हिंदी अकादमी के शलाका सम्मान विवाद के कारण तेईस मार्च को होने वाले सम्मान समारोह का टलना लगभग तय माना जा रहा है। कार्यक्रम के मुताबिक इस सम्मान समारोह में दो वर्ष के पुरस्कार दिए जाने थे। ये पुरस्कार मुख्यमंत्री और अकादमी अध्यक्ष शीला दीक्षित की मौजूदगी में महाश्वेता देवी देने वाली थीं।
लेकिन विश्वस्त सूत्रों के मुताबिक, शलाका सम्मान विवाद के मद्देनजर महाश्वेता देवी ने पुरस्कार समारोह में शामिल होने से इंकार कर दिया है। इसी के बाद, अकादमी के सूत्रों का कहना है कि अकादमी ने यह पुरस्कार समारोह टालना तय कर लिया है। सूत्रों ने यह भी कहा कि अकादमी ने कार्यक्रम टालने और नए सिरे से कार्यक्रम तय करने संबंधी सूचना मुख्यमंत्री को देते हुए उनकी स्वीकृति मांगी है।
दरअसल, हिंदी के प्रसिद्ध कवि केदारनाथ सिंह के शलाका सम्मान नहीं लेने के एलान के बाद इस बात की आशंका जताई जाने लगी थी कि मुख्यमंत्री और अकादमी की अध्यक्ष शीला दीक्षित शायद समारोह में शिरकत न करें। महाश्वेता देवी के समारोह में शामिल होने को लेकर भी अटकलें लगने लगी थी। ऐसी स्थिति में, कुछ ऐसे लेखक जिन्होंने अकादमी का पुरस्कार भले न लौटाया हो, कहने लगे थे कि वे अकादमी के उपाध्यक्ष अशोक चक्रधर के हाथों पुरस्कार नहीं लेंगे। इन हालात के मद्देनजर अकादमी के पास समारोह को टालने के अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया था। हालांकि समारोह टलने की पुष्टि नहीं हो पाई, क्योंकि अकादमी के उपाध्यक्ष और सचिव से बात करने की कोशिश सोमवार को नाकाम रही।
दरअसल, वर्ष 2008-09 के पुरस्कारों का फैसला करने वाली अकादमी की उस वक्त की कार्यकारिणी ने शलाका सम्मान के लिए कृष्ण बलदेव वैद का नाम तय किया था। लेकिन वैद को सूचित कर दिए जाने के बावजूद अंतत: जब अकादमी ने वर्ष 2009-10 के पुरस्कारों के साथ ही वर्ष 2008-09 के पुरस्कारों की घोषणा की तो उसमें सिर्फ यह उल्लेख किया गया कि उस वर्ष का शलाका सम्मान किसी को नहीं दिया जा रहा है।
इसे हिंदी के कई लेखकों ने एक लेखक का अपमान करार दिया था। उसके बाद वरिष्ठ आलोचक पुरुषोत्तम अग्रवाल ने वैद के साथ हुए बर्ताव के विरोध में साहित्यकार सम्मान लेने से इंकार कर दिया। अगले ही दिन केदारनाथ सिंह ने वर्ष 2009-10 का शलाका सम्मान ठुकरा दिया और उनके साथ ही रंगकर्मी रेखा जैन, कवि पंकज सिंह, कवयित्री गगन गिल, कवि विमल कुमार और कथाकार प्रियदर्शन ने भी विभिन्न श्रेणियों में घोषित पुरस्कार लेने से इनकार कर दिया। पिछली बार पुरस्कारों की घोषणा ही नहीं हो पाई और इस बार घोषणा के बावजूद पुरस्कारों के इतिहास में इतनी बड़ी संख्या में पुरस्कार लौटाने की घटना सामने आ गई। साभार : जनसत्ता
govindmathur
March 18, 2010 at 3:30 pm
Kedar Nath Singh Ji sahit sabhi sahityakaron ne sahi nirnay liya hai. Acadmy dwara kisi sahityakar ka apman bardash nahi kiya ja sakta hai.