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दुख-दर्द

जहर का इंजेक्शन दिया गया था हेम को!

माओवादी नेता आजाद के साथ फर्जी एनकाउंटर में मारे गए पत्रकार हेमचंद्र पांडे का बुधवार को दिल्ली के निगम बोधघाट में अंतिम संस्कार किया गया। इससे पहले तमाम पत्रकारों, साहित्कारों और बुद्धिजीवियों ने हेम के फर्जी एनकाउंटर की निंदा करते हुए घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की। विरोध सभा में जानी मानी लेखिका अरुंधति राय ने कहा कि मसला यह नहीं है कि हेम पत्रकार थे या नहीं और हेम माओवादी थे या नहीं। किसी भी सरकार को ऐसे हत्या करने का हक नहीं है। मैं हेम और आजाद दोनों की हत्या की निंदा करती हूं। आजाद माओवादी थे तब भी सरकार को उनकी हत्या करने का कोई अधिकार नहीं है।

माओवादी नेता आजाद के साथ फर्जी एनकाउंटर में मारे गए पत्रकार हेमचंद्र पांडे का बुधवार को दिल्ली के निगम बोधघाट में अंतिम संस्कार किया गया। इससे पहले तमाम पत्रकारों, साहित्कारों और बुद्धिजीवियों ने हेम के फर्जी एनकाउंटर की निंदा करते हुए घटना की निष्पक्ष जांच की मांग की। विरोध सभा में जानी मानी लेखिका अरुंधति राय ने कहा कि मसला यह नहीं है कि हेम पत्रकार थे या नहीं और हेम माओवादी थे या नहीं। किसी भी सरकार को ऐसे हत्या करने का हक नहीं है। मैं हेम और आजाद दोनों की हत्या की निंदा करती हूं। आजाद माओवादी थे तब भी सरकार को उनकी हत्या करने का कोई अधिकार नहीं है।

अरुंधति राय ने कहा कि सरकार कानून का इस्तेमाल करके जेल में डाल सकती है पर किसी की हत्या नहीं कर सकती। चाहे वह किसी भी विचारधारा से ताल्लुक रखता हो। हमें इस मामले में जांच चाहिए, कि क्या हुआ था, कहां से उन्हें पकड़ा गया, कहां उन्हें मारा गया और क्यों उन्हें मारा गया। सब जानते हैं कि आजाद माओवादी पार्टी के मुख्य शख्स थे जो शांति वार्ता की कोशिश में लगे थे। यह यकीन नहीं किया जा सकता कि पुलिस ने बिना हायर अथॉरिटी की इजाजत के ऐसा किया होगा। यह साफ है कि सब कुछ ऊपरी लेवल पर हुआ है।

हेम के भाई राजीव पांडे ने कहा कि जब हम हैदराबाद गए तो वहां के पत्रकारों और ह्यूमन राइट्स एक्टिविस्टों ने बताया कि जब उन्होंने आस पास के लोगों से बात की तो पता चला कि वहां कोई एनकाउंटर नहीं हुआ है। गांव के लोगों ने भी यही कहा। मैं अपनी भाई की हत्या के जिम्मेदार लोगों को सजा दिलाकर रहूंगा और हर अदालत का दरवाजा खटखटाऊंगा।

हेम की पत्नी बबीता पांडे ने कहा कि मेरे पति को बेवजह मारा गया। इसकी जांच होकर हत्यारों को कड़ी सजा मिलनी चाहिए। हमें बताया गया कि जब उन्हें नागपुर में पकड़ा गया तो उन्होंने हल्ला मचाया तो पुलिस ने उन्हें जहर के इंजेक्शन दे दिए।

पूर्व आईएएस अधिकारी बी. डी. शर्मा ने कहा कि हेम को साजिश के तहत मारा गया। सरकार का खुफिया तंत्र शांति नहीं चाहता था वह सिर्फ आजाद की पहचान कर हत्या करना चाहते थे। शांति की चाह दिखाना सरकार की साजिश थी। और प्री प्लेन्ड तरीके से आजाद को और एक पत्रकार को मार डाला गया। यह एक साजिश थी।

प्रेस क्लब आफ इंडिया के सेक्रेटरी पुष्पेंद्र कुलश्रेष्ठ ने कहा कि हेम किस विचारधारा से ताल्लुक रखते थे इससे कुछ फर्क नहीं पड़ता। हकीकत यह है कि वह पत्रकार थे और साजिश के तहत उन्हें मारा गया। हम हेम के लिए न्याय की मांग करते हैं और इस लड़ाई में प्रेस क्लब के ढ़ाई हजार मेंबर साथ हैं। हेम, हेमंत पांडे नाम से लिखा करते थे और हम सबने उनके लेख पड़े हैं।

आंध्र प्रदेश से आए पत्रकार जलील ने कहा कि आंध्र की सरकार पिछले कई सालों से फर्जी एनकाउंटर कर रही है। मैं आंध्र प्रदेश के पत्रकारों की तरफ से ये कहना चाहता हूं कि हेम को हिरासत में लेने के बाद उसका एनकाउंटर क्यों किया गया। अगर कोई शक था तो जांच की जा सकती है। सरकार ने ऐसा करके पत्रकारों को धमकी दी है कि अगर तुम किसी माओवादी का इंटरव्यू करने गए तो तुम्हारा हाल भी यही होगा। मगर हमें लोगों तक सच्चाई पहुंचाने के लिए माओवादियों का भी इंटरव्यू लेना पड़ता है, ऐसे मैं तो सरकार किसी भी पत्रकार को माओवादी करार दे सकती है। मगर हम नहीं डरेंगे। वरिष्ठ पत्रकार आनंद स्वरूप वर्मा ने कहा  कि इस फर्जी एनकाउंटर की पूरी जांच होनी चाहिए। हेम के साथ काम करने वाले साथियों ने भी मीडिया को सच्चाई बताई। उन्होंने बताया कि हेम लगातार लिखते रहते थे और एक पत्रकार थे।

विरोध सभा को मेन स्ट्रीम के संपादक सुमित चक्रवर्ती, साहित्यकार पंकज बिष्ट, फिल्मकार संजय काक, कवि मंगलेश डबराल, नीलाभ, पत्रकार जावेद नकवी, अनिल चमड़िया, उत्तराखंड पत्रकार परिषद के सुरेश नौटियाल, चारू तिवारी, पीयूडीआर के हरीश धवन, भाकपा माले की राधिका मेनन, आइसा के सचिव रवि राय, संस्कृतिकर्मी अलखनाथ उप्रेती, प्रोफेसर अमित भादुड़ी, डॉ मृगांग, कॉम्बेट लॉ के संपादक हर्ष डोभाल, पीपुल्स मार्च के संपादक गोविंदन कुट्टी, आंध्र प्रदेश इलेक्ट्रॉनिक जर्नलिस्ट यूनियन के जलाल, हैदराबाद से आए मानवाधिकार कार्यकर्ता रघुनाथ आदि ने संबोधित किया. संचालन पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता भूपेन सिंह ने किया. इसस मौक़े पर बड़ी संख्या में दिल्ली और उत्तराखंड के पत्रकारों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अलावा हेम पांडे के रिश्तेदार और उनकी कंपनी डीएआरसीएल में साथ काम करने वाले लोग मौजूद थे.

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0 Comments

  1. Ramesh Parida

    July 8, 2010 at 9:18 am

    Jab azad aur uske sahyogi maobadiyon dwara am adivasiyon ki berahmi se gala kat kar hatya karte hain tab yah log kahan rahte hain. maobadiyon ko boudik samarthan karne wale logon hi iske liye jimmedar hain. Is report mein anek logon ke nam likhe gaye hain. Mein police dwara kiye ja rahe hatya ka samarthan nahin kar raha hun. Agar yah farzi hai to doshiyon ko dand milna hi chahiye . lekin in tathakathit manavadhikarvadiyon ka double standard nahin chalega.

  2. Ashok Jain

    July 8, 2010 at 9:34 am

    Your view is perfectly correct and the murder of both Azad and Hemchand Pandey is to be condemned by each & every countrymen. However, as learnt that the Home Minister wanted to know from the Maoist that he would start dislogue with them if they declare the date from when they would observe 72 hours non-violence through a letter to Swamy Agnivesh. The news was telecasted in yesterday’s CNN-IBN. This was also conveyed to Azad by Agnivesh Ji.and he was about to declare the date. This is intriguing. This matter is required to be taken care of by the investigating agency. There has been violation of the commitment of HM. Therefore, he should clarify his position.

  3. kamta prasad

    July 8, 2010 at 10:14 am

    रमेश जी यहां स्‍टेट एजेंसियों के कुकर्मों पर ध्‍यान दें आऔर उसका विरोध करेंे

  4. Uttank

    July 8, 2010 at 10:58 am

    Duniya mein suru se hi ek satya byapt raha hai ki [b]Punjiwaad ne Loktantra[/b] ki humesha hi htya ki hai. India bhi usi raste par chal raha hai.
    Aaj Loktantra mein kisi ki aawaaj sunne wala koi nahi hai. Aur agar koi apni aawaaj ko buland kare to uski hatya kar di jati hai.

    Ek sachhai ye bhi hai ki kisi desh mein agar punjiwaadi vichardhara ko sthapit karna ho to pahle us desh ki loktantrik pranali ko chaupat kiya jaye. 1991 ke baad se humare desh mein aisa hi ho raha hai. Sari ki sari satta corporate world ke paas aa gai hai aur humare neta log unki katthputali bante ja rahe hain. Aaj Pradhanmantri ki PC prayojit hone lagi hai. PM ke paas logo ki problems ko janne ka na to time hai aur na hi unka samadhan karne mein PM ko koi interest.

    Ek patrakar ki maut nischay hi humare Loktantra par humla hai. Aur ye humla Sarkaar ne kiya hai. Ye Pungiwaad ka prabhav hi hai. Sab khel satta ka hi hai.
    Lakin is patrakar ki hatya humare India ka durbhagya hi hai.

    Sari political parties ko ye achhi tarah jaan lena chahiye ki unke din bhi pure ho jayenge. Qki nature ka system uko bhi nestenaboot kar dega.

    Ab mujhe journalist hone par proud feel nahi hota.

    Ek journalist ki hatya aur ek sawal

    [b]Kya hum aazad hain?[/b]

  5. chandan bangari

    July 8, 2010 at 12:26 pm

    patrakar hem panday ke sath jo hua mo dobara kisi ke sath na ho iskeliye hem koa farji incounter karne walo ko saza dilana jaruri hai. iske liye sabhi ko sath milkar ladai ladni hogi

  6. chhagan

    July 8, 2010 at 4:48 pm

    Where was arundhati and company when CRPF jawans killed by maoist..she didnt condemned the barbaric act..they are hypocrates and anti nationals

  7. chhagan

    July 8, 2010 at 4:50 pm

    where was Arundhati and comapany when innocent CRPF jawans killed..she is hypocrate and anti national

  8. vinod arya

    July 9, 2010 at 5:42 am

    patrakar farji incounter karne walo ko saza dilana jaruri hai. iske liye sabhi ko sath milkar ladai ladni hogi
    ham sath ha

  9. Vikas

    July 9, 2010 at 7:45 am

    Kai Baar Ham Patrakaaro Ko Kisi Wanted Ya Maovaadi Ki Byte Lene Jani Parti Hai Iska Matalam ye Nahi Hai Ki Hum Wanted Ya Maovaadi Hai . Ye Hamara Kaam Hai .. Lekin Saval Ye Hai ki Kya hum aazad hain?

  10. sunil pathak

    July 9, 2010 at 11:38 am

    we must condemn the killing of a journalist.

  11. vijay

    July 9, 2010 at 6:24 pm

    इस घटना ने बता दिया है,कि भारतीय लोकतंत्र की दुहाई देने वाले शासकों को ही इस व्यवस्था में यकीन नही है। अगर माओवादी और पुलिस हत्या से ही हल निकालना चाह रहे हैं,तो दोनों में अंतर कहां हैं। पुलिस अगर आजाद और हेम को पकड़ कर कानूनी कार्रवाई करती तो, शायद लोगों का भारतीय लोकतंत्र पर विश्वास कायम होता। लेकिन ऐसा हो न सका। इस घटना से लगता है,.कि हमारे शासक चाहते ही नही है,कि नक्सलवादी समस्या का हल हो। हेम को जिस तरह मारा गया है, उसकी कीमत भारत के तथाकथित लोकतंत्र को चुकानी पड़ेगी। जरा सोचिएं एक 32 साल का नौजवान बिना गुनाह किये मारा जाता है। क्या गुजरी होगी उस परिवार पर। इस घटना को मैं खुद पर रखकर देख रहा हुं। सच कहुं तो आंतकित हो रहा हूं। ये मुल्क अपना नही लग रहा है। ये पुलिस जान की दुश्मन लग रही है। क्यों खामोश हो हमारे रहनुमाओं। जरा सोचो मुल्क कहां जा रहा है। हेम तुम्हारे साथ हुए अन्याय को कभी भुलाया नही जा सकता है।

  12. prakash singh

    July 10, 2010 at 4:48 pm

    ek patarkar sathi ka jana dhukh dene wali ghatna hai. par hum sab ye kyoun nahi shochte ki jab hamare bhai aaj ki is mahngai v galakat dour me bhi surksha balo ki adni c pagar vali noukri me jaan gava dete hai.tab hamare adhikar v farz kyoun khamos ho jate hai.aaj desh ke lakho yuvao ka jiven khatro se khel raha hai to vah sirf un chand logo ki vajah se hai jo banduk dikhakar kah rahe ki vah hi sahi hai.aaj desh men dharam,khshetra,bhasha,v varg ke nam ki aad me bahuto ne avaidh chanda vasuli ,rangdari , firouti ,v loot ko apna pesha bana rakha hai.agar koi kahta hai ki vah hi sahi hai to BULT KI BAJAY BELT SE APNI OKAAT DEKHE.

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