प्रिय यशवंत जी, काफी समय से बी4एम देख रहा हूं। खुशी और रंज तो लगा रहता है। आपको जानता भी हूं, जब लखनऊ जागरण में रहे। आपका यह सार्थक प्रयास अच्छा लगा कि इसके जरिए विश्वभर में पत्रकार एक दूसरे से रू-ब-रू हो रहे हैं। राष्ट्रीय सहारा, लखनऊ की शुरुआत से यहीं हूं। विष्णुजी को भी देखा-सुना बतियाया है। कभी उग्र तो नहीं देखा, जाति-प्रांत विभेद से भी वे दूर हैं। हां, कामचोरों से उन्हें जरूर नफरत रही है। मुझे भी है। मगर विष्णुजी के मुंह से अपशब्द तो नहीं ही सुने।
रही बात नए विवाद की तो दिल्ली के पत्रकारों से भी पाला पड़ा है और देखा भी है कि वहां बिहारी और उत्तराखंडी अपने आगे दूसरों को कुछ समझते नहीं हैं। मेरे जूनियर सहयोगियों का अनुभव यही बताता है। मेरे लोग भी आजतक से पूर्व जिन-जिन चैनलों में रहे, यही सब बखान करते हैं। ऐसी दशा में विरोध के उन्हीं स्वरों को स्थान दीजिए जो सुझावात्मक हों…। बहसबाजी से बचने का प्रयास लाभकारी होता है। सिद्धार्थ कलहंस जी की बात भी लगभग यही कह रही है।
अंत में, तोहार दारू-आख्यान काफी रुचिकर अउर प्रभावी लागल रहे…
धन्यवाद
हेमंत शुक्ल
लखनऊ