेले यह मुद्दा उठाया. अंतत: वह सरकार नहीं टिक सकी. विधानसभा में गिर गयी. दूसरी सरकार बनी. अर्जुन मुंडा के नेतृत्व में. पर मुंडा का दूसरा कार्यकाल और फिसलन भरा रहा. खुद उन पर आरोप लगे. अपनी पत्नी के नाम एक एजेंसी लेने का. बाबूलाल जब मुख्यमंत्री थे. तब उनके निजी संबंधों को लेकर खबरें आयीं. वे खबरें प्रभात खबर में ही छपीं. और अर्जुन मुंडा कार्यकाल की गलत चीजें भी प्रभात खबर की सुर्खियां बनीं.
योजना खर्च के दावे व कोषागार के ब्योरे में 200 करोड़ का अंतर – 6 अप्रैल 05
गांव में बिजली के नाम पर ठेकेदार आपस में 67 करोड़ बांटेंगे – 31 अगस्त 04
मंत्री नहीं बना सके, तो संसदीय सचिव बना दिया, संवैधानिक नियमावली के विरुद्ध है यह फैसला, (लोकनाथ महतो, नीलकंठ सिंह मुंडा, अशोक भगत व उपेंद्र दास) – 30 जुलाई 05
सूखा पीड़ितों को अनाज का एक दाना नहीं मिला – 06 मार्च 06
14 वीआइपी की सुरक्षा में 650 जवान, एक लाख लोगों की सुरक्षा सौ जवानों पर, आम लोगों की सुरक्षा होमगार्ड के हवाले, नेताओं की सुरक्षा में एसटीएफ – 11 मई 05
41 करोड़ के चावल के आपूर्ति आदेश में हेराफेरी – 11 मई 05
चार साल में पांच हजार कुआं नहीं बनवा सकी सरकार, 2001 की सूखा राहत योजना का हाल – 28 मई 05
झारखंड का दूसरा सरप्लस बजट भी घाटेवाला था – 22 नवंबर 04
झारखंड देश का सातवां सबसे भ्रष्ट राज्य, ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की ताजा रिपोर्ट का खुलासा, झारखंड के 24 लाख परिवार हर साल देते हैं घूस- 29 सितंबर 05
खुलने थे 74, खुले सिर्फ तीन स्कूल, केंद्र ने चेताया – 29 सितंबर 05
चार माह में 483 करोड़ कमाने की योजना बनी, ऊर्जा के क्षेत्र में काम के नाम पर कमाई की योजना – 30 अगस्त 04
एचबी लाल न 73 के, न 78 के, 79 साल के हैं – 30 अगस्त 04
“लूटने’ के लिए नामी कंपनियों ने गंठबंधन किया, गंठबंधन का परिणाम – 30 अगस्त 04
कंपनी पूर्व दर वर्तमान दर
एटलस 1620 रुपये 1995 रुपये
सफारी 1590 रुपये 1995 रुपये
हीरो 1547 रुपये 1995 रुपये
एवन 1614 रुपये 1995 रुपये
कानून के दो रूप : लालबत्ती हर कानून से मुक्त, झारखंड हाइकोर्ट के निर्देश पर रांची पुलिस ने अच्छा अभियान चलाया है. आम लोगों के वाहनों की जांच की जा रही है. वाहनों को जब्त भी किया जा रहा है. इस अभियान से रांची में ट्रैफिक नियंत्रित है. पर लालबत्तीवाली गाड़ियों के लिए कोई कानून नहीं है. इन्हें कोई पूछता भी नहीं. 28 अगस्त को दिन के 12.30 बजे से पांच बजे के बीच मेन रोड पर हमारे छायाकार माणिक बोस ने जहां-तहां नो पार्किंग में खडी गाडियों की तसवीरें लीं. – 29 अगस्त 04
अधिकारी दायित्व नहीं निभा रहे हैं : राज्यपाल (वेद मारवाह) – 31 दिसंबर 03
एक साल में 26728 करोड़ खा गये भ्रष्टाचारी, रिकवरी सिर्फ 0.13 फीसदी – 12 जून 05
राशि खर्च नहीं करने पर झारखंड को फटकार – 31 मई 03
ज्योति कंस्ट्रकशन को ठेका देने में बड़ा घोटाला – 28 जनवरी 04
सडक निर्माण में चल रहा है 27 फीसदी कमीशन – 4 जुलाई 05
झगडे की जड में 350 करोड़ रुपये का खेल – 28 जून 04
विधानसभा में हो रहा दो नंबर का काम, स्पीकर ने रोका – 19 अक्टूबर 05
10 करोड के काम से सीणे 300 करोड़ का काम मिला – 1 सितंबर 04
झारखंड में अपराधिक जांच मशीनरी फेल – 11 दिसंबर 03
जिम्मेवारी नहीं निभा रही है झारखंड सरकार – 14 अप्रैल 05
चार हजार पद नहीं भरे – 18 दिसंबर 03
बिना टेंडर के ठेका देकर तीन करोड़ का लाभ पहुंचाया – 11 नवंबर 2003
331 करोड के टेंडर में 16.25 करोड़ कमीशन की तैयारी? – 14 जुलाई 2003
32 करोड के दवा घोटाले में प्राथमिकी दर्ज – 22 जून 03
राशि की गडबडी, एजी ने आपत्ति की – 8 नवंबर 03
डीएसपी निलंबित, सीएम के ही आफिस सचिव पर आरोप लगे – 28 अप्रैल 03
400 करोड़ का भूमि घोटाला, अफसरों पर मुकदमा नहीं चलेगा – 28 जुलाई 03
भ्रष्टाचार बना सबसे बड़ा उद्योग – 15 नवंबर 03
भ्रष्टाचार में कैद भविष्य – 15 नवंबर 04 (कुल 14 पेजों का सप्लीमेंट)
झारखंड में बतौर कमीशन 336 करोड़ की वसूली – 23 दिसंबर 03
झारखंड राज्य विद्युत बोर्ड के पुनर्गठन के मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा, दागी अफसरों को कैसे सदस्य बनाया गया – 19 जुलाई 03
ग्रामीण विद्युतीकरण के ठेके में कमीशन दर पांच नहीं, छह फीसदी – 27 जुलाई 03
मुख्यमंत्री के गांव में बना डैम बह गया – जुलाई 03
झारखंड के मंत्रीयों का एक बंगला बने न्यारा – अगस्त 03
दागदार हैं पर झारखंड में महत्वपूर्ण पदों पर हैं – अगस्त 03
विधायकों को जमीन, कानून बदलने की तैयारी, अपनी गलती से 48 करोड की चपत – 6 अक्टूबर 03
अर्जुन मुंडा के दूसरे कार्यकाल में ही निर्दलीय मंत्रियों का असली रूप सामने आया. वह स्तब्ध करनेवाला था. उनके कारनामें, व्यवहार, कहीं किसी को डरा देना-धमका देना. खुलेआम मीडिया से कहना, यस, आइ एम करप्ट, सो वाटस् द बिग डील (हिंदुस्तान टाइम्स, दिनांक : 10 जुलाई 2008). यह झारखंड की स्थिति थी. प्रभात खबर में सिर्फ मंत्रियों के गलत कामों की खबरें ही नहीं छप रही थी. वर्ष 2002 में पलामू में भूख का सवाल प्रभात खबर ने उठाया. सरकार के तत्कालीन कैबिनेट सचिव ने लिखित रूप से चेताया. इस सवाल को वर्षों प्रभात खबर उठाता रहा, जब अर्जुन मुंडा मुख्यमंत्री बन गये, तब भी. इस अभियान के कारण ही सुप्रीम कोर्ट ने भूख के सवाल पर एक जांच कमेटी बनायी. एनसी सक्सेना के नेतृत्व में. उस कमेटी के दौरे और भूख की अन्य खबरों को उठाने से अर्जुन मुंडा सरकार नाराज हुई. मंत्री अपने कारनामें छपने से नाराज थे ही. इस तरह अर्जुन मुंडा कार्यकाल में फिर प्रभात खबर का विज्ञापन बंद हुआ. इस मुद्दे को भी प्रभात खबर ने उठाया.
इससे पहले भी जाकर देख सकते हैं, 1990 से प्रभात खबर नये स्वरूप में निकलना शुरू हुआ. उसने कैसे और किन मुद्दों को उठाया? पुराने अखबारों को पलट कर यह भी देखा जा सकता है. यह बताने का अर्थ एक ही है, प्रभात खबर की पत्रकारिता मुद्दों से जुड़ी है, व्यक्ति से नहीं. जो भी व्यक्ति सत्ता में आता है, उससे जो संवैधानिक-राजनीतिक अपेक्षाएं हैं, अगर वह सही काम नहीं करता, तो प्रभात खबर उन मुद्दों को उठाता है.
इसी तरह विनोद सिन्हा सामने आये. जब वह झारखंड स्तर के खिलाड़ी बन रहे थे, तब प्रभात खबर ने छापा. उन दिनों कोड़ा जी राज्य में मंत्री थे. बाद में कोड़ाजी मुख्यमंत्री हुए, तो विनोद सिन्हा राष्ट्रीय खिलाड़ी हो गये. वह भी प्रभात खबर ने उठाया. विनोद सिन्हा पर छपी रपटें गलत होतीं, तब कोई सवाल कर सकता था कि प्रभात खबर उन्हें बेवजह घसीट रहा है. पर विनोद सिन्हा पर छापने पर मधु कोड़ा पर क्या आंच आ रही थी?
जिस दिन संजय चौधरी मुंबई एयरपोर्ट पर पकडे गये (सितंबर 08), उस दिन पता चला कि संजय चौधरी और विनोद सिन्हा अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी बन चुके हैं. उसी दिन से मधु कोड़ा के नाम की चर्चा ने जोर पकडा. फिर पूरा प्रकरण सामने आया.
झारखंड विजिलेंस ने जब कोड़ा जी वगैरह के यहां छापे डाले (जुलाई 09), तो कोड़ाजी प्रभात खबर पर नाराज हुए. उनके द्वारा लगाये गये पूरे आरोपों को प्रभात खबर ने छापा. उनके घर से बरामद चीजों की जो सूची थी, वह प्रभात खबर में छपी थी. कमोबेश हर अखबार में वही चीजें थीं. पर नाराज वह सिर्फ प्रभात खबर से हुए. इसका कारण है कि उनके कार्यकाल की सभी गलत चीजें प्रभात खबर में छपीं थीं, जिन्हें लेकर अदालतों में कई याचिकाएं दायर हुई थीं.
प्रभात खबर से उनकी नाराजगी के पीछे यह मूल बात है. उस दौरान कोड़ाजी ने घोषणा की, मुझे साजिश कर फंसाया जा रहा है. फिर लगभग महीने – डेढ महीने बाद तथ्यों के आधार पर भारत सरकार के प्रवर्तन निदेशालय ने उनके खिलाफ मामला दर्ज किया (9 अक्टूबर 09 को प्रिवेनसन आफ मनी लांडरिंग एक्ट के तहत), तो उन्होंने दिल्ली में प्रेस कांफ्रेंस कर कहा, अखबारी कतरनों के आधार पर मेरे खिलाफ मामला दर्ज हुआ है (10 अक्टूबर 09). इसके लगभग एक माह बाद आयकर और इडी के देशव्यापी छापे पडे, तो अनेक तथ्य सामने आये (31 अक्टूबर 09). अगर ये सभी छापे गलत थे, उन्हें फंसाने के लिए थे और कोड़ाजी और उनकी टीम निर्दोष थी, तो गांव स्तर के दूध और खैनी बेचने वाले, कैसे अरबपति हो गये? विदेश के प्रवासी हो गये, महज दो-चार वर्षों में? क्या जादू या चमत्कार से धन पैदा होता है?
एक और जानकारी, उन लोगों के लिए जो प्रभात खबर और उषा मार्टिन के रिश्तों के बारे में जानने को इच्छुक हैं. प्रभात खबर, एक बीमार और बंद प्राय अखबार था. 1990 के अंतिम दौर में. इसे एक नयी कंपनी ने खरीदा. न्यूट्रल पब्लिशिंग हाउस ने. इसके संघर्ष का लंबा ब्योरा है. पर संक्षेप में जान लीजिए. झारखंड में देश के दो बड़े अखबार घराने आये. लगभग 10 वर्षों पहले. बड़ी पूंजी वाले. देश के सबसे बड़े अखबार घराने. प्रभात खबर अपने बल चल रहा था या रेंग रहा था. उसमें कहीं से कोई बाहरी पूंजी नहीं लगी.
प्रभात खबर ने अपने प्रबंधन से यह प्रस्ताव रखा कि कठिन स्पर्धा और चुनौती है. भविष्य की रणनीति-रास्ता तय करना चाहिए. फिर अनेक जाने-माने कंसलटेंट्स के परामर्श के बाद पता चला कि इसके फैलाव (एक्सपैनशन) की जरूरत है. यह वर्ष 2006 के अंत की बात है. प्रबंधन का कहना था, यह हमारा कोर बिजनेस नहीं है, इसलिए हम इसका फैलाव नहीं चाहते. जो जेनुइन सवाल था. तब प्रभात खबर के बिकने की बात तय हो गयी थी. पर प्रभात खबर के पत्रकारों ने प्रबंधन से अनुरोध किया, हम कोशिश कर इसे चलाना चाहते हैं, प्रबंधन सहमत हुआ और इस तरह प्रभात खबर अपने द्वारा तय आचार संहिता से चलता है. स्वायत्त ढंग से. क्योंकि किसी बाहरी हस्तक्षेप पर यह पत्रकारिता हो ही नहीं सकती, जो प्रभात खबर कर रहा है. (मिंट-02.02.07)
15 नवंबर 2000 को झारखंड बना. तब से अब तक प्रभात खबर कैसे वाचडाग की भूमिका में रहा, पहरेदार का काम करता रहा, यह रहा इसका संक्षिप्त ब्योरा-विवरण. बाबूलाल मरांडी पहले मुख्यमंत्री थे. फिर अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा और फिर शिबू सोरेन. इनके राजकाज और कार्यकाल की अप्रिय चीजें छपीं. इनके जीवन से जुड़े वे विवरण भी छपे, जिनका सामाजिक सरोकार था. राष्ट्रपति शासन के दौरान एक राज्यपाल पर लगे आरोप भी प्रभात खबर में ही छपे. इसी क्षेत्र में जब यह बिहार का हिस्सा था, पशुपालन घोटाला हुआ. वह भी प्रभात खबर में उजागर हुआ. ऐसा भी नहीं था कि ये सारे मामले कोई लुक-छिप कर हो रहे थे. सभी जानते थे. पशुपालन घोटाले में भी पत्रकार किसलय सारे तथ्यों को ढूंढ लाये थे. यह अलग बात है कि किसलय जैसे पत्रकार अब दुर्लभ होते जा रहे हैं. प्रभात खबर ने ऐसे लोगों को क्यों प्रमुखता दी?
बड़े मुद्दे और मसले लगातार उठाये और दशकों से उठाता रहा. लगातार नुकसान झेल कर. क्योंकि प्रभात खबर पत्रकारिता के क्षेत्र में एक अलग प्रयोग कर रहा था. जब पत्रकारिता की मुख्यधारा, पेज थ्री की फिलासफी से चल रही थी यानी मनोरंजन, सूचना, फैशन और सनसनीखेज व बाजार की बातें, तब इसके समानांतर क्या सामाजिक सवालों पर पत्रकारिता का कोई स्कोप बचा था? प्रभात खबर ने अपने नये स्वरूप में ’91 के बाद यही धरातल तलाशा. तब लोग प्रभात खबर को चलने का दो माह का भी समय नहीं देते थे. आज 20 वर्ष हो गये. सामाजिक सवालों पर पत्रकारिता ने जगह बनायी. सबसे बडी पूंजी वाले दो-दो घरानों के आने के बाद भी प्रभात खबर के पाठकों की संख्या लगातार बढ़ रही है. इसका अर्थ साफ है – समाज के मूल सवालों से कट कर कोई पत्रकारिता नहीं चल सकती. मधु कोड़ा का सवाल भी समाज और व्यवस्था के ज्वलंत सवालों में से एक है.
यह सही है कि प्रभात खबर की पत्रकारिता का यही पक्ष चर्चा में है. पत्रकारिता में अनेक नये प्रयोग प्रभात खबर ने किये हैं. गांव-गांव, डगर-डगर जाकर पत्रकारिता के फोकस को बदलने के लिए. खबर का केंद्र नेता और बड़े लोग न बनें, कामन मैन, स्कूल के बच्चे और आम लोग, जो जीवन संघर्ष के केंद्र में हैं, वे खबरों की धुरी बनें, यह कोशिश की. दुनिया में जो कुछ सकारात्मक हो रहा है, बड़े परिवर्तन हो रहे हैं, उस पर भी प्रभात खबर ने बड़ा काम किया. उसका यह पक्ष और यह पहलू शायद सबसे अधिक है. प्रभात खबर ने जब नये स्वरूप में पत्रकारिता शुरू की, तो इन्हीं मूल विषयों को फोकस किया. लगा गवर्नस, कुशासन, भ्रष्टाचार वगैरह के सवाल महत्वपूर्ण हैं. इस पर भी उसने लगातार काम किया. इस तरह इन सभी मुद्दों पर प्रभात खबर सवाल उठाता रहा, क्योंकि प्रभात खबर को पत्रकारिता में एक नये धरातल की तलाश थी, धरातल पेज थ्री के पत्रकारिता के दर्शन के विकल्प में. 20 वर्षों का यह प्रयोग सामने है. सार्थक है या असार्थक, यह तो पाठकों का संसार तय करेगा. प्रभात खबर, अब्राहम लिंकन के इस कथन पर यकीन करता है कि जीवन के अंत में, यह प्रासंगिक नहीं होता कि आपका जीवन कितना लंबा रहा, या कितने वर्ष आप जिये. महत्वपूर्ण है कि जीवन कैसे जिया.
….समाप्त….